18/06/2025
पचास साल पहले अवध इलाके के एक गांव में बारात आई,तब बराती नाचते नहीं थे बुरा माना जाता था, दूल्हे को एक जामा या पियरी पहनाई जाती थी जो मलमल का कुर्तानुमा झबला होता था,गले से पैर तक होता था,जैसा अरब के शेख पहनते हैं,उस झबले को तबीयत से हल्दी डालकर पीले रंग से रंग दिया जाता था,सर पर मौर मतलब एक हेड ड्रेस जो दो फीट ऊंचा होता था रंगबिरंगा गौर करने पर उसमे तोते और फूल दिखते थे,आंखों में दबा कर काजल लगा हुआ ताकि किसी की बुरी नजर न लगे
इस तरह दूल्हे की छवि देखने योग्य होती थी,
बारात आते ही बाजे वाले सक्रिय हो जाते थे,अजीब ढंग की छोटी छोटी टिमकी बजाते थे नगाड़े की तरह,पतली लकड़ियों से बजाते थे,तुरही शहनाई वाले ऐसी पारंपरिक मंगल गान की धुन छेड़ देते थे कि उनका संगीत सारे माहौल पर हावी हो जाता था,
केवड़ा जल और रस पेश किया जाता था सबसे पहले,रस मतलब शरबत,कोई लड़का दूल्हे को हाथ के पंखे से हवा झलने लगता था
उसके बाद बूंदी नमकीन वगैरह,चाय भी चलने लगी थी,बराती तो खाना खाने ही आते थे तीन दिन बारात रुकी रहती थी,किसी खेत में दरी बिछाकर कनात शामियाने लगाए जाते थे वो जनवासा होता था,चारपाई गांव भर से मांग कर लाई जाती थी, गैस के हंडे जलते थे,
रात को आल्हा ऊदल या नौटंकी होती थी जिसे बारातियों के साथ सारे गांव वाले देखते थे पेट्रोमेक्स की रोशनी में
रात के खाने में पूड़ी कचौड़ी के साथ कुम्हड़े की सब्जी होती थी,जिसे बिना तेल के छिलके बीज समेत बिना किसी नमक मसाले के उबाल देते थे,परसते समय नमक अलग से दिया जाता था, कचौड़ी मतलब आटे के पेड़ों को तल दिया जाता था,बहुत कड़ी होती थी,रात भर कोई स्पेशलिस्ट रिश्तेदार धोती पहन कर उघाड़े बदन पूड़ी कचौड़ी तलते थे,गांव के लड़के आटा गूंथते थे और घर की महिलाएं और अड़ोस पड़ोस की लड़कियां महिलाएं पूड़ी कचौड़ी बेलती थी,बाद में बांस के काफी बड़े टोकरों में चारों तरफ पत्तल लगाकर पूड़ी कचौड़ी पैक कर दी जाती थी जो घंटों तक गर्म रहती थी
और पीसी हुई चीनी,साथ में आम और सूखी मिर्च का गुड का अचार,कभी परवल या कटहल की सब्जी होती थी जिसे रेसेदार सब्जी बोलते थे,बाद में बोलते थे बहुत आइटम था,आइटम पर आइटम गांज दे रहा था,कितना खाते फिर भी तेरह कचौड़ी खाए
दूसरे दिन सुबह समोसे पकौड़े जलेबी लड्डू नमकीन चलता था,दोपहर में कच्चा भोजन जिसमे चावल के साथ घी डाली दाल और कुछ सूखी सब्जी अचार,और लड्डू
फिर रात के खाने में वो ही कचौड़ी पूड़ी सब्जी
अरारूट में शक्कर डालकर उबाल देते थे,पतला सा चावल के माड़ की तरह दिखता था जिसे तसमई कहते थे,उसके साथ सब पूड़ी झोरते थे,पूड़ी को सोहारी कहते थे,फिर तीसरे दिन सुबह पकौड़े जलेबी वगैरह खाकर विदाई होती थी
उस समय बराती के साथ दूल्हा भी जमीन पर बैठकर दोना पत्तल पर खाता था,दूल्हा लखनऊ जयपुर में पढ़ा था क्योंकि उसके पिता सरकारी महकमे में काम करते थे, उपरी कमाई वाली पोस्ट थी ,पक्का घर बनवाए थे गांव पवस्त में सबसे बड़ा,
दूल्हा भी दिल्ली में अच्छी नौकरी करता था, दूल्हे ने कहा बिना चम्मच के वो खाना नहीं खा सकता ,उसने कभी खाया ही नहीं था,इस बात पर एक हलचल एक संकट उत्पन्न हो गया, चम्मच घर में था ही नहीं,पीतल के बर्तन हांडी थाली कटोरी कड़छुल थे,चम्मच नहीं था जिसे चिम्मच कहते थे,बुजुर्ग हाथ जोड़कर दूल्हे के सामने खड़े हो गए,कोई पैर छूने की कोशिश करने लगा,मेहमान जी नाराज मत होइए,खा लीजिए,हम लड़की दे रहे हैं आपके सेवक हैं,आप बड़े हम छोटे हैं,जो कमी होगी सब पूरा करेंगे,बोलकर रोने लगे,सब लड़के चुपचाप दुल्हे का मुंह देखने लगे, चिम्मच से खाता है लड़का,मजाक हंसी की बात थोड़ी है,लडकिया दूर से दूल्हे की सूरत देखने लगी, हे बाबा, जीजा तो चिम्मच से खाते हैं,अब अंजू जीजी का क्या होगा,कैसे रहेगी चिम्मच से खाने वाले लड़के के साथ,
बेइज्जत हो जाने का खतरा पैदा हो गया
कुछ बच्चों को पड़ोस के घरों में दौड़ाया गया शायद किसी के घर हो चम्मच
घर के अंदर औरतें परेशान क्या करें,कोई कहने लगी और ढूंढो शहराती लड़का,लड़की की अम्मा जो पहले ही परेशान थी धम्म करके आंगन में बैठकर रोने लगी,अब क्या होगा, हे देवी मईया किरपा करो,रोट चढ़ाऊंगी हे माई,का होगा मेरी इस अभागी लड़की का,बिसेसरा के बाबू इतना इंतजाम किए दिल्ली वाला लड़का ढूंढे तो चम्मच काहे भी नहीं खरीद लिए
तब तक बिसेसर की बहू आई झिझकते हुए
नई बहू थी जो आठवी पास थी बहुत तेज सुंदर सुघड़ लेकिन सास से डरती थी,जैसे हिरणी की किसी बाघिन को देखते ही सिट्टीपिट्टी गुम हो जाती है
उसने अपनी सास के कान में कुछ कहा सास हंसने लगी खुश होकर,
वो बहू बचपन में एक बार अपने मामा के घर कलकत्ता भी गई थी उसको सब शहर का कायदा पता था,वो अपने गहनों के साथ पेटी में छै चिम्मच रखी थी छिपाकर,उसकी मामी ने शादी में दिया था,एक छोटी लड़की फौरन छै चिम्मच लेकर काफी रफ्तार से दौड़ी जैसे ओलिंपिक मशाल लेकर खिलाड़ी दौड़ते हैं गर्व के साथ,उसके साथ मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ छोटी बच्चियों भी दौड़ने लगी
बस चिम्मच पहुंचा, दूल्हे ने भी खाया,और लोगों को भी दिए चिम्मच,एक मांग रहे थे अब छै लो,बाबू हम लोग देहाती भुच्च होंगे,हमारी अमरिया वाली बहू मिडल पास है,बहुत तेज है शहर में ममवा के घर रही है, खड़ी हिंदी बोलती है जैसे सब सलीमा रेडियो वाले बोलते हैं,कितना चिम्मच चाहिए अब बोलो,पल भर में बोझल तनाव से भरे लम्हे खुशी में बदल गए,बिसेसर की बहुरिया गांव भर में विख्यात हो गई,ये है बहू,सास ससुर की इज्जत बचा ली,बहुत होशियार है, जुग जुग जिए
लड़के मुंह खोले दूल्हे को चिम्मच से खाते देखते रहे,लडकिया दूर से देख रही थी चिम्मच वाले दूल्हे को,बोल रही थी अंजू जीजी का दूल्हा बहुत स्टाइल वाला है,
लड़की की बूढ़ी दादी भी पोपले मुंह से बोली"अंत भला तो सब भला" 😀
साभार
Amitabh Shukla जी
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