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08/09/2025
लिंक्डइन पर एक वायरल पोस्ट ने स्वास्थ्य बीमा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसमें बताया गया है क...
06/09/2025

लिंक्डइन पर एक वायरल पोस्ट ने स्वास्थ्य बीमा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसमें बताया गया है कि 2.40 करोड़ रुपये की पॉलिसी वाले एक मरीज को जीवन रक्षक उपचार के लिए 61 लाख रुपये के कैशलेस क्लेम से कथित तौर पर इनकार कर दिया गया है।स्वास्थ्य बीमा और निवेश सलाहकार अविज्ञान मित्रा की लिंक्डइन पोस्ट के मुताबिक, मुंबई के सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में माइलॉयड ल्यूकेमिया से पीड़ित चंद्र कुमार जैन को तत्काल अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बीएमटी) की जरूरत है। मरीज के पास निवा बूपा की स्वास्थ्य पॉलिसी है, जिसमें 1 करोड़ रुपये का बेस कवर और 1.4 करोड़ रुपये का नो-क्लेम बोनस शामिल है। इसके बावजूद बीमाकर्ता ने अचानक कैशलेस स्वीकृति देने से इनकार कर दिया और कहा कि "दायित्व स्थापित नहीं किया जा सकता।"

यह कार्रवाई ऐसे समय में की गई जब कंपनी ने पहले ही 25 लाख रुपये के बीएमटी पैकेज के लिए लिखित पूर्व-अनुमोदन प्रदान किया था। अविज्ञान मित्रा ने इसे "व्यवस्थागत विश्वासघात" करार देते हुए कहा कि "एक ही मरीज, एक ही इलाज, एक ही प्रक्रिया, एक ही पॉलिसी होने के बावजूद परिवार को जीवन रक्षक चिकित्सा के लिए भारी मात्रा में नकदी जुटाने को मजबूर किया जा रहा है।" पोस्ट में यह भी कहा गया कि स्वास्थ्य बीमा को शब्दों के खेल और नियमों की बाधाओं तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। जब जान दांव पर हो, तब सम्मान, करुणा और निष्पक्षता सर्वोपरि होनी चाहिए। यह लड़ाई केवल श्री जैन की नहीं है, बल्कि भारत में हर उस परिवार के लिए है जिसे अपने सबसे मुश्किल समय में अपने बीमाकर्ता से मदद के लिए भीख नहीं माँगनी पड़े।

05/09/2025

*"डॉक्टर्स का भविष्य दांव पर: कब जागेंगे हम?"*

दक्षिण कोरिया के इंटर्न और रेसिडेंट डॉक्टर्स ने पूरे 18 महीने तक कार्य बहिष्कार किया। कारण? उनकी सरकार ने मेडिकल सीट्स को 3,000 से बढ़ाकर 5,000 करने का निर्णय लिया था। युवा डॉक्टर्स को डर था कि इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में मेडिकल सीट्स दोगुनी हो गईं, लेकिन किसी ने सवाल नहीं उठाया। सरकार ने स्वयं संसद में कहा कि भारत का डॉक्टर-रोगी अनुपात अब WHO से बेहतर है। फिर भी कोई यह पूछने का साहस नहीं करता कि जब अनुपात बेहतर है, तो नए मेडिकल कॉलेज इतनी तेज़ी से क्यों खोले जा रहे हैं?

ज़रा हालात देखिए—

एक जिला अस्पताल से क्रमोन्नत मेडिकल कॉलेज में ENT डिप्लोमा की 10 सीट्स हैं। तीन बैच मिलकर 30 छात्र, और जब कोई सर्जरी होती है तो ऑपरेशन थियेटर का नजारा डिसेक्शन हॉल जैसा होता है।

राजस्थान में एनेस्थीसिया की 400+ सीट्स हो चुकी हैं। यानी हर साल हर जिले में लगभग 8 नए एनेस्थेटिस्ट। अगले 10 वर्षों में केवल एक लोकसभा क्षेत्र में 160 से भी अधिक निश्चेतना रोग विशेषज्ञ होंगे। कितना काम मिल पाएगा उन्हें ? यही हाल अन्य स्पेशियलिटीज़ का भी है।

अब जरा प्राइवेट मेडिकल सीट्स पर नज़र डालिए—
कुल मेडिकल और पीजी सीट्स की लगभग 50% सीट्स प्राइवेट हैं, जिनकी फीस करोड़ों में है। इन सीट्स से सालाना अरबों रुपए का टर्नओवर होता है। इनमें से अधिकतर डॉक्टर्स को डिग्री लेने के बाद न सरकारी नौकरी मिलेगी, न निजी क्षेत्र में सम्मानजनक वेतन। इनमेक्स अधिकांश की “एकमात्र उपलब्धि” अपनी फीस से देश की इकॉनमी को मजबूत करना होगा।

यह सब हमारी आंखों के सामने हो रहा है। और हम? हम उस मूर्ख कबूतर की तरह हैं जो बिल्ली को देखकर भी आंखें बंद कर लेता है।

अब भी वक्त है। अगर हमने आंखें न खोलीं और आवाज़ न उठाई, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ़ नहीं करेंगी।

✍️ डॉ. राज शेखर यादव
राजस्थान

*डेढ़ करोड़ का बॉन्ड*राजस्थान में अब सरकारी संस्थानों से पीजी करने वाले डॉक्टर्स को डेढ़ करोड़ तक का बॉन्ड भरना होगा। वि...
02/09/2025

*डेढ़ करोड़ का बॉन्ड*
राजस्थान में अब सरकारी संस्थानों से पीजी करने वाले डॉक्टर्स को डेढ़ करोड़ तक का बॉन्ड भरना होगा। विभिन्न ब्रांचेस के लिए यह राशि भिन्न भिन्न रखी गई है।
कुछ गंभीर प्रश्न -
1. यदि राजकीय संस्थानों में कर दाता के धन से कम फीस पर पढ़ाई के एवज में यह बॉन्ड है तो फिर यह बॉन्ड इंजीनियर्स और IIT ग्रेजुएट्स पर लागू क्यों नहीं है ?

2. PG करने वाले डॉक्टर्स तो पढ़ाई कम और सरकारी अस्पताल में काम अधिक करते हैं। न उनके काम के घंटे निर्धारित हैं न कार्य स्थल पर सुरक्षा। उनके द्वारा डिग्री के बदले तीन साल सरकारी अस्पताल में दी गई सेवा पर्याप्त नहीं ?

3. वे डॉक्टर्स जो राजकीय सेवा में रहते हुए बोनस अंकों का लाभ लेकर पीजी करते हैं उन्हें पीजी के बाद कुछ साल सेवा के लिए बाध्य किया जाना तो समझ आता है लेकिन वहीं नियम नॉन सर्विस कैंडिडेट्स पर भी लागू किया जाना समझ से परे है और शुद्ध रूप से एक युवा डॉक्टर का शोषण है। ये रुकना चाहिए। उसके द्वारा पीजी के दौरान तीन साल सरकारी संस्थान में दी गई सेवा को बॉन्ड पीरियड में सम्मिलित किया जाना चाहिए।

4. डॉक्टर्स से बॉन्ड भरवाने वाली सरकार सभी पीजी छात्रों को पीजी के बाद सरकारी नौकरी देने का वादा भी इस बॉन्ड में क्यों नहीं करती ?

5. यदि विभिन्न ब्रांचेस के लिए बॉन्ड की राशि भिन्न है तो फिर राजकीय सेवा में आने पर अधिक बॉन्ड राशि वाली ब्रांचेस( Medicine,Radio, Derma,OBG) के वेतन अधिक क्यों नहीं है ?

आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद बंधुआ मजदूरी से मुक्त भारत में डॉक्टर्स से बॉन्ड लिया जाना अपने आप में एक गंभीर प्रश्न है। इतने वर्षों के बाद भी सरकारें युवा चिकित्सकों को राजकीय सेवा में आने के लिए आकर्षित नहीं कर पाई और अब भी उन्हें डेढ़ डेढ़ करोड़ के बॉन्ड का सहारा लेना पड़ रहा है यह गंभीर चिंतन का विषय है।

- डॉ राज शेखर यादव
राजस्थान

Sad to announce that Dr Gradlin Roy, MBBS, DNB, MCh, Consultant Cardiac surgeon, Saveetha Medical College, passed away a...
28/08/2025

Sad to announce that Dr Gradlin Roy, MBBS, DNB, MCh, Consultant Cardiac surgeon, Saveetha Medical College, passed away after a cardiac arrest. He was only 39. A bright surgeon who just started his independent practice recently. On the way to hospital for rounds last Saturday, had severe chest pain. Taken to ACS medical college, Chennai. Arrested at the Emergency department before taking ECG. CPR given for 1.5 hours. The Left Main Coronary Artery was found to be totally occluded on CAG. PTCA was done to the LAD. IABP was inserted. He was connected to ECMO and shifted to MGM hospital Chennai, had poor neurological status, poor LV function, on high inotropic supports, declared today. He leaves behind his wife and son.

Om Shanti🙏🏻
Please take care everyone 🙏🏻

वह एक पल, जब इंसान अपनी सीमाओं से परे हो जाता है…जन्माष्टमी का दिन। लखनऊ, गोमती नगर का विपुल खंड। 3 साल का मासूम कार्तिक...
25/08/2025

वह एक पल, जब इंसान अपनी सीमाओं से परे हो जाता है…

जन्माष्टमी का दिन। लखनऊ, गोमती नगर का विपुल खंड। 3 साल का मासूम कार्तिक खेलते-खेलते ऊपर से लगभग 20 फीट नीचे लोहे की ग्र‍िल पर ग‍िर गया। नुकीली लोहे की ग्र‍िल स‍िर के आरपार। वेल्‍डर आया। ग्र‍िल काटा। पर‍िजन मासूम को लेकर प्राइवेट अस्‍पताल गये। 15 लाख रुपए का बजट बता द‍िया गया।

आधी रात न‍िराश पर‍िजन कार्तिक को लेकर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी पहुंचे। नन्हे सिर को चीरती हुई लोहे की छड़ किसी निर्दयी तकदीर की तरह आर-पार हो चुकी थी। डॉक्टरों ने जब यह देखा, तो कुछ क्षण के लिए सन्नाटा छा गया।

इसी खामोशी के बीच आगे बढ़ते हैं डॉ. अंकुर बजाज। सर्जन के हाथ में स्केलपल नहीं, बल्कि साहस का संकल्प था। और उसी साहस के सहारे वह ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश करते हैं। बच्चे की जिंदगी उनके सामने है, जैसे कोई दीपक आंधी में कांप रहा है और उन्हें उसे बुझने से बचाना है।

लेक‍िन डॉक्‍टर अंकुर के ल‍िए यह आसान नहीं था। आसान भी कैसे होता। थोड़ी देर पहले ही तो वे अपनी मां के साथ सबसे कठिन बखत में थे। मां को दिल का दौरा पड़ा था। कार्डियोलॉजी में इलाज चल रहा था। 3 स्टेंट पड़े और हालत नाजुक बनी थी। एक तरफ मां की सांसें अटकी थीं तो दूसरे दूसरी तरफ कार्तिक का जीवन लोहे की छड़ में उलझा था।

लेकिन डॉक्टर बजाज ने उसे चुना, ज‍िस पेशे को धरती का सबसे सुंदर माना जाता है। आधी रात ट्रामा सेंटर पहुंचे। तीन घंटे से ज्‍यादा चली यह जटिल सर्जरी। हर पल जोखिम से भरा, हर क्षण धैर्य की परीक्षा। और जब आखिरकार वह लोहे की छड़ को बच्चे के शरीर से अलग कर दिया गया।

डॉ. अंकुर बजाज और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि डॉक्टर सिर्फ शरीर नहीं जोड़ते, वे टूटते हुए रिश्तों को, डगमगाते हुए भविष्य को, और डूबते हुए भरोसे को भी बचा लेते हैं। डॉक्‍टर डॉ. बीके ओझा, डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु के अलावा एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने असभंव को संभव कर द‍िखाया, वह भी 25 हजार के खर्चे पर।

आज जब हम डॉक्टरों को महज फीस और समय से जोड़कर देखते हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि कहीं कोई डॉक्टर ऐसे ही किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है।

जन्माष्टमी का दिन... लखनऊ...गोमती नगर विपुल खंड...में 3 साल का मासूम कार्तिक खेलते-खेलते ऊपर से लगभग 20 फीट नीचे लोहे की...
24/08/2025

जन्माष्टमी का दिन... लखनऊ...गोमती नगर विपुल खंड...में 3 साल का मासूम कार्तिक खेलते-खेलते ऊपर से लगभग 20 फीट नीचे लोहे की ग्र‍िल पर ग‍िर गया।

नुकीली लोहे की ग्र‍िल उसके स‍िर के आरपार हो गयी...

वेल्‍डर आया.... ग्र‍िल को काटा गया...

पर‍िजन मासूम को लेकर प्राइवेट अस्‍पताल गये। 15 लाख रुपए का बजट बता द‍िया गया।

आधी रात न‍िराश पर‍िजन बच्चे को लेकर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी पहुँचे...

नन्हे सिर को चीरती हुई लोहे की छड़ किसी निर्दयी तकदीर की तरह आर-पार हो चुकी थी।

डॉक्टरों ने जब यह देखा, तो कुछ क्षण के लिए वहाँ भी सन्नाटा छा गया।

इसी खामोशी के बीच आगे बढ़ते हैं....

डॉ.अंकुर बजाज..

सर्जन के हाथ में स्केलपल नहीं, बल्कि साहस का संकल्प था। और उसी साहस के सहारे वह ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश करते हैं। बच्चे की जिंदगी उनके सामने है, जैसे कोई दीपक आंधी में कांप रहा है और उन्हें उसे बुझने से बचाना है।

लेक‍िन डॉक्‍टर अंकुर के ल‍िए यह आसान नहीं था। आसान भी कैसे होता। थोड़ी देर पहले ही तो वे अपनी माँ के साथ सबसे कठिन वक्त में थे। माँ को दिल का दौरा पड़ा था। कार्डियोलॉजी में इलाज चल रहा था। 3 स्टेंट पड़े और हालत नाजुक बनी थी। एक तरफ माँ की साँसें अटकी थीं तो दूसरी तरफ कार्तिक का जीवन लोहे की छड़ में उलझा था।

लेकिन डॉक्टर बजाज ने उसे चुना, ज‍िस पेशे को धरती का सबसे सुंदर माना जाता है। आधी रात ट्रामा सेंटर पहुँचे...छः घंटे से ज्‍यादा चली यह जटिल सर्जरी...जिसका हर पल जोखिम से भरा हुआ था...हर क्षण धैर्य की परीक्षा...

और आखिरकार वह लोहे की छड़ को बच्चे के शरीर से अलग कर दिया गया।

डॉ. अंकुर बजाज और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि डॉक्टर सिर्फ शरीर नहीं जोड़ते, वे टूटते हुए रिश्तों को, डगमगाते हुए भविष्य को, और डूबते हुए भरोसे को भी बचा लेते हैं। डॉक्‍टर डॉ. बीके ओझा, डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु के अलावा एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने असभंव को संभव कर द‍िखाया, वह भी 25 हजार के खर्चे पर।

आज जब हम डॉक्टरों को महज फीस और समय से जोड़कर देखते हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि कहीं कोई डॉक्टर ऐसे ही किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है

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