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यह दीपावली से एक दिन पहले छोटी दीपावली (नरक चतुर्दशी) का दिन था।🎇🎆🎇🎆🎇🎆🎇🎆🎇🎆🎇🎆🎇🎆🎇​दादाजी, रमेश बाबू, आज बेहद खुश थे। उनका ...
19/10/2025

यह दीपावली से एक दिन पहले छोटी दीपावली (नरक चतुर्दशी) का दिन था।
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​दादाजी, रमेश बाबू, आज बेहद खुश थे। उनका घर रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों की लड़ियों से सजा हुआ था, लेकिन सबसे प्यारी थी उनकी पाँच साल की पोती, 'परी' की मुस्कान, जो पीले रंग के लहंगे में किसी नन्ही परी जैसी ही लग रही थी।
​दादीजी, सरला देवी, अपने घुटनों पर बैठी, बड़ी ही ममता से ज़मीन पर बनी रंगोली में दिए सजा रही थीं। उन्होंने गहरे नारंगी रंग की साड़ी पहनी थी, जो दीयों की सुनहरी रोशनी में और भी दमक रही थी। रंगोली के बीच में, एक छोटे से पीतल के पात्र में अगरबत्तियाँ जल रही थीं, जिनकी धीमी खुशबू पूरे आंगन में फैल रही थी। परी, दादी के पास खड़ी होकर, अपनी छोटी सी माचिस से एक छोटा-सा दीया जलाने की कोशिश कर रही थी, और हर सफल प्रयास पर खुशी से तालियाँ बजा रही थी।
​थोड़ी दूरी पर, दादाजी रमेश बाबू, जो क्रीम रंग की सदरी (जैकेट) और मरून कुर्ते-पायजामे में सजे थे, एक फुलझड़ी पकड़े हुए थे। फुलझड़ी से निकलती जगमगाती चिंगारियाँ ऊपर की ओर जा रही थीं, मानो खुशी के छोटे-छोटे तारे हवा में नाच रहे हों। दादाजी की आँखों में एक संतोष और गर्व की चमक थी— यह चमक सिर्फ फुलझड़ी की नहीं थी, बल्कि परिवार की खुशी और परंपरा को आगे बढ़ते देखने की थी।
​दादीजी ने परी को पास बुलाया और उसके कान में धीरे से कहा, "आज छोटी दीवाली है, परी। आज यमराज को दीया दिखाते हैं ताकि सब स्वस्थ रहें और खुश रहें।"
​परी ने दीया जलाने के बाद, एक छोटी-सी अनार दाना (फुलझड़ी का छोटा रूप) पकड़ी। जब वह जल उठी, तो उसकी छोटी आँखों में एक बड़ी दुनिया की रोशनी भर गई। दादाजी ने उसे अपनी फुलझड़ी से दूर रखने का इशारा किया, लेकिन उनके चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान थी।
​छोटी सी लकड़ी की मेज पर, लड्डू और बर्फी सजे थे, जो इस मिठास भरे पल को और भी दोगुना कर रहे थे।
​यह कहानी सिर्फ दीयों या पटाखों की नहीं थी। यह कहानी थी तीन पीढ़ियों के मिलन की— दादाजी का अनुभव, दादीजी का स्नेह, और परी का भोलापन। छोटी दीपावली का यह पल, जहाँ परंपरा और आधुनिकता, बुज़ुर्गों का प्यार और बचपन की चंचलता एक साथ मिलकर इस त्यौहार की आत्मा को जीवंत कर रहे थे, सचमुच मार्मिक था। यह दृश्य बता रहा था कि त्यौहार बाहरी रोशनी से नहीं, बल्कि परिवार के अटूट बंधन और साझा खुशी से जगमगाते हैं। उनके लिए, यही 'छोटी दीपावली' अपने आप में 'सबसे बड़ी दीपावली' थी।

प्रेम की चांदनी रात: राधा और कृष्ण का करवा चौथ🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖​एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में, जहाँ नदियाँ अपनी धु...
10/10/2025

प्रेम की चांदनी रात: राधा और कृष्ण का करवा चौथ
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​एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में, जहाँ नदियाँ अपनी धुन में बहती थीं और पहाड़ आकाश को छूते थे, राधा और कृष्ण नामक एक प्यारा जोड़ा रहता था। उनका प्रेम गाँव भर में प्रसिद्ध था, उतना ही पवित्र जितना कि उस गाँव की बहती नदी का जल। हर साल, राधा करवा चौथ का व्रत रखती थी, अपने प्रिय कृष्ण के लंबे और सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती थी।
​इस करवा चौथ पर, उन्होंने सोचा कि क्यों न इसे और भी खास बनाया जाए। सूरज ढलने वाला था, आकाश नारंगी और गुलाबी रंगों से सराबोर था, और नदी में छोटे-छोटे दीये तैर रहे थे, जैसे कि टिमटिमाते तारे। राधा और कृष्ण नदी के किनारे खड़े थे, नए और भव्य परिधानों में सजे हुए। राधा ने एक खूबसूरत लाल लहंगा पहना था, जिस पर सुनहरे धागे का काम था, और कृष्ण ने एक शाही बैंगनी रंग का कुर्ता, जिस पर सफेद दुपट्टा सजा था। उनके चेहरे पर प्रेम और भक्ति की आभा थी।
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​चंद्रमा आकाश में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहा था, और राधा ने अपनी पूजा की थाली पकड़ी हुई थी। उसमें दीया, मिठाई और एक छलनी थी। अपनी प्यारी मुस्कान के साथ, उसने छलनी उठाई और पहले चंद्रमा को देखा, फिर धीरे से छलनी को अपने पति, कृष्ण की ओर घुमाया। उसकी आँखों में कृष्ण के लिए गहरा प्रेम और समर्पण स्पष्ट दिख रहा था। कृष्ण ने भी उसे उतनी ही आत्मीयता से देखा, उसकी भक्ति और त्याग के लिए उसके हृदय में सम्मान था।
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​अंततः, चंद्रमा पूरी तरह से प्रकट हो चुका था, और राधा का व्रत खोलने का समय आ गया था। कृष्ण ने अपने हाथ में एक छोटा सा कलश लिया, जिसमें पवित्र जल था। प्यार से उसने राधा की ओर हाथ बढ़ाया, और राधा ने जल पीकर अपना व्रत खोला। उनके चेहरे पर संतोष और खुशी थी, क्योंकि एक और करवा चौथ प्रेम और विश्वास की एक नई याद के साथ संपन्न हुआ था। इस पल में, उन्होंने केवल अपना व्रत ही नहीं तोड़ा, बल्कि एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम और समर्पण के बंधन को भी गहरा किया।💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓

मैं हूं 💞  मेरे सवाल है 💞     और जवाब हो तुम💞          🥀 """"""""""""""""""""""""""""🥀मैं तपती ज़मी💞   और बरसात हो तुम💞 ...
08/10/2025

मैं हूं 💞
मेरे सवाल है 💞
और जवाब हो तुम💞
🥀 """"""""""""""""""""""""""""🥀
मैं तपती ज़मी💞
और बरसात हो तुम💞
🥀"""""""""""""""""""""""""""""""🥀
आपके ज़िक्र💞
से महका है हर लफ्ज़ ऐ इश्क💞
मेरी जिंदगी की वो मुकम्मल किताब हो तुम💞
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💖 ्मीदें जुड़ी हैं तुझसे  ूटने मत देना,💔❤️  िल एक मोम का है ❤️‍🔥 िघलने मत देना।❤️  िल ने चाहा है तुझे ये आज  ा चला,तुझे ...
08/10/2025

💖 ्मीदें जुड़ी हैं तुझसे ूटने मत देना,💔❤️ िल एक मोम का है ❤️‍🔥 िघलने मत देना।❤️ िल ने चाहा है तुझे ये आज ा चला,तुझे है तेरे ्यार 💞की....इस ़कन को कभी ंद होने मत देना। 🌹💖💓💞💕

❤️ किसी को केवल पा लेना ही प्रेम नहीं। ❤️❤️ किसी को बिना पाए भी उसी का होकर रहना भी प्रेम है।। ❤️ शुभ रात्रि 🌃💤😴
08/10/2025

❤️ किसी को केवल पा लेना ही प्रेम नहीं। ❤️❤️ किसी को बिना पाए भी उसी का होकर रहना भी प्रेम है।। ❤️ शुभ रात्रि 🌃💤😴

 #चाँद को हर कोई चाहता है, ये  #आम बात है.. मगर  #चाँद किसे चाहता है, ये  #खास बात है.  #जीने के लिए क्या जरुरी है,ये  ा...
08/10/2025

#चाँद को हर कोई चाहता है,
ये #आम बात है..
मगर #चाँद किसे चाहता है,
ये #खास बात है.
#जीने के लिए क्या जरुरी है,
ये ात_है ...
पर #जी रहे हैं किसके लिए,
ये #खास_बात_है.....

Good night❤

 #रिश्ते_वही_खास_होते_हैं  #जिनकी___बुनियाद  #एहसान____नहीं  #एहसास__होते___हैं   nightEveryone 🌹💕🌟🌠👍
06/10/2025

#रिश्ते_वही_खास_होते_हैं #जिनकी___बुनियाद #एहसान____नहीं #एहसास__होते___हैं nightEveryone 🌹💕🌟🌠👍

अवनि की तड़पती अंगड़ाई: मुक्ति की वर्षा💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓​गाँव के छोर पर, गहरे जंगल में एक पतली पगडंडी थी, जो अक्सर सूखी औ...
05/10/2025

अवनि की तड़पती अंगड़ाई: मुक्ति की वर्षा
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​गाँव के छोर पर, गहरे जंगल में एक पतली पगडंडी थी, जो अक्सर सूखी और धूल भरी रहती। इस पगडंडी को अवनि ने अपना अकेलापन दे दिया था। अवनि, जिसकी आँखें अक्सर गहरी बादलों से ढँकी रहती थीं, एक ऐसी महिला थी जिसके भीतर की प्यास अब सिर्फ़ पानी की नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की थी। उसकी देह तो चल रही थी, पर आत्मा बरसों से बंधी हुई थी— रूढ़ियों के धागों में, अनकहे वचनों में, और समाज के बोझिल विचारों में। उसकी हर साँस एक दबी हुई अंगड़ाई थी, एक मौन चीख।
​अवनि के बाल काले थे, पर मन पर उदासी की धूसर चादर बिछी थी। उसकी साड़ी, जो कभी चमकती नीली थी, अब जीवन की थकान से कुछ मैली सी लगती थी। वह हर सुबह उठती, सारे काम करती, पर उसके भीतर एक अग्नि सुलगती थी— तृप्ति की आग। वह तड़पती थी उन क्षणों के लिए जब वह अपने अस्तित्व को खुलकर जी सके। यह अग्नि उसके बदन से नहीं, बल्कि आत्मा से निकलती थी, एक मौन विद्रोह की तरह।
​एक दोपहर, जब आसमान ने स्वयं को पूरी तरह से क्रोध और करुणा के बीच बाँट लिया था, अवनि उसी पगडंडी पर चल रही थी। बादल काले और घने थे, और अचानक मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। अवनि रुकी नहीं। वह चलती रही, और फिर बीच रास्ते में, वह सहसा ठहर गई।
​बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर, बालों पर, और भीगे हुए शरीर पर गिर रही थीं। उसके पैरों के नीचे की सूखी मिट्टी अब गीली और नरम हो रही थी। अवनि ने अपनी आँखें ऊपर उठाईं, आसमान की ओर। उसकी आँखों में अश्रु और बारिश का पानी मिल गया था।
​उस क्षण, अवनि ने महसूस किया कि यह पानी सिर्फ़ आसमान से नहीं गिर रहा था— यह उसके भीतर की प्यास का ही आकाशीय प्रतिरूप था। उसकी तड़पती अंगड़ाई ने अब एक नया रूप ले लिया था। वह अब दबी हुई नहीं थी। बारिश की हर बूँद, उसके भीतर की कठोर परतों को तोड़ रही थी।
​उसने अपने दोनों हाथ धीमे से नीचे गिराए, जैसे उसने कोई भारी बोझ उतार दिया हो। उसका पूरा शरीर बारिश में भीगा हुआ था, पर अब वह ठंडा महसूस नहीं कर रही थी। उसे महसूस हो रहा था कि उसके बदन से तड़पती आग (भीतर की बेचैनी) अब बारिश के साथ शांत हो रही है, धुल रही है। यह पानी उसे जीवन दे रहा था, जैसे बंजर ज़मीन को पानी मिलता है।
​अवनि ने एक गहरी साँस ली, और पहली बार, उसने अपनी अंगड़ाई को पूरी तरह से खुलकर लिया। यह अंगड़ाई अब दर्द की नहीं, बल्कि मुक्ति की थी। यह उसके अस्तित्व का उत्सव था, जो बरसों से शांत पड़ा था। उसके चेहरे पर जो भाव था, वह अब प्यास का नहीं, बल्कि भीषण तृप्ति का था— जैसे सदियों बाद किसी प्यासे यात्री को ठंडा, मीठा पानी मिल गया हो।
​वह जान गई थी कि प्यास सिर्फ़ पानी की नहीं होती, आत्मा की स्वतंत्रता की भी होती है। और कभी-कभी, इस स्वतंत्रता को पाने के लिए, हमें बारिश में भीगना पड़ता है, खुद को प्रकृति के हाथों सौंपना पड़ता है, और अपनी तड़पती अंगड़ाई को एक मुक्त साँस में बदल देना पड़ता है।
​अवनि उस पगडंडी पर अकेली खड़ी थी, बारिश में भीगी हुई। वह अब कमजोर नहीं थी, बल्कि नवोदित शक्ति से भरी हुई थी। उसकी आँखें अब ऊपर नहीं निहार रही थीं, बल्कि सामने, पगडंडी के अंत की ओर देख रही थीं, जहाँ एक नए सवेरे की किरण फूट रही थी।
​मुझे उम्मीद है कि यह कहानी आपकी कल्पना और "तड़पती अंगड़ाई" के भाव को पूरी तरह से दर्शाती है!💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖

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