08/11/2023
धनतेरस और धन्य तेरस एक त्योहार
कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे।तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
प्रथा
धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस पर धनिए के बीज की खरीदारी को शुभ माना जाता है। कहते हैं कि धनिए के बीज से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। दिवाली और धनतेरस पर मां लक्ष्मी को धनिया का बीज अर्पित करने के बारे में कहा गया है, कि ऐसे करने से घर में सुख समृद्धि तो आती है, साथ ही मेहनत का फल मिलता है और व्यक्ति संपन्न होता है।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है । सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ
है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा
थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की - हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के सन्दर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या । दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं परन्तु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया पर विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की संध्या लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चाँदी का कोई पात्र व लक्ष्मी गणेश अंकित सोने-चाँदी का सिक्का कीना जाता है। दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही कारण है कि धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।
धनतेरस का शुभ मुहूर्त: हर साल कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। इसलिए धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल 10 नवंबर 2023 को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से धनतेरस की शुरुआत होगी और 11 नवंबर 2023 को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी।
धनतेरस के दिन क्या खरीदे और क्या नहीं खरीदे
धनतेरस के मौके पर चाकू, कैंची, सुई जैसी धारदार और नुकीली चीजों की खरीदारी से बचना चाहिए। मान्यता है कि इन चीजों की खरीदारी से व्यक्ति को घर में दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। -धनतेरस पर तांबा और पीतल का बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन एल्युमिनियम और स्टील का बर्तन नहीं खरीदना चाहिए। इसके अलावा झाड़ू खरीदना भी अच्छा माना जाता है।
उपाय नंबर एक
धनतेरस के दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद अपने घर की झाड़ू लगानी चाहिए। ऐसा करना शुभ माना जाता है। झाड़ू लगाने के बाद घर में गंगाजल छिड़क कर कपूर जलाकर झाड़ू के ऊपर से लेकर पूरे घर में घूमना चाहिए। ज्योतिषों की माने तो इस उपाय को करने से घर में कोई बीमार हो तो वह जल्द ठीक होने लग जाता है।
उपाय नंबर दो
धनतेरस के दिन पुरानी झाड़ू को फेंकने के बजाय इस झाड़ू में काला धागा बांध दें और इसे ऐसे स्थान पर रखें कि यह बाहरी लोगों को न दिखे . ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती है। साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहेगी।
धनतेरस उपाय नंबर तीन
भगवान धन्वंतरि की पूजा कर उनसे आरोग्य की कामना की जाती है। इस दिन यमदीप दान किया जाता है। शाम को आटे या मिट्टी के दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाकर मुख्य द्वार पर रखा जाता है। इस दीपदान से असामयिक मृत्यु का भय समाप्त होता है।
धनतेरस उपाय नंबर चार
धनतेरस पर इस दिशा में एक उपाय करने से कभी धन की कमी नहीं होती है. वास्तु के अनुसार, धनतेरस की रात अपनी तिजोरी, कैश, गहने या महंगा सामान उत्तर दिशा में रखना चाहिए. ऐसा करने से धन में वृद्धि होती है. ऐसी मान्यताएं हैं कि धन की देवी माता लक्ष्मी दक्षिण की दिशा से यात्रा करती हुईं उत्तर दिशा में वास करती हैं.
पवित्र धनतेरस त्योहार पर इस मंत्र का जाप करें और देवी लक्ष्मी और कुबेर का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें। गीत ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट - लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट - लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट - लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये। धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ इसके पश्चात कुबेर जी की आरती व प्रणाम करके अपनी सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी गई है
धनतेरस का एक टोटका
ज्योतिष शास्त्र में एक टोटका यह भी बताया गया है कि इस दिन लक्ष्मी-गणेश और भगवान कुबेर की पूजा के बाद रात के समय 21 चावल के दाने लाल रंग के कपड़ें में बांधकर तिजोरी या धन के स्थान पर रख दें। ऐसा करने से धन वृद्धि होती है। इसके साथ धनतेरस से भाईदूज पर्व तक 11 कौड़ियों को लाल वस्त्र में बांधकर श्री सूक्त का पाठ करें।
धनतेरस पर 13 दीये जलाने की प्रथा है। इन दीयों को घर में अलग-अलग जगहों पर रखना चाहिए, जैसे प्रवेश द्वार पर, रसोई में और पूजा कक्ष में। प्रत्येक दीये का अपना विशिष्ट अर्थ होता है।
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