05/08/2025
सेक्स की लत ऐसी लगी कि मैने अपनी भाभी के साथ ही इसे करने का सपना देखने लगा था
बाहर से देखने में सब कुछ ठीक था—जॉब, परिवार, पढ़ाई—लेकिन अंदर एक तूफान चल रहा था, जिसकी आहट किसी को नहीं थी।
मुझे सेक्स की लत लग चुकी थी… हाँ, लत।
शुरुआत वेब सीरीज़ से हुई। धीरे-धीरे वो साधारण नहीं रहीं। हर कहानी में रिश्तों को ऐसे दिखाया जाता कि मैं उसमें खुद को खोजने लगा।
भाभी–देवर जैसे पवित्र रिश्ते भी जब इन कहानियों में वासना में लिपटे हुए दिखते, तो मेरा दिमाग उन्हें हकीकत मानने लगा।
मेरी अपनी भाभी—स्मिता भाभी—वो हमेशा मुझे अपने छोटे भाई जैसा मानती थीं। मगर मेरा मन... मैं शर्मिंदा हूँ ये कहते हुए कि मैं उन्हें उसी नजर से नहीं देख पा रहा था।
हर दिन, हर रात, मेरे सपनों में वो आने लगीं… और एक दिन, हकीकत ने वो चेहरा ओढ़ लिया।
वो दिन आज भी मेरे ज़हन में एक काली तस्वीर की तरह बसा है।
घर पर कोई नहीं था। भाभी रसोई में थी।
मैं उनके पास गया और उनका हाथ पकड़ लिया।
"भाभी... बस एक बार... प्लीज़..." — ये शब्द मेरे मुंह से निकले, और मेरी आत्मा चुप हो गई।
वो डर गईं… खुद को कमरे में बंद कर लिया।
मैं वहीं दरवाज़े के बाहर खड़ा रहा।
मेरे शरीर में उत्तेजना थी, लेकिन मन पूरी तरह से टूट चुका था।
मैं रातभर सो नहीं सका। खुद से नफरत होने लगी थी।
अगले दिन मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त करण को सब बता दिया। उसने मुझे जज नहीं किया। बस कहा,
"भाई, तू बीमार है... गुनहगार तब होगा जब तू इससे निकलने की कोशिश नहीं करेगा।"
करण मुझे एक मनोचिकित्सक के पास ले गया।
वहाँ पता चला कि मुझे हाइपरसेक्सुअल डिसऑर्डर है।
बार-बार सेक्स से जुड़े विचार आना, खुद को कंट्रोल न कर पाना, और इंटरनेट की गंदी कहानियों का लगातार असर… ये सब मिलकर मेरे दिमाग को बीमार कर चुके थे।
मैंने थैरेपी ली। हफ्तों तक खुद को समझा।
फोन से दूरी बनाई, ध्यान लगाना शुरू किया, और सबसे ज़रूरी—मैंने खुद को माफ़ किया।
भाभी से कभी नज़रें नहीं मिला पाया।
मैंने उन्हें एक पत्र लिखा… माफ़ी माँगी। उन्होंने कभी जवाब नहीं दिया—और शायद यही मेरी सबसे बड़ी सज़ा थी।
आज मैं दूसरों को यही कहता हूँ—
> "फैंटेसी और हकीकत में फर्क करो।
जो रिश्ता तुम्हें सबसे पहले प्यार सिखाता है, उसे अपनी वासना का पात्र मत बनाओ।
सोच पर कंट्रोल खोना बीमारी हो सकती है, लेकिन इलाज लेना बहादुरी है।"