14/07/2025
बेटी डीएम..बेटा आईआई टीएन..पिता आज भी बेचता है चाय..!
आज शंभू जी से बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई। एक हाथ में चाय की केतली और दूसरे हाथ में चाय का गिलास। मुझे देखते ही खुश हो गए, प्रेम वैसा ही जैसा 10 साल पहले पहली मुलाकात में था।
दस साल में पटना में बहुत कुछ बदला लेकिन शंभू जी बिल्कुल नहीं बदले। आज भी सड़क के किनारे खुले आसमान के नीचे एक टेबल पर चाय की दुकान लगाते हैं। एक आवाज पर चाय की केतली लेकर दुकान दुकान दौड़ जाते हैं।
10 साल पहले जब शंभू जी से पहली मुलाकात हुई थी, तब बच्चों की पढ़ाई को लेकर स्ट्रगल कर रहे थे। चाय की इस छोटी सी दुकान पर पूरा परिवार चलता था। शंभू जी की मेहनत और बच्चों को लेकर संकल्प मुझे उनके करीब लाया। जब जहां जो बन पड़ा शंभू जी की मदद भी किया।
पता नहीं क्यों मुझे हमेशा लगता था कि शंभू जी चाय के कुल्हड़ में अपने बच्चों के सपनों को उबाल रहे हैं… और चाय की हर एक घूंट में वह अपनी उम्मीद को घोल रहे हैं।
दो बेटी और एक बेटे, सब एक से बढ़कर एक पढ़ाकू। शंभू जी फुटपाथ पर चाय बेचते रहे, धूप हो, बारिश हो या कड़ाके की ठंड। न कभी किस्मत को कोसा, न हालात से हार मानी। उनके पास महंगे कोचिंग के पैसे नहीं थे, बड़े-बड़े सपनों को खरीदने की औकात नहीं थी। लेकिन उनकी मेहनत और बच्चों की लगन ने वो कर दिखाया, जो बड़े-बड़े अमीर घरों में भी हर किसी के नसीब में नहीं होता।
आज वही शंभू जी अपने एक बेटे और एक बेटी को आईआईटीएन बना चुके हैं। छोटी बेटी भारतीय प्रशासनिक सेवा में हैं। महाराष्ट्र कैडर मिला है, अब महाराष्ट्र में ही डीएम हैं। एक डीएम का पिता होने के बाद भी शंभू जी में बदलाव नहीं दिखता।
जब शंभू जी से बच्चों का हाल चाल पूछा तो बहुत खुश होकर बोले, भैया छोटकी ट्रेनिंग के बाद अब डीएम हो गई है, गए थे महाराष्ट्र मिलने। बढ़िया घर मिल गया है, तीन गाड़ी तो पुलिस की उसके आगे पीछे चलती है। बहुत खुश हूं, क्योंकि बेटा और दोनों बेटियों ने मेरा सीना चौड़ा कर दिया है। चाय की दुकान पर हर दिन सोचता था, बच्चा सबको ऑफिसर बनाना है, सब बन भी गया।
बोले, बेटे की शादी की बात चल रही है, आपको चलना होगा। शंभू जी कहते हैं, चाय की दुकान तो जब तक शरीर में ताकत है, तब तक करेंगे, क्योंकि इसी भट्ठी में तपाकर अपने सपनों को साकार किया है।
उनकी सरलता का अंदाजा ऐसे लगाइए, वह कहते हैं, चाय वाला समझकर कोई कुछ बोल भी देता है या नाराज भी होता है तो मैं कुछ नहीं बोलता। मैं कभी किसी को नहीं बताता डीएम का बाप हूं, मैं तो आज भी वही शंभू हूं जैसा आपने 10 साल पहले देखा था। शंभू जी से मुलाकात के बाद दिल गदगद हो गया। इनकी सरलता सहजता और बच्चों के लिए संकल्पित होना, बहुत कुछ सिखाता है। शंभू जी पर खबर तो कई बार लिखा है, आज मुलाकात हुई तो उनकी कहानी फेसबुक पर साझा करने की इच्छा हुई।
शंभू जी की कहानी साधारण नहीं है, ये सबूत है कि सपने बड़े हों तो साधन छोटे नहीं पड़ते। ये सबक है उन सबके लिए जो हालात का रोना रोते हैं, और सलाम है उन बेटों-बेटियों को, जिन्होंने अपने बाप के पसीने की कद्र की और उनके ख्वाबों को हकीकत में बदला।
🙏दिल से सलाम है शंभू जी 🙏
( मनीष मिश्रा जी के वाल से साभार , तस्वीर में मनीष जी शम्भु जी के साथ है )