04/01/2024
अज्ञानी को आत्मा का अनुभव नही होता जिससे वह संसार को सत्य, नित्य और शाश्वत समझता है। संसार के पदार्थों, विषयों, रिश्तों, मान प्रतिष्ठा, उपलब्धियों, आदि को जीवन शैली से जोड़ता है। क्यों कि ये सब स्थूल दिखाई देते हैं और अनुभव मे आते हैं। यह स्थूल जगत उपलब्ध करणों (tools)- कान, आँख, नाक, रसना, त्वचा, मन, बुद्धि आदि की सहायता से जाना जाता है। यह स्थूल जगत जड़ ,अनित्य, विकारी और विनाशी है। ज्ञानी इसे नही बल्कि इसे प्रकाशित करने वाले इसके आधार सूक्ष्म चेतन आत्मा को पकड़ता है। चेतन सत्ता करण सापेक्ष नही करण निरपेक्ष है जो बिना बाह्य और आंतरिक उपकरणों के अनुभव होती है। स्वयं आत्मा अपने प्रकाश मे स्वयं को देखता है। यह दृष्टि आत्म बोध से या मन की निष्क्रियता पर प्राप्त होती है तर्क से नही। जड़ जगत चेतन आत्मा यानि ब्रह्म का विस्तार है।
मनुष्य विचारों का पुतला है। विचार शब्द के माध्यम से उसके अंत:करण में सदैव गूंजते हैं। शब्द आकाश तत्व की तन्मात्रा है और ब्रह्म की विभूति है।शब्द ब्रह्म के दो स्वरूप हैं। पहला स्वरूप वह जो हमें बाहर से मिलता है, किताबों से किसी के मुख के द्वारा या किसी की स्मृति में बसा हुआ, हमें सुनाई देता है। यह बाहरी शब्द ब्रह्म है। दूसरा शब्द ब्रह्म अंतर्नाद है अर्थात किसी भी मंत्र, शब्द पर एकाग्र होकर स्वयं के अंतर्मन से उठने वाले स्वर जो न तो किसी किताब में हैं न किसी वेद में है न ही किसी अन्य के द्वारा सुनाये गए हैं। बाहर से मिलने वाला ज्ञान कल्पित हो सकता है पर अंतर्नाद से अनुभव में आने वाला ज्ञान स्वयं के लिए कल्पित कभी नहीं हो सकता। यह ओंकार सत्य नाद है।आत्मा का परमात्मा से संपर्क होने पर परमात्मा के द्वारा प्रेषित स्वयं के उद्धार के लिए ज्ञानसूत्र है। यह नाद हर एक बद्धजीव को प्राप्त हो सकता है बस उसे केवल जगत के लिखित या सुने शब्दों से परे अपने अंतर्नाद से जुड़ना होगा। इस ज्ञान तक पहुंचने के लिए किसी भी नियम बंधन की आवश्यकता नहीं होती। केवल ध्यानसाधना, एकाग्रता, चैतन्यता की ही मात्र आवश्यकता है। इस नाद तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को खुद के भीतर उतरना पड़ता है। इस प्रक्रिया को योग कहा जाता है। निरंतर अभ्यास से या तो किसी के मार्ग दर्शन में या स्वयं के पुरुषार्थ से सफलता मिल ही जाती है। अगर साधक कुण्डलिनी की साधना में तत्पर है तो उसे आत्मा का ज्ञान हो जाता है। यही जीव के मूलस्वभाव की स्थिति की प्राप्ति है। आत्मबोध है। वेदांत के महावाक्य स्वत: सिद्ध होते हैं🔱