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भारत यकीनन विकसित देश बन सकता है और बनेगा भी। लेकिन किसी व्यक्ति के चमत्कार या उसके हाथों में सारी सत्ता केंद्रित कर देन...
05/09/2025

भारत यकीनन विकसित देश बन सकता है और बनेगा भी। लेकिन किसी व्यक्ति के चमत्कार या उसके हाथों में सारी सत्ता केंद्रित कर देने से नहीं, बल्कि संस्थाओं को मजबूत करने से। ईडी, सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स विभाग तो कब के अपनी स्वायत्तता खोकर सरकारी गुलाम बन चुके हैं। नीति आयोग से लेकर प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार परिषद जी-हुजूरियों के मंच बन गए। चुनाव आयोग पूरी तरह सत्तारूढ़ दल की कठपुठली बन चुका है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक सत्ता की राजनीति से अछूते नहीं रहे। देश के विकास की बहुत बड़ी बाधा न्याय की कछुआ चाल है। इस साल के शुरू तक सुप्रीम कोर्ट में 82,000 सें ज्यादा मुकदमे लटके थे। हाईकोर्ट और जिला अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या लाखों में है। देश में हर दस लाख की आबादी पर महज 21 जज है, जबकि अपने ही विधि आयोग की सिफारिश कम से कम 50 जजों की है। 1992 के हर्षद मेहता घोटाले से जुड़े मामलों के लिए मुंबई में जो विशेष अदालत बनी थी, वो 33 साल बाद भी सुनवाई किए जा रही है। विश्व बैंक के मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट लागू करने में भारत दुनिया के 190 देशों की रैंकिंग में 163वें स्थान पर है। 2016 में आया दिवालिया कानून व्यवहार में खुद दिवालिया साबित हुआ है। जीएसटी का तथाकथित सुधार अंततः सरकारी खर्च में कटौती का सबब बन जाएगा। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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सरकार तक का काम खुद कैसे नौकरशाही के मकड़जाल में फंस जाता है, इसका ताज़ा उदाहरण है इसी हफ्ते सोमवार, 1 सितंबर को लॉन्च ह...
04/09/2025

सरकार तक का काम खुद कैसे नौकरशाही के मकड़जाल में फंस जाता है, इसका ताज़ा उदाहरण है इसी हफ्ते सोमवार, 1 सितंबर को लॉन्च हुई मुंबई से सिंधुदुर्ग तक की रो-रो फेरी। यह प्रोजेक्ट 2014-19 में फड़णवीस के पिछले कार्यकाल में पेश किया गया था। लेकिन केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय और राज्य बंदरगाह विभाग से 147 मंजूरियां लेने में दस साल यूं ही निकल गए। सरकारी भ्रष्टाचार व वसूली से आम लोग ही नहीं, निजी उद्योग भी त्रस्त हैं। पीडब्ल्यूसी के ग्लोबल क्राइम सर्वे 2024 के मुताबिक तब से पीछे के दो सालों में 59% भारतीय उद्यमों को आर्थिक फ्रॉड का सामना करना पड़ा। लोकल सर्कल्स के 2024 के सर्वे से पता चला कि पिछले साल 66% बिजनेस इकाइयों को सरकार से काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी। रीयल एस्टेट क्षेत्र में तो बिना रिश्वत खिलाए कोई काम होता ही नहीं। ऑटोमेशन ने रिश्वतखोरी की दक्षता और मात्रा, दोनों को बढ़ा दिया है। स्थानीय अधिकारियों से लेकर उच्च-स्तरीय प्रशासन तक छाया भ्रष्टाचार संसाधन निगल जाता है। आधार और डिजिटाइजेशन से सामाजिक लाभ और सब्सिडी का भारी लीकेज़ खत्म होना था। लेकिन तमाम राज्यों में मनरेगा के फर्जी लाभार्थियों और ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रमों से लेकर स्कॉलरशिप व नियुक्तियों तक में फूटते घोटालों ने साफ कर दिया है कि लीकेज बदस्तूर जारी है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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सरकारी मंजूरियां देश में बिजनेस करनेवालों के जी का जंजाल बनी हुई है। एक एमएसएमई इकाई शुरू करने के लिए बार-बार 57 अनुपालन...
03/09/2025

सरकारी मंजूरियां देश में बिजनेस करनेवालों के जी का जंजाल बनी हुई है। एक एमएसएमई इकाई शुरू करने के लिए बार-बार 57 अनुपालन और केवल पर्यावरण, स्वास्थ्य व सुरक्षा से जुड़े 18 विभिन्न अधिकारियों से 17 अनुमोदन/लाइसेंस लेने पड़ते हैं। हमारे कानून में उद्योग-धंधे संबंधी 75% रेग्य़ुलेशन ऐसे हैं जिनमें जेल तक की सज़ा का प्रावधान है। तमाम सरकारी एजेंसियां बिजनेस करनेवालों से डरा-धमकाकर वसूली करती रहती हैं। भ्रष्टाचार को पालते-पोसते ऐसे माहौल के ऊपर हर बिजनेस इकाई को प्रत्यक्ष और परोक्ष टैक्स की मार झेलनी पड़ती है। उद्यमियों की शिकायत हैं कि टैक्स अधिकारी टारगेट पूरा करने के नाम पर धमकियां देते और परेशान करते हैं। यह ‘टैक्स-आतंकवाद’ उद्यमियों को बड़ा होने और औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने से रोकता है। आज भी हमारी अर्थव्यवस्था या जीडीपी का 20% हिस्सा भ्रष्टाचार और कायदे-कानून तोड़कर आ रहा है। टैक्स-आतंक के शिकार स्टार्ट-अप और नए उद्यमी भी बन रहे हैं। मसलन, फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म टैवलखाना के खाते एजेंल निवेश पर टैक्स के बहाने फ्रीज कर दिए गए और उससे ₹36 लाख टैक्स वसूल लिया गया। इसी तरह स्कूलडायरी नाम के उद्यम से ₹20 लाख टैक्स वसूला गया। हर तरफ से दबाव पड़ा तो एंजेल टैक्स 2024 के बजट में सरकार को खत्म करना पड़ा। अब बुधवार की बुद्धि…

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मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था के साथ 11 सालों से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाने का छल रही है, जबकि ज़मीनी स्थिति बद से बदतर हो...
02/09/2025

मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था के साथ 11 सालों से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाने का छल रही है, जबकि ज़मीनी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। खपत घट रही है। लोगों पर कर्ज बढ़ रहे हैं। कंपनियां देश में नया निवेश न करके बाहर भाग रही हैं। आम लोगों पर ही नहीं, उद्योग धंधों पर भी टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिस सॉफ्टवेयर क्षेत्र ने जमकर नौकरी दे रखी थी, वो छंटनी करने को मजबूर है। आखिर संभावना से भरे देश में असल समस्या कहां है? समस्या यह है कि 11 सालों में सत्ता शीर्ष पर बैठा व्यक्ति तो मजबूत होता गया। लेकिन संस्थाएं कमज़ोर होती चली गईं। कैसी विडम्बना है कि नीचे भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी बढ़ गई है। कहने को बिजनेस करने की आसानी में भारत की रैंक 2014 के 142वें स्थान से 2020 तक घटकर 63 पर आ गई। लेकिन टीमलीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब भी मैन्यूफैक्चरिंग में एमएसएमई की एक इकाई को साल भर में सरकार से 1450 से ज्यादा मंज़ूरियां लेनी पड़ती हैं। इनमें अलग-अलग शर्तों के लिए 59 तरह के इंस्पेक्टर, 48 अलग रजिस्टर और जेल में डालने के 486 क्लॉज शामिल हैं। इन शर्तों को पूरा करने का सालाना खर्च ₹13 लाख से ₹17 लाख आता है। इतने खर्च के बाद आखिर कोई छोटी इकाई कैसे लाभ में रह सकती है? यही नहीं, बिना लाभ वाले एनजीओ भी सरकारी तंत्र और शर्तों से त्रस्त हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…

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जब रिजर्व बैंक तक मौद्रिक नीति समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली या जून तिमाही में जीडीपी की विकास दर के बहुत ...
01/09/2025

जब रिजर्व बैंक तक मौद्रिक नीति समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली या जून तिमाही में जीडीपी की विकास दर के बहुत हुआ तो 6.5% रहने का अनुमान जा रहा था, तब सरकार ने शुक्रवार, 29 अगस्त को घोषित किया कि हमारा जीडीपी असल में 7.8% बढ़ा है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. नागेश्वरन ने जब प्रेस कॉन्फेंस में यह घोषणा की तो सभी अचंभित रह गए। हर तरफ जब अर्थव्यवस्था में समस्याएं ही समस्याएं दिख रही हों, तब किसी के लिए भी इस ‘चमत्कार’ को पचा पाना मुश्किल है। अवाम की वास्तविक आय घटने से परसनल केयर और उपभोक्ता उत्पादों की मांग कमज़ोर पड़ी है। ऊपर से कच्चे माल व लागत सामग्रियां महंगी होने से कंपनियों की हालत खराब है। आर्थिक विषमता बढ़ गई है। सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की 40% दौलत है। कच्चे तेल के आयात पर हमारी निर्भरता 78-80% से बढ़ते-बढ़ते दुनिया में सबसे ज्यादा 90% हो गई है। आर एंड डी पर हमारा खर्च सालों-साल से जीडीपी के 0.65% पर अटका है जबकि चीन इस पर जीडीपी का 2.43%, दक्षिण कोरिया 4.5% और अमेरिका 2.8% खर्च करता है। फिर भी असल जीडीपी के 7.8% बढ़ने से पीछे 3% मुद्रास्फीति के बजाय महज 1% डिफ्लेटर रखने का छल है। जीडीपी की नॉमिनल विकास दर पहली तिमाही में 8.8% ही रही है जो इस बार के बजट अनुमान 10.1% से 1.3% नीचे है। अब सोमवार का व्योम…

जब रिजर्व बैंक तक मौद्रिक नीति समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली या जून तिमाही में जीडीपी की विकास दर के बहुत .....

रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। मध्य-पूर्व में इस्राइल ने सबके साथ युद्ध छेड़ रखा है। कभी ईरान तो कभी सीरिया ...
31/08/2025

रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। मध्य-पूर्व में इस्राइल ने सबके साथ युद्ध छेड़ रखा है। कभी ईरान तो कभी सीरिया और कभी यमन। गाज़ा में युद्ध-विराम की कोशिशों के बावजूद वो फिलिस्तीनियों को मिटाने तुला है। अपने यहां पहलगाम का आतंकी हमला। फिर ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान के साथ जंग। हर तरफ छाए युद्ध के इन हालात से भारत ही नहीं, दुनिया भर के शेयर बाज़ार हलकान हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं कि बिजनेस खत्म या ठप पड़ गया है। असल में बिजनेस या कारोबार है ही ऐसी चीज़ जो युद्ध हो या शांति, हमेशा चलता ही रहता है। भारत में गोदरेज जैसे समूह दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ देने से मिला साम्राज्य आज तक बढ़ाते जा रहे हैं। आज युद्ध का परम्परागत स्वरूप बदल गया है। सैनिकों को हमला करने नहीं जाना पड़ता। ऐसे तमाम काम ड्रोन ही कर देते हैं। फिर भी सैनिकों की ट्रेनिंग और तैयारी का अपना महत्व है। दिलचस्प बात यह है कि सैनिकों और सुरक्षा बलों की ट्रेनिंग भी एक शानदार बिजनेस बन चुका है। ऐसी कई कंपनियां शेयर बाज़ार में लिस्टेड हैं। आज तथास्तु में पेश कर रहे हैं इन्हीं में एक संभावनामय कंपनी…

रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। मध्य-पूर्व में इस्राइल ने सबके साथ युद्ध छेड़ रखा है। कभी ईरान तो कभी सीर...

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