24/08/2025
नेतागिरी के पाठ
(कहानी - जय राम सिंह)
विश्वविद्यालय के सेमिनार हॉल खचाखच भरल रहे। जेतना लोग अन्दर बइठल रहथ ओतने बाहर से भीतर घुसे के जुगत में लागल रहथ। आजुक जमाना में विश्वविद्यालय के कौनो सेमिनार में एतना भीड़ जुटनाई अपने आप में आश्चर्यजनक घटना हय। ई भीड़ स्वाभाविक रहे, ऑर्डर देके बोलाएल या पइसा देके बोलाएल भीड़ नs रहे। सब लोग प्रोफेसर शर्मा के सुने लेल उत्सुक रहथ। प्रोफेसर शर्मा आईआईएम अहमदाबाद के नामी-गिरामी प्रोफेसर हतन। नेतृत्व आ प्रबंधन शास्त्र के आधिकारिक विद्वान मानल जाइछन। देश-विदेश में हुनकर नाम के धूम मचल हय। कए गो विदेशी विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर हतन। ओहे प्रोफेसर शर्मा आई के सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप निमंत्रित रहथ। सेमिनार के विषय रहे - "अच्छा नेता कइसे बनल जाए"।
भीड़ के सूचना कुलपति महोदय के मिल गेल रहे। भीड़ के समाचार से हुनका अंदर के प्रशासक जाग गेल। प्रोफेसर शर्मा से संपर्क कs के तुरंते एगो निर्णय ले लेलन। निर्णय के अनुसार सेमिनार के निःशुल्क कs देल गेल। निःशुल्क सेमिनार में प्रोफेसर शर्मा के दस मिनट के भाषण होएत आ ओकरा बाद कार्यक्रम समाप्त हो जाएत। दुपहरिया के बाद ओहे हॉल में ओहे विषय पर प्रोफेसर शर्मा कार्यशाला लेतन । कार्यशाला में भागीदारी सशुल्क होएत जेक्कर फीस सौ रुपइया होएत। फीस सिर्फ ऑनलाइन भराएत। नगद फीस स्वीकार नs कएल जाएत ।
कुलपति महोदय के निर्णय सुन के भीड़ कम होए लागल। अधिकांश लोग के कहनाम रहे जे निःशुल्क भाषण में खाली बतबनउअल होएत। असली बात तs कार्यशाला में होएत। सौ रुपइया के सवाल अपना जगह पर कायम रहे। धीरे-धीरे भीड़ नियंत्रण में आ गेल।
अमरेश ओहे विश्वविद्यालय के एम. ए (राजनीति विज्ञान) के छात्र रहे। गरीब घर से रहे। ओकरा बेसिक फोन में नेट-बैंकिंग आ यूपीआई के सुविधा नs रहई। दोसरा से फीस भरवनाई अप्पन स्वाभिमान के खिलाफ समझइत रहे। पूरा मन रहला के बावजूद ऊ कार्यशाला के लेल रजिस्ट्रेशन नs करा पएलक। लेकिन विषय एतना आकर्षक आ उपयोगी रहे कि ओक्कर मन हुआँ से जाए के नs करे। कारणो साफ रहे। अमरेश राजनीति विज्ञान के छात्र रहे। भारत जइसन लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक मूल्य के प्रचार-प्रसार बहुत्ते ज़रूरी हय। तमाम महाविद्यालय आ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के चुनावी व्यवस्था के इहे उद्देश्य हय। ई अलग बात हय कि लोकतांत्रिक मूल्य आ नेतागिरी अल्लग-अल्लग चीज हय। लेकिन समाज में दुन्नों के पर्यायवाची मानल जा रहल हय।
आजुक जमाना में नेतागिरी से बढ़के नs कोई नौकरी हय आ नs रोजगार हय। नेतागिरी अइसन धंधा हय जहाँ नs डिग्री के जरूरत हय आ नs पूँजी के। धंधा डूबे के जोखिम नs के बराबर, मतलब अनबिल्टा फायदा।
तय समय से सेमिनार भेल। अमरेश हॉल में बइठल रहे। प्रोफेसर शर्मा 'नेतृत्व' विषय पर भाषण देबे लगलन। भाषण देबे के क्रम में ऊ उपस्थित श्रोता लोग से पूछ देलन - "सफल नेता बने के लेल कौन चीज सबसे जादे ज़रूरी हय?" । जवाब देबे के लेल बहुत्ते हाथ उठ गेल। फेराफेरी सब के जवाब देबे के मौका मिलल। कोनो कहलक जे सफल नेता के पास 'आदर्श' के होनाई सबसे जादे जरूरी हय। कौनो कहलक जे सफल नेता में 'ईमानदारी' के होनाई सबसे जादे ज़रूरी हय। अइसहीं अलग-अलग लोग द्वारा 'विकास', 'परोपकार', 'दयालुता', आदि भी कहल गेल। सब जवाब सुन के प्रोफेसर शर्मा मुस्कुरा देलन -"अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स", मतलब कि 'सफल नेता के पास जनाधार के होनाई सबसे पहिला ज़रूरत हय' ।
प्रोफेसर शर्मा के भाषण अद्भुत रहे। श्रोता लोग थई-थई हो गेलन। सेमिनार समाप्त भेल। सब लोग चल गेलन। बहुत्ते लोग के कार्यशाला में रजिस्ट्रेशन भेल रहे। जल्दी-जल्दी लंच निपटा लेनाई ज़रूरी रहे।
अमरेश के कार्यशाला में जाए के नs रहई। सेमिनार से निकल के धीरे-धीरे अप्पन हॉस्टल के तरफ बढ़ गेल। ओकरा मन में प्रोफेसर शर्मा के बात हरहोर मचएले रहे - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"। अमरेश के अब कार्यशाला छूटे के मलाल नs रहे। ओकरा हाथ में एगो बड़का चाभी आ गेल रहे - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"।
रस्ते में मेस रहई। मेस खचाखच भरल रहई। अमरेश सोचलक जे भीड़ छँटला पर लंच करनाई ठीक रहत। अनमना मन से आगे बढ़ गेल। सामने सुभाष चउक रहे। चउक पर एगो पान के गोमटी के सामने कुछ लम्पट लोग जमा रहे। ऊ जगह के एगो मनचला ब्रजेश अप्पन 500 सीसी के बुलेट फटफटिया पर बइठल रहे। ब्रजेश ओहे जगह के एगो करोड़पति ठेकेदार के एकलौता बेटा रहे। ब्रजेश के चारों तरफ से घेर के ओक्कर चाटुकार दोस-महीम जमा भेल रहे। ब्रजेश के हर बात पर ओक्कर दोस सs जोर से ठहक्का लगा देबे। दृश्य साफ-साफ कहइत रहे कि ऊ भीड़ के नेता ब्रजेशे रहे। अमरेश के फेर से प्रोफेसर शर्मा के बात इयाद पड़ गेल - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"।
- "हूँह! अइसने भीड़ के नाम जनाधार हय?" अमरेश अपने-आप से ई सवाल पूछलक।
- "नs रे, एक्कर नाम जनाधार नs हय, लालचाधार हय। लालच जब तक फल-फूल रहल हय, तब तक ब्रजेश नेता हय। एक बेर लालच हटे दे, फेर देखिहे कि कोन केक्कर नेता बनइअ।" अप्पन अंतरात्मा से मिलल जवाब से अमरेश संतुष्ट हो गेल।
अचानक अमरेश के नजर पान के गोमटी के ठीक ऊपर लगल एगो नया होर्डिंग पर पड़ल। होर्डिंग पर मोट-मोट अक्षर में लिखल रहे -"बेस्ट लुकिंग डॉग कंटेस्ट" । ऊ बोर्ड पर ऊ शहर में होएवाला 'सर्वश्रेष्ठ पालतू कुत्ता' प्रतियोगिता के पूरा जानकारी देल गेल रहे। ई प्रतियोगिता अगिले दिन रोटरी क्लब के मैदान में होएवाला रहई। प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार पचास हजार के, द्वितीय चालीस हजार के आ तृतीय तीस हजार के रक्खल गेल रहे। दस-दस हजार के दू गो सांत्वना पुरस्कारो के जानकारी देल गेल रहई।
अमरेश ओहे जगह से लउट गेल। मेस तब तक खाली हो गेल रहई। भरपेट लंच खएलक आ अप्पन रूम में चल गेल। अब ओक्कर मन दू गो बात से बेचैन रहsई - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स" आ "बेस्ट लुकिंग डॉग कंटेस्ट" । अमरेश कुछ सोचइते-सोचइते बिछौना पर पसर गेल। अचानक हड़बड़ा के उठल आ सामने के टेबल पर जोर से मुक्का मारलक - "येस! येस! कम से कम दस हजार पक्का" ।
अमरेश के हॉस्टल में एगो कुतिया रहइत रहई। गाहे-बेगाहे हॉस्टल के लरिका सs ओकरा कुछ खाए के लेल दे देइत रहे। कुत्ता जात के एगो सुभाओ हय कि ऊ आदमी के संगति के बिना नs रह सकइअ। हॉस्टल के सब लरिका सs से ऊ कुतिया घुलल-मिलल रहइत रहे। अमरेश कहईं से एगो सिक्कर के उपाय कs लेलक।
रोटरी क्लब के मैदान में अच्छा - खासा भीड़ जुटल रहई। मैदान के एक तरफ मंच सजाएल गेल रहई। एक तरफ निर्णायक मंडल अप्पन आसन पर जमल रहे। सामने वीडियोग्राफर लोग के लेल तख्था के प्लेटफॉर्म बनल रहई। कुछ टीवी चैनल पर ई प्रतियोगिता के लाइव प्रसारण होइत रहे। एकाएकी शहर के जानल-मानल कुत्ताप्रेमी लोग अप्पन - अप्पन कुत्ता लेले मंच पर जाइत रहथ। मंच पर दू मिनट हुनका देल जाइत रहे अप्पन कुत्ता के विशेषता बताबे के लेल।
एक से बढ़के एक सजल-धजल कुत्ता अप्पन सजल-धजल मालिक अथवा मालकिनी के साथे मंच पर फेराफेरी चढ़े लागल। कोई कुत्ता एल्शीशियन रहे, कोई जर्मन शेफर्ड रहे, तs कोई लैब्राडोर, बुलडॉग, साइबेरियन हस्की, बीगल, गोल्डन रिट्रीवर, रोटवीलर, डोबरमैन, पिटबुल... आदि आदि सुनल - अनसुनल प्रजाति के रहे। केकरो खँसी पसंद रहे, केकरो मुर्गा तs केकरो कुच्छो। कोई कुत्ता चश्मा पेन्हले आबे, तs कोई टोपी पेन्हले आबे। ई तरह से कुत्ता प्रदर्शनी अप्पन पूरा शवाब पर रहे। उपस्थित जन-समुदाय हर कुत्ता के विशेषता देख के मुग्ध हो जाए आ ताली बजाके स्वागत करे।
अचानक एगो नौजवान एगो देसी कुतिया के सिक्कर में बान्हले ओकरा घींचइत मंच पर चढ़ गेल। नs ई कुतिया कौनो तरह के मेक-अप कएले रहे आ नs ओकरा लाबेवाला ओक्कर नौजवान मालिक कौनो सूट-बूट में रहे। ई अमरेश रहे जे अप्पन हॉस्टल के कुतिया के बान्ह के ले आएल रहे। अमरेश जइसहीं अप्पन कुतिया के घींच के रैम्प पर खड़ा कएलक, ओइसहीं उपस्थित जन-समुदाय जोर से हँस पड़ल। धीरे-धीरे ठहक्का के आवाज कम भेल लेकिन उपहास के स्थिति जस के तस रहे। आयोजक लोग के पित्त रॉकेट के तरह ऊपर चढ़ल जाइत रहे।
- "अपने सब लोग शांत काहे हो गेली, हँसल जाओ, जोर से हँसल जाओ।" माइक पर अमरेश के आवाज में काफी गंभीरता रहे।
उपस्थित जन-समुदाय एकदम शांत हो गेल। अमरेश माइक पर बोले लागल।
- "ई मंच पर हर विदेशी कुत्ता के लेल ताली बजल, लेकिन ई देसी कुतिया के उपहास मिलल। काहे? ई लेल कि ई देसी हय? देश के हर कोना में पाएल जाइअ ? ई कुतिया के खूबी कइसे गिनाऊ? एतने कम हय कि ई देसी हय?"
पूरा मैदान में नीरव सन्नाटा पसर गेल।
- "कहल जाइअ कि अप्पन गली में कुत्तो शेर होइअ। लेकिन ई पूरा सच नs हय। ओहे कुत्ता शेर होइअ जेकरा हर घड़ी शेर होए के एहसास कराएल जाइअ। ई बेचारी लावारिस के कोन एहसास कराएत कि इहो शेरनी हय?"
अब पूरा जन-समुदाय श्वाँस रोक के अमरेश के बात सुनsइत रहे।
- "हम सs अप्पन जुट्ठा-कुट्ठा ई कुतिया के आगे फेंक के उपकार देखाबे लगइछी। हमरा बताएल जाए कि विदेशी कुत्ता देसी कुत्ता से जादे वफादार होइअ की? पच्छिम के लोलुपता में हम सs एतना आन्हर हो गेल हती कि अप्पन धरोहर पर गर्व करनाई भुला गेली। स्थिति ई हो गेल हय कि अब अप्पन देश के कौनो चीज हमरा सs के श्रेष्ठ नs लगइअ।"
सारा टीवी कैमरा आ मोबाइल के फोकस अब सिर्फ अमरेश आ ओक्कर कुतिया पर रहे। अमरेश जारी रहल।
- "हम सs दिन के शुरुआत टूथपेस्ट से करइत-करइत नीम के दतुअन भुला गेली। ओहे नीम के दतुअन यूरोप के मॉल में अब बिका रहल हय। हम सs वेद-पुराण-उपनिषद के दकियानूसी बूझे लगली आ विदेश के लोग ओकरे पर फिदा भेल हय। शेक्सपियर के पढ़े में कोई हरजा नs हय लेकिन कालिदास, तुलसीदास आ सूरदास के कीमत पर नs पढ़े के चाही। ई लोग देश के धरोहर हतन।"
एतना कहइत अमरेश कुतिया के सिक्कर ऊपर उठएलक आ जोर से बोलल - भारतमाता के...
उपस्थित जन-समुदाय के आवाज से आकाश पट गेल - जय । वन्दे.. मातरम् । दुइए मिनट में रोटरी क्लब मैदान के पूरा वातावरण एकदम से बदल गेल। भारतमाता के जय आ वन्दे मातरम् के जयघोष पूरा आसमान के गुंजायमान कs देले रहे।
हाथ में कुतिया के सिक्कर लेले अमरेश मंच से उतरइत रहे। तनिका देर पहिले सब ओकरा तिरस्कार आ हिकारत के नजर से देखइत रहथ, अब श्रद्धा, सम्मान, देशप्रेम आ प्रशंसा के नजर से ओकरा देखल जाए लागल । मंच से अमरेश के उतरनाई अइसन लगइत रहे जइसे साक्षात् भारतमाता विदा हो रहल होअथ।
समारोह स्थल से जब अमरेश अप्पन कुतिया के ले के बाहर निकलल तब कुतिया के गर्दन में एगो माला रहे, अमरेश के हाथ में एगो मिठाई के डिब्बा आ एगो लिफाफा जे में पचास हज़ार रुपइया के नगद प्रथम पुरस्कार रहे।
अमरेश कुतिया के ले के हॉस्टल आएल। कुतिया के सिक्कर से आजाद कs देलक आ मिठाईवाला डिब्बा कुतिया के सामने खोल देलक। कुतिया मिठाई खाए लागल। लिफाफा खोल के गिनलक - पाँच-पाँच सौ के सौ गो करारी करेंसी नोट रहे। कुतिया कृतज्ञ भाव से मिठाई में डूबल रहे आ अमरेश खड़ा-खड़ा मुस्कुराइत रहे। अप्पन रूम में जाए से पहिले कुतिया के गर्दन में लटकइत माला के तोड़ के पॉकेट में रख लेलक । रूम में पाँव रखते अमरेश जोर से चिकरल - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"। आई अमरेश सफल नेतागिरी के पहिला आ सबसे जादे ज़रूरी पाठ पढ़ के ओक्कर सफल प्रयोग पर इतराइत रहे ।
(समाप्त)
© जय राम सिंह (24.08.2025)