MP Dil Se "एमपी दिल से"

MP Dil Se "एमपी दिल से" एमपी व मुरैना से जुडी खबरें व खबरों का सच बताने का छोटा सा प्रयास है।

अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पास सीआरपीएफ की लेडी कमांडो मॉर्निंग वॉक करने के लिए गई हुई थी। पीछे से बाइक पर दो लोग सवार हो...
04/10/2024

अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पास सीआरपीएफ की लेडी कमांडो मॉर्निंग वॉक करने के लिए गई हुई थी। पीछे से बाइक पर दो लोग सवार होकर आए और उन्होंने लेडी कमांडो की चेन स्नेचिंग करने की कोशिश की, लेडी कमांडो सुप्रिया नायक ने जोर की पटखनी दी और चोर सन्न रह पड़ गया।

पहला मामला:  कोर्ट ने 17 साल के नाबालिग को  दुष्कर्म के मामले में दी 20 साल की सजा--------------------------------------...
06/09/2024

पहला मामला: कोर्ट ने 17 साल के नाबालिग को दुष्कर्म के मामले में दी 20 साल की सजा
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ग्वालियर में छह साल की मासूम से दुष्कर्म करने वाले 17 साल के किशोर को कोर्ट ने वयस्क के रूप में विचारण कर 20 साल के कारावास की सजा सुनाई है। किशोर बोर्ड न्यायालय ने मामले में बालक और उसके अपराध को देखते केस जिला न्यायालय को सौंपा, जहां उसकी ट्रायल भी वयस्क के तौर पर चलाई गई। जिला न्यायालय ने आरोप सिद्ध होने पर बालक को कारावास व 10 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है।

सहायक जिला अभियोजन अधिकारी आशीष कुमार राठौर और नैन्सी गोयल का मानना है कि यह जिले का पहला ऐसा मामला हो सकता है जिसमें नाबालिग को इस तरह के आरोप में एक वयस्क की तरह मानकर सजा दी गई हो। मामले के बारे में बताया गया है कि पीड़िता भाई-बहनों के साथ रोजाना स्कूल जाती थी। सात सितंबर 2022 को भाई और बहन के स्कूल में रोने की वजह से पीड़िता उन्हें छोड़ने के लिए घर आ रही थी।

इसी दौरान रास्ते में दुकान पर बैठे आरोपित किशोर उन्हें खाने की चीज देने के बहाने अपनी दुकान पर ले गया। आरोपित ने पीड़िता को दुकान के अंदर बंद करके उस के साथ गलत काम किया। तभी पीड़िता का भाई वहां आ गया और उसने दरवाजा खोल दिया। आरपित से अपनी बहन को छोड़ने की बात कही। घबराकर उसने छोड़ दिया, जिसके बाद पीड़िता वहां से घर आई और रोते रोते पूरी बात अपनी मां को बताई।

उन्होंने स्थानीय थाने को शिकायत भी दे दी। पुलिस को शिकायत दिए जाने का पता चलते ही आरोपित मौके पर से दुकान बंद कर के भाग गया। जिसे बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उम्र को देखते हुए किशोर बोर्ड न्यायालय में पेश किया।
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24/08/2024

बोले बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, गलत करोगे तो छत से जुदा घर हो ही जाएगा!
छतरपुर। थाने पर पथराव की घटना को लेकर बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने कहा- भारत को भारत ही रहने दीजिए इसे बांग्लादेश और श्रीलंका बनाने की कोशिश मत कीजिए। भारत राम का राष्ट्र है, शांति का राष्ट्र है। पुलिस की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने सहनशीलता दिखलाई और पत्थरबाजी का कृत्य करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई भी की और एक नई लाइन खींच दी कि अगर आप गलत करोगे तो छत से जुदा घर हो ही जाएगा।
हाजी का बंगला तोड़ने के बाद मस्जिदों के बाहर तैनात रही पुलिस
छतरपुर : मुस्लिम समुदाय द्वारा संत रामगिरी महाराज की टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान कोतवाली में उपद्रव के मुख्य आरोपित कांग्रेस नेता हाजी शहजाद अली का बंगला ढहाने के बाद शुक्रवार को मस्जिदों के बाहर कार्यपालिक मजिस्ट्रेटों के साथ पुलिस बल तैनात रहा। जुमे की नमाज के दौरान कहीं किसी तरह की घटना सामने नहीं आए इसे लेकर पूरी सुरक्षा व्यवस्था रखी गई। प्रशासन ने बंगला ढहाने वाला बुलडोजर पुलिस कंट्रोल रूम में ही रखवा दिया है। कलेक्टर पार्थ जैसवाल का कहना है कि फिलहाल पूरा ध्यान शहर में शांति और कानून व्यवस्था को बनाए रखने पर है। इसी व्यवस्था को देखते हुए कार्यपालिक मजिस्ट्रेटों की तैनाती की गई है।
शहजाद बोला-मुख्यमंत्री को गलत जानकारी दी गई
उधर बंगला टूटने के बाद इंटरनेट मीडिया वीडियो के माध्यम से हाजी शहजाद ने बयान जारी किया है, जिसमें उसका कहना है कि कोतवाली में वह ज्ञापन देने पहुंचे तब शांति का माहौल था, बाद में किसी असमाजिक तत्व ने पत्थरबाजी कर दी थी। महौल बिगड़ गया दानों तरफ से पत्थरबाजी होने लगी तो वह वहां से निकल आया। प्रशासन और मुख्यमंत्री को उसके संबंध में गलत जानकारी दी गई है। इसके पीछे असामाजिक तत्वों का हाथ है। मामले की जांच होनी चाहिए।
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तो रामनिवास रावत ने विधायकी बचाने के लिए खेल रहे हैं अब नया खेल---------------------------------------------------------...
12/05/2024

तो रामनिवास रावत ने विधायकी बचाने के लिए खेल रहे हैं अब नया खेल
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एक राजनीतिक दांव से कांग्रेस से नाता टूटा
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विजयपुर से विधायक रामनिवास रावत चतुर राजनीतिज्ञ साबित हो रहे हैं। साथ ही अब कांग्रेस के लिए सिरदर्द भी साबित हो रहे हैं। इसकी वजह यह है कि विधायक रामनिवास रावत भाजपा से भी जुड़ गए हैं और कांग्रेस से भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। क्योंकि रामनिवास रावत यदि कांग्रेस सदस्यता से इस्तीफा देते हैं तो ही उनकी विधायकी जाएगी। यदि कांग्रेस उन्हें पार्टी से निकालती है तो उनकी विधायकी बनी रहेगी। इसलिए अब रामनिवास कांग्रेस को मजबूर कर रहे हैं कि वह निष्काषित कर दें। जिससे वे सांप भी मर जाए और लाठी टूट जाए। यानि कांग्रेस से भी पीछा छूट जाए और विधायकी भी बनी रही है।

लोकसभा चुनाव के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल की ही नहीं प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा सवाल चारों तरफ घूम रहा है। यह सवाल है कि क्या पूर्व मंत्री व विजयपुर विधायक रामनिवास रावत द्वारा चुनाव के मध्य में मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के साथ चुनावी मंच साझा करने से उनकी विधानसभा की सदस्यता जाएगी या फिर बची रहेगी? घोषित रूप से कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा से रिश्ता जोड़ने वाले रामनिवास रावत एक चतुर राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं।

क्योंकि दल-बदल कानून के दायरे में तभी आएंगे, जब वे कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे देते हैं। अगर पार्टी उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में प्राथमिकता सदस्यता से निष्कासित करती है तो उनकी विधानसभा की सदस्यता बरकरार रहेगी और वो चाहते भी यही है कि पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करे। खुले तौर पर सामने से कांग्रेस में छुरा घोंपने वाले रामनिवास रावत के खिलाफ पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। इतना अवश्य कह रही है कि अब हमारा रामनिवास रावत से कोई संबंध नहीं है। कांग्रेस दल-बदल कानून के प्रविधानों में उलझकर रह गई। फिलहाल रावत घोषित रूप से भाजपा में हैं और कागजों में कांग्रेस के सदस्य है। विधि

बरकरार रह सकती है विधानसभा की सदस्यता
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विशेषज्ञों के अनुसार पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी की चुनाव में खिलाफत कर रामनिवास रावत की विधानसभा की सदस्यता से एक ही शर्त पर जा सकती है, जब वे अपनी मूल पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दें। अगर पार्टी अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित करती है तो भी उनकी विधानसभा की सदस्यता की बरकरार रह सकती है।

रावत का कांग्रेस से कोई नाता नहीं, निष्कासित नहीं करेंगे
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि विधायक रामनिवास रावत ने जो किया है, उसके बाद से कांग्रेस से कोई नाता नहीं है यह पार्टी का फैसला है। किंतु अभी उन्हें आधिकारिक रूप से प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित नहीं किया जा रहा, क्योंकि वो यही चाहते हैं। वे चुनाव से डर रहे हैं।

लिस्ट तैयार, कभी भी जीएसटी, इडी व आइटी की टीमें सकती हैं दस्तक!------------------------------------------पिछले दिनों शहर...
02/05/2024

लिस्ट तैयार, कभी भी जीएसटी, इडी व आइटी की टीमें सकती हैं दस्तक!
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पिछले दिनों शहर के कारोबारी व भाजपा के ही नेता के यहां सेंट्रल जीएसटी की टीम ने कार्रवाई की थी। तभी वैश्यवर्ग के लोगों को संदेश दिया था कि यदि वे बसपा या कांग्रेस के प्रत्याशी के साथ गए तो उन पर भी कार्रवाई होगी। हालांकि इस संदेश को दरकिनार कर वैश्यवर्ग के लोग अपने प्रत्याशी के पीछे और ज्यादा ताकत से एकजुट हो गए। राजनीतिक लोगों में चर्चा है कि ऐसे में बौखलाए सत्ताधारी दल ने अब मन बना लिया है कि 3 जून से ही कार्रवाई शुरू करा दी जाए। हालांकि ये खबर भी सत्ताधारी दल के अंदरखाने से ही आई है। कितनी सच है या कितनी झूठ। ये तो आगामी समय में ही पता चलेगा।

मतदाताअों तक पहुंच बढ़ने से बढ़ रही है बौखलाहट
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ये तो सर्व विदित है कि वैश्यवर्ग परंपरागत रूप से भाजपा का ही वोटर है। लेकिन इस बार बसपा ने वैश्यवर्ग को टिकट दिया है। ऐसे में पोरसा से लेकर श्योपुर तक सभी जगहों पर वैश्यवर्ग एकजुट हो गया है और अबकी बार फूल की जगह हाथी की सवारी करने का संकल्प ले रहा है। इसके साथ ही बसपा का परंपरागत वोट भी लौटकर हाथी की ओर आता दिखाई दे रहा है। ऐसे में सत्ताधारी दल व उनके बॉस की बौखलाहट बढ़ रही है। इसी को देखते हुए भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि 3 जून के बाद कुछ भी हो सकता है। ऐसे में वैश्यवर्ग में कुछ हद तक हलचल भी है। लेकिन पीछे हटने के लिए कोई तैयार नहीं है।

यह भी हो सकता है मतदान वाले दिन
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सत्ताधारी दल के अंदरखाने से आ रही खबरों के मुताबिक मतदान वाले दिन यानि 7 जून को पोलिंग बूथों पर कुछ भी हाे सकता है। खासतौर से वैश्यवर्ग विशेष वाले पोलिंग बूथों को पहले ही चिन्हत कर लिया गया है। जब यहां पर सर्वाधिक वोटर अपना मतदान करने आएंगे, खासतौर से महिलाएं। तभी इनपर उपद्रव कराया जाएगा। ये हो सकता है कि किसी बहाने से सरकारी तंत्र कराए या इनके द्वारा हायर किए गए लोग उत्पात करें। जिससे वोटिंग प्रभावित हो।

यह भी हो सकता है
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2009 के लोकसभा चुनाव में प्रशासन ने सुरक्षा बलों को ऐसी जगह अधिक तैनात किया था, जहां पर वर्तमान सत्ताधारी दल के विरोधी उम्मीदवार का दबदबा अधिक था। जिससे वहां पर विरोधी प्रत्याशी के पक्ष में ज्यादा मतदान न हो। बताया कांग्रेस व बसपा के लोगों को अासंका है कि जौरा से आगे सबलगढ़, विजयपुर व श्योपुर में अधिक सुरक्षा बल तैनात किया गया था और तंवरघारी के अंबाह, पोरसा व दिमनी में सुरक्षाबल नाममात्र के लगाए गए थे। ऐसा ही नजारा कुछ विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। अब यही नजारा लोकसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है।

मुरैना के ये नेता कपड़ों की तरह बदलते हैं राजनीतिक दल-------------------------------------यूं तो चुनाव का समय आता है तो ...
02/05/2024

मुरैना के ये नेता कपड़ों की तरह बदलते हैं राजनीतिक दल
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यूं तो चुनाव का समय आता है तो कई राजनीतिक दलों के नेता टिकट पाने को लेकर दल बदलते रहते हैं। लेकिन मुरैना में तीन नेता ऐसे हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांछा को पाने के लिए कपड़ों की तरह राजनीतिक दल बदलते हैं। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन से चार राजनीतिक दल कुछ सालों में ही बदले हैं। ऐसे में जब इनकी चर्चा कभी चलती है तो लोग सही से अंदाजा नहीं लगा पाते कि वे कौन से राजनीतिक दल में हैं। मुरैना में सर्वाधिक बार दल बदलने वाले नेताओं में रामप्रकाश राजौरिया, बलवीर सिंह डंडोतिया व अजब सिंह कुशवाह, रविंद्र सिंह तोमर हैं।

सर्वाधिक दलों को बदला है रामप्रकाश राजौरिया ने
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रामप्रकाश राजौरिया अभी हाल ही में कांग्रेस को छोड़कर बहुजन समाज पार्टी में पहुंचे हैं। लेकिन इससे पहले वे कांग्रेस , भाजपा, आम आदमी पार्टी में भी रह चुके हैं। रामप्रकाश राजौरिया ने विधायक बनने की चाहत में दल बदल किए हैं, लेकिन अभी तक विधायक नहीं बन सके। रामप्रकाश राजौरिया ने अपना राजनीतिक कैरियर बसपा से शुरू किया था। बसपा से मुरैना विधानसभा में चुनाव भी लड़े लेकिन हार गए। बसपा के बाद भाजपा में पहुंचे। भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो आम आदमी से टिकट लेकर चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद वे आप को को छोड़कर कांग्रेस में पहुंच गए। लेकिन कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2023 व लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट नहीं दिया तो वे फिर से बसपा में वापस आ गए।

बलवीर डंडोतिया अब पहुंचे भाजपा में
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बलवीर डंडोतिया ने भी अपना राजनीतिक कैरियर बसपा से शुरू किया। दिमनी से विधायक भी बने। इसके बाद वे कांग्रेस में चले गए। लेकिन बाद में फिर बसपा में वापस आए और 2023 में दिमनी से ही विधानसभा चुनाव लड़े। हालांकि वे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे। लेकिन कांग्रेस ने घास नहीं डाली तो अब भाजपा की शरण में चले गए और भाजपा की सदस्यता ले ली। बलवीर सिंह डंडोतिया लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं।

अजब सिंह कुशवाह, टिकट न मिलने पर हर बार बदली पार्टी
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पूर्व विधायक अजब सिंह कुशवाह ने टिकट न मिलने पर हर बार पार्टी बदली है। हालांकि उन्होंने अपना कैरियर बसपा से शुरू किया। लेकिन सुमावली विधानसभा से चुनाव भी लड़े लेकिन सफल नहीं हुए। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने 2018 में विधानसभा चुनाव में उतारा, लेकिन हार गए। इसके बाद उप चुनाव 2020 में जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस के टिकट पर सुमावली से चुनाव लड़े और जीत गए। इसके बाद वे 2023 में भी कांग्रेस से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। अब वे फिर से भाजपा में शामिल हो गए।

रविंद्र सिंह तोमर बसपा, भाजपा और अब कांग्रेस में
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कांग्रेस से पूर्व विधायक रविंद्र सिंह तोमर ने भी सबसे पहले बसपा से कैरियर शुरू किया। दिमनी विधानसभा से बसपा के टिकट पर चुनाव भी लड़े लेकिन हार गए। इसके बा वे भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन जब भाजपा ने दिमनी से उन्हें टिकट नहीं दिया। ऐसे में वे 2018 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसके बाद वे 2020 उप चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दिमनी से विधायक भी बने। लेकिन 2023 में चुनाव हार गए।

खासबात यह कि बसपा से सभी का कनेक्शन
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मुरैना में सर्वाधिक बार दल बदल करने वाले सभी नेताओं का बसपा से खास कनेक्शन रहा है। सभी ने अपना राजनीतिक कैरियर बसपा से शुरू किया। लेकिन बाद में बसपा को अंगूठा दिखाते हुए दूसरे दलों में अदलाबदली शुरू कर दी। जब भी जहां टिकट का मौका दिखा, उस दल में शामिल हो गए।

मोदी लहर पर भारी पड़ रही है 'नीटू' लहर ---------------------------किसी भी चुनाव में एक दल विशेष की लहर होने की बात कही औ...
29/04/2024

मोदी लहर पर भारी पड़ रही है 'नीटू' लहर
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किसी भी चुनाव में एक दल विशेष की लहर होने की बात कही और सुनी जाती है। फलां दल की लहर चल रही है वही दल जीतेगा। यूं तो भाजपाईयाें की बात माने तो देश भर में मोदी लहर चल रही है। लेकिन मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र अलग ही लहर पर सवार है। यहां न तो मोदी (भाजपा) की लहर चल रही है और न कांग्रेस की, बल्कि पूरे क्षेत्र में 'नीटू' लहर चल रही है। नीटू यानि सत्यपाल सिंह सिकरवार, जो कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। जिले में कांग्रेस की बात कोई नहीं कर रहा है, चर्चा शुरू होती तो नीटू का ही नाम आगे आता है।

विरोधी के गढ़ में भी 'नीटू' नाम की गूंज
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अंबाह, पोरसा व दिमनी क्षेत्र को भाजपा प्रत्याशी का गढ़ कहा जाता है। किसी भी लोकसभा चुनाव में भाजपा इसी क्षेत्र से लंबी बढ़त लेकर निकलती है और चुनाव जीत लेती है। कम से कम यहां से भाजपा प्रत्याशी एक लाख की लीड ले लेता है। लेकिन इस बार कुछ बदलता हुआ नजर आता है। लोगों की मानें तो अंबाह व दिमनी से आगे तो भाजपा प्रत्याशी ही रहेंगे, लेकिन इस बार 'नीटू' बराबरी पर चल रहे हैं। इसलिए लीड अधिक नहीं होगी। ऐसे में मुरैना, सुमावली, जौरा पहुंचते पहुंचते भाजपा का रास्ता कठिन हो जाएगा।

शहरी व कस्बाई क्षेत्राें में हाथी भी भारी
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भाजपा को 'नीटू' लहर का मुकाबला करने में पसीने आ ही रहे थे। लेकिन शहरी व कस्बाई इलाकों में हाथी से भी दो दो हाथ करने पड़ रहे हैं। क्योंकि इस बार बसपा ने ऐसा उम्मीदवार उतार दिया है कि भाजपा को अपने ही वोटरों का नुकसान उठाना पड़ सकता हैं। आमतौर पर बसपा कांग्रेस को नुकशान पहुंचाती थी, लेकिन इस बार बसपा भाजपा को ही नुकसान पहुंचा रही है।

मोदी की सभा में भीड़ नहीं आना, कहीं जिले की बगावती फितरत तो नहीं------------------------------------------यदि कहीं भी दे...
27/04/2024

मोदी की सभा में भीड़ नहीं आना, कहीं जिले की बगावती फितरत तो नहीं
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यदि कहीं भी देश का प्रधानमंत्री सभा को संबोधित करने आए और महज कुछ हजार भीड़ ही उन्हें सुनने के लिए पहुंचे तो लगता है कि कहीं न कहीं उस क्षेत्र के लोग सत्ता के विरोध में हैं या फिर सत्ताधारी लोगों के विरोध में बगावत में उतर आए हैं। मुरैना में भी 25 अप्रैल को मोदी की सभा में महज कुछ हजार लोग ही पहुंचे। इससे लगता है कि इस बार चंबल मुरैना के लोगों ने सत्ता व उसके लोगों से बगावत शुरू कर दी है। चंबल के लोगों की एक फितरत है। वे कभी भी पानी के बहाव की तरफ नहीं बहते, बल्कि पानी के बहाव के विरुद ही तैरते हैं और अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं। दूसरे शब्दों में कहें सत्ता की नाइंसाफियों से अंचल के लोगों को बगावत करने की आदत है। अब चाहे सिंधिया रियासत का समय हो या फिर अंग्रेजों के खिलाफ तंवर घार यानि जिले के लोगों ने बगावत की थी। यही आदत आजादी के बाद भी रही। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती थी तो जिले में विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक होते थे। अब जब प्रदेश में भाजपा सरकार है तो मुरैना श्योपुर लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस विधायक हैं। साथ ही नगरनिगम में भी कांग्रेस की मेयर है। यानि हमारे जिले के लोगों की फितरत ही है कि हमेशा सत्ता के विरोध में जाकर अपना मत देते हैं।

2003 में दिग्विजय सिंह को दिखाया था आइना
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2003 के पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। 2003 में विधानसभा चुनाव में जब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अंबाह में सभा को संबोधित करने आए थे। तब कुछ सख्ती शब्द क्षेत्र के लोगों को बोल दिया था। इसके बाद तो अंचल के लोगाें ने दिग्विजय सिंह को आइना ही दिखा दिया और जिले की सभी सीटें भाजपा को दे दी। असर यह हुआ कि प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बन गई।

अब प्रदेश या केंद्र की सत्ता से बगावत नहीं, भाजपा के दो नेताओं से बगावत
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सही मायने में क्षेत्र के लोगों का मिजाज देखा जाए तो वे इस बार भाजपा का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका विरोध तो उन नेताओं व उनके अनुयायियों से है। जिन्होंने 2009 से जिले पर एकाधिकार सा जमा लिया है। न तो वे स्वयं लोगों की समस्याओं को दूर करते हैं और न ही सरकारी तंत्र के अफसरों को करने देते हैं। साथ ही जिले में भाजपा की जो अच्छी लीडरशिप थी, उसे भी खत्म कर दिया। यही वजह है कि अंबाह- दिमनी क्षेत्र जो तोमर राजपूतों का बहुल्य वाला है। वहां के लोग तंज कसते हुए कहते हैं कि क्षेत्र में केवल दो ही तोमर हैं, हम तो तोमर हैं ही नहीं। यानि फिर से खुले आम बगावत।

इसलिए भी पनप रही है बगावत
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- तंवरघार के अंबाह व दिमनी क्षेत्र से खबरें आ रही हैं कि यहां के गांवों व कस्बों में लोग अपने मकानों पर यदि सत्ताधारी दल का झंडे की जगह यदि विपक्षी पार्टी का झंडा लगा लेते हैं तो सरकारी तंत्र उसे उतरवा देता है।
- व्यापारियों को हड़काने के लिए जीएसटी जैसे विभाग का छापा डलवा देते हैं। जैसा कि 25 अप्रैल को मुरैना में शहर में हुआ। जिससे व्यापारी वर्ग कहीं हाथी वाली पार्टी के साथ न चलें जाएं। डर से वे सत्ताधारियों के साथ आ जाएं।
- प्रचार करने जा रहे अन्य पार्टियों व प्रत्याशियों पर फायरिंग व धमकाने का काम हो रहा है। इससे भी लोगों की बगावत बढ़ रही है।

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जीएसटी की कार्रवाई कहीं मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र के वैश्य वर्ग के लिए धमकी तो नहीं---------------------------------...
26/04/2024

जीएसटी की कार्रवाई कहीं मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र के वैश्य वर्ग के लिए धमकी तो नहीं
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सेंट्रल जीएसटी ने अनिल गोयल अल्ली के घर सहित प्रतिष्ठानों पर गुरुवार को कार्रवाई की। चूंकि जब लोकसभा चुनाव चल रहा हो तो इस तरह विभाग की कार्रवाई कुछ संदेश देती हुई नजर आती है। यानि सीधे शब्दों में व्यापारी व उद्योगपतियों के लिए सत्ताधारी दल यानि कमल दल की धमकी है। यदि वैश्यवर्ग उनके दल को छोड़कर अन्य किसी के साथ जाएगा तो आगामी समय में सेंट्रल जीएसटी ही नहीं, बल्कि इनकम टैक्स, ईडी व सीबीआई आदि भी कार्रवाई करने आ सकती है। शहर के लोगों में भी चर्चा है कि चुनाव में एेसी गुंडगर्दी कभी नहीं देखी है।

इसलिए हुई कार्रवाई
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अनिल गोयल अल्ली भाजपा कार्यकर्ता हैं। साथ ही बसपा प्रत्याशी से सालों पुराने बहुत अच्छे संबंध है। चूंकि वे वैश्यवर्ग से आते हैं। हालांकि बताया जाता है कि वे अपने ही दल के साथ हैं और बस बसपा प्रत्याशी के साथ नहीं है। चूंकि वैश्य वर्ग से आते हैं। इसलिए सत्ताधारी दल के नेता व बॉस को संभवत लगा कि वे बसपा प्रत्याशी के साथ जा सकते हैं या अंदर से मदद कर सकते हैं। क्योंकि बसपा प्रत्याशी भी वैश्यवर्ग से आते हैं और पैर पेट की तरफ ही मुड़ सकते हैं। इसलिए बताया जाता है कि कार्रवाई केवल सांकेतिक भर थी। लेकिन इससे पूरे लोकसभा क्षेत्र के व्यापारी वर्ग के लिए संदेश है यदि उन्होंने फूल को छोड़ हाथी पर बैठने का प्रयास किया तो ये सभी विभाग उनके यहां कार्रवाई करने आ सकते हैं। चूंकि वैश्यवर्ग को फूल दल का ही वोटर माना जाता है और पूरी लोकसभा में वैश्यवर्ग के डेढ़ लाख से अधिक मतदाता है। ऐसे में यदि यह वर्ग हाथी पर बैठ गया तो फूल कुम्हाला जाएगा।

कार्रवाई से वैश्यवर्ग में आक्रोश
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बीच चुनाव में जिस तरह से यह कार्रवाई हुई है उससे मुरैना श्योपुर के सभी व्यापारियों में आक्रोश है। सभी लोग इस कार्रवाई को गलत बता रहे हैं। हालांकि सभी व्यापारियों का कहना है कि यदि ऐसा ही रहा तो वे एकजुट हैं और 7 मई को हाथी की सवारी करेंगे। बदला तो जरूर देंगे। इस तरह से डरेंगे नहीं।
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20/04/2024

कहीं दोऊ दीन से न न चलें जाएं पाला बदलने वाले गंज वाले नेताजी
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कहते हैं कि राजनीति पिता पुत्र को अलग कर देती है। मां बेटे भी दूर हो जाते हैं। अच्छे खासे वफादार लोग भी गद्दार बन जाते हैं। हालांकि ये बातें केवल सुनी जाती थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में मुरैना शहर में तो यह नजर भी आ गया। क्योंकि किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों को लेकर चर्चा होती है। लेकिन मुरैना शहर में लोकसभा प्रत्याशियों की जगह गंज वाले नेताजी के अचानक अपना पाला बदलने के चर्चे अधिक हैं। क्योंकि जिस तरह से गंजवाले नेताजी ने इस चुनाव में अपने सालों पुराने रिश्तों को तिलांजली देकर अपना पाला बदल लिया। उन्होंने अपने स्वार्थों के चलते उस व्यक्ति का साथ छोड़ दिया जिसकी वजह से राजनीत से लेकर सामाजिक स्तर और आर्थिक स्तर की ऊंचाई के शिखर पर पहुंचाया था। ऐसे में उनके चर्चे अधिक हो रहे हैं।

यहां बता दें गंज वाले नेताजी, जो कमल दल के सदस्य हैं। इन गंज वाले नेताजी के बारे में गंज के ही व्यापारियों व लोगों का कहना है कि आज वे जिस सफलता की ऊंचाई पर हैं, वहां पर पहुंचाने में जीवाजीगंज में ही रहने वाले उद्योगपति व वर्तमान में बसपा प्रत्याशी की ही भूमिका है। चाहे नगरनिगम के चुनाव हों या बैंक के चुनाव। हर चुनाव में नेताजी को बसपा प्रत्याशी की वजह से ही सफलता मिली। अब जब बसपा प्रत्याशी को उनके साथ की ज्यादा जरूरत थी तो गंज वाले नेताजी ने साथ छोड़ दिया और विरोधी कमल दल के नेताजी जो भाजपा की राजनीति में प्रदेश से लेकर सेंट्रल तक अच्छी खासी दखल रखते हैं के पाले में चले गए।

धोखा पचा नहीं पा रहे हैं लोग
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जिस तरह से नेताजी ने पाला बदलकर अपने पुराने संबंधों को तिलांजली दी है। इस धोखे को न तो गंज के व्यापारी पचा पा रहे हैं और न ही शहर के लोग। लोगाें का कहना भी हैं आदमी की पहचान तो समय पर ही होती है। जब बसपा प्रत्याशी को उनकी ज्यादा जरूरत थी तो नेताजी ने साथ छोड़ दिया। लोगों का कहना है कि नेताजी ने सही गलत करके जो भी एंपायर तैयार किया है, उसे बचाने के लिए उन्होंने ऐसा किया है। क्योंकि वे कमल दल के नेताजी से पंगा नहीं ले सकते थे। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं बसपा प्रत्याशी के साथ गए तो कमल दल के नेताजी उनके पीछे ईडी, आईटी, सीबीआई न लगा दें। जिससे उनके एंपायर पर बुरा असर न पड़ जाए। या फिर पुराने बस स्टेण्ड की जमीन न नीचे से खिसक जाए।

कहीं धोबी का ..... घर का न घाट का, जैसा न हो हाल
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हिंदी में एक कहावत है कि धोबी का ..... घर का न घाट का। कहीं यह कहावत नेताजी पर भी लागू न हो जाए। क्योंकि नेताजी पाला बदलकर कमलदल के नेताजी के पाले में पहुंचे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे किसी के नहीं हुए हैं। ऐसे में नेताजी पर खतरा और बढ़ गया है। क्याेंकि कमल दल वाले नेताजी गंज वाले नेताजी पर विश्वास क्यों करें। क्योंकि वे अपने पुराने आका के ही विश्वास को डुबा चुके हैंं।
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लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने ही घर में फंस गई फूलवाले नेताजी की गोटी-----------------------------------------------हर ...
19/04/2024

लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने ही घर में फंस गई फूलवाले नेताजी की गोटी
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हर बार राजनीति की चौसर पर दूसरों को अपनी चालों में फंसाने व मात देने वाले बड़े चंबल की राजनीति के खिलाड़ी इस बार लोकसभा चुनाव में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। क्योंकि पहले तो इस खिलाड़ी ने लोकसभा चुनाव के इस खेल में पंजे वाली पार्टी के खिलाड़ी को मैदान के बाहर रखने का प्रयास किया। लेकिन यहां उनकी चाल फेल हो गई तो हाथी वाली पार्टी से अपने फेवर के उम्मीदवार को खेल में उतारवाने का प्रयास किया। जिससे उनकी गोटी पंजे के खिलाड़ी को मात दे दे। लेकिन कहते हैं कभी कभी चाल उल्टी पड़ जाती है। हुआ भी यही। हाथी से सरसों तेल की फैक्ट्री वाले सेठ जी खेल में उतर आए। ऐसे में फूल वाले खिलाड़ी का गेम प्लान ही बिगड़ गया। अब तो माहिर खिलाड़ी यानि फूल वाले खिलाड़ी की ही गोटी दो तरफ से फंस गई।

पंजे वाले खिलाड़ी ने पहले ही झटके में घेर लिया
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पंजे वाले खिलाड़ी ने मैदान में आते ही अपनी पहली ही चाल में फूलवाले खिलाड़ी की गोटी को घेर लिया। जब पंजे वाले खिलाड़ी ने चुनाव के खेल के नियम तोड़ने व संविधान के नियमों का उल्लंघन करने के लिए चुनाव खेल के रैफरी से शिकायत कर दी। ऐसे में फूलवाले खिलाड़ी की गोटी वहीं रह गई, जिस घर में थी। क्योंकि वे चाल चलने के लिए गेम के भीतर नहीं आ पा रहे हैं।

ऐसे भी फंस गए फूल वाले खिलाड़ी
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हुआ यूं कि जिले की राजनीति की चौसर पर फूल वाले खिलाड़ी किसी न किसी माध्यम से 2008 से लगातार खेल रहे हैं और उनका ही पूरे गेम पर अधिकार था। इस दौरान विरोधी टीम तो ठीक है, लेकिन अपनी ही टीम के ऐसे खिलाडि़यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जो उनके लिए खतरा बन रहे थे। अब इस लोकसभा चुनाव में वे खिलाड़ी भी हाथी के खिलाड़ी के साथ आ गए जिन्हें फूल वाले खिलाड़ी ने टीम से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। अब पूर्व खिलाड़ी व हाथी वाला खिलाड़ी भी फूल वाले खिलाड़ी पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।
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28/03/2024

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