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हम ने ईख़लाक के पियाले मे लहु पेश किया फिर भी जो लोग मुनाफिक थे मुनाफिक ही रहे
06/11/2024

हम ने ईख़लाक के पियाले मे लहु पेश किया
फिर भी जो लोग मुनाफिक थे मुनाफिक ही रहे

मेरा उस शहरे अदावत मे बसेरा है जहालोग सजदो मे भी लोगो का बुरा सोचते है..
05/11/2024

मेरा उस शहरे अदावत मे बसेरा है जहा
लोग सजदो मे भी लोगो का बुरा सोचते है..

ज़ल ज़ले कुले आलम मे बे सबब नही आते तहे ज़मी खाक पे कोई तड़पता होगा...
25/10/2024

ज़ल ज़ले कुले आलम मे बे सबब नही आते
तहे ज़मी खाक पे कोई तड़पता होगा...

09/09/2024
19/08/2024

मोहसिन को रुलायेगा ता हश्र लहू अक्सर
ज़हरा तेरी कलीयो का सहरा मे बिखर जाना

सज्जाद ये कहते थे मासूम सकीना से
अब्बास के लाशे से चुपचाप गुज़र जाना

मोहसिन. नकवी. पाकिस्तान

12/08/2024

जफ़ा के तिर खाये जा रहे है
बला के ग़म उठाए जा रहे है

फिदा करने को दिने मुस्तफ़ा पर
अली अकबर सजाये जा रहे है

बिठाते थे नबी शानो पे जिनको
वो नेज़ो से गिराये जा रहे है

हुआ था जोन कायम जिनसे परदा
वो बाज़ारो मे लाये जा रहे है

सैय्यद जोन अलिया.सैय्यद

जिस को हम है कह रहे थे उस को था कहने लगे मोत और ज़िन्दगी का फ़ासला बस इतना सा है  .10,08,2024
10/08/2024

जिस को हम है कह रहे थे उस को था कहने लगे
मोत और ज़िन्दगी का फ़ासला बस इतना सा है .10,08,2024

बे दिल काजो दिल है मे उसी दिल का मकी हुछोटा हू मगर जिसमे शरियत का मकी हुहद ये हेके अंगुश्ते शहादत का नगी हु अकबर से नालु...
20/07/2024

बे दिल काजो दिल है मे उसी दिल का मकी हु
छोटा हू मगर जिसमे शरियत का मकी हु
हद ये हेके अंगुश्ते शहादत का नगी हु
अकबर से नालु दाद तो असगर ही नही हु
इस नस्ल से हर नस्ल को ईमदाद मिलेंगी
माओ को मेरे झुले से औलाद मिलेंगी.... 20,07,2024

17/07/2024

मजलिसे ख़त्म हुई घर को अज़ादार चले
लेकिन एक मॉ जो सरे फ्रश थी बेठी ना गई
वो भतीजी ना रही बन गई बेटी ना गई
बाद अब्बास के पानी को नज़र भी ना गई
उसके हम राह था भाईयो के सरो का लश्कर
वो बहन शाम फतेह करने अकेली ना गई

14/07/2024

सदमा हुसैन ने ये उठाया है किस तरह
कासिम की लाश ख़ेमे मे लाया है किस तरह
फ़रवा ये बोली शाह से कासिम जवान था
गठडी मे मेरा लाल समाया है किस तरह...

कज़ा की आखरी हिचकी बडी ना मेहरबा निकलीउधर सुग़रा का ख़त आया इधर अकबर की जा निकली निगाहे जानिबे ख़ेमा थी ओर शब्बीर कहते थ...
13/07/2024

कज़ा की आखरी हिचकी बडी ना मेहरबा निकली
उधर सुग़रा का ख़त आया इधर अकबर की जा निकली
निगाहे जानिबे ख़ेमा थी ओर शब्बीर कहते थे
कयामत आएगी ख़ेमे से गर अकबर की माॅ निकली

जो मोहर्रम मे भी परदेश हो उस से पुछोकितना उस शक्स का घर जाने को जी चाहता हैजब भी आती किसी घर से सदा मातम कीउसी मन्ज़िल प...
09/07/2024

जो मोहर्रम मे भी परदेश हो उस से पुछो
कितना उस शक्स का घर जाने को जी चाहता है
जब भी आती किसी घर से सदा मातम की
उसी मन्ज़िल पे ठहर जाने को जी चहाता है...अल्ताफ नकवी

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