15/08/2022
तिरंगे की आत्मकथा
मैं तिरंगा हूं, मुझे खुशी है कि आज मैं देश के हर घर में पहुंच चुका हूं इसके लिए मैं भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे आज देश के हर घर में पहुंचा दिया है. लेकिन एक सवाल मन में उठता है कि क्या मैं लोगों के दिलों में हूं? सच पूछें तो मैं लोगों के दिलों में रहना चाहता हूं. सोशल मीडिया, घरों, कार्यालयों, शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों, सड़कों, गली और नुक्कड़ हर जगह मैं ही मैं नजर आ रहा हूं, बड़ी खुशी होती है यह देख कर कि लोग मुझसे कितना प्यार करते हैं. लोगों ने मुझे अपने जीवन में रचा बसा लिया है लेकिन इन्हीं लोगों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मेरी मौजूदगी में मेरा उपहास भी करते हैं. जिस कार्यालय में भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत लेता है मैं वहां भी मौजूद होता हूं. जिस संस्थान में महिलाओं का अपमान किया जाता है मैं वहां पर मौजूद होता हूं. मैं उसे गाड़ी में भी मौजूद होता हूं जो रेड सिग्नल होने के बावजूद रुकती नहीं, मैं उस अस्पताल में भी मौजूद होता हूं जहां चंद रुपए की वजह से गरीब मरीज दम तोड़ देता है.
अगर मैं लोगों के दिलों में होता तो यह लोग ऐसा नहीं करते मेरा सम्मान करते और अपने कर्तव्य का पालन करते ताकि और लोगों की सहायता होती. लोग रिश्वत देने पर मजबूर ना होते अगर मैं लोगों के दिलों में होता तो मुझे आज घर घर पहुंचाने की जरूरत नहीं होती यह जरूरत आन पड़ी है इसका मतलब साफ है कि मैं अब लोगों के दिलों में नहीं रहा. मुझे बहुत दुख होता है जब मेरा कफन बना कर मेरे बेटे के बदन पर लपेटा जाता है, लेकिन उसका कफ़न बनना भी मेरे लिए फक्र की बात होती है क्योंकि उसने मेरे सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति दी है. तो अब यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उसका सम्मान करूं.
कोई कहता है मेरी कीमत बढ़ गई है कोई कहता है कि मेरी कीमत घट गई है मुझे नहीं पता कि मेरी कीमत पहले कितनी थी और आज कितनी है. आज मेरी कीमत 25 Rs लोगों को महंगी लग रही है लेकिन जब मैं 1-2 रुपए में सड़कों पर आसानी से बिकता था तब भी लोग मुझे खरीदने के लिए मोलभाव करते थे. दरअसल वह मोलभाव मेरा नहीं होता था वह उस बच्चे की उम्मीद का मोलभाव था जो रात की रोटी पाने की उम्मीद में तिरंगे में अपने भविष्य को देख रहा था.
मैं कागज या कपड़े पर लगा हुआ महज तीन रंग नहीं हूं मैं भारत के अस्तित्व की पहचान हूं. मैं सब्सिडी वाला सिलेंडर नहीं हूं जो मुझे किसी योजना के तहत घर-घर पहुंचाने की जरूरत पड़े. मैं अगर लोगों के दिलों में नहीं हूं तो मुझे लोगों के घर तक पहुंचने की इच्छा भी नहीं है. आगे आपको तय करना है कि आप मुझे कहां रखना चाहते हो और मेरी असली जगह कहां है?