Rakhi Yadav

Rakhi Yadav Comedy Express

रात का समय था। आसमान में बादल गरज रहे थे, और सड़कें सुनसान थीं। शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के बाहर एक बूढ़ा आदमी भी...
19/07/2025

रात का समय था। आसमान में बादल गरज रहे थे, और सड़कें सुनसान थीं। शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के बाहर एक बूढ़ा आदमी भीगी ज़मीन पर बैठा था। उसकी आंखें अस्पताल के गेट पर टिकी थीं, मानो किसी अपने की झलक का इंतज़ार कर रही हों। हाथ में फटी हुई चप्पल, बदन पर पुराना कुरता और माथे पर चिंता की गहरी लकीरें। ठंडी हवा में भी उसका पसीना नहीं रुक रहा था।

उसका बेटा, आशीष, एक एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल हो गया था। उसे तुरंत ऑपरेशन की ज़रूरत थी, पर डॉक्टरों ने कहा—खर्चा ज़्यादा होगा, खून की ज़रूरत होगी, इंतज़ाम जल्दी करना होगा। रामनाथ, जो खुद अपनी दवा के लिए भी दूसरों की तरफ देखता था, अब बेटे की जान के लिए खुद को बेच देने को तैयार था।

वक़्त कुछ साल पीछे चला गया। वही आशीष, जो बचपन में अपने बाप से लिपटकर सोता था, वही आशीष जिसने बड़े होते ही बाप की गरीबी पर शर्म महसूस की थी। एक दिन गुस्से में बोला था, "आपने क्या किया ज़िंदगी में? न पैसा कमाया, न नाम। मैं जब बड़ा बनूंगा, तो किसी से झुककर नहीं मिलूंगा।" और फिर वो शहर चला गया। नौकरी मिली, पैसा आया, रिश्तेदारों के बीच रुतबा बना। लेकिन उस रुतबे की भी एक कीमत थी—अपने पिता को भूल जाना।

रामनाथ हर त्यौहार में आशीष का इंतज़ार करता, हर बार सोचता इस बार जरूर आएगा। मोहल्ले वालों को दिखाने के लिए मिठाई का डिब्बा लाकर रखता, लेकिन हर बार वो डिब्बा सूखा ही रह जाता। गांव के एक कोने में, वो बूढ़ा बाप अपने बेटे की कामयाबी का बस नाम सुनता रहा, पर चेहरा नहीं देख पाया।

और आज, जब मौत आशीष के दरवाज़े पर खड़ी थी, रामनाथ फिर वही कर रहा था—बिना कुछ मांगे, बिना कोई शिकायत किए, बस उसके लिए दौड़ रहा था। उसने डॉक्टर से कहा, "बेटा बचा लो... मेरी जान भी चाहिए तो ले लो, बस मेरा बेटा बच जाए।" और डॉक्टर ने खून लेकर ऑपरेशन शुरू करवा दिया।

कई घंटे बाद जब आशीष को होश आया, तो उसने सबसे पहले पूछा—"मेरे लिए कौन आया?" डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा, "वो आया है, जिसे तुमने सालों से देखा नहीं, पर जिसने तुम्हें बिना देखे भी हर दिन याद किया। वो, जिसकी फोटो तुमने फ्रेम से हटा दी थी। वो, जिसे तुमने गरीब समझकर छोड़ा था… लेकिन आज उसी के खून से तुम्हारी जान बची है। तुम्हारा बाप।"

आशीष की आंखों से आंसू बह निकले। वो उठा, लेकिन रामनाथ अब भी वहीं बाहर बैठा था। जब आशीष उसके पास पहुंचा, तो रामनाथ ने धीरे से कहा, "अब तो पहचान लिया ना बेटा? चल, अब घर चलें।" आशीष कुछ बोल नहीं पाया, बस उसके पैरों में गिर पड़ा।

उस दिन आशीष ने जाना, दुनिया कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाए, कामयाबी कितनी भी ऊंची क्यों न मिल जाए—अगर कोई बिना शर्त, बिना लालच, सिर्फ आपके लिए जीता है, तो वो मां-बाप होते हैं। और उन्हें भूल जाना सबसे बड़ी गरीबी होती है।

अगर आपको पसंद आई हो तो 1 Like जरूर दें।

18/07/2025

16/07/2025

Address

Jogeshwari
400053

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Rakhi Yadav posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share