Radha

Radha The worth of the life is unlimited

Good night 🌉🌆
21/09/2023

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Yesterday was the appearance day of Srimati Sita Thakurani. Sita Thakurani lived in Santipura as the eternal wife of Sri...
21/09/2023

Yesterday was the appearance day of Srimati Sita Thakurani. Sita Thakurani lived in Santipura as the eternal wife of Sri Advaita Acarya Prabhu. She was always absorbed in vatsalya-prema (paternal love) for Sri Gaurasundara.

Can you reply me with Jai Jai Shree Ram ❤️‍🔥?
19/09/2023

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18/09/2023

18/09/2023

🙏🏻🌷Hare Krishna!!!🌷🙏🏻
07/08/2023

🙏🏻🌷Hare Krishna!!!🌷🙏🏻

इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा ...
04/08/2023

इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

🔸काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
🔸 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
🔸 2 त्रुटि = 1 लव ,
🔸 1 लव = 1 क्षण
🔸 30 क्षण = 1 विपल ,
🔸 60 विपल = 1 पल
🔸 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
🔸 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
🔸 3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
🔸 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
🔸 7 दिवस = 1 सप्ताह
🔸 4 सप्ताह = 1 माह ,
🔸 2 माह = 1 ऋतू
🔸 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
🔸 100 वर्ष = 1 शताब्दी
🔸 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
🔸 432 सहस्राब्दी = 1 युग
🔸 2 युग = 1 द्वापर युग ,
🔸 3 युग = 1 त्रैता युग ,
🔸 4 युग = सतयुग
🔸 सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
🔸 72 महायुग = मनवन्तर ,
🔸 1000 महायुग = 1 कल्प
1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
🔸 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
🔸 महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

जय श्रीराम, जय गोविंदा ✨🙏🕉️💖

Jai shree radheyshyam 😃🙏
04/08/2023

Jai shree radheyshyam 😃🙏

03/08/2023

🔆 सनातन रहस्य 🔆——“प्रोजेक्ट श्री रामसेतु”——𝗶𝗻𝘃𝗲𝘀𝘁𝗶𝗴𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 𝗽𝗿𝗼𝗷𝗲𝗰𝘁 𝗼𝗳 𝗺𝘆𝘀𝘁𝗲𝗿𝗶𝗼𝘂𝘀 𝗮𝗻𝗰𝗶𝗲𝗻𝘁 𝗯𝗿𝗶𝗱𝗴𝗲 𝗯𝗲𝘁𝘄𝗲𝗲𝗻 𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔 𝗮𝗻𝗱 𝗦𝗛𝗥𝗜 𝗟𝗔𝗡...
02/08/2023

🔆 सनातन रहस्य 🔆

——“प्रोजेक्ट श्री रामसेतु”——
𝗶𝗻𝘃𝗲𝘀𝘁𝗶𝗴𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 𝗽𝗿𝗼𝗷𝗲𝗰𝘁 𝗼𝗳 𝗺𝘆𝘀𝘁𝗲𝗿𝗶𝗼𝘂𝘀 𝗮𝗻𝗰𝗶𝗲𝗻𝘁 𝗯𝗿𝗶𝗱𝗴𝗲 𝗯𝗲𝘁𝘄𝗲𝗲𝗻 𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔 𝗮𝗻𝗱 𝗦𝗛𝗥𝗜 𝗟𝗔𝗡𝗞𝗔


• सिविल इंजीनियर :- नल नील और पूरी वानर तथा रीक्ष सेना ।
• आवश्यकता :- लंका से माता सीता को वापिस लाना
• प्रोजेक्ट निरीक्षक :- जामवंत
• प्रोग्राम मेंटर : महाबली हनुमान
• प्रधान सहमति :- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम।
• सामग्री :- फ्लोटिंग पत्थर और प्रभु श्री राम की महिमा।
• स्थान :- रामेश्वरम
• लंबाई :- 18 मील (30 किमी)
• चौड़ाई :- 3 किमी
• समुद्र तल :- 4 फीट (1.2 मीटर)
• श्री राम सेतु को वास्तुकार नील और नल की देखरेख में 10 मिलियन वानरों द्वारा बनाने में 5 दिन लगे।
• रामायण के अनुसार राम सेतु की लंबाई 100 योजन और उसकी चौड़ाई 10 योजन थी।
• रामायण के अनुसार पहले दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन का कार्य पूरा किया गया था।
• श्री राम सेतु की आयु और संरचना 1.75 मिलियन वर्ष पुरानी है
• ऐसा माना जाता है कि श्री राम सेतु चूना पत्थर की चट्टानों की एक श्रृंखला से बना है।
यह 30 किमी लंबा और 3 किमी चौड़ा है।
• यह भारत के पंबम द्वीप के धनुषकोटी सिरे से शुरू होती है और श्रीलंका के मन्नार द्वीप पर समाप्त होती है।
• इन क्षेत्रों में समुद्र बहुत उथला है तथा रामायण में वर्णित स्थान श्री राम सेतु के वर्तमान स्थान से बिल्कुल मेल खाते हैं।
• मंदिर के रिकॉर्ड कहते हैं कि 1480 ई. में एक चक्रवात में टूटने तक श्री राम सेतु पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था ।
• वैज्ञानिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है की श्री राम सेतु 1480 ई. तक चलने योग्य था ।

रामसेतु भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक-धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है जिसका हमारी संस्कृति में अत्यधिक महत्व माना गया है। रामसेतु, भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। रामसेतु भारतीय आमजन में उस संरचना को कहा गया है जो भारतीय संस्कृति,पौराणिक आख्यान,भारतीय साहित्य और आम जन के विश्वास के अनुसार भगवान राम द्वारा रावण को पराजित करने हेतु लंका जाने के लिए भारत और लंका के बीच के समुद्र में बनाया गया था।

रामर पालम या रामसेतु तमिलनाडु, भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य स्थित था और भौगोलिक प्रमाणों से यह पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ता था। रामसेतु के विषय में विविध किस्म के आख्यान हैं, विश्वास हैं और मान्यताएं भी हैं। एक विचार यह कहता है कि यह संरचना प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित तो एक विचार और विश्वास इसको रामायण काल और भगवान राम से जोड़ता है। सबसे पहले चर्चा करते हैं हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक साहित्य में इस सेतु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है

यदि हम वैदिक प्रमाण की बात करें तो रामसेतु सम्बंधित सबसे पहला लिखित वर्णन श्री वाल्मीकि रामायण में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के प्रथम सर्ग के 17वें श्लोक में रामचंद्र जी सुग्रीव से पूछते हैं कि:-

"कथं नाम समुद्रस्य दुष्पारस्य महाम्भस:।
हरयो दक्षिणम पारं गामिष्यन्ति समागताः।।"

अर्थात "महान जलराशि से परिपूर्ण समुद्र को पार करना तो बड़ा ही कठिन काम है।यहाँ एकत्र हुए वानर समुद्र के दक्षिण तट पर कैसे पहुँचेंगे?" इसके आगे इसी वाल्मीकि रामायण के 19वें सर्ग में रामचन्द्र जी के समुद्र पार करने का उपाय पूछने पर विभीषण ने रामचन्द्र जी के पूर्वज राजा सगर का जिक्र करते हुए कहा है कि इसलिए समुद्र को रामचंद्र जी का काम अवश्य करना चाहिए और इस हेतु वो रामचंद्र जी से समुद्र से सहायता माँगने की राय देते हैं।

कालिदास रचित 'रघुवंश' के 13वें सर्ग में भगवान राम के लंका जीतने के बाद सीता जी के साथ आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन है और इसमें रामचंद्र जी सीता जी को रामसेतु के विषय में बताते हैं।
स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

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