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सरकार कह सकती है कि वाह! जनता में कितनी खुशहाली है। लोगों के पास इतनी बचत है कि म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश जून महीने ...
16/07/2025

सरकार कह सकती है कि वाह! जनता में कितनी खुशहाली है। लोगों के पास इतनी बचत है कि म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश जून महीने में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। लगातार 15 महीनों से एसआईपी में आ रहा धन 20,000 करोड़ रुपए से ज्यादा है। लेकिन झाग हटाकर सतह के नीचे देखें तो जनता का संत्रास भी दिख जाता है। जून महीने में 77.8% एसआईपी बीच में ही रोक दिए गए। इस दौरान 48.1 लाख एसआईपी कैंसल किए गए तो नए एसआईपी की संख्या 13.8 लाख तक सिमट गई। बीते पूरे वित्त वर्ष 2024-25 में कैंसल और रजिस्टर किए गए एसआईपी का अनुपात 75% से ऊपर रहा है। जनवरी 2025 में यह 109%, दिसंबर 2024 में 83% और नवंबर 2024 में 79% रहा था। यह भी बड़ा दुखदायी है कि देश की जो सकल घरेलू बचत 2013-14 तक हमेशा जीडीपी की 34-35% रहा करती थी, वो 2014-15 से 2023-24 के बीच 32.2% से घटकर 30.7% पर आ गई। केवल घरेलू बचत की बात करें तो वो जीडीपी के 18.1% तक गिर चुकी है। वहीं, भारतीय परिवारों का शुद्ध बचत की बात करें तो वो पांच दशकों के न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है। यह वित्त वर्ष 2011-12 में जीडीपी की 7.4% हुआ करती थी, जबकि 2023-24 में जीडीपी की 5.3% हो चुकी है। इस दौरान देनदारियां जीडीपी के 3.3% से बढ़कर 6.4% हो चुकी है। अब बुधवार की बुद्धि…

सरकार कह सकती है कि वाह! जनता में कितनी खुशहाली है। लोगों के पास इतनी बचत है कि म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश जून मह.....

सरकार की तरफ से जारी आंकड़े भारतीय परिवारों की बड़ी ठंडी और बेजान तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन उससे परे जाकर देखें तो पता ...
15/07/2025

सरकार की तरफ से जारी आंकड़े भारतीय परिवारों की बड़ी ठंडी और बेजान तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन उससे परे जाकर देखें तो पता चलता है कि भारतीय परिवार वित्तीय सुरक्षा हासिल करने के लिए जबरदस्त हाथ-पैर मार रहे हैं। वित्तीय आस्तियों में लोगों के पास उपलब्ध कैश, बैंक डिपॉजिट और अन्य वित्तीय निवेश शामिल हैं, जबकि देनदारियों में बैंकों और अन्य स्रोतों से लिये गए ऋण शामिल हैं। वित्तीय आस्तियों से देनदारियां घटा दें तो भारतीय घरों की शुद्ध वित्तीय बचत निकलती है। जाने-माने टीवी व प्रिंट पत्रकार गोविंदराज इथिराज द्वारा स्थापित संस्था ‘इंडियास्पेंड’ द्वारा जुटाए गए आधिकारिक डेटा के मुताबिक, मार्च 2024 में भारतीय घरों की कुल वित्तीय आस्तियां लगभग ₹320 लाख करोड़ और देनदारियां ₹121 लाख करोड़ की थी। वित्त वर्ष 2013-14 से लेकर 2023-24 तक के दस साल के मोदीराज में भारतीय घरों की वित्तीय बचत के स्वरूप में काफी तब्दीली आई है। वित्त वर्ष 2013-14 में लोगों की 56% बचत बैंक डिपॉजिट में जाती थी। लेकिन यह हिस्सा 2023-24 तक घटकर 41% पर आ गया। इस दौरान लोगों ने शेयर, म्यूचुअल फंड, लघु बचत स्कीमों, सरकारी बॉन्डों और पीपीएफ व पेंशन फंड में निवेश बढ़ा दिया। इसी का प्रमाण है कि जून 2025 में म्यूचुअल फंड स्कीमों में ₹27,269 करोड़ आए हैं, जो अब तक का नया ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। अब मंगलवार की दृष्टि…

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हमारे शेयर बाज़ार की कमान भले ही कुछ दशकों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के हाथों में चली गई हो। लेकिन इसकी गत...
14/07/2025

हमारे शेयर बाज़ार की कमान भले ही कुछ दशकों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के हाथों में चली गई हो। लेकिन इसकी गति अंततः ‘हम भारत के लोग’ ही तय करेंगे, क्योंकि विदेशी निवेशकों का हाल तो यही है कि गंजेड़ी यार किसके, दम लगाकर खिसके। वे तो मुनाफा कमाकर खिसक लेंगे। इसलिए यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि फिलहाल हम भारतीयों की बैलेंस शीट या कहें तो वित्तीय आस्तियों और देनदारियों का क्या हिसाब चल रहा है। देश में कुल परिवारों की अनुमानित संख्या 29.4 करोड़ है। प्रति परिवार औसतन पांच लोग तो कुल आबादी करीब 146 करोड़। भारत सरकार के सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वय मंत्रालय और रिजर्व बैंक ने भारतीय घरों की वित्तीय प्रोफाइल का नवीनतम डेटा वित्त वर्ष 2022-23 का जारी किया है। समय से दो साल पीछे का यह डेटा है। मगर, हमें इसी से काम चलाना पड़ेगा। इसके मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय घरों ने 29.7 लाख करोड़ रुपए की वित्तीय आस्तियां जोड़ीं, जबकि उनकी देनदारियों में 15.6 लाख करोड़ रुपए का इज़ाफा हो गया। दूसरे शब्दों में औसतन हर परिवार ने साल भर में एक लाख रुपए की वित्तीय आस्तियां हासिल कीं, जबकि इसी दौरान उसकी देनदारियां 53,000 रुपए बढ़ गईं। इससे आगे क्या? अब सोमवार का व्योम…

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दुनिया एक बार फिर ट्रम्प द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध की दहशत में है। दक्षिण कोरिया व जापान पर 25%, ब्राज़ील पर 50%, मेक्...
13/07/2025

दुनिया एक बार फिर ट्रम्प द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध की दहशत में है। दक्षिण कोरिया व जापान पर 25%, ब्राज़ील पर 50%, मेक्सिको व यूरीपीय संघ पर 30% और यहां तक कि कनाडा पर 35% टैरिफ की धमकी। भारत-अमेरिका व्यापार संधि भी अनिश्चितता के घेरे में है। कुछ भी साफ नहीं। ट्रम्प ने भारत से कॉपर आयात पर 50% और दवाओं के आयात पर 200% तक टैरिफ लगाने की हुंकार भर रखी है। ऐसे में भले ही अमेरिका का शेयर बाज़ार ऐतिहासिक शिखर पर पहुंच गया हो, लेकिन अपने शेयर बाज़ार की सांसें अटकी हुई है। वो सीमित दायरे में भटक रहा है। लेकिन अगर साल-दो साल की बात करें तो तमाम कंपनियों के शेयर आपको 15% से 50-60% तक ऊपर नज़र आएंगे। यह कोई चमत्कार नहीं। जो कंपनियां अच्छा बिजनेस करती हैं, उनके शेयर आराम से साल भर में 12-15% बढ़कर मुद्रास्फीति को मात देते रहते हैं। यही धन का समय-मूल्य है जिसे देश के हर निवेशक ही नहीं, हर नागरिक को समझना ज़रूरी है। आर्थिक घटनाक्रम यकीनन शेयर बाज़ार को प्रभावित करते हैं, लेकिन केवल तात्कालिक रूप से। लम्बे समय में धन के समय-मूल्य को जाने बिना हम निवेश का मूलाधार नहीं समझ सकते। अब तथास्तु में आज की कंपनी…

दुनिया एक बार फिर ट्रम्प द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध की दहशत में है। दक्षिण कोरिया व जापान पर 25%, ब्राज़ील पर 50%, मेक्.....

देश में जीडीपी के साथ और जीडीपी के नाम पर ऐसा खेल चल रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और बड़े-बड़े अर्थशास्त्री नज़रअ...
11/07/2025

देश में जीडीपी के साथ और जीडीपी के नाम पर ऐसा खेल चल रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और बड़े-बड़े अर्थशास्त्री नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, जबकि अवाम बबूचक बना हुआ है। इस बीच अबूझ पहेली है कि जब सब कुछ इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है तो आम उपभोक्ता ही नहीं, कॉरपोरेट क्षेत्र तक में क्षमता इस्तेमाल का स्तर और लाभप्रदता अटकी क्यों है? यकीनन भारत इस समय दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। आईएमएफ के मुताबिक अगले पांच सालों तक ऐसा ही रहेगा। लेकिन देश के जीडीपी में चौसर का खेल रीयल व नॉमिनल विकास दर और रिटेल व थोक मुद्रास्फीति की चार गोटों से खेला जा रहा है। थोक मुद्रास्फीति कई सालों के कम चल रही है तो सरकार जीडीपी की नॉमिनल या वर्तमान मूल्यों पर चल रही विकास दर से रिटेल मुद्रास्फीति के बजाय उसे घटाकर रीयल या असली विकास दर निकालने लगी। इससे रीयल विकास दर ज्यादा दिखने लगी, जिसे सभी मानते हैं। लेकिन जीडीपी की नॉमिनल विकास दर पिछले छह सालों से लगातार 10% से नीचे चल रही है। इसमें से कोरोना महामारी में डूबे वित्त वर्ष 2020-21 का अपवाद हटा दें तो यह 2019-20 में 3.7% और 2024-25 में 9.8% रही है। नॉमिनल विकास दर की यह सुस्ती वो नंगा सच दिखाती है कि देश में जनता लस्त और कॉरपोरेट पस्त क्यों है? अब शुक्रवार का अभ्यास…

देश में जीडीपी के साथ और जीडीपी के नाम पर ऐसा खेल चल रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और बड़े-बड़े अर्थशास्त्री ....

गजब की विडम्बना है। एक तरफ भारत सरकार अपना 96% ऋण देश के आम लोगों की बचत या बैंक डिपॉजिट से हासिल कर रही है, वहीं दूसरी ...
10/07/2025

गजब की विडम्बना है। एक तरफ भारत सरकार अपना 96% ऋण देश के आम लोगों की बचत या बैंक डिपॉजिट से हासिल कर रही है, वहीं दूसरी तरफ इन्हीं आम लोगों को घर-खर्च और खपत को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। रिजर्व बैंक की ताज़ा फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2025 तक भारतीय परिवारों ने जो ऋण ले रखा है, उसका 54.9% हिस्सा घर या जेवरात खरीदने के लिए नहीं, बल्कि नॉन-हाउसिंग लोन है जो मुख्य रूप से रोजमर्रा की ज़रूरत या खपत को पूरा करने के लिए लिया गया है। यही नहीं, देश में जो प्रति व्य़क्ति ऋण मार्च 2023 में 3.9 लाख रुपए हुआ करता है, वो मार्च 2025 तक 23.08% बढ़कर 4.8 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इतना बताने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक केंद्र सरकार को खुश करने के लिए भारतीय अवाम की इस दारुण स्थिति पर तालियां बजाता नजर आता है। उसका कहना है कि दिसंबर 2024 तक भारतीय परिवारों पर चढ़ा ऋण जीडीपी का सिर्फ 41.9% है जो दुनिया की अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं या देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। कैसी विचित्र स्थिति है कि जहां, मोदी सरकार मंत्रियों-संत्रियों व तंत्र की मौजमस्ती के लिए देश को कर्ज में डुबाती जा रही है, वहीं देश के अवाम को जिंदगी चलाने के लिए बैंकों या गैर-बैकिंग कंपनियों (एनबीएफसी) से कर्ज लेना पड़ रहा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

गजब की विडम्बना है। एक तरफ भारत सरकार अपना 96% ऋण देश के आम लोगों की बचत या बैंक डिपॉजिट से हासिल कर रही है, वहीं दूसरी .....

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