08/07/2025
कलयुग की शुरुआत
कलयुग की शुरुआत द्वापर युग के अंत और भगवान कृष्ण के पृथ्वी से अपने धाम लौटने के साथ हुई मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने अपने शरीर का त्याग किया, तभी से कलयुग का आगमन हो गया। महाभारत के अनुसार, जब पांडवों ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया और कलियुग ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था।
कलयुग के आगमन की एक और महत्वपूर्ण घटना परीक्षित से जुड़ी है। कथा के अनुसार, परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दिया था कि उनकी मृत्यु तक्षक नाग के काटने से होगी। इसी दौरान, कलि पुरुष (कलयुग का प्रतीक) ने परीक्षित के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति मांगी। परीक्षित ने उसे जुआ, शराब, परस्त्री गमन, हिंसा और स्वर्ण में रहने की अनुमति दी। स्वर्ण में वास करने वाले कलि पुरुष ने ही राजा परीक्षित को शाप दिलाने में भूमिका निभाई थी।
कलयुग की विशेषताएँ और प्रभाव
* धर्म का पतन: धर्म के नियमों का पालन कम हो जाता है, अधर्म बढ़ता है।
* सत्य की कमी: लोग झूठ बोलने लगते हैं और सच्चाई का महत्व कम हो जाता है।
* लालच और स्वार्थ: मनुष्य में लालच और स्वार्थ की भावना बढ़ जाती है।
* छोटी उम्र: मनुष्यों की औसत आयु कम हो जाती है।
* बीमारियाँ और दुख: अनेक प्रकार की बीमारियाँ और कष्ट बढ़ जाते हैं।
* जाति-भेद का विस्तार: वर्ण व्यवस्था में विकृति आ जाती है और जाति-भेद बढ़ जाता है।
* पारिवारिक मूल्यों का क्षरण: रिश्तों में प्रेम और सम्मान कम हो जाता है।
कलयुग से बचने के उपाय (कष्टों को कम करने के लिए)
हिंदू धर्मग्रंथों में कलयुग के कष्टों से पूरी तरह से बचा नहीं जा सकता, लेकिन उनके प्रभाव को कम करने और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं:
* हरि नाम संकीर्तन: कलयुग में भगवान के नाम का जप (जैसे "हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे") को सबसे श्रेष्ठ और सरल मार्ग बताया गया है। इससे मन शांत होता है और पापों का नाश होता है।
* धर्म का पालन: अपनी क्षमतानुसार धर्म के मार्ग पर चलना, सत्य बोलना, ईमानदारी से काम करना और दूसरों के प्रति दया का भाव रखना महत्वपूर्ण है।
* सत्संग: साधु-संतों और धार्मिक लोगों की संगति करना, उनके उपदेशों को सुनना और उन पर अमल करना आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि करता है।
* दान: अपनी क्षमतानुसार गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना और दान देना पुण्य का कार्य माना जाता है।
* परोपकार: दूसरों के भले के लिए कार्य करना और निस्वार्थ भाव से सेवा करना मन को शुद्ध करता है।
* ध्यान और योग: मन को शांत रखने, एकाग्रता बढ़ाने और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करना लाभकारी है।
* धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: भगवद गीता, रामायण, श्रीमद्भागवतम् जैसे धार्मिक ग्रंथों का नियमित अध्ययन करने से ज्ञान बढ़ता है और सही-गलत का विवेक होता है।
* सात्विक जीवन: सात्विक भोजन ग्रहण करना, व्यसनों से दूर रहना और एक संतुलित जीवनशैली अपनाना शरीर और मन दोनों के लिए हितकारी है।