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Fake IAS Officer Saurabh Tripathi Arrested in Lucknow: A Tale of DeceptionLucknow, Uttar Pradesh – In a shocking revelat...
06/09/2025

Fake IAS Officer Saurabh Tripathi Arrested in Lucknow: A Tale of Deception

Lucknow, Uttar Pradesh – In a shocking revelation, the Lucknow police have arrested Saurabh Tripathi, a man who posed as an Indian Administrative Service (IAS) officer and deceived countless people, including government officials and the general public. Tripathi’s lifestyle was nothing short of cinematic, owning a fleet of luxury cars such as Defender, Fortuner, Innova, and Mercedes, and using multiple social media identities to strengthen his fake persona.

For a long time, Tripathi managed to attend various government events as a chief guest, flaunting his status and mingling with top officials. He used fake government passes and documents to gain access to these programs, and his confidence made even genuine IAS officers appear less authoritative in comparison. His primary weapon was his ostentatious display of wealth and power, which allowed him to operate undetected for years.

The truth came to light during a routine police check near the Kargil Shaheed Park in Lucknow. When stopped by the Wazirganj police, Tripathi tried to intimidate the officers by claiming to be an IAS officer. However, upon verification of his documents, his real identity was exposed. Not only were his government passes and vehicle papers found to be forged, but several luxury cars in his possession were also under suspicion.

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इंसानियत की ठंडक – रमेश की कहानीदोपहर का वक्त था। दिल्ली की तपती सड़कें पिघले हुए तारकोल जैसी चमक रही थीं। भीड़भाड़ इतनी...
06/09/2025

इंसानियत की ठंडक – रमेश की कहानी

दोपहर का वक्त था। दिल्ली की तपती सड़कें पिघले हुए तारकोल जैसी चमक रही थीं। भीड़भाड़ इतनी थी कि हर कोई अपने-अपने काम में मग्न था, जैसे दुनिया में सिर्फ वही है। गाड़ियाँ हॉर्न पर हॉर्न बजा रही थीं, लोग जल्दी में थे। इसी अफरातफरी के बीच एक आदमी सड़क किनारे पड़ा था। उसके सिर से खून बह रहा था, कपड़े फटे थे, साँसें भारी थीं। शायद किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी थी। लोग उसकी तरफ देखते, लेकिन बस एक झलक भर। कोई रुकता नहीं। किसी ने मोबाइल निकालकर वीडियो बना लिया, कोई घृणा से देखता, कोई तेज़ कदमों से आगे बढ़ गया। “पता नहीं किस झंझट में पड़ा है,” एक आदमी ने कहा। “शायद शराब पीकर गिरा होगा,” दूसरे ने हँसते हुए अंदाजा लगाया।

वो घायल आदमी अपनी आधी खुली आँखों से जैसे मदद की गुहार कर रहा था, पर आवाज गले में ही अटक गई थी। उसके हाथ बेतहाशा काँप रहे थे, जैसे जिंदगी के अदृश्य धागे को पकड़ने की कोशिश कर रहे हों। गर्म हवा उसके चेहरे को और सूखा रही थी। आसमान में एक चील चक्कर काट रही थी, मानो वक्त गवाह हो रहा हो कि इंसानियत फिर हार गई।

भीड़ से थोड़ी दूर, एक पुराने पुल के नीचे रमेश बैठा था। फटे पुराने कपड़े, धूप-धूल से काला चेहरा, टूटी चप्पलें, हाथ में पीतल का कटोरा – यही उसकी पूरी पूंजी थी। कभी वह पंजाब के एक गाँव का मेहनती किसान था, लेकिन सूखे और कर्ज ने सब छीन लिया। दिल्ली आया, मजदूरी की, हादसों और बीमारियों ने लाचार कर दिया। अब पेट भरने के लिए भीख माँगता था। उस दिन सुबह से सिर्फ ₹1 मिला था, पेट खाली था, आँखें लाल थीं, गला सूखा था। लेकिन चेहरे पर एक शांति थी – मानो उसने हालात से समझौता कर लिया हो। वह अक्सर कहता, “जिंदगी भगवान की दी हुई है, जब तक है जी लेंगे।”

दोपहर को रमेश सड़क पार कर रहा था, तभी उसकी नजर उस घायल आदमी पर पड़ी। एक पल के लिए ठिठक गया। जानता था यहाँ कोई नहीं रुकेगा। लेकिन दिल में किसी ने जोर से दस्तक दी। रमेश धीरे-धीरे घायल के पास पहुँचा, “भाई, सुन रहे हो?” घायल की पलकें हल्की सी हिलीं, होंठ फड़फड़ाए, शायद पानी माँग रहे थे। रमेश ने कटोरे में बचा गंदला सा पानी, जो सुबह मंदिर के बाहर मिला था, बिना सोचे घायल के होठों से लगा दिया। आसपास खड़े लोग देखने लगे, “छोड़ो भाई, पुलिस का चक्कर है।” “तेरा क्या जाएगा?” लेकिन रमेश ने जवाब नहीं दिया। उसने अपने गमछे का टुकड़ा फाड़कर घायल के सिर से बहते खून को रोकने की कोशिश की।

अगर मैं भी चला गया तो यह यहीं मर जाएगा – रमेश ने खुद से कहा। उसकी आँखों में अपने अतीत की तस्वीरें घूमने लगीं – जब उसके पिता खेत में घायल हुए थे और मदद के लिए कोई नहीं रुका था। रमेश ने घायल को उठाने की कोशिश की, लेकिन वजन बहुत था। पसीना टपकने लगा, साँस फूलने लगी, लेकिन हार नहीं मानी। बुदबुदाया – “इंसान इंसान के काम नहीं आएगा तो क्या आएगा?”

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कैप्टन अर्जुन सिंह की कहानी – सम्मान की असली परिभाषाकैप्टन अर्जुन सिंह ने छह महीने राजस्थान की तपती रेत और सीमा पर दुश्म...
06/09/2025

कैप्टन अर्जुन सिंह की कहानी – सम्मान की असली परिभाषा

कैप्टन अर्जुन सिंह ने छह महीने राजस्थान की तपती रेत और सीमा पर दुश्मन की गोलियों के बीच बिताए थे। लगातार रात भर की चौकसी और कड़ी ड्यूटी ने उसके शरीर को थका दिया था, लेकिन दिल में सुकून था कि उसने देश की रक्षा की है। छुट्टी मिलते ही अर्जुन अपने गांव, पटना के पास लौट आया। घर पहुंचते ही मां ने उसे गले लगाया, माथा चूमा। पिता की आंखों में गर्व था, बहनें खुशी से झूम उठीं।

अर्जुन ने तय किया कि इस बार पूरा दिन परिवार के नाम रहेगा। उन्होंने शहर के बड़े मॉल में जाने की योजना बनाई, जहां बहनों को कपड़े खरीदने थे, मां को रसोई का सामान और पापा को बस बच्चों की खुशी देखनी थी। अगले दिन अर्जुन ने सोचा – क्यों न आज वर्दी पहन कर जाऊं, जिससे परिवार को भी गर्व महसूस हो।

वह अपनी प्रेस की हुई ऑलिव ग्रीन यूनिफॉर्म पहनकर, छाती पर मेडल और कंधे पर सितारे लगाकर, पूरे आत्मविश्वास के साथ मॉल पहुंचा। जैसे ही परिवार मॉल के गेट पर पहुंचा, सिक्योरिटी गार्ड ने रोक दिया – “सर, माफ कीजिए, ड्रेस में अंदर नहीं जा सकते।” अर्जुन हैरान रह गया, “क्यों?” गार्ड बोला, “यह मैनेजमेंट का रूल है, वर्दी या कोई ऑफिशियल ड्रेस में एंट्री नहीं।”

भीड़ जमा होने लगी। लोग फुसफुसाने लगे – “देखो, फौजी है, फिर भी रोक दिया गया!” अर्जुन की बहनें उसका हाथ पकड़ने लगीं, पिता का चेहरा उतर गया, मां की आंखें भर आईं। अर्जुन ने कोई हंगामा नहीं किया, बस शांत स्वर में बोला – “ठीक है।” वह परिवार को लेकर लौट आया।

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नमस्ते गर्ल – अनन्या सिंह की प्रेरणादायक कहानीबिहार के एक छोटे से कस्बे में जन्मी अनन्या सिंह बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल...
05/09/2025

नमस्ते गर्ल – अनन्या सिंह की प्रेरणादायक कहानी

बिहार के एक छोटे से कस्बे में जन्मी अनन्या सिंह बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल थी। उसके पिता एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे और मां गृहिणी। घर में साधारण सुविधाएं थीं, लेकिन माता-पिता ने बेटी को हमेशा बड़े सपने देखने और उन्हें मेहनत से पूरा करने की प्रेरणा दी।

अनन्या के संस्कार बचपन से ही अलग थे। वह हर किसी से हाथ जोड़कर नमस्ते करती – चाहे घर में मेहमान आए, पड़ोस की आंटी मिले या स्कूल की प्रिंसिपल। उसकी पहचान उसकी नम्रता और भारतीय संस्कृति थी।

अनन्या ने इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया। जब उसे अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से इंटरव्यू के लिए कॉल आया, तो पूरा परिवार गर्व से भर उठा। गांव वाले भी कहते, "देखो मास्टर जी की बेटी अब अमेरिका जाएगी।"

लेकिन अनन्या थोड़ी घबराई हुई थी। वहां का कल्चर अलग था – सब हाथ मिलाते हैं, गले लगते हैं। अनन्या को चिंता थी कि वह कैसे एडजस्ट करेगी। पिता ने उसे समझाया, "बेटी, संस्कार कभी मत छोड़ना। अपनी पहचान मत खोना।"

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सावित्री देवी की कहानी – मां की ममता, बहू की गलती और कर्मों का फलशहर के शोरगुल से दूर एक शांत मोहल्ले में, जहां हर सुबह ...
05/09/2025

सावित्री देवी की कहानी – मां की ममता, बहू की गलती और कर्मों का फल

शहर के शोरगुल से दूर एक शांत मोहल्ले में, जहां हर सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से दिन की शुरुआत होती थी, एक साधारण सा घर था। बाहर से देखने पर वह किसी आम भारतीय परिवार जैसा लगता था, लेकिन उस घर की दीवारों के भीतर एक दर्दभरी कहानी पल रही थी – सावित्री देवी की।

सावित्री देवी लगभग 70 वर्ष की थीं। उन्होंने अपने पति को कम उम्र में ही खो दिया था और तब से अपने इकलौते बेटे विकास को अकेले पाला। खेतों में मजदूरी की, दूसरों के घरों में बर्तन मांजे, सिलाई का काम किया, लेकिन कभी विकास की जरूरतों में कमी नहीं आने दी। उन्होंने अपने सपनों को मारकर बेटे के सपनों को पंख दिए।

विकास पढ़ाई में होशियार था। उसने इंजीनियरिंग की डिग्री ली और शहर की प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी पा ली। सावित्री देवी का सीना गर्व से चौड़ा था। जब विकास की शादी कविता से हुई, तो उन्हें लगा अब उनका घर पूरा हो गया है। कविता पढ़ी-लिखी, आधुनिक और शहर की लड़की थी। शुरुआत में कविता बहुत अच्छी थी, सावित्री देवी की सेवा करती, उनके लिए खाना बनाती, कपड़े धोती, प्यार से बात करती।

लेकिन कुछ समय बाद कविता के स्वभाव में बदलाव आने लगा। उसे लगने लगा कि सावित्री देवी उसकी और विकास की आज़ादी छीन रही हैं। कविता को लगता था कि सावित्री देवी का गांव का पहनावा और पुराने विचार उसे शर्मिंदा करते हैं। धीरे-धीरे कविता ने विकास के मन में भी अपनी मां के खिलाफ बातें भरनी शुरू कर दीं। विकास भी अपनी मां से दूर होने लगा।

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मीना की कहानी – विश्वास, धोखा और आत्मसम्मान की मिसालशहर के सबसे आलीशान बंगले के सामने मीना खड़ी थी, जैसे वह कोई बुरा सपन...
05/09/2025

मीना की कहानी – विश्वास, धोखा और आत्मसम्मान की मिसाल

शहर के सबसे आलीशान बंगले के सामने मीना खड़ी थी, जैसे वह कोई बुरा सपना देख रही हो। यही बंगला उसने अपने और अपने पति आनंद के खून-पसीने की कमाई से बनवाया था। आज उसी बंगले से उसे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया था। उसके हाथ में बस एक फटी हुई साड़ी थी और आँखों में अनगिनत आँसू।

भीतर से उसके पति विशाल का ठहाका गूंजा, जिसने मीना की सारी दौलत अपने नाम करवा ली थी और अब तलाक देकर उसे सड़क पर छोड़ दिया था। मीना को लगा जैसे उसकी दुनिया ही उजड़ गई। वह वहीं जमीन पर बैठ गई और रोने लगी। उसे लगा कि उसकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं बचा।

मीना का बचपन एक छोटे से गाँव में बीता था। उसके पिता एक साधारण किसान थे और माँ एक सीधी-सादी गृहिणी। मीना पढ़ाई में होशियार थी। उसके माता-पिता चाहते थे कि मीना को एक अच्छा घर और प्यार मिले। मीना का सपना था कि वह शहर जाकर कुछ बड़ा करे।

शादी के लिए कई रिश्ते आए, लेकिन मीना को कोई पसंद नहीं आया। फिर एक दिन शहर से आनंद का रिश्ता आया। आनंद एक बड़ी कंपनी में काम करता था, उसका परिवार भी संपन्न था। आनंद और मीना की शादी सादगी से हुई। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। आनंद की मेहनत से वे जल्दी ही अमीर हो गए, आलीशान घर, महंगी गाड़ियाँ – सबकुछ था।

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साधारण कपड़ों में छुपी असली पहचान – आचार्य शंकर नारायण की कहानीदिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा – चमक-धमक...
05/09/2025

साधारण कपड़ों में छुपी असली पहचान – आचार्य शंकर नारायण की कहानी

दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा – चमक-धमक, ऊँची दीवारें, महंगे ब्रांड्स, और भागती-दौड़ती भीड़। यहाँ इंसान की पहचान उसके कपड़ों, सामान और अंग्रेज़ी बोलने के तरीके से होती है। इसी दुनिया में एक 75 वर्ष के बुजुर्ग – श्री शंकर नारायण – साधारण खादी की धोती और पुराने कुर्ते में, कंधे पर झूला, पैरों में चप्पल और हाथ में लकड़ी की छड़ी लिए, बहुत धीमे-धीमे चल रहे थे। उनकी आँखों में शांति थी, लेकिन उनकी वेशभूषा एयरपोर्ट की भीड़ में सबसे अलग थी।

शंकर नारायण जी झारखंड के एक छोटे गाँव वनस्थली जा रहे थे, जहाँ उन्होंने वर्षों पहले एक स्कूल शुरू किया था। वे वहाँ स्कूल के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित थे। सिक्योरिटी चेक-इन की लाइन में उनकी सादगी ने सबका ध्यान खींचा। कुछ लोग मुस्कुरा रहे थे, कुछ घृणा से देख रहे थे। ड्यूटी पर तैनात सुरक्षा अधिकारी विक्रम राठौर ने उन्हें अपराधी की तरह देखा। विक्रम को अपनी वर्दी और ताकत पर घमंड था। उसने शंकर नारायण जी से अंग्रेज़ी में सवाल किया, जवाब हिंदी में मिला – “कुछ किताबें हैं बेटा और थोड़ा सा प्रसाद।” विक्रम को यह पसंद नहीं आया, उसने उनका झोला ऐसे फेंका जैसे कचरा हो।

विक्रम ने किताबें, खिलौना और प्रसाद सब बाहर निकालकर तिरस्कार से कहा – “यह सब क्या बकवास है?” शंकर नारायण जी ने शांत स्वर में कहा – “यह किताबें मेरा ज्ञान हैं, खिलौना मेरे छात्र की निशानी है।” पीछे खड़ी ग्राउंड स्टाफ पूजा को यह सब देखकर बहुत बुरा लगा। उसने विनती की – “सर जाने दीजिए, बुजुर्ग आदमी हैं।” लेकिन विक्रम ने उसे डांट दिया।

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कविता की इंसानियत और किस्मत की कहानीमुंबई – सपनों का शहर, तेज़ रफ्तार, लाखों उम्मीदें, और उन्हीं उम्मीदों के बीच एक साधा...
05/09/2025

कविता की इंसानियत और किस्मत की कहानी

मुंबई – सपनों का शहर, तेज़ रफ्तार, लाखों उम्मीदें, और उन्हीं उम्मीदों के बीच एक साधारण लड़की थी कविता। उत्तर प्रदेश के छोटे कस्बे से आई 26 साल की कविता, जिसने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को कंधों पर उठाया था—बीमार माँ का इलाज, छोटे भाई की पढ़ाई, घर का खर्चा। मुंबई की ग्लोबल टेक सॉल्यूशंस कंपनी में उसकी नौकरी ही उसकी दुनिया थी।

संघर्ष और उम्मीदें
कविता ने चार साल तक दिन-रात मेहनत की थी। उसकी सुबह 9 बजे लोकल ट्रेन से शुरू होती और रात 10 बजे की आखिरी लोकल में खत्म। उसका हर दिन बस एक ही जिद में बीतता—अपने परिवार को बेहतर ज़िंदगी देना।
कुछ महीनों से कंपनी में छंटनी का डर था। नए वाइस प्रेसिडेंट आलोक वर्मा आए थे, जिनका एक ही मकसद था—मुनाफा बढ़ाना, चाहे कितने ही लोगों की नौकरी चली जाए। इसी बीच कंपनी ने एक बड़ा प्रोजेक्ट लॉन्च किया, जिसकी प्रेजेंटेशन सीधे मिस्टर वर्मा और बोर्ड के सामने थी। यह कविता के लिए अपनी काबिलियत साबित करने और नौकरी बचाने का आखिरी मौका था।

वो अहम दिन
कविता ने हफ्तों रात-रात भर जागकर रिसर्च की, डाटा इकट्ठा किया और एक बेहतरीन प्रेजेंटेशन तैयार की। वह जानती थी, यही उसकी नौकरी, माँ के इलाज, भाई की पढ़ाई और परिवार के भविष्य का टिकट है।
प्रेजेंटेशन वाले दिन, कविता सुबह जल्दी उठी, माँ को फोन किया। माँ ने कांपती आवाज़ में आशीर्वाद दिया—“बेटा, चिंता मत कर, भगवान सब अच्छा करेगा।”
कविता तैयार होकर स्टेशन की तरफ दौड़ी। 9:15 की फास्ट लोकल पकड़नी थी, जो उसे समय पर ऑफिस पहुँचा सकती थी। ट्रैफिक, भीड़, बेचैनी—सबका सामना करके वह प्लेटफार्म तक पहुँची। ट्रेन चलने वाली थी, प्लेटफार्म सात दूसरी तरफ था। वह दौड़ी, सीढ़ियाँ चढ़ी, पसीना-पसीना हो गई।

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रोहन और प्रिया की कहानीशहर की गहरी रात थी। सड़कें सो चुकी थीं, लेकिन एक छोटे से घर के अंदर तूफान मचा हुआ था। प्रिया की आ...
05/09/2025

रोहन और प्रिया की कहानी

शहर की गहरी रात थी। सड़कें सो चुकी थीं, लेकिन एक छोटे से घर के अंदर तूफान मचा हुआ था। प्रिया की आवाज, जो कभी रोहन के लिए संगीत थी, अब उसकी आत्मा को चीर रही थी।
“तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ नहीं है रोहन! न बड़ा घर, न महंगी गाड़ी, न वो जिंदगी जो मैं जीना चाहती हूँ। मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रह सकती।”
प्रिया ने अपना सूटकेस ज़मीन पर पटका, दरवाजा खोला और अंधेरे में गुम हो गई। रोहन अकेला रह गया, अपनी बेबसी और टूटे दिल के साथ।

शुरुआत
रोहन और प्रिया की कहानी एक छोटे शहर से शुरू हुई थी। रोहन साधारण परिवार से था, पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक और माँ गृहिणी। बचपन से ही उसने मेहनत करना सीखा था। पढ़ाई में अव्वल, स्वभाव से शांत और ईमानदार।
प्रिया मध्यमवर्गीय परिवार की थी, लेकिन उसके सपने बड़े थे। उसे चमक-दमक, महंगी चीजें और आलीशान जीवन पसंद था।
जब दोनों मिले, तो एक-दूसरे की खूबियों से प्रभावित हो गए। शादी सादगी से हुई, रोहन ने वादा किया कि वह प्रिया को हर खुशी देगा।

शादी के बाद
शुरुआत में सब ठीक था। लेकिन धीरे-धीरे प्रिया को अपने दोस्तों की आलीशान जिंदगी देखने के बाद लगने लगा कि वह पीछे रह गई है।
वो रोहन से शिकायत करती, “मेरी दोस्त की नई कार है, उसका पति उसे हर जगह घुमाता है। तुम मुझे कभी कहीं ले जाते भी नहीं।”
रोहन मुस्कुरा कर कहता, “थोड़ा सब्र करो प्रिया, मैं मेहनत कर रहा हूँ। एक दिन सब कुछ मिलेगा।”
लेकिन प्रिया का सब्र टूटता जा रहा था। उसकी शिकायतें बढ़ती गईं।
“तुम्हारी ये छोटी सी नौकरी कब तक चलेगी? मुझे बड़ा घर चाहिए, बड़ी गाड़ी चाहिए। मैं कब तक इस छोटे घर में रहूँगी?”
रोहन समझाता, “हमारा घर छोटा है, लेकिन उसमें प्यार है।”
लेकिन प्रिया को ये बातें समझ नहीं आती थीं। उसे लगता था, रोहन उसकी भावनाओं को नहीं समझता।

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अर्जुन की इंसानियत और तक़दीर की कहानीदिल्ली की भीड़भाड़ भरी गलियों में, एक छोटे से कमरे में अर्जुन अपनी किस्मत बदलने का ...
05/09/2025

अर्जुन की इंसानियत और तक़दीर की कहानी

दिल्ली की भीड़भाड़ भरी गलियों में, एक छोटे से कमरे में अर्जुन अपनी किस्मत बदलने का सपना लिए जी रहा था। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से आया अर्जुन, सिर्फ़ 22 साल का था। उसके पिता ने अपनी दो बीघा ज़मीन गिरवी रखकर उसे आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली भेजा था। घर में बूढ़ी माँ और छोटी बहन थी, जिनकी उम्मीदें अर्जुन से जुड़ी थीं। अर्जुन के कमरे की दीवारों पर भारत का नक्शा, इतिहास की तारीखें और माँ-बाप की धुंधली तस्वीर टंगी थी, जो उसे हर पल याद दिलाती थी कि उसे यह जंग जीतनी ही है।

पिछले दो सालों से अर्जुन ने सिर्फ़ मेहनत की थी—न नए कपड़े, न घूमना-फिरना, बस पढ़ाई और सपनों की दौड़। उसकी दुनिया किताबों, नोट्स और लाइब्रेरी तक सीमित थी। वो अक्सर भूखा सो जाता, ताकि कोचिंग की फीस और किताबों के पैसे बचा सके। उसका एक ही सपना था—आईएएस बनना और अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकालना।

कहानी का मोड़
दो साल की कड़ी मेहनत के बाद, आखिर वह दिन आ गया। अर्जुन ने प्रीलिम्स अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और अब मेंस की परीक्षा का फॉर्म भरना था। उस दिन फॉर्म भरने की आखिरी तारीख थी। उसने अपनी गुल्लक तोड़ी, पिछले छह महीने से जमा किए पैसे गिने—₹1500। यही उसकी पूरी पूंजी थी। उसने माँ-बाप की तस्वीर को माथा टेका और बैंक की ओर निकल पड़ा।

रास्ते में अचानक सड़क पर एक जोरदार चीख सुनाई दी। अर्जुन ने देखा कि एक महिला खून में लथपथ सड़क पर पड़ी थी। भीड़ जमा थी, कोई वीडियो बना रहा था, कोई अफसोस जता रहा था, लेकिन कोई मदद करने आगे नहीं आया। अर्जुन का दिल कांप गया। उसके दिमाग ने कहा, "आज फीस जमा करने का आखिरी दिन है, अगर मौका गया तो सब खत्म।" लेकिन तभी उसे माँ के शब्द याद आए—"बेटा, पढ़ाई तुझे अफसर बना सकती है, पर इंसानियत तुझे इंसान बनाए रखती है।"

अर्जुन के अंदर जंग छिड़ गई। एक तरफ उसका भविष्य, दूसरी तरफ इंसानियत। उसने फैसला लिया—वह अपनी इंसानियत नहीं मारेगा। वह भीड़ को चीरता हुआ महिला के पास पहुँचा, मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन कोई नहीं आया। उसने खुद ही महिला को उठाया, ऑटो वालों से गुहार लगाई, आखिर एक ऑटो वाला मान गया। अर्जुन महिला को प्राइवेट अस्पताल ले गया।

कठिन परीक्षा
अस्पताल में नर्स ने कहा, "₹2000 जमा करो, तभी इलाज शुरू होगा।" अर्जुन के पास सिर्फ ₹1500 थे। उसने मिन्नतें कीं, लेकिन नियम सख्त थे। अर्जुन ने कांपते हाथों से अपनी दो साल की मेहनत की पूंजी काउंटर पर रख दी। बाकी ₹500 उसने दोस्त से उधार लिए। इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों ने कहा, "अगर थोड़ी देर और हो जाती तो महिला की जान जा सकती थी।"

अर्जुन अस्पताल के बाहर बैठा रहा, दिल में सुकून था कि उसने एक जान बचाई, लेकिन उसका अपना भविष्य अब अंधेरे में था। परीक्षा की फीस जमा करने का समय निकल चुका था। रात हो गई, महिला को होश आया। अर्जुन डरते-डरते उसके कमरे में गया। महिला ने उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू देखे। "बेटा, तुमने मेरी जान बचाई। मैं तुम्हारा एहसान कैसे चुकाऊँगी?" अर्जुन ने कहा, "यह मेरा फर्ज था।" महिला ने उसका नाम और नंबर लिया, कहा कि पैसे लौटा देगी।

कुछ देर बाद एक बड़ी गाड़ी अस्पताल के बाहर रुकी। अर्जुन अपनी जिम्मेदारी पूरी समझकर घर लौट गया। उसके पास अब किराए के पैसे भी नहीं थे, कई किलोमीटर पैदल चला। अगले कुछ हफ्ते अर्जुन के लिए बहुत मुश्किल भरे थे। उसने कॉल सेंटर में रात की नौकरी शुरू की, दिन में पढ़ाई करता, रात में काम। उसका चेहरा थकान और चिंता से भर गया था। उसे कभी-कभी महिला का ख्याल आता, लेकिन कोई फोन नहीं आया।

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अदालत के कटघरे में पिता-पुत्र का मिलनदिल्ली की 30 हजारी अदालत का वह भारी भरकम कमरा, जहां इंसाफ तराजू में तोला जाता है, उ...
05/09/2025

अदालत के कटघरे में पिता-पुत्र का मिलन

दिल्ली की 30 हजारी अदालत का वह भारी भरकम कमरा, जहां इंसाफ तराजू में तोला जाता है, उस दिन रिश्तों और इंसानियत की सबसे बड़ी परीक्षा देने वाला था। कटघरे में एक बेहद लाचार, मैला कुचैला बुजुर्ग खड़ा था—रामसेवक। उसकी झुकी कमर, फटी आंखें और कमजोर शरीर में बेगुनाही साबित करने की ताकत भी नहीं बची थी। जज साहब का हथौड़ा उठने ही वाला था कि उसे जेल की अंधेरी कोठरी में भेज दिया जाए, तभी अचानक शहर के सबसे कामयाब और महंगे वकील—आकाश वर्मा अपनी जगह से उठे और चीख पड़े, “जज साहब इन्हें रोकिए! ये मेरे बाप हैं!”
पूरा अदालत कक्ष सन्नाटे में डूब गया। हर कोई हैरान था कि करोड़ों की फीस लेने वाला वकील उस गरीब, फटेहाल बुजुर्ग को अपना पिता बता रहा है।

कहानी फ्लैशबैक में जाती है। उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव बेलारी में रामसेवक एक किसान थे। उनका सपना था—अपने इकलौते बेटे आकाश को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना। वे खुद फटे कपड़े पहनते, सूखी रोटी खाते, लेकिन आकाश के लिए कभी कोई कमी नहीं रखते। आकाश भी मेहनती था, पढ़ाई में अव्वल आता। रामसेवक ने अपनी पुश्तैनी जमीन गिरवी रखकर आकाश को दिल्ली भेजा। आकाश ने वकालत की पढ़ाई की, बड़ा वकील बना, लेकिन सफलता की दौड़ में पिता से दूर होता चला गया। पहले खत, फिर फोन, लेकिन धीरे-धीरे रिश्ते में दूरी आ गई। शादी के बाद आकाश ने पिता को मेहमानों से दूर रखा, उन्हें अपने जीवन का हिस्सा मानने में शर्म महसूस की। रामसेवक ने चुपचाप सब सह लिया, लेकिन उनका दिल टूट गया।

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मोहनलाल जी की कहानीशहर के व्यस्त चौराहे पर एक पुरानी पुलिस वैन आकर रुकी। उसकी नीली बत्ती की चमक ने शाम के धुंधले को चीर ...
05/09/2025

मोहनलाल जी की कहानी

शहर के व्यस्त चौराहे पर एक पुरानी पुलिस वैन आकर रुकी। उसकी नीली बत्ती की चमक ने शाम के धुंधले को चीर दिया। दरवाजा खुला और दो सिपाही एक बूढ़े आदमी को बाहर खींच लाए। उसके हाथों में हथकड़ी थी और आंखों में गहरी बेबसी थी। भीड़ जमा हो गई, लोग अपने घरों की बालकनियों से झांक रहे थे। दुकानों के शटर आधे गिरे थे और हर नजर उस बूढ़े चेहरे पर टिकी थी। कोई दया दिखा रहा था, कोई अविश्वास, लेकिन कोई आगे बढ़कर कुछ बोल नहीं रहा था।

वह बूढ़ा आदमी था मोहनलाल जी। जिसने अपनी पूरी जिंदगी अपने इकलौते बेटे रमेश और बहू सुनीता के लिए समर्पित कर दी थी। आज वही बेटा-बहू उन्हें बोझ समझकर जेल भिजवा रहे थे। मोहनलाल जी ने एक बार बेटे के आलीशान घर की ओर देखा। उसकी खिड़कियों से रोशनी छनकर आ रही थी और बालकनी में रमेश और सुनीता खड़े थे। उनकी आंखों में कोई पछतावा नहीं था, बस एक क्रूर मुस्कान थी।

मोहनलाल जी का जीवन एक छोटे से गांव में शुरू हुआ था। जहां मिट्टी की खुशबू और खेतों की हरियाली ही उनका संसार थी। पिता साधारण किसान थे, और मोहनलाल जी ने बचपन से ही खेतों में काम करना सीख लिया था। युवावस्था में ही पत्नी का निधन हो गया, लेकिन उनका इकलौता बेटा रमेश उनके जीवन का केंद्र बन गया। सारी खुशियां, सारे सपने रमेश के लिए कुर्बान कर दिए। दिन-रात मेहनत की, खेतों में पसीना बहाया, सिर्फ एक ही सपना था – रमेश को अच्छी शिक्षा मिले।

अपनी जमीन का एक हिस्सा बेचकर रमेश को शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया। रमेश पढ़ाई में होशियार था। उसने इंजीनियरिंग की डिग्री ली, बड़ी कंपनी में नौकरी पाई। मोहनलाल जी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। रमेश की शादी सुनीता से हुई, जो पढ़ी-लिखी और आधुनिक थी। शुरुआत में सुनीता बहुत अच्छी थी, मोहनलाल जी की सेवा करती, प्यार से बात करती। मोहनलाल जी को लगा, उन्हें बेटी जैसी बहू मिली है।

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