05/09/2025
अर्जुन की इंसानियत और तक़दीर की कहानी
दिल्ली की भीड़भाड़ भरी गलियों में, एक छोटे से कमरे में अर्जुन अपनी किस्मत बदलने का सपना लिए जी रहा था। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से आया अर्जुन, सिर्फ़ 22 साल का था। उसके पिता ने अपनी दो बीघा ज़मीन गिरवी रखकर उसे आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली भेजा था। घर में बूढ़ी माँ और छोटी बहन थी, जिनकी उम्मीदें अर्जुन से जुड़ी थीं। अर्जुन के कमरे की दीवारों पर भारत का नक्शा, इतिहास की तारीखें और माँ-बाप की धुंधली तस्वीर टंगी थी, जो उसे हर पल याद दिलाती थी कि उसे यह जंग जीतनी ही है।
पिछले दो सालों से अर्जुन ने सिर्फ़ मेहनत की थी—न नए कपड़े, न घूमना-फिरना, बस पढ़ाई और सपनों की दौड़। उसकी दुनिया किताबों, नोट्स और लाइब्रेरी तक सीमित थी। वो अक्सर भूखा सो जाता, ताकि कोचिंग की फीस और किताबों के पैसे बचा सके। उसका एक ही सपना था—आईएएस बनना और अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकालना।
कहानी का मोड़
दो साल की कड़ी मेहनत के बाद, आखिर वह दिन आ गया। अर्जुन ने प्रीलिम्स अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और अब मेंस की परीक्षा का फॉर्म भरना था। उस दिन फॉर्म भरने की आखिरी तारीख थी। उसने अपनी गुल्लक तोड़ी, पिछले छह महीने से जमा किए पैसे गिने—₹1500। यही उसकी पूरी पूंजी थी। उसने माँ-बाप की तस्वीर को माथा टेका और बैंक की ओर निकल पड़ा।
रास्ते में अचानक सड़क पर एक जोरदार चीख सुनाई दी। अर्जुन ने देखा कि एक महिला खून में लथपथ सड़क पर पड़ी थी। भीड़ जमा थी, कोई वीडियो बना रहा था, कोई अफसोस जता रहा था, लेकिन कोई मदद करने आगे नहीं आया। अर्जुन का दिल कांप गया। उसके दिमाग ने कहा, "आज फीस जमा करने का आखिरी दिन है, अगर मौका गया तो सब खत्म।" लेकिन तभी उसे माँ के शब्द याद आए—"बेटा, पढ़ाई तुझे अफसर बना सकती है, पर इंसानियत तुझे इंसान बनाए रखती है।"
अर्जुन के अंदर जंग छिड़ गई। एक तरफ उसका भविष्य, दूसरी तरफ इंसानियत। उसने फैसला लिया—वह अपनी इंसानियत नहीं मारेगा। वह भीड़ को चीरता हुआ महिला के पास पहुँचा, मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन कोई नहीं आया। उसने खुद ही महिला को उठाया, ऑटो वालों से गुहार लगाई, आखिर एक ऑटो वाला मान गया। अर्जुन महिला को प्राइवेट अस्पताल ले गया।
कठिन परीक्षा
अस्पताल में नर्स ने कहा, "₹2000 जमा करो, तभी इलाज शुरू होगा।" अर्जुन के पास सिर्फ ₹1500 थे। उसने मिन्नतें कीं, लेकिन नियम सख्त थे। अर्जुन ने कांपते हाथों से अपनी दो साल की मेहनत की पूंजी काउंटर पर रख दी। बाकी ₹500 उसने दोस्त से उधार लिए। इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों ने कहा, "अगर थोड़ी देर और हो जाती तो महिला की जान जा सकती थी।"
अर्जुन अस्पताल के बाहर बैठा रहा, दिल में सुकून था कि उसने एक जान बचाई, लेकिन उसका अपना भविष्य अब अंधेरे में था। परीक्षा की फीस जमा करने का समय निकल चुका था। रात हो गई, महिला को होश आया। अर्जुन डरते-डरते उसके कमरे में गया। महिला ने उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू देखे। "बेटा, तुमने मेरी जान बचाई। मैं तुम्हारा एहसान कैसे चुकाऊँगी?" अर्जुन ने कहा, "यह मेरा फर्ज था।" महिला ने उसका नाम और नंबर लिया, कहा कि पैसे लौटा देगी।
कुछ देर बाद एक बड़ी गाड़ी अस्पताल के बाहर रुकी। अर्जुन अपनी जिम्मेदारी पूरी समझकर घर लौट गया। उसके पास अब किराए के पैसे भी नहीं थे, कई किलोमीटर पैदल चला। अगले कुछ हफ्ते अर्जुन के लिए बहुत मुश्किल भरे थे। उसने कॉल सेंटर में रात की नौकरी शुरू की, दिन में पढ़ाई करता, रात में काम। उसका चेहरा थकान और चिंता से भर गया था। उसे कभी-कभी महिला का ख्याल आता, लेकिन कोई फोन नहीं आया।
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