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16/09/2025

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14/09/2025

Michell Starc के विकेट कीपर से तेज गेंदबाज बनने तक की पूरी कहानी | Jasoosiya

भारत के पूर्व क्रिकेटर अजय जड़ेजा ने एशिया कप 2025 में भारत के पहले मुकाबले से पहले तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह को लेकर...
10/09/2025

भारत के पूर्व क्रिकेटर अजय जड़ेजा ने एशिया कप 2025 में भारत के पहले मुकाबले से पहले तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह को लेकर एक अहम बयान दिया है। उनका मानना है कि बुमराह के फिटनेस और उनके वर्क लोड को ध्यान में रखते हुए यूएई जैसी टीम के खिलाफ उन्हें को मैदान में नहीं उतारना चाहिए।

जड़ेजा की इस टिप्पणी की जड़ें बुमराह की हालिया चोटों से जुड़ी हैं। पिछले कुछ समय में बुमराह को कमर की गंभीर चोट से जूझना पड़ा है, जिसके चलते उन्हें कई महत्वपूर्ण श्रृंखला और मुकाबलों से बाहर बैठना पड़ा है। बीसीसीआई और टीम मैनेजमेंट अब उनके वर्कलोड को लेकर पहले से कहीं ज्यादा सतर्क हो गए हैं।

तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी के दौरान भी, जब भारत श्रृंखला में 2-1 से पीछे चल रहा था, तब भी बुमराह को पूरी तरह फिट न होने के कारण अंतिम मैच में नहीं खिलाया गया। यह निर्णय उनकी दीर्घकालिक फिटनेस को ध्यान में रखते हुए लिया गया था।

इसी संदर्भ में जड़ेजा ने दो टूक कहा, "अगर टीम मैनेजमेंट और बोर्ड को बुमराह की फिटनेस की इतनी चिंता है, तो फिर उन्हें यूएई जैसी टीमों के खिलाफ होने वाले अपेक्षाकृत कम दबाव वाले मैचों में बिल्कुल भी नहीं खिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि, या तो बीसीसीआई और टीम मैनेजमेंट बुमराह को बिना कुछ सोचे सभी मैच खिलाए या फिर उन्हें इस तरह के मैच में बाहर रखकर उन्हें चोटिल होने से बचाकर रखे।"

जड़ेजा की यह राय निश्चित तौर पर टीम प्रबंधन के लिए सोचने वाली बात है, खासकर तब जब वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट भी नज़दीक हैं और बुमराह जैसे खिलाड़ी की मौजूदगी भारत की जीत की उम्मीदों को मजबूत बनाती है।

चेतेश्वर पुजारा इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह चुके है लेकिन उनकी कहानी क्या थी यह सबको नहीं पता है। चेतश्वर पुजारा की क...
30/08/2025

चेतेश्वर पुजारा इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह चुके है लेकिन उनकी कहानी क्या थी यह सबको नहीं पता है। चेतश्वर पुजारा की कहानी सिर्फ एक बल्लेबाज़ की कहानी नहीं है, यह जिद, संघर्ष और विश्वास की दास्तान है। पुजारा ने बचपन से ही ठान लिया था कि वे एक दिन भारत के लिए क्रिकेट जरूर खेलेंगे। लेकिन भारत के लिए क्रिकेट खेलने का उनका सपना इतना आसान नहीं था।

राजकोट के एक छोटे से घर से शुरू हुआ उनका सफर कई मुश्किलों से होकर गुज़रा। उनके पिता अरविंद पुजारा खुद एक क्रिकेटर रह चुके थे, और मां रीमा ने भी बेटे के सपनों को सहेज कर रखा। छुट्टियों के दिनों में मां–बाप अपने छोटे से बेटे को राजकोट से मुंबई लेकर आते थे, सिर्फ इसलिए कि वहां की बेहतर सुविधाओं में वह अभ्यास कर सके। यह सोचिए, एक साधारण परिवार, सीमित साधनों के बावजूद, हर त्याग कर रहा था ताकि बेटा एक दिन बड़ा खिलाड़ी बन सके। यही त्याग, यही मेहनत चेतश्वर पुजारा के हर स्ट्रोक में झलकती है।

डोमेस्टिक क्रिकेट में पुजारा का दबदबा इतना था कि लोग उन्हें ‘रन मशीन’ कहने लगे। रणजी ट्रॉफी हो या दूसरी घरेलू प्रतियोगिताएं, उनके लंबे–लंबे शतक और डटे रहने की क्षमता ने उन्हें खास बना दिया। और तभी साफ हो गया था कि यह खिलाड़ी सिर्फ खेलने नहीं आया, बल्कि भारतीय क्रिकेट में अपनी एक खास जगह बनाने आया है।

2010 में जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पुजारा ने अपना डेब्यू किया, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी—राहुल द्रविड़ की जगह भरना। नंबर 3 की वह पोज़ीशन, जो “द वॉल” ने सालों तक संभाली थी। किसी भी युवा के लिए यह स्थान पाना आसान नहीं था, लेकिन पुजारा ने धैर्य और क्लासिक बल्लेबाज़ी से सभी का दिल जीत लिया। धीरे–धीरे वे टीम इंडिया की “नई दीवार” कहलाने लगे।

दक्षिण अफ्रीका की उछाल भरी पिचों पर हो या ऑस्ट्रेलिया की तेज़ी में, पुजारा ने साबित किया कि वह सिर्फ घरेलू क्रिकेट के ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के भी बड़े बल्लेबाज़ हैं।

वैसे तो चेतेश्वर पुजारा ने भारत के लिए कई यादगार पारिया खेली है लेकिन उनके करियर का सबसे यादगार पल आया 2018 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर। विराट कोहली की अगुवाई वाली टीम इंडिया इतिहास रचने निकली थी। ऑस्ट्रेलिया की धरती पर भारत ने कभी टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती थी। उस दौरे पर पुजारा का बल्ला आग उगल रहा था—तीन शतक, 500 से ज्यादा रन। उनके हर मिनट की बल्लेबाज़ी, हर गेंद पर धैर्य, हर पारी में दृढ़ता—सबने भारत की जीत की नींव रखी। भारत की उस जीत का हीरो अगर सही मायने में कोई था, तो सिर्फ चेतश्वर पुजारा थे। जिन्हे उस सीरीज में कंगारू गेंदबाज़ो के लिए आउट करना नामुमकिन सा हो गया था।

लेकिन पुजारा के करियर का असली इम्तिहान अभी बाकी था। 2020–21 का ऑस्ट्रेलिया दौरा। इस बार हालात कठिन थे—कई खिलाड़ी चोटिल थे, कप्तान विराट कोहली पहले टेस्ट के बाद भारत लौट गए थे। पुजारा का बल्ला शतक नहीं उगल रहा था, रन कम आ रहे थे। लेकिन जो काम उन्होंने किया, वह शायद रन बनाने से भी बड़ा था। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों के सामने खुद को ढाल बना दिया। हर गेंद, हर बाउंसर अपने शरीर पर खाकर भी विकेट नहीं गंवाया। सिडनी और ब्रिसबेन में उनकी जुझारू बल्लेबाज़ी ने बाकी खिलाड़ियों को हिम्मत दी। जब भारत ने गाबा के किले को ढहाकर ऑस्ट्रेलिया में सीरीज़ 2-1 से जीती, तो हर कोई जानता था—अगर पुजारा न होते, तो यह जीत मुमकिन नहीं थी।

पुजारा की कहानी हमें यह सिखाती है कि क्रिकेट सिर्फ चौकों–छक्कों का खेल नहीं, बल्कि धैर्य, जिद और भरोसे का भी खेल है। उन्होंने दिखाया कि आप भले ही ग्लैमर से दूर रहें, लेकिन मेहनत और संघर्ष से भी आप देश के सबसे बड़े नायक बन सकते हैं।

चेतश्वर पुजारा—वो दीवार, जिसने भारत को हर मुश्किल घड़ी में सहारा दिया। अगर पोस्ट पसंद आई हो तो इसे लाइक जरूर करे और कमेंट सेक्शन में लिखकर बताइए कि आप अगली कहानी किस क्रिकेटर की सुनना चाहते है।

कुछ खिलाड़ी होते हैं जो मैदान में उतरते ही मैच का रुख पलट देते हैं। जिनके हाथों में गेंद हो या बल्ला — भरोसा बना रहता है...
28/08/2025

कुछ खिलाड़ी होते हैं जो मैदान में उतरते ही मैच का रुख पलट देते हैं। जिनके हाथों में गेंद हो या बल्ला — भरोसा बना रहता है कि जीत अब दूर नहीं। जेम्स फॉकनर ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक थे। ऑस्ट्रेलिया के लिए ‘बड़े मैचों का बेताज बादशाह’ — जिनके नाम के साथ जुड़ा था: "प्रेशर स्पेशलिस्ट". लेकिन अफ़सोस... वो नाम जो कभी मैदान पर गूंजता था, अचानक खामोशी में गुम हो गया।

एक वक्त था जब फॉकनर जीत की गारंटी माने जाते थे। 2015 वर्ल्ड कप के फाइनल में मैन ऑफ द मैच बनकर उन्होंने साबित किया था कि वो बड़े मौकों पर निखरने वाले खिलाड़ी हैं। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि यह मैच विनर खिलाड़ी बिना विदाई, बिना शोर-शराबे के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से गायब हो गया?

जेम्स फॉकनर का जन्म 29 अप्रैल 1990 को ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया में हुआ। क्रिकेट उनके खून में था — पिता भी क्रिकेटर रहे थे। फॉकनर ने तेज़ गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी दोनों में महारत हासिल की, और जल्दी ही ऑस्ट्रेलिया की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने 2012 में T20 इंटरनेशनल डेब्यू किया, फिर 2013 में वनडे और टेस्ट में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

भारत जैसी मजबूत टीम के खिलाफ, उनकी असली परीक्षा हुई 2013 की वनडे सीरीज़ में, जो भारत में खेली गई थी। इस सीरीज़ में फॉकनर ने ऐसा करिश्मा किया कि हर भारतीय फैन तक उनका नाम पहुँच गया। खासतौर पर बेंगलुरु में खेले गए मैच में फॉकनर ने मात्र 57 गेंदों में शतक ठोका, जो उस समय ऑस्ट्रेलिया की ओर से वनडे का सबसे तेज़ शतक था। इस पूरी सीरीज़ में उन्होंने 303 रन और 7 विकेट लिए — एक गेंदबाज़ ऑलराउंडर के लिए यह प्रदर्शन सुनहरा था।

क्रिकेटर बनने का सबसे बड़ा सपना क्या होता है? वर्ल्ड कप फाइनल खेलना — और उसमें मैन ऑफ द मैच बनना। फॉकनर ने ये सपना जी लिया। 2015 के वर्ल्ड कप फाइनल में न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ मेलबर्न में खेले गए फाइनल मैच में फॉकनर 3 बेहद कीमती विकेट चटकाए, और ऑस्ट्रेलिया को वर्ल्ड कप जिताया। इस प्रदर्शन ने उन्हें अमर बना दिया।

इतना सब कुछ करने के बावजूद, 2017 के बाद फॉकनर को टीम में जगह मिलनी बंद हो गई। उनकी फिटनेस पर सवाल उठे, चोटों ने बार-बार परेशान किया, और चयनकर्ताओं ने धीरे-धीरे उन्हें नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। आईपीएल में भी उनका जलवा रहा — खासकर राजस्थान रॉयल्स के लिए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय टीम में वापसी के दरवाज़े धीरे-धीरे बंद हो गए।

2019 में एक विवाद भी सामने आया, जब उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया से नाराज़गी जताई — और कहा गया कि उनकी छवि खराब हुई। आज फॉकनर फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट तक सीमित हैं, लेकिन वो ऑस्ट्रेलिया के लिए एक ‘अधूरी विरासत’ छोड़ गए।

जेम्स फॉकनर का करियर किसी फिल्मी हीरो जैसा था — धमाकेदार एंट्री, बड़े-बड़े क्लाइमेक्स, लेकिन अचानक एक अधूरी विदाई। वो खिलाड़ी जिसने भारत की ज़मीन पर बल्ले से आग उगली... वो योद्धा जिसने वर्ल्ड कप फाइनल में बाज़ी पलटी... वो नाम जिसे ऑस्ट्रेलिया "फिनिशर" कहता था... आज वो कहीं नहीं है, लेकिन दिलों में हमेशा रहेगा।

जेम्स फॉकनर की कहानी यही सिखाती है — कि क्रिकेट में हर मैच विनर को उसका पूरा हक़ नहीं मिलता। लेकिन जो यादें वो बना जाता है, वो कभी मिटती नहीं।

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