03/09/2025
हिन्दी ग़ज़ल आज सर्वाधिक पढ़ी और लिखी जाने वाली विधाओं में से एक है। अपनी व्यापकता और विस्तार में हिन्दी ग़ज़ल ने जीवन के सभी छोटे -बड़े अनुभवों को समेट लिया है। अपनी विशिष्ट संरचना, अनुशासन और कहन के साथ हिन्दी ग़ज़ल अब सिर्फ़ सौन्दर्य और प्रेम का आख्यान नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू यथा- सुख-दुख, दर्शन, समाज, आध्यात्म सबको समेटते हुए आगे बढ़ रही है। दुष्यंत कुमार के ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' के प्रकाशन के बाद हिन्दी ग़ज़ल ने अपने लिए जो ज़मीन तलाशी है उसका गुरुत्वाकर्षण निरंतर ग़ज़लकारों को अपनी ओर खींच रहा है। और यही कारण है कि आज हिन्दी ग़ज़ल ने अपनी एक समृद्ध परंपरा ही विकसित कर ली है। इसी समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, कवयित्री रचना उनियाल 'अरविंद' का ग़ज़ल संग्रह 'इज़हार' आज हमारे समक्ष है।
'इज़हार' शीर्षक अपने आप में एक व्यापक अर्थ समेटे हुए है। इज़हार महज़ प्रेम की स्वीकारोक्ति तक सीमित नहीं है; यह जीवन के प्रति, अपने समय और समाज के प्रति, अपनी आस्था और अपने आदर्शों के प्रति एक कवि के अंतर्मन की खुली और ईमानदार अभिव्यक्ति है। रचना जी का यह संग्रह इसी भावना का विस्तार है। इसमें जहाँ एक ओर मुहब्बत की नाज़ुक और कच्ची भावनाओं का इज़हार है, वहीं दूसरी ओर वतनपरस्ती के बुलंद जज़्बे का ऐलान भी है। जहाँ एक ओर सामाजिक विसंगतियों पर तीखे सवालों का इज़हार है, तो वहीं जीवन के दार्शनिक सत्यों की सहज स्वीकृति भी है। यह संग्रह एक यात्रा है- दिल की गलियों से शुरू होकर देश की सरहदों तक, व्यक्तिगत अनुभूतियों के आंगन से गुज़रकर सामूहिक चेतना के विशाल प्रांगण तक।
रचना उनियाल की सबसे बड़ी विशेषता उनका अनुशासन है। काव्य की कोई विधा हो वे अपने लेखन को मौलिकता और शिल्प के सुगठन से उसे प्रभावी बना देती हैं। यदि ग़ज़लों की बात करें तो उन्होंने सधे शिल्प के साथ हिंदी और उर्दू के शब्दों का ऐसा सामंजस्य स्थापित किया है जो ग़ज़ल की आत्मा के सर्वथा अनुकूल है। उनकी भाषा न तो अत्यधिक संस्कृतनिष्ठ होकर बोझिल होती है और न ही क्लिष्ट फ़ारसी शब्दावली से दुरूह। यह आम पाठक के हृदय तक सीधे पहुँचने वाली भाषा है, जिसमें 'सनम', 'आशिक़ी', 'रुख़सती', 'इंतज़ार' जैसे ग़ज़ल के पारंपरिक शब्द 'भावना', 'चेतना', 'वेदना', 'संवेदना' जैसे हिंदी के गंभीर शब्दों के साथ घुलमिलकर एक नया सौंदर्य रचते हैं। जहाँ खड़ी बोली की सादगी, उर्दू की नफ़ासत और लोकजीवन के मुहावरे, सब सहज रूप से घुल-मिल जाते हैं। यही कारण है कि उनकी ग़ज़लें पढ़ते हुए पाठक को लगता है कि यह स्वर उसके अपने जीवन से निकला है।
_राहुल शिवाय, नोएडा