Rising Star singer samadhan kakade.

Rising Star singer samadhan kakade. संगीतकार / बैंड

संगीत ही मेरी अंतरात्?

13/01/2025
 #मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा #लेखक_समाधान_काकडे #परम्_सत्य_की_खोज  #लेखक_समाधान_काकडे #सत्य_क्या_है #सत्य_कुछ_भी_नही_है #स्व...
12/01/2025

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
#परम्_सत्य_की_खोज
#लेखक_समाधान_काकडे
#सत्य_क्या_है
#सत्य_कुछ_भी_नही_है
#स्वयं_की_खोज_क्या_है
#स्वयं_से_कैसे_मुक्ति_पाएं
#ध्यान_की_परम_अवस्था
#खोज_करना_यानी_उस_खोज_से_मुक्त_होना
िस_खोज_की_खोज_कर_रहे_थे
ोज_से_मुक्त_होना_ही_खोज_है
#समाधि_क्या_है
#सबसे_बड़ा_महादान_क्या_है
#सेवा_क्या_है
#निस्वार्थ_सेवा_कैसे_करे
#मोक्ष_और_मुक्ति_क्या_है_और_जीवन_क्या_है ।
#सबमें_रहकर_सबसे_भिन्न_रहे
#दृष्टांत।
#जलप्रलय।
#राजा_का_कर्तव्य_कैसा_हो।।
ामना_से_मुक्त_हो_जाना_यानी।।
#जीवन_किसे_कहते_है।।
#मेरे_जीवन_का_उल्टा_विपरित_पथ_है।

12/01/2025..

ूसरे_से_जुड़ना_जोड़ना_जुड़ाना_यानी_क्या_है।।

एक दूसरे से जुड़ने में और जुड़कर एक रूप हो जाना।
जुड़ने में भ्रम पैदा होता हैं।
लेकिन जुड़कर स्वयं में एकरूप हो जाना ही स्वयं का आत्मबोध हो जाता हैं।

किसी अर्थ व्यवस्था की कामना पूर्ति हेतु आपस में जुड़ना।
या अंतर राष्ट्रीय स्तर पर किसी अन्य राज्य देश का आपस में जुड़ना यह सांसारिक दृष्टि से आपस में ताल मेल सकारात्मक दृष्टिकोण को बनाए रखना,किसी अन्य देश राज्य मार्ग से समझौता करना,आपस में जुड़ना,यही सोच विचार धारणा होती हैं।
भौतिक जगत संसार के प्राणी मात्र की।

लेकिन यहां पर परमार्थ तत्व की सूक्ष्मता की वार्ता हो रही हैं।

मुझसे या अन्य किसी भी कार्य प्रणाली कर्म काण्ड विधि विधान या किसी भी प्रकार की खोज में जुड़े लेकिन जुड़ने पर अपने आपको स्वयं को अपने अस्तित्व में एकरूप करे।
जब हम जुड़कर अपने आप में एक रूप हो जाते हैं।
तभी स्वयं का आत्मबोध हो जाता हैं।
यही सूक्ष्मता का ज्ञान है।

संसार के कई सारे मनुष्य प्राणी किसी भी कार्य में जुड़ तो जाते हैं।
लेकिन अपने आपको स्वयं को भ्रमित कर अन्य प्राणियों को भी भ्रमित करते हैं।
जरा प्रकृति की रचना निर्मिता को देखिए।
जब वर्षा ऋतु में बारिश आने पर धरती पर चारों ओर जल ही जल हो जाता हैं।
और वहीं जल झरनो द्वारा नदियों में जुड़कर समाहित होकर समुद्र में एकरूप हो जाता हैं।

लेकिन अति वर्षा होने पर जल बाढ़ के रौद्र रूप लेकर जल प्रलय में परावर्तित हो जाता हैं।
और सबकुछ बहाकर ले जाता हैं।
बहुत सारा जल प्रलय आने पर धरती पर आपात स्थिति निर्माण हो जाती हैं।
तो एक ओर जल से ही जीवन है।
और अति वृष्टि होने पर जल के प्रभाव से जल प्रलय आने पर संसार में त्राहि माम त्राहि माम हो जाता हैं।
और यदि संसार में वर्षा ना होने पर भी अकाल पड़ जाता हैं।
उससे संसार में बहुत सारा अकाल पड़ जाता हैं।
तो देखा जाए तो एक ओर जीवन हैं।और दूसरी ओर हानि है।यही संसार की प्रकृति जीवन की रीत है।

इसीलिए सबके साथ रहकर भी सबसे भिन्न रहे।
जब हम इसी भेद को समझेंगे तब हम कभी भी स्वयं से नहीं भटकेंगे।

कोई भी प्राणी अपने आप से भ्रमित दुःखी पीड़ित व्यथित व्याकुल असंतुष्ट अशांत हताश तब होता हैं जब वही प्राणी स्वयं के प्रति जागरूक नहीं होता तब।

हमेशा स्वयं पर ही लक्ष केंद्रित करे।
और किसी भी तरह की कामना पूर्ति हेतु कोई भी किसी भी कर्म काण्ड विधि विधान में ना उलझे।
यदि हम किसी भी कर्म काण्ड विधि विधान में लिप्त हो भी जाते हैं तो ज्यादा किसी भी चीज के प्रति ज्यादा लगाव बनाकर मत रहे।
चाहे स्वयं के प्रति ही क्यूं ना हो।
किसी भी चीज के प्रति ज्यादा लगाव होने पर हम स्वयं से भ्रमित होकर जीवन में जीते हैं।

इसीलिए सबसे पहले अपने आप से जुड़ जाए।
अपने आप में जुड़कर स्वयं में एकरूप हो जाए।
जब हम अपने आप में स्वयं में जुड़कर एकरूप हो जाते है।तभी हम स्वयं के प्रति जागरूक होकर जीवन में विनम्रता से सचेत करुणा मई होकर जीते हैं।
जिस भी प्राणी मात्र ने स्वयं पर अपना आधिपत्य स्थापित किया उसे किसी भी अन्य वस्तु द्रव तत्व किसी भी तरह की कामना आसक्ति मोह लालच प्रतिशोध माया मोह छल कपट ईर्षा पराई निन्दा द्वेष बेइमानी हानी लाभ पद प्रतिष्ठा धन संपदा अधिकार मान सम्मान आकर्षण लगाव नहीं रहता।
वही प्राणी अपने आप में स्वयं में एकरूप हो जाता हैं।
उसे परमानंद आत्म चैतन्य स्वरूप का आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता हैं।
यही शाश्वत परम ज्ञान है।

ज्यादा तर संसार के प्राणी जोड़ने जुड़ाने में ही अपना समस्त जीवन व्यतीत करते हैं।
स्वयं भी भ्रमित हो जाते हैं।और अन्य प्राणी को भी भ्रमित करते हैं।
जैसा मै जिया हूं।तुम भी मेरे बनाए हुए मार्ग पथ पर अग्रसर होकर चलने का प्रयास करें।
यही मानसिकता हर मनुष्य प्राणी मात्र की हो गई है।सदियों से यही चलता आया है।
हम स्वयं किसी भी चीज का अध्ययन स्वयं का आत्म बोध करने का प्रयास ही नहीं करते।
बस हम आपस में ही एक दूजे में भ्रमित होकर उलझे हुए हैं।

भूल वश कहो या स्वयं को ज्ञानी आत्म साक्षात्कारी होने के भ्रम में कहो।।इसी झूठी आस में शान में ही हम मनुष्य प्राणी फंसे हुए हैं।

पहले तो हमे यह समझना अति आवश्यक है।
की हम कौन हैं।।
हम क्या कर रहे हैं।
हमे क्या करना है।

जब हमे इस बात का अहसास आत्म बोध हो जाएगा कि वास्तव में हम कौन है।
हमारी वास्तविकता क्या है।
तब हमारे भीतर और बाहर के सारे भ्रम द्वंद मिट जाएंगे।
फिर हमें किसी भी कार्य के प्रति आकर्षण लगाव या स्वयं के प्रति सुख दुःख पीड़ा मोह हानि लाभ की चिंता नहीं सताएगी।
जब इन्हीं सभी कामना से हम मुक्त हो जाएंगे।तभी हम अपने आप में समाहित एक रूप हो जाएंगे।

जैसे जल पर घी डालने पर वही तेल जल पर तैर जाता हैं।
लेकिन जल के साथ समाहित जुड़ता एक रूप नहीं होता हैं।

हमे किसी संघटना, संस्था ,आस्था ,कर्म ,काण्ड,विधि,विधान,धर्म ,पथ, प्रथा, रूढ़ि परम्परा,पंथ,जनसमुदाय,किसी भी प्रकार के कर्म से या मान्यताओं से संबंधित कार्यप्रणाली से नहीं जुड़ना है।
यह एक मनुष्य प्राणियों का बनाया हुआ जीने का माया मोह काम क्रोध लोभ ईर्षा आसक्ति वासना द्वेष बेइमानी क्रूरता स्वार्थ की कामना पूर्ति हेतु बनाए हुए मार्ग है।
मैं यह नहीं कहता कि किसी से जुड़े मत।
जुड़िए लेकिन जुड़कर अपने आप में एकरूप होकर स्वयं का आत्मबोध कीजिए।
जब हमे स्वयं का आत्मबोध आत्मसाक्षात्कार हो जाएगा तब कोई भी लगाव आसक्ति मोह लालच प्रतिशोध माया का खेल हमे विचलित नहीं कर सकता।
यह परम शाश्वत है।

सदियों से हम आपस में जुड़ने जुड़ाने या आपस में किसी कामना पूर्ति के स्वार्थ सिद्धि हेतु ही कर्म करते रहते है।
किसी से जुड़ना एक लगाव है।
लेकिन जुड़कर स्वयं में अपने आप में स्थित एकरूप हो जाना ही स्वयं को प्राप्त होकर आत्मसाक्षात्कार आत्मबोध को प्राप्त हो जाना है।

आपस में एक दूसरे को जोड़ना संगठित करना या आपस में एक दूसरे को बांटना अलग अलग जाति धर्म प्रथा ऊंच नीच वर्ण व्यवस्था ज्ञानी गुणी रसिक तत्व दर्शी महान धनवान कर्मयोगी पुरुषार्थी प्रेरणा दाई मार्ग दाता इन्ही सभी भौतिक कामना इच्छा अपेक्षा आसक्ति की पूर्ति करना यह सब मनुष्य प्राणियों की भौतिक सांसारिक कामना पूर्ति हेतु किया जाने वाला कर्म काण्ड विधि विधान होता हैं।
इससे ही संसार में भ्रम पैदा होता हैं।
इन्ही सभी भौतिक कामना से ऊपर उठो ।
स्वयं से मुक्त हो जाओ।
जब हम स्वयं से मुक्त हो जाएंगे तब यह जुड़ने जुड़ाने संगठित करने कराने की कोई जरूरत आवश्यकता ही नहीं रहेगी।
तब सभी अपने आप में प्रकृति में चराचर जीव जगत प्राणी मात्र पेड़ पौधे पशु पक्षी पंच महा भूतो में ग्रह नक्षत्र सूर्य चंद्र तारे में किसी में भी कोई भी भेद ना करके सब में एकरूप हो जाएंगे।
जब हम एकरूप हो जाते हैं तो।
सभी भौतिक कामना इच्छा अपेक्षा आसक्ति वासना छल कपट पराई निन्दा ईर्षा स्वार्थ सिद्धि बेईमानी से मुक्त विरक्त हो जाते हैं।

जुड़ने में द्वंद भ्रम की स्थिति निर्माण हो जाती हैं।लेकिन जुड़कर एकरूप होने में परम सत्य चैतन्य आत्मस्वरूप की अनुभूति प्राप्त हो जाती हैं।
जुड़ना एक लगाव भ्रम है।
जुड़कर स्वयं में अपने आप में एक रूप हो जाना ही स्वयं से स्वयं की मुक्ति होती हैं।
तब जीव और शिव का संगम हो जाता हैं।
जब हमे इस परम तत्व चेतना ऊर्जा शक्ति का आत्म बोध आत्मसाक्षात्कार हो जाएगा।तभी यह जुड़ना जोड़ना संगठित करना इन्ही सभी भौतिक कामना का सारा भ्रम स्वत मिट जाएगा।

जुड़कर रहना।
और जुड़कर स्वयं में एकरूप हो जाना यानी सभी कर्म बंधनो से मुक्त विरक्त हो जाना होता हैं।
जुड़े रहने में भ्रम।
जुड़कर एकरूप होने में परम सत्य आत्म स्वरूप का आत्म बोध आत्मसाक्षात्कार हो जाता हैं।
यही परम शाश्वत सत्य है।

सबका मंगल हो।।

मेरा यहां क्या था जो मैने पाया।।
मेरा यहां क्या था जो मैने खोया।।

 #नर्मदे_हर_जीवन_भर
11/01/2025

#नर्मदे_हर_जीवन_भर

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07/01/2025

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#समाधि_क्या_है
#सबसे_बड़ा_महादान_क्या_है
#सेवा_क्या_है
#निस्वार्थ_सेवा_कैसे_करे
#मोक्ष_और_मुक्ति_क्या_है_और_जीवन_क्या_है ।
#सबमें_रहकर_सबसे_भिन्न_रहे
#दृष्टांत।
#जलप्रलय।
#राजा_का_कर्तव्य_कैसा_हो।।
ामना_से_मुक्त_हो_जाना_यानी।।
#जीवन_किसे_कहते_है।।
#मेरे_जीवन_का_उल्टा_विपरित_पथ_है।

07/01/2025..

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा।।

मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली तुम्हारा प्राण नाथ प्राण आधार समाधान मैं एक

मेरी अधूरी जीवन यात्रा।।

का एक परम गूढ़ रहस्य बताने वाला हूं।
सुनो मेरी प्राण प्रिय सोनाली।
यदि मुझे समस्त ब्रह्माण्ड संसार का सुख वैभव समस्त संसार के प्राणी मात्र का वात्सल्य प्रेम ही क्यूं ना मिल जाए ,लेकिन तुम्हारे निश्चल निर्मल अनंत अविरल अपार प्रेम की पवित्र गंगा की अमृत मई जलधारा के प्रवाह की असीम शाश्वत परम सत्य स्वरूप के अखंड दिव्य जाग्रत प्रत्यक्ष ज्योति स्वरूप गहरे करुणा मई प्रेम की बराबरी कोई भी नहीं कर सकता।
तुम मेरे प्राण हो।
मेरा श्वास हो।
मेरी काया हो।
मेरी चेतना हो।
मेरा सबकुछ हो तुम मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी सहयात्री सहचारी सहयोगी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली।
तुम्हारे बिना मै समाधान सबकुछ पाकर भी अधूरा ही रहूंगा।
तुम्हारे जैसा शाश्वत प्रेम कोई नहीं कर सकता।

मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी सहयात्री सहचारी सहयोगी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली तुम मेरे लिए।

मेरी अधूरी जीवन यात्रा।।

की अखंड दिव्य जाग्रत प्रत्यक्ष सूक्ष्म प्रेम स्वरूप सूक्ष्म प्रेरणा हो।
हम दोनों पति पत्नी तन से जुदा होकर भी मन और हृदय से एक दूसरे के समीप ही हैं।

तुम तुम्हारे प्राण नाथ प्राण आधार अभागे समाधान को छोड़कर जबसे गई हो।तुम्हारा समाधान एक निष्प्राण पाषाण पत्थर सा बन गया है।

लेकिन मैं सच कहूं तो तुम्हारा जन्म जन्मांतर के लिए आभारी रहूंगा।
जो तुमने मुझसे दूर होकर जो प्रेम बरसाया।
इतना तो कोई अपना ही कर सकता हैं।
मैं समाधान तुम्हारा कितना आभार व्यक्त करूं उतना ही कम ही होगा।
मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी सहयात्री सहचारी सहयोगी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली
तुम मेरे लिए एक ईश्वर तुल्य हो गई हो।
तुमने मुझ पामर पर बहुत अपार अद्भुत कृपा करुणा दया क्षमा उदारता बरसाई है।
जो तुम मुझसे इस तरह बिछड़ गई हो।
तो मानो जैसे मेरा जीवन धन्य हुआ।
मैं सच कह रहा हूं हृदय की गहराइयों से।

हे दया करुणा की प्रेम मूर्ति साक्षात प्रत्यक्ष कोई अदभुत अलौकिक दैवी प्रेरणा देवी महादेवी स्वरूप मेरी प्राण आधार प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी महादेवी सोनाली।

तुम मुझसे जुदा होकर भी मेरी श्वास श्वास में रोम रोम में समाई हुई हो।यह सूक्ष्म ताकि गहराई है।
इस भौतिक संसार में कोई विरले ही ऐसे प्राणी मात्र होते हैं।जो अपने सहचारी सहयोगी सहयात्री के विरह वियोग में स्वयं को धन्य मानते हैं।
इस कायनात में कई सारे जीव प्राणी मात्र अपने आपसे भ्रमित होकर जीवन में उलझे हुए रहते हैं।
लेकिन जो शाश्वत परम दिव्य जाग्रत प्रत्यक्ष सूक्ष्म अलौकिक अद्भुत दिव्य ज्योति स्वरूप चेतना ऊर्जा शक्ति किसी प्राणी में विद्यमान होती हैं।
ओ स्वयं को बड़ा ही सौभाग्य शाली कहते हैं।

ठीक उसी तरह मै समाधान तुम्हे पाकर धन्य हुआ हूं।
यदि तुम मुझसे नहीं बिछड़ जाती तो मैं इन्ही वादियों में फिजा में कायनात में इस प्रकृति में चराचर जीव जगत प्राणी मात्र में इस वसुंधरा पर स्वयं किसी उलझन में व्याकुल होकर रह जाता।
तुम्हारा कोटि कोटि आभार।

मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी सहयात्री सहचारी सहयोगी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली तुम्हारे सकल मनोरथ पूर्ण हो।

तुम्हारा कल्याण हो।

 #मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा  #लेखक_समाधान_काकडे  #समाधान_सोनाली  #सहचारिणी_मिलन ,31/05/2006.. #वियोग_विरह ,2010..07/01/2025...
07/01/2025

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे

#समाधान_सोनाली
#सहचारिणी_मिलन ,31/05/2006..
#वियोग_विरह ,2010..

07/01/2025..

#विरह_वियोग.....

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा

तन से जुदा होकर ।।
रूह मेरी तुम्हारे पास है।।

मेरी अधूरी जीवन यात्रा।।
तुझ बिन अधूरी है ओ यारा ।।

सांसों का नहीं कोई भरोसा।।
चंद लम्हों का साथ रे।।

तू मुझ में है और मैं तुझमें हूं।।
फिर ये क्यू मजबूरी है।।

सांस अधूरी तुजबीन ओ साथी।।
कैसे बताऊं ओ जीवनसाथी।।

प्रिय विरह वियोग में हम कितने तरसे।।
प्रिय मिलन की आस में हम कितने तड़पे।।

प्रेम हमारा ओ साथी अमर रहेगा।।
चाहे अनंत युग युग बीत जाएंगे।।

इस धरा से उस अम्बर तक।।
इस जन्म से अगले जन्म तक।।

दो नैनो की आसवन में मैं।।
कितनी बार बिलग बिलग रोया।।

मेरी साधना तुझ बिन अधूरी।।
मेरी प्राण सखी सोनाली रे।।

समाधान के हृदय में विराजे ।।
अपनी प्राण सखी सोनाली रे।।

सोनाली तुम प्राण ज्योति हो मेरी।।
समाधान तुम्हारा प्राण आधार है।।

हे रूप रंग की कमल किशोरी।।
हे तुझ बिन शाम अधूरा।।

गीत अधूरे तुझ बिन ओ साथी।।
पिया मिलन की आस में।।

जैसे सीपी बिना मोती अधूरा।
सोनाली बिना समाधान अधूरा।।

अंबर बिना धरती अधूरी।।
चांद बिना चांदनी अधूरी।।

प्रेम बिना संसार अधूरा।।
प्रीतम बिना प्रेम अधूरा।।

तुम बहती नदिया हो मेरी।।
मैं अनंत दरिया हु तुम्हारा।।

मैं चन्दन हूं तुम्हारा।।
तुम कस्तूरी हो मेरी।।

मेरी अधूरी जीवन यात्रा।।
तुझ बिन अधूरी है ओ यारा।।

#समाधान_सोनाली.

 #मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा #लेखक_समाधान_काकडे #परम्_सत्य_की_खोज  #लेखक_समाधान_काकडे #सत्य_क्या_है #सत्य_कुछ_भी_नही_है #स्व...
05/01/2025

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
#परम्_सत्य_की_खोज
#लेखक_समाधान_काकडे
#सत्य_क्या_है
#सत्य_कुछ_भी_नही_है
#स्वयं_की_खोज_क्या_है
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ोज_से_मुक्त_होना_ही_खोज_है
#समाधि_क्या_है
#सबसे_बड़ा_महादान_क्या_है
#सेवा_क्या_है
#निस्वार्थ_सेवा_कैसे_करे
#मोक्ष_और_मुक्ति_क्या_है_और_जीवन_क्या_है ।
#सबमें_रहकर_सबसे_भिन्न_रहे
#दृष्टांत।
#जलप्रलय।
#राजा_का_कर्तव्य_कैसा_हो।।
ामना_से_मुक्त_हो_जाना_यानी।।
#जीवन_किसे_कहते_है।।
#मेरे_जीवन_का_उल्टा_विपरित_पथ_है।

मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली तुम जहां कही भी हो सदा सुखी आनंदित अरोग्य संपदा से परिपूर्ण रहो।
तुम्हारे सकल मनोरथ पूर्ण हो।

विधना तेरे लेख किसी के समझ ना आते हैं।।

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
#समाधान_सोनाली
#सहचारिणी_मिलन ,31/05/2006..
#वियोग,2010..

7263918634..
9730664958..

हा यहीं जिंदगी है, हा यहीं जिंदगी है।।

आंख का पानी
और हृदय की कहानी
हर किसी को समझ
नहीं आती।

05/01/2025.....

#जीवन_की_महानता_क्या_है।।

जीवन में प्रेम उतरे, तो ईश्वर प्रकृति पंच महा भूतो को धन्यवाद कहना।
यदि भाग्य वश विरह वियोग मिले तो ईश्वर प्रकृति अपने गुरुजन अपने माता-पिता पंचमहा भूतों का सबका हृदय की गहराइयों से अनंत कोटि आभार व्यक्त करना कि हे प्रभु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आभार।
जो अपने मुझे इस भौतिक जगत में इस लायक समझा।

वैसे तो देखा जाए तो सभी एक समान ही हैं, सुख-दुख यह आना जाना यह सब प्राकृतिक है।लेकिन हम सभी जीव प्राणी मात्र जिस अवस्था में विद्यमान हैं।ओ है मनुष्य प्राणी के स्वरूप में।तो इसमें अनेकों प्रकार की भावना कामना आसक्ति मोह होता हैं।
तो इन्ही वजह से हम अनेकों द्वंद भ्रम में सुख-दुख अनेको उलझन में उलझ जाते हैं।

मेरी कहीं हुई लिखी हुई बातों को कोई भी मनुष्य प्राणी अन्यथा ना समझे सिर्फ मेरे हृदय के भाव को समझने का प्रयास कीजिए आप सब मेरे लिए पूजनिय वंदनिय है।।

कुछ पाने जानने समझने हासिल करने के चक्कर में कहो या फिर आत्मसात ग्रहण करने के विचारों के भ्रम में स्वयं से या अपनो से मत भ्रमित होकर इधर उधर भटकों।या अपनो का संग त्याग दो।
या किसी अपने प्रिय जनो का परित्याग कर दो।

अंतिम समय में सबको एक दिन यहां से इस कायनात से बिछड़ना ही है।
तो फिर क्यूं हम कुछ हासिल आत्मसात करने की कोशिश में या महान त्यागी बनने की कोशिश में एक दूसरे का त्याग करे।
ये महानता ज्ञानी गुणी रसिक तत्व दर्शी सिद्ध महा पुरुष महात्मा योगी आत्मज्ञानी आत्मसाक्षात्कारी परम ज्ञानी त्यागी महात्मा महान चक्रवर्ती राजा सम्राट ये सब एक हमारे इस नश्वर देह काया के मन रूपी विचारो का संगम भ्रम है।
इसमें ही हम उलझ जाते हैं।और स्वयं को ही स्वयं का निर्माता ज्ञाता मार्गदाता सबकुछ मान बैठते हैं।
हम ही हमारे मन बुद्धि शरीर चेतना ऊर्जा शक्ति के मालिक बन जाते हैं।

और नाना प्रकार के आडम्बन में उलझकर रह जाते हैं।
कोई मनुष्य प्राणी हर योग कर्म करता है।
कोई नई नई खोज में स्वयं को झोंक देता है।
कोई स्वयं के देह को कष्ट पीड़ा अपने मन मुताबिक देता है।
प्राकृतिक कुछ आपदा पीड़ा दुःख विरह वियोग हमारे जीवन में आजाना एक अलग बात है।
लेकिन हम स्वयं ही अपने मन बुद्धि विचारों के आधीन होकर स्वयं के देह के या अन्य प्राणियों के देह के मालिक बनने की कोशिश करते हैं।
और कुछ पाने जानने समझने आत्मसात करने महान बनने की कोशिश में अपनो का या किसी अन्य प्राणी का संग त्याग देते हैं।
भाग्यवश यदि हम एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं।
तब मानना कि हमें प्रकृति ने स्वयं को समझने का एक शुभअवसर दिया है।
लेकिन सब कुछ असाधारण सा होने पर भी हम आपस में ही एक दूसरे से बिछड़ने पर विवश क्यूं हो जाते हैं।
यहां से इस कायनात से तो सबको एक दिन बिछड़ना तो है ही।
लेकिन जब तक हो तब तक सबके साथ करुणा मई बनकर जियो।
सब कुछ जानकार भी।
और हम अपने मन बुद्धि के मालिक बनकर अनेकों कामना पूर्ति के लिए हर संभव कर्म काण्ड विधि विधान द्वारा हम उस कर्म को करते रहते हैं।

स्वयं करते हैं।या अन्य प्राणियों को भी हमारे मन के मुताबिक कार्य करने पर विवश मजबूर करते हैं।या उनको प्रेरणा देकर हमारी ओर खींच लेते हैं।
तुम भी मेरी तरह बनो ।स्वयं को खोजो।
स्वयं के प्रति या अन्य प्राणियों के चीजों के कामना इच्छा अपेक्षा की पूर्ति की कामना का त्याग करो।और मेरे बनाए हुए पथ मार्ग पर अग्रसर होकर चलने का प्रयास करो। यहां ना कुछ त्यागना है ना कुछ पाना है।
यह सब क्या है। एक भ्रम है।

इस संसार में मनुष्य प्राणियों को छोड़कर अन्य कोई भी प्राणी जीव को किसी कामना आसक्ति मोह लालच प्रतिशोध छल कपट ईर्षा मान सम्मान पद प्रतिष्ठा धन संपदा अधिकार की कोई जरूरत नहीं होती हैं।
यही सबकुछ सूक्ष्म चेतन के भेद भ्रम में ही हम मनुष्य प्राणी आपस में स्वयं ही उलझ जाते हैं।
स्वयं को बुद्धिमान प्रतिभाशाली ज्ञानी तत्व दर्शी परम त्यागी कहलाने के भ्रम में हम अनेकों प्रकार के कार्य में स्वयं को उस दिशा की ओर मोड लेते हैं।

एक समय ऐसा आता हैं सारे भ्रम मिट जाते हैं।लेकिन तब हमारा शरीर जीर्ण शीर्ण हो जाता है।शरीर की चेतना ऊर्जा शक्ति कम हो जाती हैं।कभी कभी तो शरीर देह कार्य करने में सक्षम नहीं रहता।
उसी समय हम सारे भ्रम को समझ जाते हैं। लेकिन इस नश्वर देह में जो मन रूपी विचारो का बादशाह मालिक विद्यमान हैं ना वहीं जीवन के अंतिम पड़ाव क्षण तक भ्रम में ही रहता हैं।
की मैने ये किया ।
मैने ओ किया।
मैने ओ त्यागा।
मैने ओ पाया।
मैने ओ खोया।
उस मन को लगता हैं कि मैं ही सबसे महान बुद्धिमान प्रतिभाशाली ज्ञानी तत्व दर्शी हूं।
अनेकों भ्रम में ये मनुष्य प्राणी अपने ही अहम में जीता रहता है।
उसे यही लगता है कि मैं ही करता हूं।मैं ही महान हूं।

मेरा मै न रहा।
तो मैं हूं कौन।

यहां महानता की बाते नहीं हो रही हैं।
ना कुछ त्यागने की।
ना कुछ पाने की।
ना कुछ जानने की।
ना कुछ समझने की।
ना कुछ आत्मासात करने की।
ना कुछ समझा ने की।
सभी मनुष्य प्राणी एक दूसरे की ओर आकर्षित होकर एक दूसरे की देखा देखी में या पाने जानने समझने हासिल करने त्यागने आत्मसात करने महान बुद्धिमान प्रतिभाशाली महा योगी बनने के चक्कर में ही उलझे हुए हैं।

#जीवन_की_महानता_क्या_है।।

#जीवन_की_महानता_क्या_है।।

जीवन की महानता यही है कि।
जिओ और जीने दो।
हर प्राणी मात्र पेड़ पौधे पशु पक्षी पंच महा तत्व प्रकृति सभी के प्रति दया करुणा क्षमा शांति समर्पण समानता का भाव रखे। सभी के अलग अलग नित्य कर्म होते हैं।सभी के गुण अलग अलग हैं।
और एक दिन सबकी यात्रा यहां से समाप्त होनी ही होनी है।इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
तो फिर क्यूं हम आपस में एक दूसरे से ईर्षा करना ।
दूसरे प्राणी को नीचा दिखाना ।अन्य प्राणी मात्र का शोशन करना।
उनको अपने आधीन करना।
उनको अलग अलग कर्म काण्ड विधि विधान में हमारे मन बुद्धि के अनुरूप कार्य करने पर विवश करना।

ए सब क्या है।
एक स्वयं के प्रति आकर्षण लगाव।इससे क्या होगा कि हम संसार में महान हो जाएंगे।

संसार के मनुष्य प्राणियों के दाता मार्ग दाता गुरु के स्वरूप में हमारी पूजा आराधना भक्ति सेवा की जाएगी।
हम ईश्वर परमात्मा तुल्य कहलाए जाएंगे।
हमारी ख्याति सर्व जगत में व्याप्त हो जाएगी।
हम सार्वभौम चक्रवर्ती राजा सम्राट कहलाएंगे।
हम सर्व जगत प्राणी मात्र के स्वामी पालनहार जगत पिता जगत गुरु कहलाएंगे।

ए सब कुछ ख्याति सिर्फ मनुष्य प्राणियों में अपना रुतबा जमाने का एक दूसरे में देखा देखी में ही सभी मनुष्य प्राणी आपस में उलझे हुए है।इस भौतिक जगत में मनुष्य प्राणियों को छोड़कर अन्य कोई भी प्राणी मात्र ऐसा नहीं है जिसे कुछ मान सम्मान पद प्रतिष्ठा धन संपदा अधिकार कुछ पाने जानने समझने हासिल करने त्यागने आत्मसात करने की कोई आवश्यकता जरूरत होती हैं।
लेकिन हम ही मनुष्य प्राणी ऐसे हैं जो स्वयं को बुद्धि जीवी सबसे अधिक प्रभाव शाली श्रेष्ठ महान तत्व दर्शी सिद्ध कहलाते हैं।
यही हमारा भ्रम है।
पंच महा भूतो का प्रकृति का कितना दिव्य जाग्रत प्रत्यक्ष सूक्ष्म स्वरूप में ज्ञान होता है हम उसे कभी समझते ही नहीं और स्वयं के अहम में आकर स्वयं में ही हम उलझ जाते हैं।और जीवन में स्वयं के साथ या अन्य प्राणियों के साथ आपस में ही भ्रमित होकर रह जाते हैं।सबकुछ मिथ्या प्रतीत होने पर भी।हम द्वंद में ही उलझ कर रह जाते हैं।

यदि मैं समाधान कहूं कि इन्ही सभी भावना कामना से मुक्त हो जाओ।
सभी कर्म बंधनो से विरक्त मुक्त हो जाओ।
तो ए सब क्या है।मेरा ही भ्रम है।
मैं कहने वाला कौन होता हूं।
सबकी चेतना ऊर्जा शक्ति एक समान होती हैं। फर्क सिर्फ यही होता हैं हमारी सोच विचार धारणा का।
हमे लगता हैं।
मैं कर रहा हूं।
मैने किया है।
मैंने पाया है।
मैने त्यागा है।
मैने खोया है।
मैने दिया है।
मैने सोचा था।
मैने देखा है।
ए सब कुछ इसी नश्वर देह का सारा भ्रम है।
ना कोई ज्ञानी गुणी रसिक तत्व दर्शी सिद्ध होता हैं।यह सिर्फ हमारे मन का वहम भ्रम होता हैं।
में समाधान ऐसा कहकर किसी भी प्राणी मात्र क भ्रम में नहीं रखने का कोई प्रयास कर रहा हूं।जो वास्तविक सच्चाई है उसको मै समाधान अपनी लेखनी द्वारा बताने का प्रयास कर रहा हूं।

जो मै हूं सो तुम हो।।
जो तुम हो सो मैं हूं।।

बस इन्ही परम सत्य को समझना है।

बाकी सबकुछ यहां एक माया का खेल है।

बस यही परम एक सत्य है।

सबकी जीवन की यात्रा यहां से समाप्त होनी ही होनी है।
यही शाश्वत परम सत्य है।

तो जीवन के अंतिम पड़ाव तक सबके साथ करुणा मई होकर प्रेम वत्सल बनकर जीने का प्रयास करे।
कुछ पाने जानने समझने हासिल करने त्यागने आत्मसात करने महान बुद्धिमान प्रतिभाशाली बनने की कोशिश में ना स्वयं उलझन में जिए।ना किसी अन्य प्राणी मात्र को किसी उलझन में रखे।

यही जीवन की वास्तविक सच्चाई है।
बाकी सबकुछ माया का भ्रम है।

सबका मंगल हो।

मेरा यहां क्या था जो मैने पाया।।
मेरा यहां क्या था जो मैने खोया।।

 #सुप्रभात
30/12/2024

#सुप्रभात

 #सुप्रभात #सदाव्रत #नर्मदे_हर_जीवन_भर  #मेरी_रेवा_नर्मदे_हर_जीवन_भर  #नर्मदा_पदयात्रा,24/12/2019..  ादेव  #अहम्_ब्रह्मा...
29/12/2024

#सुप्रभात
#सदाव्रत

#नर्मदे_हर_जीवन_भर
#मेरी_रेवा_नर्मदे_हर_जीवन_भर
#नर्मदा_पदयात्रा,24/12/2019..
ादेव
#अहम्_ब्रह्मास्मि
#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
.2004.
.2010..
#समाधान_सोनाली
#सहचारिणी_मिलन,31/05/2006..
#वियोग,2010..

26/12/2024

प्रकृति ही ईश्वर का ही जाग्रत प्रत्यक्ष सूक्ष्म स्वरूप है।
और सभी जीव प्राणी मात्र पर एक समान रूप से कृपा होती है।

मानो तो सबकुछ है यहां।।
ना मानो तो कुछ भी नहीं है।।

#सदाव्रत

#नर्मदे_हर_जीवन_भर
#मेरी_रेवा_नर्मदे_हर_जीवन_भर
#नर्मदा_पदयात्रा,24/12/2019..
ादेव
#अहम्_ब्रह्मास्मि
#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
#समाधान_सोनाली
#सहचारिणी_मिलन,31/05/2006..
#वियोग,2010..

 #मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा #लेखक_समाधान_काकडे #परम्_सत्य_की_खोज  #लेखक_समाधान_काकडे #सत्य_क्या_है #सत्य_कुछ_भी_नही_है #स्व...
24/12/2024

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा
#लेखक_समाधान_काकडे
#परम्_सत्य_की_खोज
#लेखक_समाधान_काकडे
#सत्य_क्या_है
#सत्य_कुछ_भी_नही_है
#स्वयं_की_खोज_क्या_है
#स्वयं_से_कैसे_मुक्ति_पाएं
#ध्यान_की_परम_अवस्था
#खोज_करना_यानी_उस_खोज_से_मुक्त_होना
िस_खोज_की_खोज_कर_रहे_थे
ोज_से_मुक्त_होना_ही_खोज_है
#समाधि_क्या_है
#सबसे_बड़ा_महादान_क्या_है
#सेवा_क्या_है
#निस्वार्थ_सेवा_कैसे_करे
#मोक्ष_और_मुक्ति_क्या_है_और_जीवन_क्या_है ।
#सबमें_रहकर_सबसे_भिन्न_रहे
#दृष्टांत।
#जलप्रलय।
#राजा_का_कर्तव्य_कैसा_हो।।
ामना_से_मुक्त_हो_जाना_यानी।।
#जीवन_किसे_कहते_है।।
#मेरे_जीवन_का_उल्टा_विपरित_पथ_है।
#समाधान_सोनाली
#सहचारिणी_मिलन ,31/05/2006..
#वियोग,2010..

25/12/2024..

मेरी आर्मी की मेरी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली की कुछ स्मृतियां यादें।।

14,साल हुए हम दोनों पति पत्नी को अलग हुए।

#मेरी_अधूरी_जीवन_यात्रा।।

मेरा मोह अपनी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली के प्रति इतना प्रबल गहन हुआ था कि मैं उसके बिना ज्यादा समय के लिए दूर रहना भी दुश्वार सा लगता था।
हमारे यूनिट का नंबर दक्षिण अफ्रीका,( South Africa) के लिए शांति सेना बनकर हमे सभी आर्मी वालों को पूरी बटालियन को वही साउथ अफ्रीका के लिए एक साल तक जाना था।
सन,2010. को लेकिन उन्हीं दिनों उससे पूर्व ही मैने अपनी पत्नी मोह में आकर रिजाइन दिया।
हम दिनों पति पत्नी की सहमति से।
क्यूं कि हम दोनों का फैसला था कि हम दोनों एक दूसरे से एक साल तक इसतरह दूर अलग अलग नहीं रह सकेंगे।
इसीलिए मैने अपनी ही मर्जी से आर्मी से रिजाइन राजीनामा इस्तीफा दे दिया था,2010,

आर्मी में था तब 2008,की बात है तब मैं राजस्थान में कार्यरत था। लालगढ़ जट्टान,श्री गंगानगर,
लेकिन उन्हीं दिनों यूनिट से बाहर हमारी कुछ अलग सी क्लासेस चल रही थी।धूप काल का समय था एक दिन हमारी क्लास का ब्रेक तीन चार घंटों तक नहीं हुआ।जैसे ही क्लास छूटी वैसे ही मैं सबसे आगे दौड़ता हुआ चला गया और पेड़ के नीचे जो पानी से भरी पांच लीटर वाली एक बड़ी बोतल थी वहीं को मैने बिना देखे उसी जल को पिया।
जैसे ही जल को पिया तुरंत मेरे गले के भीतर चुभन सी एक अजीब सी बहुत ही जलन सी होने लगी थी।
कुछ देर बाद ओ दर्द इतना बढ़ा कि मुझे असहनीय पीड़ा होने लगी।तुरंत मैंने हमारे सीनियर को बताया मेरा सबकुछ आप बीती सुनाई और उन्होंने मुझे आर्मी डॉक्टर के पास लेकर गए।
जाते ही उन्होंने मुझे कई सारे सवाल पूछे।
उन्होंने कहा कि उस जल में किसी ने जहर तो नहीं मिला दिया था।
तुम्हारे पानी पीने के बाद सभी ने वही जल ग्रहण किया था क्या।मैने कहा यस सर ।
सबने वही जल को पिया।
मुरे एक्सरे मशीन से तीन रिपोर्ट निकाले लेकिन उसमें कुछ भी नजर नहीं आया।
फिर मुझे तुरन्त सिटी हॉस्पिटल में ले जाने लगे।रास्ते में जाते समय मैने अपने साथ आए एक साथी से कहा कि मेरे यार अब मेरी सांसे रुकने लगी है।
कृपया मेरे जीवन साथी मेरी पत्नी सहचारिणी सोनाली को फोन करदो यार आखिरी अंतिम बार मैं अपनी प्राण प्रिय सोनाली से बोलना चाहता हूं।उतने में मेरे साथ मेरे साथी ने मेरे घर मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी सोनाली को फोन किया और मैं बोलने लगा।सोनाली प्रिय तुम कैसी हो।
तुमने खाना खाया कि नहीं लेकिन मेरे स्वर आवाज में कुछ पीड़ा सी दर्द सा उसे महसूस हुआ उसे प्रतित हुआ उसने मुझे पूछा कि क्या बात है आपकी आवाज आज कुछ अजीब सी सुनाई दे रही है।क्या हुआ आप किसी परेशानी में हो क्या।क्या हुआ मुझे बताओं आपको मेरी कसम है।
ना चाहते हुए भी मैं अपनी हृदय की पीड़ा उसे नहीं बताना चाहता था लेकिन उसकी कसम की खातिर मैने कहा को प्राण प्रिय सोनाली सुनो मेरे पास समय बहुत कम हैं।

फिर मैं सबकुछ बताने लगा।सोनाली हमारी एक जगह पर कुछ क्लास चल रही थी लेकिन तीन चार घंटों तक हमारा ब्रेक ना होने के कारण हम सबको बहुत ही प्यास लगी थी।वैसे तो धूप काल का समय भी चल रहा था।और राजस्थान में तो धूप काल में सबसे भीषण सूर्य का ताप तेज उग्र गर्मी रहती हैं।
इसके कारण जैसे ही क्लास झूठी वैसे ही मैं सबसे आगे दौड़ता हुआ चला गया।एक बबूल के बहुत बड़े तरुवर वृक्ष के नीचे पानी की एक बड़ी बोतल बिना ढक्कन की खुली ही रखी हुई थी।मैने बिना उसके अंदर झाके देखे बिना ही वैसे ही जल को पिया जैसे ही जल को ग्रहण किया वैसे ही मेरे गले में बहुत जोर से दर्द जलन सी होने लगी।
उसी दौरान मैंने तुरत हमारे सीनियर को बताया और मुझे हमारे आर्मी डॉक्टर के पास ले जाया गया लेकिन उन्होंने बहुत सारी कोशिश के बावजूद भी मेरे गले के भीतर की कोई भी दर्द का कारण उन्हें समझ में नहीं आया।और अब मुझे एक हमारे आर्मी की गाड़ी में बिठाकर बाहर सिविल अस्पताल की ओर ले जाया जा रहा था।
कुछ कम शब्दों में मैंने सारा रितांत मेरी पत्नी सोनाली को सुनाया।
और ओ घबरा कर बोली आप चिंता मत कीजिए आपको कुछ भी नहीं होगा।आप जल्दी ठीक हो जाओगे।
मैंने कहा सोनाली मेरी सांसे रुकने लगी है।
सांस लेने में बहुत दर्द हो रहा है।
गलेकी सुजन बढ़ रही थी।और मुझसे ठीक से बोला भी नहीं जा रहा था।
मैने रोते हुए कहा कि सोनाली अब इसके बाद तुम्हारा समाधान इस संसार में नहीं रहेगा।
मैने कहा अपना ख्याल रखना और एक बात मेरे माता पिता का ख्याल रखना सोनाली फिर मेरी पत्नी भी रोने लगी।

फिर मेरे से बोला भी नहीं जा रहा था।रोते रोते ही फोन रख दिया।
उतने में तुरंत सिविल अस्पताल में मुझे भर्ती कराया गया।
सिविल अस्पताल में जाते ही डॉक्टर साहब को मेरे साथ आए मेरे सहकारी सहकर्मी ने सबकुछ बताया वैसे ही डॉक्टर साहब जी ने मेरे जिव्हा को बाहर निकाला थोड़ा बहुत खींचा और पता नहीं क्या किया फिर मैं तो बेहोश हो चुका था।सांस लेना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा था।
जैसे ही कुछ समय बाद मुझे होश आया तभी डॉक्टर साहब जी ने मुझे कहा कि कैसे हो अब बेटा यदि तुम्हे पंधरा बीस मिनिट लेट लेकर आते तो शायद ही तुम जिंदा रह पाते।
लेकिन तुम्हारी किस्मत बहुत ही अच्छी है।
तुम्हारे गले के भीतर पानी के साथ एक मधु मक्खी भीतर जाकर तुम्हारे गले में डंक मार रही थी उसके कारण तुम्हे सांस लेने में परेशानी हो रही थी बेटा।
बेटा तुम बहुत भाग्यशाली हो।
मैने डॉक्टर साहब जी को प्रणाम किया उनके चरण छुए।
उनका धन्यवाद आभार व्यक्त किया।तब भी मैं रो ही रहा था।मेरे नेत्री से नीर प्रवाहित हो रहे थे।
तभी डॉक्टर साहब बोले कि बेटा अब रोने की कोई आवश्यकता नहीं है।अब तुम बिल्कुल खतरे से बाहर हो।अब तुम्हे कुछ नहीं होगा तुम जल्दी ही स्वस्थ हो जाओगे।
तभी मैंने डॉक्टर साहब जी से कहा कि हे मेरे प्राण दाता आज आपके कारण ही मैं जीवित रहा।आप मेरे लिए मेरे साक्षात प्रत्यक्ष रूप में ईश्वर ही हो।जो आपने मुझे नया जीवन दान प्रदान किया।मैं आपका जन्म जन्मांतर के लिए आभारी रहूंगा।मैं कैसे ऋण चुका पाऊंगा इस जन्म में।
आपने मुझ पामर पर अपार कृपा की है।
तभी मुझे प्रत्यक्ष रूप में उनमें ईश्वर का स्वरूप साक्षात्कार हुआ।उनके कारण ही मैं आज इस वसुंधरा पर जीवित हूं।
मेरे परम अहो भाग्य।
फिर से दोबारा जाते समय डॉक्टर साहब जी के चरणों को प्रणाम किया।
उनका आभार व्यक्त करते हुए।मुझे उसी दिन सिविल अस्पताल से लेकर आर्मी डॉक्टर के पास अस्पताल में भर्ती कराया गया।
जब तक मैं पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाऊ तब तक।

फिर मैन अपनी पत्नी सोनाली को फोन किया उन्हीं दिनों मेरी पत्नी जब मैं आर्मी में आया करता था तब ओ अपने मायके में रहती थी अपने माता पिता जी के साथ।
मेरे माता पिता मेरी छोटी बहने इधर हमारे हिवरा आश्रम विवेकानंद नगर,गांव में रहते थे।यह बात 2007,2008,के बीच की है।
मेरे घर में तो फोन भी नहीं था।
तभी मैने अपनी पत्नी को फोन किया और कहा कि अब तुम्हारा समाधान बिल्कुल एक दम सही है।तुम्हारे प्रेम ने दुवा के कारण मुझे कुछ भी नहीं हुआ है।लेकिन अब कुछ दिन तक मुझे आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पूरी तरह स्वास्थ्य ठीक होने तक फिर हम काफी देर तक बाते करते रहे।वैसे तो हम नित प्रति बहुत देर तक दो दो घंटों तक बाते किया करते थे।
फिर हमने फोन बंद कर दिया।
नित प्रति मेरी पत्नी सोनाली मुझे मेरा हाल पूंछा करती थी।खाना खाया कि नहीं अब तबियत कैसी है।सांस लेने में कोई गले में परेशानी तो नहीं होती ना।
हर रोज मेरे सेहत के बारे में मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी महादेवी सोनाली मुझे पूंछा करती थी।
हम दिनों पति पत्नी का आपसी प्रेम महूत असीम परम पवित्र शाश्वत बहुत ही गहरा निश्चल निर्मल परम पवित्र था।
हम नित प्रति बातों बातों में इतने खो जाया करते थे कि हमे भूख प्यास भी नहीं लगती थी।हम खाना खाना ही मानो जैसे भूल जाया करते थे।स्वयं में एक दूसरे में इतने गहन में डूब जाते थे।
स्वयं का भी हमे भान नहीं रहता था।इतने हम एक दूजे में लीन हुआ करते थे।

मुझे ऐसा लगता था।की कब मैं अपने जीवन संगिनी महादेवी सोनाली के पास चला जाऊं।
मैं भी कभी कभी बातों बातों में भाव विभोर होकर भावना में बह जाता था।कभी कभी मेरा हृदय भर आता था।
हम दोनों भी एक दूसरे से दूर होकर भी एक दूसरे के समीप ही थे।
कहते हैं ना।
एक कहावत है।

दूर रहने से रिश्ते नहीं जुड़ते।
ना ही पास रहने से।
यह तो दो दिलों के बंधन होते हैं।
इसलिए हम तुम्हारे है।
और तुम हमारे है।

मैं कभी कभी अपनी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली को तो बहुत सारी शेरो शायरी भी सुनाया करता था।

सोनाली हिमालयों में बर्फ बहुत है लेकिन खाया नहीं जाता।
हमारे दिल में तुम्हारे लिए प्यार बहुत है लेकिन बताया नहीं जाता।

सोनाली दिल एक मंदिर है।
तुम उसकी मूरत हो।
खुदा की कसम सोनाली तुम बहुत खूब सूरत हो।

तो सच में मेरी अनंत जन्मों की सहचारी मेरी सहयोगी सहयात्री मेरी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली बहुत ही दिखने में तो खूबसूरत तो थी ही उसकी खूबसूरती की जितनी भी प्रशंसा करूं उतनी ही कम ही होगी।
ओ मानो जैसे मेरे लिए स्वर्ग से उतरकर मेरी पत्नी सोनाली के रूप में कोई अप्सरा स्वर्ग परी कोई देव लोक की कोई महादेवी ही हो।
सत्य कह रहा हूं मैं।
मेरी सोनाली सभी सर्वगुण सम्पन्न परिपूर्ण थी।
रूप माधुर्य इतना चान्द्रयाणी कोमल कमल के पुष्पों की भाती।
उसकी मुख मंडल की आभा उसके रस भरी अमृत मई वाणी से मानो जैसे अमृत की वर्षा होती हो।
सर्वगुण सम्पन्न परिपूर्ण थी मेरी पत्नी सोनाली।
फिर सिविल अस्पताल में कुछ दिन तक मैं रहा।

उस अस्पताल में मेरे साथ कई सारे आर्मी के साथी भी भरती एडमिट थीं।
एक जो आर्मी के सीनियर थे उनका कुछ ही दिन पूर्व एक्सीडेंट हुआ था।
उनके सिर में शरीर में बहुत सारे घाव लगे हुए थे।
उन्हीं दिनों कई सारे मेरे फौजी भाई अपनी पत्नी बच्चों के समेत आर्मी क्वॉटर में एक साथ रहते थे।
तभी जो भी मेरे साथ एडमिट अस्पताल में साथी थे।सबकी अपनी अपनी पत्नीया उनको देखने के लिए हर दिन अति थी।
और शाम होते ही सभी अपने अपने क्वाटर घर पर लौट जाती थी।
लेकिन मेरे समीप एक आर्मी के सीनियर जवान थे उनको गहरी चोट लगने के कारण उनको ज्यादा पीड़ा होती थी।
लेकिन उनकी पत्नी रात के समय उनके पति के पास बेड के नीचे बिछौना बिछाकर वहीं पर विश्राम करती थी।
उन दोनों के असीम प्रेम की गहराई को देखकर मैं भी अपनी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली को फोन किया करता था।
और पूछता था कि सोनाली तुम कैसी हो।
तुमने खाना खाया कि नहीं।
माता पिता भाई बहन कैसे हैं तुम्हारे।
सबकुछ पूछा करता था।

फिर कहता था कि सोनाली मेरे साथ इस अस्पताल में एक मेरे आर्मी के सीनियर है ।उनकी धर्म पत्नी उनका बहुत ख्याल रखती हैं।रात दिन अपने पति के सेवा में ही तत्पर रहती हैं।उनको तो अपनी सुध बुध खोए वही अपने पति की सेवा करती रहती हैं।
उन दोनों के प्रेम को देखकर मेरी आंखे नम सी होती थी।मेरा हृदय भर आता था।
उस अस्पताल में मै दस पंधरा दिन तक एडमिट था।
वहीं उन सीनियर की पत्नी एक दम सहेज और सिंपल सादगी भरी रहनी में अपने पति की सेवा करती थी।
और हमारे साथ भी उस अस्पताल में और भी कई सारे हमारे साथी भी थे।
उनकी भी कई कई की पत्नियां उनको देखने के लिए सज धज कर आया करती थीं।लेकिन मेरे पास जो बीमार सीनियर थे उनकी धर्म पत्नी सच में उनको देखकर मुझे तो मेरी पत्नी सोनाली की याद आती थी और मुझे बहुत रोना आता था।
फिर मैने अपनी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली को सबकुछ बताया सोनाली आज भी हमारे जैसे प्रेमी युगल पति पत्नी इस संसार में विद्यमान हैं।हमारे जैसा अनंत प्रेम करने वाले भी यहां है।
तभी मेरी सोनाली मुझे कहती थी कि नहीं मेरे जैसा प्रेम करने वाली श्री इस कायनात में दूसरी कोई नहीं हो सकती मेरी बराबरी कोई दूसरी नारी नहीं कर सकती।
मैं कहता था कि सोनाली वास्तव में तुम तो प्रेम वात्सल्य की निर्मल परम पवित्र गंगा का पवित्र संगम हो।हम दोनों की प्रेम की गहराई की बराबरी इस धरा पर अन्य कोई नहीं कर सकता।
फिर ऐसी कई सारे बाते हमारे चलती थी।
कभी कभी मैं बाते करते हुए इमोशनल भी होता था।
तभी अचानक हम दोनों पति पत्नी भी रोते थे।ओ कहती थी कि इस बार आप जल्दी छुट्टी लेकर घर आना।
आपकी बहुत याद आ रही हैं।
आपको एक।नया जीवन दान जो मिला है।मै आपको जी भरके देखना चाहती हूं।
ऐसा लगता हैं कि मैं भी आपके साथ वही आर्मी में आकर रह जाऊ।इस बार मुझे जरूर अपने संग लेकर जाइए।
मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगी यहां।
मैने कहा सोनाली मेरी प्राण प्रिये मुझे भी लगता है कि तुम भी मेरे साथ ही सदा सदा के लिए रहो।लेकिन मेरी एक मजबूरी है।मैं तो आर्मी में सीनियर भी नहीं हूं।मेरी अलग अलग जगह पर ड्यूटी लगती हैं।मुझे वहां जाना पड़ता है।जब मैं सीनियर हो जाऊंगा तब तुम्हे अपने संग जरूर लाऊंगा आर्मी में।
फिर मैं कुछ दिन बाद छुट्टी लेकर घर आया।
आते ही मेरी सोनाली मेरे गले लगकर बहुत रोई फिर हम लोणार सरोवर की ओर गए। लोणार सरोवर महाराष्ट्र में आता है।बुलढाना जिले में।वही लोणार सरोवर की ओर घूमने हम पति पत्नी जाया करते थे।
एक नीम का बड़ा तरुवर वृक्ष था तरुवर के नीचे बैठकर हम वही पेड़ तरुवर की छांव में बैठकर भोजन किया करते थे।
बहुत सुकून सा मिलता था।
मैं फिर सोनाली की गोद में अपना सिर रखकर वही तरुवर के ठंडी छाव में कुछ देर तक विश्राम किया करता था।
कितना अद्भुत शांत लगता था।
लेकिन आज 2024.चल रहा है।
हमारा विवाह ,31/05/2006..
को हुआ,और हम दोनों पति पत्नी,2010..को किसी कारण वश एक दूसरे से जुदा हुए।हमारा संग कुछ पल का ही रहा।
आज भी कभी कभी मैं समाधान लोणार सरोवर की ओर जाता हूं तो मुझे मेरी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली की बहुत याद आती हैं।
मैं बहुत जोर जोर से चिल्लाकर सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली पुकारता रहता हूं।
जिस हरे भरे तरुवर के नीचे जल सरोवर के समीप हम दोनों पति पत्नी विश्राम किया करते थे।हमारे विरह वियोग में वही तरुवर अब बिल्कुल सुख गया है।
लगता हैं उसको भी हमारे वियोग का दुख हुआ लगता है।
इसीलिए वहीं तरुवर वृक्ष हम दोनों के वियोग में सुख गया।
आज भी मैं विरह वेदना को व्याकुल होकर बहुत ही भाव विभोर हो जाता हूं।
तरुवर वृक्ष लताओं जल पेड़ पौधे पशु पक्षी सूर्य चंद्र तारे ग्रह नक्षत्र पंच महा भूतो प्रकृति वसुंधरा धरती माता मेरी पत्नी सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली किस हाल में होगी।
पता नहीं मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली अब इस समय कहा होगी। कैसी होगी।
क्या कर रही होगी।
समय पर भोजन तो करती होगी ना मेरी सोनाली।
हे भगवती वसुंधरा धरती माता पंच महा भूतो प्रकृति आपके श्री चरणों में मेरी एक विनती है।मेरी सोनाली जहां कही भी हो उसकी हिफाजत करना।उसके सकल मनोरथ पूर्ण करना हे भगवती वसुंधरा धरती माता।
मेरी सोनाली के बिना मै मै कहा रहा हूं।
कौन समाधान।
कहा है समाधान।
कौनसा समाधान।
समाधान तो कबका लुप्त हुआ है।इस कायनात से समाधान।
सोनाली मेरी प्राण प्रिए मेरे प्राण तो तुम्हारे साथ ही चले गए हैं।
मैं तो मानो तुम्हारे बिना प्राण हीन निष्प्राण हो गया हूं।मेरी रूह तुम्हारे पास है।सिर्फ मेरी समाधान रूपी नश्वर काया देह ही यहां विद्यमान है।
सोनाली अपना ख्याल रखना।

तुम्हारा प्राण प्रिय प्राण आधार प्राण नाथ समाधान ।।

मेरी प्राण प्रिय सहचारिणी जीवन संगिनी अर्धांगिनी महादेवी सोनाली।।

सोनाली समाधान।
समाधान सोनाली।

फूल तो सुख जाते हैं ।
पर पराग छोड़ जाते हैं।
इंसान तो चला जाता हैं।
पर यादें छोड़ जाता हैं।
यादें छोड़ जाता हैं।

सोनाली तुम मेरे हर सांस सांस में रोम रोम में समाई हुई है।
मेरे प्राण हो तुम, तुम्हारे बिना यह समाधान अधूरा है।
निष्प्राण है।
तुम्हारे बिना अब क्या किसी से शिकवे गिले करे।किससे कहे अपनी दारुण व्यथा पीड़ा विरह वेदना वियोग को।
कौन है सोनाली तुम्हारे बिना मुझे दिलो जान से चाहने वाला।
मुझे समझने वाला।
मैं तुम्हारे नामोकी माला नित प्रति जपता रहता हूं।
सोनाली तुम्हारा बहुत बहुत आभार।

सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली सोनाली

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