05/08/2025
पुष्टिमार्ग में पवित्रा एकादशी अर्थात पवित्रारोपण दिवस का महत्व और भाव।
◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे ◆
आज श्रावण शुक्ल एकादशी, मंगलवार, 5 अगस्त 2025 है। श्रावण शुक्ल एकादशी को पुष्टिमार्ग में पवित्रा एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
आप सभी को पुष्टिमार्ग के प्रारंभ होने के दिवस पवित्रा एकादशी की खूब खूब बधाई।
श्रीनाथजी को आज पवित्रा धराए जाते हैं। मुहूर्त से पवित्रा कभी श्रृंगार दर्शन में प्रातः और कभी सायं को उत्थापन दर्शन में श्रीनाथजी को धराए जाते हैं।
★ श्रीनाथजी को पवित्रा धराए जाने का भाव★
◆ पवित्रा धराए जाने का प्रसंग यह है कि श्रीमद्वल्लभाचार्य जी ने श्रावण शुक्ल तृतीया को श्रीमद्भागवत का प्रारंभ करके श्रावण शुक्ल एकादशी की मध्यरात्रि को सम्पूर्ण किया था, तत्पश्चात उनको ठाकुर जी श्रीनाथजी ने स्वयं प्रकट होकर दर्शन प्रदान किए तथा श्री महाप्रभु जी को दैवीजीवों को ब्रह्म सम्बन्ध देने की आज्ञा प्रदान की। उसी समय महाप्रभुजी ने मधुराष्टक की रचना की तथा प्रभु को पवित्रा धरा कर मिश्री का भोग रखा था।
इस प्रकार श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सर्वप्रथम वैष्णव दामोदर दास हरसानी को प्रथम ब्रह्म-सम्बन्ध दिया था। तब से कल का दिन श्रावण शुक्ल द्वादशी सभी वैष्णवों में पुष्टिमार्ग की स्थापना दिवस-समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
◆ आचार्यों द्वारा चार प्रकार की पवित्रा धराने का भाव बताया है जिनमें सुनहरी, रुपहरी, रेशमी, विभिन्न रंगों की पवित्रा व्रज कुमारिकाओं और व्रज भक्तों के भाव की, सूत धागों की पवित्रा श्री यमुना महारानी जी के भाव की, सुनहरी फूल की पवित्रा स्वामिनीजी के भाव की तथा रुपहरी पवित्रा श्री चंद्रावली जी के भाव की होती है। इसके अलावा व्रज ललनाओं के भाव से हार स्वरूप पवित्रा होती है।
“या कृता वार्षिकी सेवा सा मूल फलदामता ।
प्रत्यहं सूत्ररूपेण सैकीभूतानुभावनात् ।”
श्रीगोपीनाथ प्रभुचरण के अनुसार उक्त पवित्रा का भाव यह है कि यह पवित्रा वैष्णवों द्वारा की गयी वर्ष भर की सेवा का प्रतीक है इसलिए पवित्रा 360 तारों का होता है।
◆ इस पवित्रा के 360 सूत के सूत्र एक वर्ष के अन्तर्गत 360 दिनों के प्रतीक है, जो मानसी सेवा जैसे मूल फल को देने वाला है।
शास्त्र आज्ञा करते हैं कि -
“न करोति विधानेन पवित्रारोपणं तु यः।
तस्य सांवत्सरी पूजा निष्फला मुनि सत्तम।”
अर्थात : हे मुनि श्रेष्ठ! जो मनुष्य श्री प्रभु को विधानपूर्वक पवित्रा नहीं धराता है तो उसकी वार्षिक सेवा निष्फल हो जाती है।
पवित्रा धरने का फल शास्त्र ने यह बतलाया है -
“पवित्रारोपणं विष्णोः भक्तिरत्नप्रदायकम्।
स्त्रीपुंकीर्तिप्रदं पुण्यं सुख सम्पद्दनावहम् ।।”
अर्थात यह पवित्रा समर्पण प्रभु के भक्ति रत्न को देता है, स्त्रियों और पुरुषों को कीर्ति और पुण्य जनक है तथा सुख संपत्ति और धन देता है।
हमें पवित्रा का फल, लौकिक सुख संपत्ति अथवा धनादि नहीं चाहिए, पुष्टि भक्त को तो केवल प्रभु के भक्ति रत्न से ही संतुष्टि मिलती है अतः प्रभु की प्रेमलक्षणा भक्ति की सिद्धि के लिए ही पवित्रा धराए, न कि कोई अन्य लौकिक फल की आकांक्षा से।
★☆★ पवित्रा के प्रकार★☆★
◆ पवित्रा बनाने के जो विधान शास्त्र में कहे गए हैं उसमें भी अनेक मत हैं। तीन सौ साठ तारों का पवित्रा उत्तम है, दो सौ सत्तर तारों पवित्रा मध्यम है और एक सौ अस्सी तारों का पवित्रा कनिष्ठ है।
◆ कुछ आचार्यों ने पवित्रा में लगाई जाने वाली गाँठों के विषय में उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ का प्रकार बतातें हैं, जिनमें 24, 12 व 8 गाँठें क्रमशः उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ मानी गई हैं।
हमारे प्रभु तो उत्तम वस्तु के ही भोक्ता हैं अतः उन्हें उत्तम पवित्रा ही धराए जाने चाहिए।
पवित्रा का उत्तम होने के साथ शोभायमान होना भी अत्यावश्यक है।
उसकी ग्रंथियाँ सुन्दर लम्बी गोलाई वाली हों, जो प्रभु को चुभें नहीं। पवित्रा जी को सुन्दर उत्तम और सुगन्धित केसर से रंगा होना चाहिए।
◆ श्रीनाथजी ठाकुर जी को 360 तार के सूत्र का पवित्रा, सादा रेशमी पवित्रा, फोंदना वाला रेशमी पवित्रा, रुपहली और सुनहरी तार वाला पवित्रा आदि अनेक प्रकार के पवित्रा धराए जाते हैं। पवित्रा धराने के उपरांत प्रभु को यथाशक्ति भेंट अवश्य धरी जाती है तथा उत्सव भोग अरोगाया जाता है। ठाकुर जी को पवित्रा धराने बाद पिछवाई एवं पीठिका के ऊपर भी पवित्रा धराए जाते हैं।
◆ आज के दिन सभी वैष्णव भी अपने घर के सेव्य ठाकुर जी को पवित्रा अवश्य धरते हैं। यदि श्रीनाथ जी को पवित्रा प्रातः श्रृंगार में धराए जाते हैं तो वैष्णव अपने घर के ठाकुर जी को उसी दिन सायं उत्थापन समय पवित्रा धराते हैं परन्तु यदि श्रीजी को पवित्रा उत्थापन में धरे जाते हैं तो वैष्णव अपने ठाकुर जी को अगले दिन अर्थात द्वादशी को प्रातः पवित्रा धराते हैं।
◆ पवित्रा एकादशी से रक्षाबंधन पांच दिन तक श्रृंगार पश्चात् पवित्रा धराए जाते हैं किन्तु यदि किसी कारणवश इन पांच दिवस में पवित्रा नहीं धरे जा पाते हैं तो जन्माष्टमी तक धराए जा सकते हैं तथा यदि जन्माष्टमी तक भी पवित्रा नहीं धराए जा सकें तो देव प्रबोधिनी तक भी धराए जाने का सदाचार है, परन्तु सभी वैष्णवों को अपने ठाकुर जी को पवित्रा धरना अवश्य ही चाहिए अन्यथा सारे वर्ष की सेवा सफल नहीं मानी जाती है।
◆ श्रीनाथजी में पवित्रा चार स्थान गहनाघर, कृष्ण भंडार, खासा भंडार और समाधान से आती है। गहनाघर से 360 तार वाले कलाबतून के रेशमी फूंदना वाले रुपहरी, सुनहरी पवित्रा आते हैं जबकि कृष्ण भंडार से सादा रेशमी पवित्रा, खासा भंडार से वैष्णवों के रेशमी पवित्रा तथा समाधान से परदेश के तथा अन्य वैष्णवों के पवित्रा आते हैं।
आज से पवित्रा धराए उपरांत जन्माष्टमी की नौबत की बधाई बैठती है। इसका कारण यह है कि जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य जी ने आज के दिन ही डंका बजा कर दैवी जीवों के उद्धार हेतु घोषणा की थी।
★सूत की होती है पवित्रा किन्तु सूत की इस वस्तु को पवित्रा क्यों कहते हैं?
अपने प्रिय प्रभु को पवित्र वस्तु ही समर्पित करनी चाहिए और सबसे सुन्दर तथा पवित्र वस्तु सूत ही है। इसी कारण विभिन्न देवकार्यों में, कंकण बंधन में, कपिला वाचन इत्यादि में सूत के लच्छा, कलावा, मौली आदि को बांधा जाता है। अतः सर्व पवित्र होने कारण ही यह पवित्रा है।
★पवित्रा का अधिवासन★
पुष्टिमार्ग में अमंगल के निवारण तथा मंगल की कामना हेतु वस्तु में देवत्व मान कर रक्षार्थ पूजन किया जाता है। पवित्रा के अधिवासन के लिए पहले संकल्प करके फिर कुमकुम, अक्षत, पुष्प, धूपदीप आदि से पूजन कर आरती की जाती है। इस प्रकार वस्तु में देवत्व की स्थापना करने को अधिवासन कहा जाता है जिसमें यह मान्यता है कि प्रभु की रसलीला में निर्विघ्नता हो और प्रभु सुख पहुंचे।
जय श्री कृष्ण।
आपका दिन मंगलमय हो।
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