19/10/2025
यह दीपावली से एक दिन पहले छोटी दीपावली (नरक चतुर्दशी) का दिन था।
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दादाजी, रमेश बाबू, आज बेहद खुश थे। उनका घर रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों की लड़ियों से सजा हुआ था, लेकिन सबसे प्यारी थी उनकी पाँच साल की पोती, 'परी' की मुस्कान, जो पीले रंग के लहंगे में किसी नन्ही परी जैसी ही लग रही थी।
दादीजी, सरला देवी, अपने घुटनों पर बैठी, बड़ी ही ममता से ज़मीन पर बनी रंगोली में दिए सजा रही थीं। उन्होंने गहरे नारंगी रंग की साड़ी पहनी थी, जो दीयों की सुनहरी रोशनी में और भी दमक रही थी। रंगोली के बीच में, एक छोटे से पीतल के पात्र में अगरबत्तियाँ जल रही थीं, जिनकी धीमी खुशबू पूरे आंगन में फैल रही थी। परी, दादी के पास खड़ी होकर, अपनी छोटी सी माचिस से एक छोटा-सा दीया जलाने की कोशिश कर रही थी, और हर सफल प्रयास पर खुशी से तालियाँ बजा रही थी।
थोड़ी दूरी पर, दादाजी रमेश बाबू, जो क्रीम रंग की सदरी (जैकेट) और मरून कुर्ते-पायजामे में सजे थे, एक फुलझड़ी पकड़े हुए थे। फुलझड़ी से निकलती जगमगाती चिंगारियाँ ऊपर की ओर जा रही थीं, मानो खुशी के छोटे-छोटे तारे हवा में नाच रहे हों। दादाजी की आँखों में एक संतोष और गर्व की चमक थी— यह चमक सिर्फ फुलझड़ी की नहीं थी, बल्कि परिवार की खुशी और परंपरा को आगे बढ़ते देखने की थी।
दादीजी ने परी को पास बुलाया और उसके कान में धीरे से कहा, "आज छोटी दीवाली है, परी। आज यमराज को दीया दिखाते हैं ताकि सब स्वस्थ रहें और खुश रहें।"
परी ने दीया जलाने के बाद, एक छोटी-सी अनार दाना (फुलझड़ी का छोटा रूप) पकड़ी। जब वह जल उठी, तो उसकी छोटी आँखों में एक बड़ी दुनिया की रोशनी भर गई। दादाजी ने उसे अपनी फुलझड़ी से दूर रखने का इशारा किया, लेकिन उनके चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान थी।
छोटी सी लकड़ी की मेज पर, लड्डू और बर्फी सजे थे, जो इस मिठास भरे पल को और भी दोगुना कर रहे थे।
यह कहानी सिर्फ दीयों या पटाखों की नहीं थी। यह कहानी थी तीन पीढ़ियों के मिलन की— दादाजी का अनुभव, दादीजी का स्नेह, और परी का भोलापन। छोटी दीपावली का यह पल, जहाँ परंपरा और आधुनिकता, बुज़ुर्गों का प्यार और बचपन की चंचलता एक साथ मिलकर इस त्यौहार की आत्मा को जीवंत कर रहे थे, सचमुच मार्मिक था। यह दृश्य बता रहा था कि त्यौहार बाहरी रोशनी से नहीं, बल्कि परिवार के अटूट बंधन और साझा खुशी से जगमगाते हैं। उनके लिए, यही 'छोटी दीपावली' अपने आप में 'सबसे बड़ी दीपावली' थी।