11/12/2025
जो नस्लें अपने समृद्ध इतिहास को विस्मृत कर देती हैं, वे प्रायः उसी इतिहास की त्रुटियों और दुर्घटनाओं को दोहराने के लिए अभिशप्त होती हैं, क्योंकि इतिहास से शिक्षा लेना ही आगे बढ़ने और एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने की कुंजी है। इतिहास की अनदेखी से पहचान का संकट उत्पन्न होता है और समाज दुर्बल हो जाता है। आनंदपुर साहिब का दुर्ग, जहां दशमेश गुरु गोबिंद सिंह अपने परिवार और सिख अनुयायियों के साथ थे और बाहरी दुश्मनों ने घेर लिया था। जब गुरु जी पर किसी प्रकार का वश नहीं रहा और सेना में विद्रोह की आशंका होने लगी, तो गुरु जी से दुर्ग छुड़वाने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे गए। इसमें कुरान और आटे की गाय बनाकर उसकी झूठी कसम खाई गई। गुरु जी ने मना किया, उदाहरण भी प्रस्तुत किए, परंतु अंदर खाद्य सामग्री और जल की कमी से सिख भी अच्छी स्थिति में नहीं थे, इसलिए बाहर लड़ने-मरने पर अड़े थे। दुर्ग छोड़ दिया गया, दुश्मन ने कसम तोड़ी और पीछे से हमला कर दिया। पूरा परिवार बिखर गया। यह वही महीना है जब गुरु परिवार और सिखों को अनेक कष्ट सहन करने और कुर्बानियां देनी पड़ीं। छोटे साहिबजादों को जो जीवित दीवार में चुनवा कर शहीद किया गया और दोनों बड़े साहिबजादे जो युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए, दादी माता गुजरी जी ठंडे बुर्ज में शहीद हुईं। यह महीना खुशियों का नहीं, बल्कि कुर्बानियों को स्मरण करने और उनके बताए मार्गों पर चलने का है। - डॉ. सिंह
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