20/04/2024
कहीं दोऊ दीन से न न चलें जाएं पाला बदलने वाले गंज वाले नेताजी
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कहते हैं कि राजनीति पिता पुत्र को अलग कर देती है। मां बेटे भी दूर हो जाते हैं। अच्छे खासे वफादार लोग भी गद्दार बन जाते हैं। हालांकि ये बातें केवल सुनी जाती थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में मुरैना शहर में तो यह नजर भी आ गया। क्योंकि किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों को लेकर चर्चा होती है। लेकिन मुरैना शहर में लोकसभा प्रत्याशियों की जगह गंज वाले नेताजी के अचानक अपना पाला बदलने के चर्चे अधिक हैं। क्योंकि जिस तरह से गंजवाले नेताजी ने इस चुनाव में अपने सालों पुराने रिश्तों को तिलांजली देकर अपना पाला बदल लिया। उन्होंने अपने स्वार्थों के चलते उस व्यक्ति का साथ छोड़ दिया जिसकी वजह से राजनीत से लेकर सामाजिक स्तर और आर्थिक स्तर की ऊंचाई के शिखर पर पहुंचाया था। ऐसे में उनके चर्चे अधिक हो रहे हैं।
यहां बता दें गंज वाले नेताजी, जो कमल दल के सदस्य हैं। इन गंज वाले नेताजी के बारे में गंज के ही व्यापारियों व लोगों का कहना है कि आज वे जिस सफलता की ऊंचाई पर हैं, वहां पर पहुंचाने में जीवाजीगंज में ही रहने वाले उद्योगपति व वर्तमान में बसपा प्रत्याशी की ही भूमिका है। चाहे नगरनिगम के चुनाव हों या बैंक के चुनाव। हर चुनाव में नेताजी को बसपा प्रत्याशी की वजह से ही सफलता मिली। अब जब बसपा प्रत्याशी को उनके साथ की ज्यादा जरूरत थी तो गंज वाले नेताजी ने साथ छोड़ दिया और विरोधी कमल दल के नेताजी जो भाजपा की राजनीति में प्रदेश से लेकर सेंट्रल तक अच्छी खासी दखल रखते हैं के पाले में चले गए।
धोखा पचा नहीं पा रहे हैं लोग
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जिस तरह से नेताजी ने पाला बदलकर अपने पुराने संबंधों को तिलांजली दी है। इस धोखे को न तो गंज के व्यापारी पचा पा रहे हैं और न ही शहर के लोग। लोगाें का कहना भी हैं आदमी की पहचान तो समय पर ही होती है। जब बसपा प्रत्याशी को उनकी ज्यादा जरूरत थी तो नेताजी ने साथ छोड़ दिया। लोगों का कहना है कि नेताजी ने सही गलत करके जो भी एंपायर तैयार किया है, उसे बचाने के लिए उन्होंने ऐसा किया है। क्योंकि वे कमल दल के नेताजी से पंगा नहीं ले सकते थे। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं बसपा प्रत्याशी के साथ गए तो कमल दल के नेताजी उनके पीछे ईडी, आईटी, सीबीआई न लगा दें। जिससे उनके एंपायर पर बुरा असर न पड़ जाए। या फिर पुराने बस स्टेण्ड की जमीन न नीचे से खिसक जाए।
कहीं धोबी का ..... घर का न घाट का, जैसा न हो हाल
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हिंदी में एक कहावत है कि धोबी का ..... घर का न घाट का। कहीं यह कहावत नेताजी पर भी लागू न हो जाए। क्योंकि नेताजी पाला बदलकर कमलदल के नेताजी के पाले में पहुंचे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे किसी के नहीं हुए हैं। ऐसे में नेताजी पर खतरा और बढ़ गया है। क्याेंकि कमल दल वाले नेताजी गंज वाले नेताजी पर विश्वास क्यों करें। क्योंकि वे अपने पुराने आका के ही विश्वास को डुबा चुके हैंं।
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