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03/07/2025

Ek Ladki Ko Dekha To episode 3| a romantic story | an interesting story.

03/07/2025

Ek Ladki Ko Dekha To episode 134|किसमे कितना है दम |a romantic story | jabardast story, must watch.

30/06/2025

Ek Ladki ko Dekha To | episode -133| मिसअंडरस्टैंडिंग | a romantic story | ek khubsurat ladki Anika ki love story .

“अठारह पापों की दुकान”शहर के बीचोंबीच एक छोटी सी दुकान थी – “मन की दुकान”। यहाँ हर दिन तरह-तरह के लोग आते-जाते रहते थे। ...
24/06/2025

“अठारह पापों की दुकान”
शहर के बीचोंबीच एक छोटी सी दुकान थी – “मन की दुकान”। यहाँ हर दिन तरह-तरह के लोग आते-जाते रहते थे। इस दुकान का मालिक था – अर्जुन। अर्जुन ने एक बोर्ड लगाया था – “यहाँ आत्मा को हल्का करने का सामान मिलता है।”

एक दिन, अर्जुन की दुकान में एक युवक आया – नाम था विवेक। वह परेशान था, बोला, “मेरे जीवन में बहुत दुख है, मन भारी रहता है। कुछ हल्का होने का उपाय बताइए।”

अर्जुन मुस्कराया और बोला, “तुम्हारे मन में अठारह बोझ हैं, इन्हें उतार दो, जीवन हल्का हो जाएगा।”

विवेक चौंका – “कैसे बोझ?”

अर्जुन ने समझाया:

“क्या तुम कभी किसी को चोट पहुँचाते हो?”

“कभी-कभी गुस्से में...”

“यह प्राणातिपात है।”

“कभी झूठ बोलते हो?”

“हाँ, काम निकालने के लिए।”

“यह मृषावाद है।”

“कभी बिना पूछे किसी की चीज़ ली?”

“बचपन में...”

“यह अदत्तादान है।”

“कभी बुरी आदतों में फँसे?”

“कभी-कभी।”

“यह मैथुन है।”

“कभी चीज़ों का लालच किया?”

“बहुत बार।”

“यह परिग्रह है।”

अर्जुन ने इसी तरह सभी 18 पापों के बारे में बताया – क्रोध, घमंड, कपट, लोभ, मोह, द्वेष, झगड़ा, झूठा आरोप, चुगली, निंदा, विषयों में आसक्ति, कपट सहित झूठ, और गलत विश्वास।

विवेक ने महसूस किया कि ये सभी बोझ उसके जीवन में हैं। अर्जुन बोला, “हर दिन इन बोझों में से एक को पहचानो और छोड़ने की कोशिश करो। देखना, तुम्हारा मन हल्का होता जाएगा।”

विवेक ने अर्जुन की बात मानी। उसने हर दिन एक-एक पाप छोड़ना शुरू किया। कुछ हफ्तों बाद वह फिर दुकान पर आया – चेहरे पर शांति थी।

अर्जुन मुस्कराया, “अब तुम्हारी आत्मा हल्की है। यही जैन धर्म का संदेश है – अठारह पापों को छोड़ो, जीवन को शुद्ध बनाओ।”

इस तरह अर्जुन की “मन की दुकान” हर किसी को सिखाती रही – पापों का त्याग ही असली हल्कापन है।

23/06/2025

Ek Ladki ko Dekha To episode 132| लव ट्रायंगल|a romantic story | ek khubsurat ladki अनिका ki love story। # Jabardast story watch.

बारिश के मौसम में कार के अंदर आलू रखने और उसे विंडशील्ड पर लगाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण और इसका ड्राइविंग में सहयोग —...
22/06/2025

बारिश के मौसम में कार के अंदर आलू रखने और उसे विंडशील्ड पर लगाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण और इसका ड्राइविंग में सहयोग — एक विस्तृत लेख बरसात का मौसम जितना सुहावना होता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है गाड़ी चलाने वालों के लिए। इस मौसम में सबसे बड़ी समस्या होती है — कार की फ्रंट विंडशील्ड (आगे वाला कांच) के अंदर की सतह पर भाप (फॉगिंग) जम जाना। यह फॉगिंग ड्राइवर के दृश्य को बाधित करती है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में एक बेहद आसान, सस्ता और घरेलू उपाय है — आलू (Potato)। सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन कटे हुए आलू से विंडशील्ड को साफ करने से भाप नहीं जमती, और यह उपाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूरी तरह तर्कसंगत भी है। आलू से विंडशील्ड पर भाप क्यों नहीं जमती?
1. आलू में स्टार्च होता है जो एक पतली परत बनाता है आलू को जब काटकर किसी कांच पर रगड़ा जाता है, तो उसके अंदर मौजूद स्टार्च (Starch) और प्राकृतिक शर्करा (Natural sugars) उस कांच की सतह पर एक पतली पारदर्शी परत (transparent coating) बना देती है। यह परत: नमी (humidity) को कांच की सतह पर जमने से रोकती है। हवा में मौजूद जलवाष्प (moisture) को विंडशील्ड पर जमने से पहले ही पीछे धकेल देती है
2. एंटी-फॉग कोटिंग जैसा कार्य करता है
जैसे बाजार में मिलने वाले एंटी-फॉग स्प्रे एक रासायनिक कोटिंग बनाते हैं, वैसा ही कार्य आलू का यह प्राकृतिक स्टार्च करता है। फर्क बस इतना है कि ये प्राकृतिक, सस्ता और सुरक्षित विकल्प है। कैसे करें इसका प्रयोग — स्टेप बाय स्टेप विधि 1. एक ताजा आलू लें।
2. उसे बीच से दो टुकड़ों में काटें।
3. आलू के कटे हिस्से को लेकर कार की अंदर वाली विंडशील्ड (Frontal Inner Glass) पर धीरे-धीरे रगड़ें।
4. एक समान दिशा में रगड़ें ताकि परत ठीक से चिपके।
5. सूखने दें (2-3 मिनट तक)। इसके बाद एक माइक्रोफाइबर कपड़े से हल्का सा पोछ लें ताकि निशान न दिखें। 6. अब आप ड्राइविंग शुरू करें — आपको दिखेगा कि भाप बिल्कुल नहीं जमेगी। भौतिकी के अनुसार, जब कार के अंदर की हवा गरम और नम होती है और बाहर का तापमान ठंडा होता है, तब विंडशील्ड पर संघनन (Condensation) होता है — यही भाप है। आलू से बनी परत हाइड्रोफोबिक व्यवहार (Hydrophobic Behaviour) दर्शाती है — यानी वह पानी के अणुओं को सतह पर जमने नहीं देती।vइसका प्रभाव तब और बढ़ता है जब आप हीटर या डी-फॉगर के साथ इसका उपयोग करते हैं। ड्राइविंग में कैसे करता है मदद दृश्य स्पष्ट होता है – जब सामने की विंडशील्ड साफ रहती है, तो आपको सड़क, वाहन, पैदल यात्री, सिग्नल आदि सही से दिखाई देते हैं। ब्रेकिंग और मोड़ने में सटीक निर्णय संभव होता है – क्योंकि दृश्य बाधित नहीं होता।रात में हेडलाइट की रोशनी फैली नहीं दिखती, जिससे चकाचौंध नहीं होती। मानसिक तनाव कम होता है – फॉगिंग हटाने के लिए बार-बार वाइपर या कपड़ा उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ती अन्य घरेलू उपाय (सहयोगी जानकारी)
आलू के अलावा, साबुन या शेविंग क्रीम भी विंडशील्ड पर रगड़ने से ऐसी ही परत बना सकते हैं, लेकिन आलू सबसे प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय है।
विंडशील्ड के बाहर की फॉगिंग रोकने के लिए एंटी-फॉग फिल्म या रेन-एक्स जैसे उत्पाद मदद कर सकते हैं
बारिश के मौसम में एक साधारण सा आलू आपकी ड्राइविंग को कहीं ज्यादा सुरक्षित, स्पष्ट और आसान बना सकता है। यह उपाय न केवल वैज्ञानिक रूप से तर्कसंगत है बल्कि व्यावहारिक, किफायती और पूरी तरह सुरक्षित भी है।
अगली बार जब आप बारिश में सफर पर निकलें, तो एक आलू साथ रखना न भूलें — हो सकता है यही आलू आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा में बड़ा योगदान दे

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वह रोज़ की तरह अपनी किराने की दुकान बंद करके गली में थोड़ी देर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई — *"अंक...
22/06/2025

वह रोज़ की तरह अपनी किराने की दुकान बंद करके गली में थोड़ी देर टहलने निकले ही थे कि पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई — *"अंकल... अंकल..."*
वे पलटे। एक लगभग *7-8 साल की बच्ची हांफती हुई* उनके पास आ रही थी।
*"क्या बात है... भाग कर आ रही हो?"* उन्होंने थोड़े थके मगर सौम्य स्वर में पूछा।
*"अंकल पंद्रह रुपए की कनियाँ (चावल के टुकड़े) और दस रुपए की दाल लेनी थी..."* बच्ची की आंखों में मासूमियत और ज़रूरत दोनों झलक रहे थे।
उन्होंने पलट कर अपनी दुकान की ओर देखा, फिर कहा —
*"अब तो दुकान बंद कर दी है बेटा... सुबह ले लेना।"*
*"अभी चाहिए थी..."* बच्ची ने धीरे से कहा।
*"जल्दी आ जाया करो न... सारा सामान समेट दिया है अब।"* उन्होंने नर्म मगर व्यावसायिक अंदाज़ में कहा।
बच्ची चुप हो गई। आंखें नीची कर के बोली —
*"सब दुकानें बंद हो गई हैं... और घर में आटा भी नहीं है..."*
उसके ये शब्द किसी हथौड़े की तरह उनके सीने पर लगे।
वे कुछ देर चुप रहे। फिर पूछा, "तुम पहले क्यों नहीं आई?"
*"पापा अभी घर आए हैं... और घर में..."* वो रुकी, शायद आँसू रोक रही थी।
उन्हें कुछ और पूछने की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने बच्ची की आंखों में देखा और बिना कुछ कहे, ताले की चाबी जेब से निकाल ली। दुकान का ताला खोला, अंदर घुसे, और समेटे हुए सामान को हटाते हुए कनियाँ और दाल बिना तोले ही थैले में डाल दी।
बच्ची ने थैला पकड़ते हुए कहा — *"धन्यवाद अंकल..."*
*"कोई बात नहीं। अब घर ध्यान से जाना।"*
इतना कह कर उन्होंने दुकान फिर से बंद कर दी।
उस रात वह जल्दी सो नहीं पाए। मन में बच्ची की उदासी, उसका मासूम चेहरा और वो शब्द *"घर में आटा भी नहीं है..."* गूंजते रहे।
उन्हें अपना बचपन याद आ गया।
वे भी कभी ऐसे ही हालात से गुजरे थे। पिता रिक्शा चलाते थे, मां दूसरों के घरों में काम करती थीं। कई बार तो रात को पानी में रोटी भिगो कर खाना पड़ता था। तब किसी ने मदद की होती तो कितना सुकून मिलता था।
*"अब मेरे पास दुकान है, कमाई है, लेकिन क्या मैंने इंसानियत भी कमा ली है?"* उन्होंने खुद से सवाल किया।
सुबह जब उन्होंने दुकान खोली, तो सबसे पहले एक बोर्ड बनाया — *"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए। कुछ सामान उधार नहीं, हक़ से मिलेगा।"*
पास में ही एक डब्बा रख दिया, जिस पर लिखा था —
*"अगर आप किसी के लिए मदद करना चाहें, तो इसमें पैसे डाल सकते हैं।"*
गली के लोग पहले तो हैरान हुए। लेकिन धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि ये कोई पब्लिसिटी स्टंट नहीं, ये उस इंसान का दिल था जो अपने अतीत से सबक लेकर किसी का आज सुधारना चाहता था

एक हफ्ते बाद वही बच्ची फिर से आई, इस बार अपने छोटे भाई के साथ।
*"अंकल, पापा ने कुछ पैसे दिए हैं... पिछली बार जो आपने दिया था उसका भी जोड़ लें।"* वह मासूमियत से बोली।
*"नहीं बेटा, उस दिन जो दिया था वो इंसानियत का कर्ज़ था। उसका कोई हिसाब नहीं होता।"*
बच्ची मुस्कुरा दी। उसने दुकान में रखा वो बोर्ड पढ़ा और बोली — *"पापा ने कहा है कि जब वे मज़दूरी करके लौटेंगे, तो इस डब्बे में पैसे डालेंगे... ताकि किसी और को भी मदद मिल सके।"*
उस दिन उस दुकानदार की आंखें भर आईं। किसी ने सच ही कहा है — *"नेकी कभी बेकार नहीं जाती।"*

धीरे-धीरे इस दुकान का नाम गली में फैलने लगा — *"इंसानियत वाली दुकान।"*
गली की बुज़ुर्ग महिलाएं, अकेले रहने वाले बुज़ुर्ग, और दिहाड़ी मज़दूर अब यहां से इज़्ज़त से सामान लेते।
जो सक्षम होते, वे उस डब्बे में कुछ न कुछ डालते जाते।
कई स्कूल के बच्चे भी अपनी गुल्लक से पैसे लाकर उसमें डालते।
यह दुकान अब सिर्फ व्यापार का स्थान नहीं थी, यह एक भरोसे का मंदिर बन गई थी।
कुछ ही समय में इस दुकान की चर्चा सोशल मीडिया पर हुई। एक स्थानीय पत्रकार ने इस कहानी को अपने अख़बार में छापा —
*"जहां मुनाफा ज़रूरी नहीं, ज़रूरत की कीमत ज़्यादा है – पढ़िए इस दुकान की कहानी"*
यह लेख वायरल हो गया। कई सोशल मीडिया पेजों ने इस दुकान का वीडियो बनाया। लोग दूर-दूर से इस ‘इंसानियत वाली दुकान’ को देखने आने लगे।
पर दुकानदार ने कभी उसका फ़ायदा नहीं उठाया। उन्होंने कहा —
*"अगर एक बच्ची की भूख ने मुझे बदल दिया, तो शायद ये दुकान किसी और को भी बदल दे।"*
वो बच्ची अब रोज़ स्कूल जाती है। दुकानदार ने उसके स्कूल की फ़ीस भी गुप्त रूप से भर दी।
उसके पिता ने दुकानदार से कहा —
*"आपने उस दिन सिर्फ चावल और दाल नहीं दी थी, आपने मेरी बेटी को भरोसा दिया था कि दुनिया में अच्छे लोग अब भी ज़िंदा हैं।"*
आज भी उस दुकान के बाहर वो बोर्ड लगा है —
*"यदि आपको ज़रूरत हो और पैसे न हों, तो बेहिचक बताइए।"*
और उस डब्बे में हर दिन कोई न कोई चुपचाप कुछ न कुछ डाल कर चला जाता है।
यह कहानी उस छोटी सी बच्ची की है, लेकिन यह बदलाव की बड़ी लहर बन चुकी है।
एक व्यक्ति, एक दुकान, और एक मासूम सी आवाज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि —
*"बदलाव की शुरुआत बाहर से नहीं, दिल के भीतर से होती है।"*

22/06/2025

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