06/09/2025
कब से प्रारम्भ होंगे श्राद्ध पक्ष?
मथुरा - पंचांग के अनुसार अके आश्विन कृष्ण पक्ष श्राद्ध का प्रारम्भ 07 सितम्बर 2025 (भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा उदयात में रहेगा) से 21 सितम्बर 2025 (आश्विन कृष्ण अमावस्या) तक रहेगा।
श्राद्ध करने का समय - अपरान्ह काल का दिव्य समय (दोपहर 012:36 से 03:30 बजे तक)होता है ।
पूर्णिमा के बाद अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 07 सितम्बर से 21 सितम्बर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा सुख समृद्धि खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वज़ों का श्राद्ध करें इसके लिये शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज़, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है। समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। पिता के लिये अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है। श्राद्ध का मतलब श्रद्धा पूर्वक पितरों को प्रसन्न किए जाने से है. मान्यता के मुताबिक किसी के परिजनों का देहांत हो जान के बाद उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहते है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से पितरों को शांति और मुक्ति मिलती है। पुत्रों को श्राद्ध करने का अधिकार है लेकिन अगर पुत्र न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है. वहीं पुत्र के न होने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है।
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पुत्र, पत्नी, सहोदर भाई आदि श्राद्ध करने के अधिकारी होते है अर्थात् सबसे पूर्व मृतक का पुत्र श्राद्ध करे, यदि पुत्र नहीं हो तो पत्नी श्राद्ध करे। पत्नी भी न होने पर सहोदर भाई आदि क्रमश: श्राद्ध करे। पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, पुत्री का पुत्र, पत्नी का भाई, भाई का पुत्र, पिता, माता, बहू, बहिन सपिण्ड सोदक इनमें पूर्व के न होने से पिछले-पिछले पिण्ड के दाता कहे गये है।
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07 सितंबर 2025 :- भादों पूर्णिमा
08 सितंबर 2025 :- प्रतिपदा का श्राद्ध, पितृ पक्ष व महालय प्रारम्भ होता है।
09 सितंबर 2025 :- द्वितीया का श्राद्ध
10 सितंबर 2025 :- तृतीया का श्राद्ध एवं चतुर्थी का श्राद्ध
11 सितंबर 2025 :- पंचमी का श्राद्ध, भरणी नक्षत्र का श्राद्ध
12 सितंबर 2025 :- षष्ठी का श्राद्ध, कृत्तिका नक्षत्र का श्राद्ध
13 सितम्बर 2025 :- सप्तमी का श्राद्ध
14 सितम्बर 2025 :- अष्टमी का श्राद्ध
15 सितम्बर 2025 :- नवमी का श्राद्ध, अविधवा नवमी, सौभाग्यवती मृतकाओं का श्राद्ध (ऐसी सुहागन स्त्रियां, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो)
16 सितम्बर 2025 :- दशमी का श्राद्ध
17 सितम्बर 2025 :- एकादशी का श्राद्ध
18 सितम्बर 2025 :- द्वादशी का श्राद्ध, सन्यासियों का श्राद्ध
19 सितम्बर 2025 :- त्रयोदशी का श्राद्ध, मघा नक्षत्र का श्राद्ध
20 सितम्बर 2025 :- चतुर्दशी का श्राद्ध, विष-शास्त्रादि से मृतकों का श्राद्ध
21 सितम्बर 2025 :- सर्वपितृ श्राद्ध व अमावस्या व पूर्णिमा श्राद्ध (वे सभी जातक जिनकी मृत्यु तिथि का हमें ज्ञान नहीं है, उन सभी का श्राद्ध इस दिन कर सकते है) पं.अजय कुमार तैलंग ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पूर्णिमा का श्राद्ध क्यों कि वह भादों की पूर्णिमा होती है इसलिए इस श्राद्ध को व्यतिपात तिथि में करना चाहिए। अब के यह तिथि 12,15,18, व 21 सित. किसी दिन भी कर सकते हैं।