
05/05/2025
मोदी सरकार में महंगाई से जनता बेहाल👇🏼👇🏼
मोदी सरकार के कार्यकाल में महंगाई एक प्रमुख मुद्दा रहा है, जिसने आम जनता को प्रभावित किया। विभिन्न स्रोतों और सर्वेक्षणों के आधार पर, महंगाई की स्थिति को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. **महंगाई दर में उतार-चढ़ाव**:
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2014-2019) में औसत महंगाई दर लगभग 4.97% रही, जो यूपीए सरकार के 8.27% की तुलना में कम थी।
- हालांकि, 2022 में खुदरा महंगाई दर 7.8% तक पहुंच गई, जो मई 2014 के बाद सबसे अधिक थी। थोक महंगाई दर भी 15.08% के साथ दिसंबर 1998 के बाद उच्चतम स्तर पर थी
- हाल के आंकड़ों (जनवरी 2025) में खुदरा महंगाई दर 4.31% तक कम हुई, जो पांच महीने का निचला स्तर है, मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी के कारण
2. **खाद्य और ईंधन की कीमतें**:
- खाद्य महंगाई, विशेष रूप से सब्जियों, दालों और खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि, जनता के लिए बड़ी चुनौती रही। उदाहरण के लिए, जुलाई 2024 में दालों की कीमतें 14.77% और अनाज 8.14% तक बढ़ीं
- पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में भी समय-समय पर उछाल देखा गया। 2021 में राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमतों में "ज़बरदस्त विकास" हुआ, जिससे जनता परेशान है
- वैश्विक कारक, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, ने भी 2022 में खाद्य तेल और उर्वरकों की कीमतों को बढ़ाया
3. **जनता पर प्रभाव**:
- मूड ऑफ द नेशन सर्वे (2024) में 19.3% लोगों ने महंगाई को मोदी सरकार की बड़ी समस्या बताया, जबकि 25.9% ने बेरोजगारी को।[]
- महाराष्ट्र में सर्वेक्षणों ने दिखाया कि बेरोजगारी के बाद महंगाई (15%) दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है।
- सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं, जैसे तेजस्वी यादव, ने दावा किया कि महंगाई ने गरीब और मध्यम वर्ग की जेब पर भारी बोझ डाला है
4. **सरकार के प्रयास**:
- सरकार ने 'भारत ब्रांड योजना' के तहत सस्ते दामों पर आटा, चावल और दाल उपलब्ध कराने की पहल की, विशेष रूप से त्योहारी सीजन में
- खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बदलाव और प्याज निर्यात पर न्यूनतम मूल्य हटाने जैसे कदम उठाए गए, हालांकि इनसे मिश्रित परिणाम मिले
- 2021 में केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 3% की बढ़ोतरी की गई ताकि बढ़ती कीमतों का बोझ कम हो
5. **विपक्ष का दृष्टिकोण**:
- विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस और आरजेडी, ने महंगाई को सरकार की "जनविरोधी नीतियों" का परिणाम बताया
- सोशल मीडिया पर भी सरकार की आलोचना होती रही, जैसे कि सोने की कीमत 2014 में ₹25,000 से 2024 में ₹1,00,000 प्रति 10 ग्राम होने की चर्चा।
6. **सकारात्मक दृष्टिकोण**:
- कुछ समर्थकों का कहना है कि वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने में सफलता हासिल की।
- आर्थिक विकास और जीडीपी वृद्धि (2014 में 112 लाख करोड़ से 2023 में 272 लाख करोड़) को भी सरकार की उपलब्धि के रूप में देखा जाता है
**निष्कर्ष**:
महंगाई ने निश्चित रूप से आम जनता, खासकर निम्न और मध्यम वर्ग, को प्रभावित किया है। हालांकि, हाल के महीनों में महंगाई दर में कमी और सरकारी योजनाओं से कुछ राहत मिली है। फिर भी, खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतें जनता की चिंता का विषय बनी हुई हैं। वैश्विक और घरेलू कारकों का मिश्रण इस समस्या को जटिल बनाता है, और सरकार के प्रयासों के बावजूद, विपक्ष और जनता का एक बड़ा वर्ग इसे अपर्याप्त मानता है।
यदि आप किसी विशिष्ट पहलू (जैसे खाद्य महंगाई, ईंधन कीमतें, या सरकारी नीतियां) पर अधिक जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं!