30/08/2025
चेतेश्वर पुजारा इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह चुके है लेकिन उनकी कहानी क्या थी यह सबको नहीं पता है। चेतश्वर पुजारा की कहानी सिर्फ एक बल्लेबाज़ की कहानी नहीं है, यह जिद, संघर्ष और विश्वास की दास्तान है। पुजारा ने बचपन से ही ठान लिया था कि वे एक दिन भारत के लिए क्रिकेट जरूर खेलेंगे। लेकिन भारत के लिए क्रिकेट खेलने का उनका सपना इतना आसान नहीं था।
राजकोट के एक छोटे से घर से शुरू हुआ उनका सफर कई मुश्किलों से होकर गुज़रा। उनके पिता अरविंद पुजारा खुद एक क्रिकेटर रह चुके थे, और मां रीमा ने भी बेटे के सपनों को सहेज कर रखा। छुट्टियों के दिनों में मां–बाप अपने छोटे से बेटे को राजकोट से मुंबई लेकर आते थे, सिर्फ इसलिए कि वहां की बेहतर सुविधाओं में वह अभ्यास कर सके। यह सोचिए, एक साधारण परिवार, सीमित साधनों के बावजूद, हर त्याग कर रहा था ताकि बेटा एक दिन बड़ा खिलाड़ी बन सके। यही त्याग, यही मेहनत चेतश्वर पुजारा के हर स्ट्रोक में झलकती है।
डोमेस्टिक क्रिकेट में पुजारा का दबदबा इतना था कि लोग उन्हें ‘रन मशीन’ कहने लगे। रणजी ट्रॉफी हो या दूसरी घरेलू प्रतियोगिताएं, उनके लंबे–लंबे शतक और डटे रहने की क्षमता ने उन्हें खास बना दिया। और तभी साफ हो गया था कि यह खिलाड़ी सिर्फ खेलने नहीं आया, बल्कि भारतीय क्रिकेट में अपनी एक खास जगह बनाने आया है।
2010 में जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पुजारा ने अपना डेब्यू किया, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी—राहुल द्रविड़ की जगह भरना। नंबर 3 की वह पोज़ीशन, जो “द वॉल” ने सालों तक संभाली थी। किसी भी युवा के लिए यह स्थान पाना आसान नहीं था, लेकिन पुजारा ने धैर्य और क्लासिक बल्लेबाज़ी से सभी का दिल जीत लिया। धीरे–धीरे वे टीम इंडिया की “नई दीवार” कहलाने लगे।
दक्षिण अफ्रीका की उछाल भरी पिचों पर हो या ऑस्ट्रेलिया की तेज़ी में, पुजारा ने साबित किया कि वह सिर्फ घरेलू क्रिकेट के ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के भी बड़े बल्लेबाज़ हैं।
वैसे तो चेतेश्वर पुजारा ने भारत के लिए कई यादगार पारिया खेली है लेकिन उनके करियर का सबसे यादगार पल आया 2018 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर। विराट कोहली की अगुवाई वाली टीम इंडिया इतिहास रचने निकली थी। ऑस्ट्रेलिया की धरती पर भारत ने कभी टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती थी। उस दौरे पर पुजारा का बल्ला आग उगल रहा था—तीन शतक, 500 से ज्यादा रन। उनके हर मिनट की बल्लेबाज़ी, हर गेंद पर धैर्य, हर पारी में दृढ़ता—सबने भारत की जीत की नींव रखी। भारत की उस जीत का हीरो अगर सही मायने में कोई था, तो सिर्फ चेतश्वर पुजारा थे। जिन्हे उस सीरीज में कंगारू गेंदबाज़ो के लिए आउट करना नामुमकिन सा हो गया था।
लेकिन पुजारा के करियर का असली इम्तिहान अभी बाकी था। 2020–21 का ऑस्ट्रेलिया दौरा। इस बार हालात कठिन थे—कई खिलाड़ी चोटिल थे, कप्तान विराट कोहली पहले टेस्ट के बाद भारत लौट गए थे। पुजारा का बल्ला शतक नहीं उगल रहा था, रन कम आ रहे थे। लेकिन जो काम उन्होंने किया, वह शायद रन बनाने से भी बड़ा था। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों के सामने खुद को ढाल बना दिया। हर गेंद, हर बाउंसर अपने शरीर पर खाकर भी विकेट नहीं गंवाया। सिडनी और ब्रिसबेन में उनकी जुझारू बल्लेबाज़ी ने बाकी खिलाड़ियों को हिम्मत दी। जब भारत ने गाबा के किले को ढहाकर ऑस्ट्रेलिया में सीरीज़ 2-1 से जीती, तो हर कोई जानता था—अगर पुजारा न होते, तो यह जीत मुमकिन नहीं थी।
पुजारा की कहानी हमें यह सिखाती है कि क्रिकेट सिर्फ चौकों–छक्कों का खेल नहीं, बल्कि धैर्य, जिद और भरोसे का भी खेल है। उन्होंने दिखाया कि आप भले ही ग्लैमर से दूर रहें, लेकिन मेहनत और संघर्ष से भी आप देश के सबसे बड़े नायक बन सकते हैं।
चेतश्वर पुजारा—वो दीवार, जिसने भारत को हर मुश्किल घड़ी में सहारा दिया। अगर पोस्ट पसंद आई हो तो इसे लाइक जरूर करे और कमेंट सेक्शन में लिखकर बताइए कि आप अगली कहानी किस क्रिकेटर की सुनना चाहते है।