19/09/2025
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, "हे केशव! आप मुझे कर्म और ज्ञान दोनों का त्याग करने के लिए कह रहे हैं, तो मुझे बताइए कि इन दोनों में से मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है?"
तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:
श्लोक:
संन्यास: कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरौ उभौ ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥
अर्थ:
कर्मों को छोड़ना (संन्यास) और कर्म करना (कर्मयोग), दोनों ही परम कल्याणकारी हैं। लेकिन इन दोनों में भी कर्मों के त्याग से कर्मयोग श्रेष्ठ है।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि कर्मों को त्यागना यानी कर्मों से विरक्त होकर केवल ज्ञान की ओर जाना और कर्मों को करते हुए भी फल की इच्छा को त्याग देना (कर्मयोग), दोनों ही मोक्ष का मार्ग हैं।
लेकिन, केवल कर्म त्यागना कठिन है और इससे व्यक्ति निष्क्रिय हो सकता है। जबकि कर्मयोग का मार्ग आसान है, जहाँ व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता रहता है, लेकिन फल की चिंता किए बिना। इसलिए, भगवान ने कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया, क्योंकि यह व्यवहारिक है और हर कोई इसका पालन कर सकता है।