Karuna Rani Vlog

Karuna Rani Vlog Hi everyone. I'm Karuna and a food lover like you Cooking has always been my passion and to purse
(1)

13/10/2025

बिना गैस जलाए बनकर तैयार 🥰

13/10/2025

Mix veg recipe easy style 🤤😋🤤

🧿मैंने देखा कि जब तक दादा जी ज़िंदा थे। घर में उनकी चलती थी। चलने का मतलब ये भी होता है कि जिसको घर का मुखिया चुना जा रह...
13/10/2025

🧿मैंने देखा कि जब तक दादा जी ज़िंदा थे। घर में उनकी चलती थी। चलने का मतलब ये भी होता है कि जिसको घर का मुखिया चुना जा रहा है, उसमें इतनी कबीलियत हो कि वो घर के सभी फैसले समझदारी से ले। किसी भी पक्षपात में पड़े बिना। यह भी एक मुख्य कारण था, घर के संयुक्त होने का। जहाँ इकट्ठे रहने के फायदे ज़्यादा नज़र आते हैं और नुक़सान कम।लोग हर काम और समस्याओं से मिलजुलकर निपट लेते थे, इसलिए डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी समस्याएँ देखने को नहीं मिलती थी।

लेकिन धीरे- धीरे हर घर के लोगों ने स्वयं को घर का सरदार घोषित करना शुरू कर दिया। सोचने की बात है कि जहाँ इतने सारे लीडर हों, तो टकराव होना ही होता है। एक दूसरे के लिए जीने वाले, केवल ख़ुद के लिए ही जीने लगे। तो अब हाल ये हो गया है कि कितनी भी परेशानी क्यों ना हो, घर के लोग एक दूसरे को बताना नहीं चाहते। बता भी दें तो उनपर कोई असर नहीं होता कोई गौर नहीं करता इसलिए सब खुश दिखने का नाटक करते रहते हैं। लेकिन हकीकत में कोई भी सच में भीतर से खुश दिखता नहीं है।

तो क्या निकाला हमने, ये आज़ादी पाकर, अपने मन की करके। कभी- कभी तो लगता है काश! पुराने सिस्टम में ही थोड़ी आज़ादी मिल जाए, तो क्या हो, हमारा समाज? जहाँ पूरे परिवार के साथ मिलकर सभी रहते हों।बुज़ुर्ग घर के बच्चों के साथ मस्त हों। और जवान घर में खुलकर जीएँ जहाँ वो बड़े बूढ़ों की सेवा और लिहाज़ रखें। घर की ज़िम्मेदारी प्रौढ़ पति और पत्नी मिलकर उठाते हों। कभी-कभी में ऐसी तस्वीरें अपने ज़ेहन में बनाती रहती हूँ। पर जानती हूँ, अब ये जल्दी संभव ना हो पाएगा।🥹

एक आदमी अपने गधेे को लेकर मेले मे जा रहा रहा। रास्ते मे एक गाँव मे रात हो गई। गधेे को बांधने के लिए जो रस्सी लाया था वो ...
13/10/2025

एक आदमी अपने गधेे को लेकर मेले मे जा रहा रहा। रास्ते मे एक गाँव मे रात हो गई। गधेे को बांधने के लिए जो रस्सी लाया था वो रास्ते मे कहीं गिर गई थी। उस आदमी ने गधेे को बिना रस्सी के बांधने का नाटक किया फिर सो गया। सुबह उठ कर देखा गधा अपनी जगह पर ही बैठा था। उस आदमी ने आवाज देकर गधे से कहा " चलो अब चलते है। " मगर गधा हिला भी नही। उस व्यक्ति को याद आया गधा खुद को बन्धा हुआ महसूस कर रहा है। इसलिए उसने रात की तरह उसे खोलने का नाटक किया। गधा उठकर उसके साथ चल दिया। इसी तरह हम इंसान भी एक अदृश्य रस्सी से बंधे हुए है। रस्सी दिखाई नही देती मगर उसने हमें जकड़ रखा है। कहीं पर वो संस्कार की रस्सी है तो कहीं शर्म की। कहीं रिश्तों की रस्सी है तो कहीं प्रेम की। कहीं रीति रिवाजों की रस्सी है तो कही धर्म की है । इनके अलावा कुछ गैर जरूरी रस्सियां भी है। लालच की रस्सी, इग्गो और अहंकार की रस्सी । ताजुब की बात ये है कि धर्म, संस्कार, प्रेम, और रिश्तों की रस्सी कमजोर पड़ती जा रही है और लालच- अहंकार की रस्सी मजबूत होती जा, रही है।

दादा जी बोले "आज बहु दिखाई नही दे रही?" महेश बोला " वो नाराज होकर अपने मायके चली गई है दादा जी। कल मम्मी ने गुस्से मे उस...
13/10/2025

दादा जी बोले "आज बहु दिखाई नही दे रही?" महेश बोला " वो नाराज होकर अपने मायके चली गई है दादा जी। कल मम्मी ने गुस्से मे उसे कुछ कह दिया था।" दादा जी बोले " ये तो गलत बात है। बात बढे नही इसलिए जाओ ले आओ उसे।" महेश बोला " मम्मी ने मना किया है। कहा है अगर इस तरह उसके पीछे भागूँगा तो सर पर बैठ जायेगी। महीने दो महीने मायके मे रहेगी तो अक्ल ठिकाने आ जायेगी। जब मोहल्ले की औरतें पूछेगी कि इतने दिन तक क्यों मायके मे बैठी हो? पति ने छोड़ दिया क्या? तब उसे पता चलेगा। इस तरह घर छोड़ कर भागने का नतीजा क्या होता है? " दादा जी बोले " क्या तुम उसे हमेशा के लिए छोड़ना चाहते हो? " महेश बोला " नही, बस थोड़ा सबक मिल जाए उसे! " तब दादा जी बोले " धिक्कार है तुझ जैसे पति पर!! पत्नी की मान मर्यादा की रक्षा करने के बजाय मायके मे उसकी इज्जत गिराना चाहते हो? अपनी माँ की गलती की सजा अपनी पत्नी को देना चाहते हो? वो मायके मे लोगों के तानो से घुटेगी, टूटेगी तब तुम्हे मजा आयेगा?" महेश की माँ सब सुन रही थी बीच मे आकर बोली " तो क्या करें बाबूजी? उसे सिर पर बैठा ले क्या? बहु है बहु बन कर रहे।" दादा जी बोले " देखो बहु, तुम जब दुल्हन बनकर इस घर मे आई थी तब दौर कुछ और था। मै मानता हूँ कि तुम्हारी सास ने तुम्हे बन्दिशो मे रखा था। मगर उस समय माहौल अलग था। अब समय बदल गया है। आजकल के बच्चे प्रेसर नही झेल पाते। पढ़ी लिखी बहु है। कल को नही झुकी तो क्या करोगे? रिश्ता टूट जायेगा। दो महीने पहले ही शादी की है। 25 लाख रुपये खर्च किये है शादी पर। तुम 25 हजार के टेलिविजिन को इतना स्म्भाल कर रखती हो कि कहीं टूट न जाए। फिर 25 लाख की बहु को रखने मे इतनी कठोरता क्यों? वो मायके मे लोगों के ताने सुनेगी तो क्या लोग तुम्हे ताने नही देंगे कि बहु को दो महीने भी ढंग से नही रख सकी?" महेश की माँ के बात समझ मे आ गई म वह बेटे से बोली " तेरे दादा जी सही कह रहे है बेटे। जा बहु को मना कर ले इज्जत के साथ ले आ। शायद मुझे भी अब बदलना होगा। वक़्त बदल गया है। " मोरल: -किसी को तोड़कर साथ रखने की मत सोचो। वक़्त बदल गया है आजकल लोग टूटने की जगह छोड़ना पसंद करते हैं। सच है ना? कमेंट्स जरूर करना। लेखक डी आर सैनी।

13/10/2025

एक कहानी रोज की सी..राजू वड़ापाव बेचने वाला ट्रेन के पीछे दौड़ रहा था।उसके छोटे से हाथ में वड़ापाव कसकर पकड़ा हुआ था।जैस...
13/10/2025

एक कहानी रोज की सी..

राजू वड़ापाव बेचने वाला ट्रेन के पीछे दौड़ रहा था।
उसके छोटे से हाथ में वड़ापाव कसकर पकड़ा हुआ था।
जैसे ही ट्रेन छूटी, उसने ट्रेन में एक आदमी को वह वड़ापाव बेच दिया।
दोनों को जल्दी थी ... एक को पैसे देने थे, दूसरे को पैसे लेने थे।

राजू अब भी ट्रेन के पीछे दौड़ते हुए हाथ आगे बढ़ा रहा था,
वो आदमी दरवाजे पर खड़ा होकर जेब से पॉकेट निकालने की कोशिश कर रहा था।
ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली,
राजू पीछे छूटने लगा…

एक पल को उस आदमी के मन में विचार आया...
अब पैसे देकर क्या फायदा... छोड़ो, मत दो!
मन में थोड़ी बेईमानी आ गई।

लेकिन…
पॉकेट को वापस जेब में रखते समय
गलती से उसका मोबाइल और पॉकेट दोनों ही नीचे गिर गए!

वो जल्दी से उन्हें पकड़ने गया,
लेकिन ट्रेन थोड़ी तेज हो गई, इसलिए वह नहीं पकड़ पाया।
पॉकेट और मोबाइल प्लेट फार्म पर गिरकर रह गए।

उस आदमी की जान हलक में आ गई –
उस पॉकेट में यात्रा का पैसा, खर्च के पैसे,
और टिकट सब कुछ था।

वह आदमी कोने में जाकर बैठ गया,
शर्म और डर से उसकी आंखों में पानी आ गया।
पास में रखा वड़ापाव भी खाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई।

कुछ समय बीता।
ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी।
टीसी डिब्बे में चढ़ा।
टिकट जांच शुरू हुई।

उस आदमी की बारी आई।
टिकट पॉकेट में था,
अब उसके पास कुछ भी नहीं था…

वह बिना टिकट यात्री माना गया।
जुर्माना लगेगा...
ऐसी चर्चा ट्रेन में होने लगी।
चार लोगों के बीच हुए अपमान से उसका सिर झुक गया।

अत्यंत अमीर होने के बावजूद,
जिंदगी भर समाज में स्वाभिमान से जीने के बाद भी, आज ट्रेन में चार लोगों के बीच खड़ा रहना उसे सहन नहीं हो रहा था।

मजबूरी में अब कार्रवाई की बारी आई,
ट्रेन में सबके सामने उसकी बदनामी हुई,
अपमान का दिन आ गया,
यह सब कुछ उसके मन के विरुद्ध हो रहा था।

वह सोचने लगा:
जिंदगीभर मैंने लोगों की निस्वार्थ मदद की है,
कई लोगों को सही राह दिखाई है,
और आज एक छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सज़ा?

टीसी कार्रवाई के लिए उसे लेकर जाने वाला था…

तभी एक छोटा लड़का वीडियो कॉल पर बात करते हुए उनके सामने आ गया।
सब रुक गए।

उस लड़के के हाथ में एक थैली थी,
जिसमें पॉकेट और मोबाइल थे।

लड़का वह उस आदमी के हाथ में देता है।
वो आदमी उसे खोलता है....
पॉकेट में सारे पैसे और टिकट वैसा का वैसा होता है।

एक पल के लिए वो निःशब्द हो जाता है।
उसे कुछ समझ नहीं आता।
उसकी आंखों से अपने आप आंसू बहने लगते हैं।
वो लड़के को गले लगाता है और रोता है।

वहाँ माहौल गंभीर हो जाता है।
कोई एक तालियां बजाना शुरू करता है।
लड़का थोड़ा झेंप जाता है।
सब लोग तालियां बजाने लगते हैं।
कुछ देर तक सिर्फ तालियों की गूंज सुनाई देती है।

उसके हाथ में वीडियो कॉल पर राजू वह सब देख रहा होता है।
राजू और वह लड़का दिल से बहुत खुश होते हैं।
वह आदमी टीसी को टिकट दिखाता है।
टीसी मुस्कराता है,
उसके कंधे पर हाथ रखकर कुछ बोले बिना आगे बढ़ जाता है।

वह आदमी लड़के से पूछता है –
ये तुम्हारे पास कैसे आया?

लड़का हंसकर बताता है –
मैं पिछले डिब्बे में खिलौने बेच रहा था।
आपका पॉकेट *मेरे भाई ने गिरते हुए देखा।
उसने उसे उठाकर थैली में डाला,
और मेरे पास डिब्बे में फेंक दिया।
फिर मुझे वीडियो कॉल करके आपको देने को कहा।
उसका नाम राजू है।
उसी ने आपको वड़ापाव बेचा था।

वह आदमी अपराधबोध से फिर रोने लगता है।

मेरे मन में उसे धोखा देने का विचार आया था।
लेकिन राजू और तुमने जो ईमानदारी और दिल की बड़ाई दिखाई,
उसने मुझे दिखा दिया कि मेरे सारे पैसों की दौलत और समाज में बनी मेरी झूठी इज्जत की कोई कीमत नहीं है।
झूठ की कोई कीमत नहीं होती – यह तुम बच्चों ने मुझे सिखाया…
मुझे माफ कर दो…

उसने लड़के के हाथ में पॉकेट के सारे पैसे रख दिए।
लेकिन लड़के ने पैसे लेने से मना कर दिया।

उसने कहा,
भाई ने कहा है सिर्फ वड़ापाव के पैसे लेने को…
और सिर्फ उतने पैसे लेकर वो लड़का मुस्कराते हुए आगे चला गया।

तालियों की गूंज ट्रेन में अब भी सुनाई दे रही थी।
और उन बच्चों के चेहरे पर करोड़ों रुपये कमाने जैसी चमक दिखाई दे रही थी।

हर पेशे का एक मान होता है ----------------------कामयाबी आदमी को अक्सर ज्ञानी बना देती है।जो लोग किसी भी तरीके से पैसा कम...
13/10/2025

हर पेशे का एक मान होता है
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कामयाबी आदमी को अक्सर ज्ञानी बना देती है।
जो लोग किसी भी तरीके से पैसा कमा लेते हैं, वे अचानक जीवन दर्शन बांटने लगते हैं। जैसे धन ने उन्हें न सिर्फ अमीर बनाया, बल्कि ज्ञानी भी कर दिया।
हाल ही में एक मशहूर एंकर ने अपने इंटरव्यू में कहा,
“अगर एक फिल्म स्टार कुछ महीनों की शूटिंग के लिए करोड़ों ले सकता है, तो मैं क्यों नहीं? मैं तो साल के 365 दिन काम करता हूं।”
कहना आसान है। सुनना खतरनाक। क्योंकि ये तुलना सिर्फ सतही नहीं, घातक है।

फिल्म झूठ बेचती है और यह सबको पता है।
फिल्मी दुनिया में कोई ढोंग नहीं है। वो साफ़ कहते हैं कि यह कल्पना है, यह अभिनय है।
फिल्म शुरू होते ही स्क्रीन पर लिखा आता है, “इस कहानी का वास्तविक घटनाओं से कोई संबंध नहीं।”
यानि दर्शक जानता है कि उसे तीन घंटे की झूठी तसल्ली मिलने वाली है। शाहरुख खान जब सौ करोड़ लेते हैं, तो कोई हैरान नहीं होता। क्योंकि वह झूठ बेचने आए हैं, और उसने पहले ही ईमानदारी से यह स्वीकार कर लिया है।
लेकिन पत्रकारिता का धर्म क्या है?
क्या पत्रकार भी यह कह सकते हैं, ‘जो मैं आपको दिखा रहा हूं, वह सत्य नहीं, मनोरंजन है’।
अगर नहीं कह सकते, तो फिर तुलना ही गलत है।

पत्रकारिता और मनोरंजन में फर्क समझिए-
पत्रकारिता कोई मनोरंजन उद्योग नहीं है। यह समाज का आईना है, वो आईना जिसमें जनता खुद को देखती है, अपने सवाल देखती है।
फिल्म का काम है सपना बेचना, पत्रकार का काम है सच दिखाना।
जब पत्रकार भी सपना बेचने लगे, तो फिर समाज अंधा हो जाता है।
अगर पत्रकार यह कहे कि वह फिल्म स्टार जितना कमाना चाहता है, तो फिर उसे अपने शो की शुरुआत में एक चेतावनी लिखनी चाहिए,
“इस कार्यक्रम का सत्य से कोई लेना-देना नहीं। यह केवल मनोरंजन के लिए है।”
फिर कमाइए जितना चाहे। कोई ऐतराज़ नहीं। क्योंकि तब आप सच नहीं, स्पॉन्सरशिप बेच रहे होंगे।

फर्क नैतिकता का है-
हर पेशे की अपनी मर्यादा होती है। सैनिक युद्ध जीतने के लिए मरता है, साधु सत्य के लिए तपता है, किसान भूमि के लिए झुकता है, और पत्रकार जनता के भरोसे के लिए खड़ा होता है।
अगर पत्रकार भी बाजार की भाषा बोलने लगे, “मेरी टीआरपी, मेरा ब्रांड, मेरा पैकेज” तो फिर भरोसा मर जाता है। और पत्रकारिता? पत्रकारिता नहीं, एक बिकने वाला उत्पाद बन जाती है।

संजय सिन्हा की ये बात गांठ बांध कर रखिएगा- भरोसा सबसे महंगी मुद्रा है। किसी डॉलर, गोल्ड से अधिक कीमती। करोड़ों की सैलरी के ऊपर।

मैंने अरुण शौरी को इंडियन एक्सप्रेस में अपने मालिक रामनाथ गोयनका के खिलाफ खड़े होते हुए देखा है। मैंने जनसत्ता के संपादक बनवारी को नौकरी छोड़ते देखा है, क्योंकि वो किसी एक बिंदु पर झुकने को तैयार नहीं थे। ये पत्रकारिता थी। वो दौर था जब कलम बिकती नहीं थी। अब दौर है जब कलम के भाव तय होते हैं।

एंकर नहीं, ‘ब्रांड’-
आज कुछ एंकर ऐसे हैं जो खुद को ब्रांड कहते हैं। वो समाज की बात नहीं करते, अपनी रेटिंग, अपने शो, अपनी डील की बात करते हैं। पैकेज करोड़ों का हो तो सवाल भी पैकेज्ड हो जाते हैं।
वो कहते हैं, “मैं तो प्रोफेशनल हूं।”
लेकिन पत्रकारिता कोई कॉर्पोरेट प्रोफेशन नहीं है।यह एक आह्वान है, जनता की आवाज़ बनने का, सत्ता से सवाल करने का।
जो यह नहीं समझता, वो चाहे करोड़ों कमा ले, संजय सिन्हा की नजर में अंदर से कंगाल पत्रकार है।

एक बात आख़िर में-
आपके घर काम करने वाली नौकरानी जो हजार, दो हज़ार में आपके जूठे बर्तन धोती है, कपड़े साफ करती है, घर की सफाई करती है- वो चाहती तो सड़क पर खड़ी होकर हज़ारों रोज़ कमा सकती थी। पर उसने अपने पेशे का मान रखा है। वो ईमानदार है। उसने धोखा नहीं दिया, न अपने काम से, न अपने जमीर से। नहीं तो ऐसा नहीं कि बिकने की विद्या उसे नहीं मालूम। वो जानती है कि बाजार में किस चीज का रेट क्या है।
जो नहीं बिकने का फैसला करते हैं, उनके लिेए मन में आदर रखिए।

आप करोड़ों कमाइए। किसी को आपसे ईर्ष्या नहीं। पर गलत तर्क देकर, गलत तुलना कर पेशे की गरिमा मत बेचिए।
फिल्म फिल्म है। पत्रकारिता पत्रकारिता है। फर्क मिटाया तो भरोसा मिट जाएगा और भरोसे के बिना समाज टिकता नहीं।

“अगर फिल्मी कलाकार करोड़ों ले सकते हैं, तो पत्रकार क्यों नहीं”?
क्योंकि फिल्म झूठ बेचती है और यह स्वीकार करती है, पत्रकार झूठ बेचता है और इसे छिपाता है। फर्क यही है, और फर्क ही तो भरोसा है।

नोट-
1. पिता के रोल में हैं तो पिता की भूमिका निभाइए। पिता पुत्री के प्रेमी नहीं होते।
पत्रकार जनता के हक की लड़ाई का नायक होता है, उसके मनोरंजन का साधन नहीं।
2. तस्वीर 25 साल पुरानी पत्रकारिता की गैलरी से निकली है। कौन-कौन है आप ही पहचानें।

सास किसी काम से बाहर गई थी। घर मे बहु को अकेले देखकर पड़ोसन आ धमकी। आते ही बोली " बहु तुम्हारी सास दिखाई नही दे रही। कहा...
12/10/2025

सास किसी काम से बाहर गई थी। घर मे बहु को अकेले देखकर पड़ोसन आ धमकी। आते ही बोली " बहु तुम्हारी सास दिखाई नही दे रही। कहाँ गई है?" बहु बोली " माँजी तो बाजार गई है। कहिये उनसे क्या काम था?" पड़ोसन करीब आते हुए बोली "तुम्हारी सास से नही मै तो तुमसे बतियाने आई हूँ बहु। तुम्हारी सास ने तो तुम्हे सात तालों के भीतर छुपा रखा है। किसी से बात नही करने देती। दम नही घुटता क्या तेरा ? " बहु बोली" चाची जी मुझे पढाई करनी है। एसएससी की तैयारी कर रही हूँ टाइम नही है मेरे पास।" पड़ोसन बोली " तू सास से डर रही है। है ना? कि वो कहीं आ ना जाए? एक नम्बर की चुडेल है तेरी सास। मुझे दस मिनिट दे इन लोगों के किस्से बताती हूँ।" बहु बोली " चाची जी मेरी माँ ने एक बात सिखाई है कि कभी कोई नीच पड़ोसन तुम्हारे सामने तुम्हारे परिवार की बुराई करे तो उसका मुँह तोड़ देना।" कहते हुए बहु ने पास पड़ा लोटा उठा लिया। बहु के हाथ मे पीतल का भारी लोटा देखा तो पड़ोसन पूँछ दबा कर भाग गई। मोरल : जिस दिन अपनो की चुगली सुनने से इनकार कर दोगे। उस दिन के बाद कोई भी बाहरी व्यक्ति तुम्हारा घर नही तोड़ पायेगा।

12/10/2025

आज के खाने में चना दाल फ्राई 😀

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