Āppan Māṭī

Āppan Māṭī " जागऽ हो बज्जिका के सूतल निफिक्किर!" "

जय बज्जिका। जय बिहार। जय भारत।
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©भागवत अनिमेष झा।

जय बज्जिका!!जय बज्जिकांचल
'संघे शक्ति कलौयुगे'

ुरूज ! ीस...!
�� ( बज्जिका विमर्श ) ��
हमरा सब के हीनता के भाव से उबरे के पsरत । बज्जिका लिखे आ बोलेबाला के लोग हीन दृष्टि से देखइअ। दोसरा तs दोसरा , अप्पन बज्जिका बोलेबाला लोग भी मजाक उरबइअ।
अप्पन घर में बज्जिका के अइसन अपमान ! एगो प्रबुद्ध रचनाकार के मुँह से सुनली : " बज्जिका में किताब छपवा के ठेंगा मिलत ? सुनू ! गोइठा में घीऊ न स

ोखाऊ। सीधे-सीधे राष्ट्रभाषा में लिखू। अपने बन्हिया लिखइले । अच्छा स्कोप रहत हिंदी में। ...सुनू ! अगर जादे लोकभाषा में लिखे के कीड़ा दिमाग में हए , तs मैथिली में लिखू। तनियक मेहनत करब आs परिणाम बन्हिया आएत। "

हम हिंदी , अंग्रेजी , फ्रेंच ,मैथिली , भोजपुरी चाहे बुंदेलखंडी में हाथ-पैर मारू तs बहुत बन्हिया , बाकी अप्पन मातृभाषा बज्जिका में लिखू तs बीस गो बखेरा ! ई कूपमंडूक सोच से हमरा सब के बाहर निकले के पsरत। दोसर बात कि कुछ भाईलोग सन्देह प्रकट कयलन कि अपने तs झाजी ही , तs बज्जिका के लेखक कइसे हो गेली ? ई बज्जिका-प्रेम अचानक कहाँ से उमर पsरल ? हमरा उनका अप्पन खनदान के इतिहास - भूगोल फरिया कs बताबे के परइअ। बताबे के परइअ कि बज्जिकांचल में आई से १५० साल पहिले हम्मर पूर्वज अयलन । .. ई सवाल कोई ग्रियर्सन से न कयलक कि बिहार के हर लोकभाषा आ लोकजीवन के तू काहे अध्ययन कयल ? संकुचित सोच बज्जिका के संकुचित दायरा में सीमित कर के रक्खत। बज्जिका के बकरी के बच्चा के तरह दउरी से मून कs रक्खे के जरूरत न हए। एकरा झाँपू मत ,बाहर निकालू। हम भोजपुरी में भी गीत लिखली , कोई सवाल न कयलक। बज्जिका में लिखब तs सवाल काहे करब ? हम्मर जे क्वालिटी हए , ऊ कोनो भाषा में सामने आएत । कुछ अइसने संकीर्णता के कारण मैथिली कुछ जिला तक सिमट कs रह गेल हs। ई हम्मर टिप्पणी न हए , मैथिली के पैघ चिंतक के मंच से सार्वजनिक चेतावनी के वचन हए।

एगो आउर निवेदन कि नयका पीढ़ी के बज्जिका बोल-बचन आ लेखन से जोरू। एकरा लेल अपडेटेड लेखन के जरूरत हए। नयका पाठक के रुचि के हिसाब से आई के चुनौती से भिड़न्त करे के पsरत।
" कहियो के बात न करू , आजकल के बात करू
कहाँ रुक गेल इन्किलाब , तहकीकात करू। "

जइसे रामजी के लेल सेतुबंध रामेश्वरम बनल रs , तs रामजी गिलहरी के भी प्रशंसा कयलन रs। बज्जिका के बिकास के लेल छोटगर प्रयास के भी सराहना करे के चाही। उत्साह न बढ़बई तs अभियान फ्लॉप कर जाएत। जइसे तुलसी के छोट आ बर पत्ता समान रूप से भगवान शालिग्राम के स्वीकार होइछई ओइसहीं सब लेखन के स्वीकार करू। सबसे अंतिम फैसला तs जनता-जनार्दन कsरत। ओकरा लेल जनता के पास जाए के जरूरत हए। जन-समस्या आ जनांदोलन से जुरे के पsरत। नाखून कटवा कs शहीद बने से काम न चsलत ।

बज्जिका के काम में बहुत्ते विद्वान आ प्रतिभाशाली लोग लगल हतन। हमरा बज्जिका के नया सूर्योदय दिखाई पsर रहल हs। बज्जिका अप्पन समस्त बेरी तोरत। एक दिन पीपर के नयका ललछौंह पत्ता अइसन मोन के हरसित कsरत।बज्जिका एक दिन सृजन के सागर में अप्पन देसी रङ घोरत। हर बज्जिका भाषी गर्व के साथ बज्जिका बोलत। बज्जिका के जननाद से राज-सिंहासन भी डोलत।
" सुन ले रे अन्हरिया ! भेलऊ फरीछ
उगतन सुरूज , जय जगदीस !

24/08/2025

नेतागिरी के पाठ
(कहानी - जय राम सिंह)

विश्वविद्यालय के सेमिनार हॉल खचाखच भरल रहे। जेतना लोग अन्दर बइठल रहथ ओतने बाहर से भीतर घुसे के जुगत में लागल रहथ। आजुक जमाना में विश्वविद्यालय के कौनो सेमिनार में एतना भीड़ जुटनाई अपने आप में आश्चर्यजनक घटना हय। ई भीड़ स्वाभाविक रहे, ऑर्डर देके बोलाएल या पइसा देके बोलाएल भीड़ नs रहे। सब लोग प्रोफेसर शर्मा के सुने लेल उत्सुक रहथ। प्रोफेसर शर्मा आईआईएम अहमदाबाद के नामी-गिरामी प्रोफेसर हतन। नेतृत्व आ प्रबंधन शास्त्र के आधिकारिक विद्वान मानल जाइछन। देश-विदेश में हुनकर नाम के धूम मचल हय। कए गो विदेशी विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर हतन। ओहे प्रोफेसर शर्मा आई के सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप निमंत्रित रहथ। सेमिनार के विषय रहे - "अच्छा नेता कइसे बनल जाए"।

भीड़ के सूचना कुलपति महोदय के मिल गेल रहे। भीड़ के समाचार से हुनका अंदर के प्रशासक जाग गेल। प्रोफेसर शर्मा से संपर्क कs के तुरंते एगो निर्णय ले लेलन। निर्णय के अनुसार सेमिनार के निःशुल्क कs देल गेल। निःशुल्क सेमिनार में प्रोफेसर शर्मा के दस मिनट के भाषण होएत आ ओकरा बाद कार्यक्रम समाप्त हो जाएत। दुपहरिया के बाद ओहे हॉल में ओहे विषय पर प्रोफेसर शर्मा कार्यशाला लेतन । कार्यशाला में भागीदारी सशुल्क होएत जेक्कर फीस सौ रुपइया होएत। फीस सिर्फ ऑनलाइन भराएत। नगद फीस स्वीकार नs कएल जाएत ।

कुलपति महोदय के निर्णय सुन के भीड़ कम होए लागल। अधिकांश लोग के कहनाम रहे जे निःशुल्क भाषण में खाली बतबनउअल होएत। असली बात तs कार्यशाला में होएत। सौ रुपइया के सवाल अपना जगह पर कायम रहे। धीरे-धीरे भीड़ नियंत्रण में आ गेल।

अमरेश ओहे विश्वविद्यालय के एम. ए (राजनीति विज्ञान) के छात्र रहे। गरीब घर से रहे। ओकरा बेसिक फोन में नेट-बैंकिंग आ यूपीआई के सुविधा नs रहई। दोसरा से फीस भरवनाई अप्पन स्वाभिमान के खिलाफ समझइत रहे। पूरा मन रहला के बावजूद ऊ कार्यशाला के लेल रजिस्ट्रेशन नs करा पएलक। लेकिन विषय एतना आकर्षक आ उपयोगी रहे कि ओक्कर मन हुआँ से जाए के नs करे। कारणो साफ रहे। अमरेश राजनीति विज्ञान के छात्र रहे। भारत जइसन लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक मूल्य के प्रचार-प्रसार बहुत्ते ज़रूरी हय। तमाम महाविद्यालय आ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के चुनावी व्यवस्था के इहे उद्देश्य हय। ई अलग बात हय कि लोकतांत्रिक मूल्य आ नेतागिरी अल्लग-अल्लग चीज हय। लेकिन समाज में दुन्नों के पर्यायवाची मानल जा रहल हय।

आजुक जमाना में नेतागिरी से बढ़के नs कोई नौकरी हय आ नs रोजगार हय। नेतागिरी अइसन धंधा हय जहाँ नs डिग्री के जरूरत हय आ नs पूँजी के। धंधा डूबे के जोखिम नs के बराबर, मतलब अनबिल्टा फायदा।

तय समय से सेमिनार भेल। अमरेश हॉल में बइठल रहे। प्रोफेसर शर्मा 'नेतृत्व' विषय पर भाषण देबे लगलन। भाषण देबे के क्रम में ऊ उपस्थित श्रोता लोग से पूछ देलन - "सफल नेता बने के लेल कौन चीज सबसे जादे ज़रूरी हय?" । जवाब देबे के लेल बहुत्ते हाथ उठ गेल। फेराफेरी सब के जवाब देबे के मौका मिलल। कोनो कहलक जे सफल नेता के पास 'आदर्श' के होनाई सबसे जादे जरूरी हय। कौनो कहलक जे सफल नेता में 'ईमानदारी' के होनाई सबसे जादे ज़रूरी हय। अइसहीं अलग-अलग लोग द्वारा 'विकास', 'परोपकार', 'दयालुता', आदि भी कहल गेल। सब जवाब सुन के प्रोफेसर शर्मा मुस्कुरा देलन -"अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स", मतलब कि 'सफल नेता के पास जनाधार के होनाई सबसे पहिला ज़रूरत हय' ।

प्रोफेसर शर्मा के भाषण अद्भुत रहे। श्रोता लोग थई-थई हो गेलन। सेमिनार समाप्त भेल। सब लोग चल गेलन। बहुत्ते लोग के कार्यशाला में रजिस्ट्रेशन भेल रहे। जल्दी-जल्दी लंच निपटा लेनाई ज़रूरी रहे।

अमरेश के कार्यशाला में जाए के नs रहई। सेमिनार से निकल के धीरे-धीरे अप्पन हॉस्टल के तरफ बढ़ गेल। ओकरा मन में प्रोफेसर शर्मा के बात हरहोर मचएले रहे - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"। अमरेश के अब कार्यशाला छूटे के मलाल नs रहे। ओकरा हाथ में एगो बड़का चाभी आ गेल रहे - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"।

रस्ते में मेस रहई। मेस खचाखच भरल रहई। अमरेश सोचलक जे भीड़ छँटला पर लंच करनाई ठीक रहत। अनमना मन से आगे बढ़ गेल। सामने सुभाष चउक रहे। चउक पर एगो पान के गोमटी के सामने कुछ लम्पट लोग जमा रहे। ऊ जगह के एगो मनचला ब्रजेश अप्पन 500 सीसी के बुलेट फटफटिया पर बइठल रहे। ब्रजेश ओहे जगह के एगो करोड़पति ठेकेदार के एकलौता बेटा रहे। ब्रजेश के चारों तरफ से घेर के ओक्कर चाटुकार दोस-महीम जमा भेल रहे। ब्रजेश के हर बात पर ओक्कर दोस सs जोर से ठहक्का लगा देबे। दृश्य साफ-साफ कहइत रहे कि ऊ भीड़ के नेता ब्रजेशे रहे। अमरेश के फेर से प्रोफेसर शर्मा के बात इयाद पड़ गेल - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"।

- "हूँह! अइसने भीड़ के नाम जनाधार हय?" अमरेश अपने-आप से ई सवाल पूछलक।

- "नs रे, एक्कर नाम जनाधार नs हय, लालचाधार हय। लालच जब तक फल-फूल रहल हय, तब तक ब्रजेश नेता हय। एक बेर लालच हटे दे, फेर देखिहे कि कोन केक्कर नेता बनइअ।" अप्पन अंतरात्मा से मिलल जवाब से अमरेश संतुष्ट हो गेल।

अचानक अमरेश के नजर पान के गोमटी के ठीक ऊपर लगल एगो नया होर्डिंग पर पड़ल। होर्डिंग पर मोट-मोट अक्षर में लिखल रहे -"बेस्ट लुकिंग डॉग कंटेस्ट" । ऊ बोर्ड पर ऊ शहर में होएवाला 'सर्वश्रेष्ठ पालतू कुत्ता' प्रतियोगिता के पूरा जानकारी देल गेल रहे। ई प्रतियोगिता अगिले दिन रोटरी क्लब के मैदान में होएवाला रहई। प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार पचास हजार के, द्वितीय चालीस हजार के आ तृतीय तीस हजार के रक्खल गेल रहे। दस-दस हजार के दू गो सांत्वना पुरस्कारो के जानकारी देल गेल रहई।

अमरेश ओहे जगह से लउट गेल। मेस तब तक खाली हो गेल रहई। भरपेट लंच खएलक आ अप्पन रूम में चल गेल। अब ओक्कर मन दू गो बात से बेचैन रहsई - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स" आ "बेस्ट लुकिंग डॉग कंटेस्ट" । अमरेश कुछ सोचइते-सोचइते बिछौना पर पसर गेल। अचानक हड़बड़ा के उठल आ सामने के टेबल पर जोर से मुक्का मारलक - "येस! येस! कम से कम दस हजार पक्का" ।

अमरेश के हॉस्टल में एगो कुतिया रहइत रहई। गाहे-बेगाहे हॉस्टल के लरिका सs ओकरा कुछ खाए के लेल दे देइत रहे। कुत्ता जात के एगो सुभाओ हय कि ऊ आदमी के संगति के बिना नs रह सकइअ। हॉस्टल के सब लरिका सs से ऊ कुतिया घुलल-मिलल रहइत रहे। अमरेश कहईं से एगो सिक्कर के उपाय कs लेलक।

रोटरी क्लब के मैदान में अच्छा - खासा भीड़ जुटल रहई। मैदान के एक तरफ मंच सजाएल गेल रहई। एक तरफ निर्णायक मंडल अप्पन आसन पर जमल रहे। सामने वीडियोग्राफर लोग के लेल तख्था के प्लेटफॉर्म बनल रहई। कुछ टीवी चैनल पर ई प्रतियोगिता के लाइव प्रसारण होइत रहे। एकाएकी शहर के जानल-मानल कुत्ताप्रेमी लोग अप्पन - अप्पन कुत्ता लेले मंच पर जाइत रहथ। मंच पर दू मिनट हुनका देल जाइत रहे अप्पन कुत्ता के विशेषता बताबे के लेल।

एक से बढ़के एक सजल-धजल कुत्ता अप्पन सजल-धजल मालिक अथवा मालकिनी के साथे मंच पर फेराफेरी चढ़े लागल। कोई कुत्ता एल्शीशियन रहे, कोई जर्मन शेफर्ड रहे, तs कोई लैब्राडोर, बुलडॉग, साइबेरियन हस्की, बीगल, गोल्डन रिट्रीवर, रोटवीलर, डोबरमैन, पिटबुल... आदि आदि सुनल - अनसुनल प्रजाति के रहे। केकरो खँसी पसंद रहे, केकरो मुर्गा तs केकरो कुच्छो। कोई कुत्ता चश्मा पेन्हले आबे, तs कोई टोपी पेन्हले आबे। ई तरह से कुत्ता प्रदर्शनी अप्पन पूरा शवाब पर रहे। उपस्थित जन-समुदाय हर कुत्ता के विशेषता देख के मुग्ध हो जाए आ ताली बजाके स्वागत करे।

अचानक एगो नौजवान एगो देसी कुतिया के सिक्कर में बान्हले ओकरा घींचइत मंच पर चढ़ गेल। नs ई कुतिया कौनो तरह के मेक-अप कएले रहे आ नs ओकरा लाबेवाला ओक्कर नौजवान मालिक कौनो सूट-बूट में रहे। ई अमरेश रहे जे अप्पन हॉस्टल के कुतिया के बान्ह के ले आएल रहे। अमरेश जइसहीं अप्पन कुतिया के घींच के रैम्प पर खड़ा कएलक, ओइसहीं उपस्थित जन-समुदाय जोर से हँस पड़ल। धीरे-धीरे ठहक्का के आवाज कम भेल लेकिन उपहास के स्थिति जस के तस रहे। आयोजक लोग के पित्त रॉकेट के तरह ऊपर चढ़ल जाइत रहे।

- "अपने सब लोग शांत काहे हो गेली, हँसल जाओ, जोर से हँसल जाओ।" माइक पर अमरेश के आवाज में काफी गंभीरता रहे।

उपस्थित जन-समुदाय एकदम शांत हो गेल। अमरेश माइक पर बोले लागल।

- "ई मंच पर हर विदेशी कुत्ता के लेल ताली बजल, लेकिन ई देसी कुतिया के उपहास मिलल। काहे? ई लेल कि ई देसी हय? देश के हर कोना में पाएल जाइअ ? ई कुतिया के खूबी कइसे गिनाऊ? एतने कम हय कि ई देसी हय?"

पूरा मैदान में नीरव सन्नाटा पसर गेल।

- "कहल जाइअ कि अप्पन गली में कुत्तो शेर होइअ। लेकिन ई पूरा सच नs हय। ओहे कुत्ता शेर होइअ जेकरा हर घड़ी शेर होए के एहसास कराएल जाइअ। ई बेचारी लावारिस के कोन एहसास कराएत कि इहो शेरनी हय?"

अब पूरा जन-समुदाय श्वाँस रोक के अमरेश के बात सुनsइत रहे।

- "हम सs अप्पन जुट्ठा-कुट्ठा ई कुतिया के आगे फेंक के उपकार देखाबे लगइछी। हमरा बताएल जाए कि विदेशी कुत्ता देसी कुत्ता से जादे वफादार होइअ की? पच्छिम के लोलुपता में हम सs एतना आन्हर हो गेल हती कि अप्पन धरोहर पर गर्व करनाई भुला गेली। स्थिति ई हो गेल हय कि अब अप्पन देश के कौनो चीज हमरा सs के श्रेष्ठ नs लगइअ।"

सारा टीवी कैमरा आ मोबाइल के फोकस अब सिर्फ अमरेश आ ओक्कर कुतिया पर रहे। अमरेश जारी रहल।

- "हम सs दिन के शुरुआत टूथपेस्ट से करइत-करइत नीम के दतुअन भुला गेली। ओहे नीम के दतुअन यूरोप के मॉल में अब बिका रहल हय। हम सs वेद-पुराण-उपनिषद के दकियानूसी बूझे लगली आ विदेश के लोग ओकरे पर फिदा भेल हय। शेक्सपियर के पढ़े में कोई हरजा नs हय लेकिन कालिदास, तुलसीदास आ सूरदास के कीमत पर नs पढ़े के चाही। ई लोग देश के धरोहर हतन।"

एतना कहइत अमरेश कुतिया के सिक्कर ऊपर उठएलक आ जोर से बोलल - भारतमाता के...
उपस्थित जन-समुदाय के आवाज से आकाश पट गेल - जय । वन्दे.. मातरम् । दुइए मिनट में रोटरी क्लब मैदान के पूरा वातावरण एकदम से बदल गेल। भारतमाता के जय आ वन्दे मातरम् के जयघोष पूरा आसमान के गुंजायमान कs देले रहे।

हाथ में कुतिया के सिक्कर लेले अमरेश मंच से उतरइत रहे। तनिका देर पहिले सब ओकरा तिरस्कार आ हिकारत के नजर से देखइत रहथ, अब श्रद्धा, सम्मान, देशप्रेम आ प्रशंसा के नजर से ओकरा देखल जाए लागल । मंच से अमरेश के उतरनाई अइसन लगइत रहे जइसे साक्षात् भारतमाता विदा हो रहल होअथ।

समारोह स्थल से जब अमरेश अप्पन कुतिया के ले के बाहर निकलल तब कुतिया के गर्दन में एगो माला रहे, अमरेश के हाथ में एगो मिठाई के डिब्बा आ एगो लिफाफा जे में पचास हज़ार रुपइया के नगद प्रथम पुरस्कार रहे।

अमरेश कुतिया के ले के हॉस्टल आएल। कुतिया के सिक्कर से आजाद कs देलक आ मिठाईवाला डिब्बा कुतिया के सामने खोल देलक। कुतिया मिठाई खाए लागल। लिफाफा खोल के गिनलक - पाँच-पाँच सौ के सौ गो करारी करेंसी नोट रहे। कुतिया कृतज्ञ भाव से मिठाई में डूबल रहे आ अमरेश खड़ा-खड़ा मुस्कुराइत रहे। अप्पन रूम में जाए से पहिले कुतिया के गर्दन में लटकइत माला के तोड़ के पॉकेट में रख लेलक । रूम में पाँव रखते अमरेश जोर से चिकरल - "अ सक्सेसफुल लीडर मस्ट हैव फॉलोवर्स"। आई अमरेश सफल नेतागिरी के पहिला आ सबसे जादे ज़रूरी पाठ पढ़ के ओक्कर सफल प्रयोग पर इतराइत रहे ।
(समाप्त)
© जय राम सिंह (24.08.2025)

बज्जिका भाव-गीत के दुनिया सुनसान हो गेल। बज्जिका के गीत-राजकुमार आदरणीय रामानंद सिंह आई इहलोक से विदा होके दिवंगत हो गेल...
20/08/2025

बज्जिका भाव-गीत के दुनिया सुनसान हो गेल। बज्जिका के गीत-राजकुमार आदरणीय रामानंद सिंह आई इहलोक से विदा होके दिवंगत हो गेलन ।पिछला काफी दिन से बीमार रहथ, लकवो मारले रहsऐन। हुनकर जनाई भले व्यक्तिगत रूप से दैहिक तकलीफ से मुक्ति हय, लेकिन बज्जिका साहित्य के लेल बहुत्ते तकलीफदेह हय। आधा दर्जन से जादे पुस्तक के रचयिता के रूप में ऊ हमेशा ख्यातनाम रहतन। बुढ़ारी आ बीमारियो के हालत में गीत के प्रति हुनकर समर्पण आ उत्साह में कोई कमी नs रहे। तीन गो पुस्तक पर काम करsइत रहथ, लेकिन भगवान के इच्छा कुछ आउर रहे। रामानंद बाबू के बज्जिका साहित्य में योगदान बहुत्ते बड़का हय जेक्कर आकलन जरूरी हय। गीत-शिरोमणि रामानंद बाबू के स्मृति के नमन आ भावपूर्ण श्रद्धांजलि । ॐ शांतिः 🙏🙏🙏🌹

14/08/2025

काव्यशास्त्रविनोदेन
(संस्मरण)
- जय राम सिंह

आई से 36 साल पहिले, अक्तूबर 1991 के बात हए । स्वर्गीय डॉ. रामपुकार सिंह सर से भेंट करे हुनका घर जाए के रहे । डॉ. रामपुकार सिंह शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, सोरहत्था के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य (रिटायर्ड प्रिंसिपल) रहथ । हुनका से परिचय भेला जादे दिन नs भेल रहे । हमरा एगो व्यक्तिगत काम रहे जेकरा लेल बोलएले रहथ । हुनकर घर हाजीपुर में शंकर टाकीज आ कृषि उत्पादन बाजार समिति के बीच में चौहट्टा नाका के पास हय । रात भर के जागल रही । नीन टूटे ला तैयार नs रहे । लेकिन पिछला रात के सुनल एगो शेर सबेरे-सबेरे जगाइए देलक – “भूख हर दर्शन का घूँघट उतार देती है, रोटी जब सामने हो तो .......... (खाली जगह के शब्द भरनाई सारस्वतीय रूप से उचित नs हय) ।“ रामपुकार बाबू खाली पदे से रिटायर भेल रहन, अप्पन ओजस्विता से नS । हुनकर फुर्ती आ ललाट पर तेज देखते बनइत रहे । हम पहुँचली तS ऊ तैयार रहथ । हमरो चाय पिबएलन आ कहलन कि चलS । साइकिल हुएँ छोड़वा देलन । पैदले धाँङे लगलन । आगे-आगे ऊ आ पीछे-पीछे हम । हुनकर रफ्तार देख के हमरा अप्पन नौजवानी पर शक आ शर्म, दुन्नों अबइत रहे । तरिका देर ला वकील महावीर सिंह जी के घर पर रुकलन । हमरो परिचय करएलन – “उजियाएवाला नौजवान हय, कोई जरूरत होए तs बतइहS ।“ चौहट्टा पार करइते सहायक लोक अभियोजक श्री गणेश साहु जी के घरे रुकलन । हुअऊँ ओहे डॉयलॉग - “उजियाएवाला नौजवान हय, कोई जरूरत होए तs बतइहS ।“ चौहट्टा से पच्छिम हम कभियो गेल नs रही । ऊ इलाका बिल्कुल अनजान रहे । सड़क के दुन्नों तरफ के घर के बनावट देख के एतना जरूर बुझाए जे पुरनका हाजीपुर एनहीं बसल रहल होएत । ऊ इलाका के बारे में हमरा एतने पता रहे कि चौहट्टा से तनिका दक्खिन जाके फेर पूरुब जाएवाला सड़क हम्मर संगीत के गुरु उस्ताद नूर मोहम्मद ‘नूर’ साहेब के घर तक मीनापुर जाइअ । हम सs गणेश साहु जी के घर से आगे बढ़ली । रामपुकार बाबू चलइत रहथ आ हम घिंसियाइत रही । कुछ दूर के बाद एगो कोलकी (पतरा गली) में घुस गेलन । एगो घर के सामने रुक के हाँक देलन – “ओझा जी हैं क्या ?” उघारे देहे पेट के उप्पर तक लुंगी लपेटले एगो अधबैस आदमी प्रकट भेलन । अचानक रामपुकार बाबू के देख के सकपका गेलन आ अप्पन हुलिया के बारे में सोच के शरमाए लगलन । अन्दर कुछ देर बइठकी भेल । नेहरू युवा केन्द्र के कोई महत्वपूर्ण गतिविधि पर चर्चा होइत रहे । रामपुकार बाबू बोलइत रहलन आ ओझा जी कागज पर ओकरा लिखइत रहलन । चलइत-चलइत हमरो परिचय फेर से ओइसहीं करएलन - “उजियाएवाला नौजवान हय, कोई जरूरत होए तs बतइहS ।“ तीन जगह से सकारात्मक संकेत हमरा मिल गेल रहे । ई सोच के गेल रही कि कम से कम एक्को जगह काम बन जाएत तs ठीक रहत । सोचला से जादे मिल गेल रहे । हमरा मन में लागे लागल कि अब लउट जएतन । लेकिन बरका-बरका लोग के बारे में अन्दाज लगानाई एतना आसान नs होइअ । कोलकी के दिशा में आगे बढ़ला पर कुछ चौड़ा सड़क मिलल । फेरु एगो घर के सामने रुकलन – “श्रीकान्त बाबू हैं क्या” ? “जी, जी, बिल्कुल हैं, रिटायर हो गए हैं, अब कहाँ जाएँगे ?” श्रीकान्त बाबू प्रकट भेलन - गोर-भुर्राक, हिनके उमिर के देदीप्यमान व्यक्तित्व । पता चलल कि श्रीकान्त बाबू बिहार प्रशासनिक सेवा से सहायक समाहर्ता पद से हाले-फिलहाल रिटायर भेल हतन । बइठ के दुन्नों रिटायर्ड बुद्धिजीवी बतियाए लगलन । हमरो परिचय करएलन - “उदीयमान नौजवान है, कोई जरूरत हो तो बताइएगा ।“ एमरी परिचय हिन्दी में भेल काहे कि दुन्नों लोग के बातचीत हिन्दीए में होइत रहे । तनिके देर में अन्दर से एगो आउर आदमी प्रकट भेलन । रामपुकार बाबू के प्रणाम कएलन । हुनका देखते हम अवाक् रह गेली । ई तs पिछला रात के कवि-सम्मेलन के आयोजक हतन !

आसिन पूर्णिमा के दिन हाजीपुर के किरण-मंडल हर साल कवि-सम्मेलन करsबइत रहे, जेक्कर नाम कौमुदी महोत्सव रहे । हाजीपुर में जंक्शनो पर कौमुदी महोत्सव होइत रहे । हम्मर संगीत-गुरु एक दिन बतएले रहथ कि मौका मिलतsओ तs कचहरी मैदान में असली कौमुदी महोत्सव देखे-सुने जइहs, देश भर के नामी-गिरामी कवि-शायर लोग के सुने के मौका मिलतsओ । हमरा पास तs मौके-मौका रहे, छात्र-जीवन में मौका के कोन कम्मी ? ओहो ऊ ज़माना में ? आजुक ज़माना रहल होइत तs कह सकइत रही कि सोशल-मीडिया से फुर्सत मिलनाई मुश्किल हय । हृष्ट-पुष्ट, दोहरा बदन आउर आत्मविश्वास से लबरेज । पता चलल कि हिनके नाम डॉ. सिद्धिनाथ मिश्र हय । ई नाम पिछला रात के कार्यक्रम में बहुत्ते बेर सुनले रही । लेकिन कोन हतन से नs जानइत रही । अचानक हम बोल पड़ली – “शानदार कवि सम्मेलन के लिए आपको बधाई ।“

- अच्छा, तो आप भी थे वहाँ ? कैसा लगा ? कौन-कौन से कवि आपको अच्छे लगे ?
- सर, एक से बढ़कर एक कवि थे । किस-किसका नाम गिनाऊँ ! लेकिन सच कहूँ तो नीरज जी (गीतऋषि स्व. गोपालदास नीरज) अलग ही थे । उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और सबसे बढ़कर प्रस्तुति का उनका अन्दाज, कुल मिलाकर अद्भुत था ।

स्कूल में हम सs नीरज जी के कविता “रोनेवाला ही गाता है....” पढ़ले रही जे हमरा अभी तक कंठस्थ हय । अइसन महापुरुष के साक्षात् काव्य-पाठ करइत देखनाई आ सुननाई हमरा जीवन के सबसे चमकदार घटना रहे । मने-मन हम गुरुजी के धन्यवाद देइत अप्पन सौभाग्य पर इठलाइत रही कि बिच्चे में श्रीकान्त मिश्र बोले लगलन – “लेकिन नीरज जी से मैं निराश हूँ । इनके गीतों और कविताओं में पहले जैसी गहराई अब नहीं मिलती ।“ अब सिद्धि बाबू हुनका टोकलन – “कैसी गहराई आप कविता में खोजते हैं जो आपको अब नहीं मिलती ?”

- “वही कविता कविता है जिसमें कविधर्म का निर्वहन होता हो, अमङ्गल से मङ्गल तक की रसमयी यात्रा होती हो, मनुष्य का रसमय बौद्धिक परिष्कार होता हो । मंच की कविता ताली बटोरने के लिए होती है, कविधर्म के निर्वहन के लिए नहीं । नीरज जी मंचीय कवि हैं, ताली बटोरेंगे ही ।“ श्रीकान्त बाबू के तर्क काफी दमदार रहे ।

सिद्धियो बाबू काव्य-कला के धुरंधर रहथ । श्रीकांत बाबू के ई बात के सीधे-सीधे मान लेनाई हुनका स्वीकार्य नs रहे । पिछला रात नीरज जी द्वारा सुनाएल एगो गीत के कुछ अंश सुनाबे लगलनः-

हार न अपनी मानूँगा मैं !

चाहे चिर गायन सो जाए,
और ह्रदय मुरदा हो जाए,
किन्तु मुझे अब जीना ही है
बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !
हार न अपनी मानूँगा मैं !

- बताइए कि इस गीत में कौन-कौन से कवि-धर्म अथवा गीत-धर्म का निर्वहन नहीं हुआ ?

एकरा बाद तS दुन्नों लोग के काव्य-मीमांसा परवान चढ़े लागल । देखते – देखते भरतमुनि, भामह, उद्भट, पिङगल, दण्डी, रूद्रट, राजशेखर आदि से होइत-होइत वाल्मीकि, कालिदास, तुलसीदास आदि-आदि महाकवि लोग के दर्शन होए लागल । बीच-बीच में निराला, प्रसाद, महादेवी, दिनकर जइसन कवि लोग के भी दर्शन होए लागल । नs श्रीकान्त बाबू मानेवाला रहथ आ नs सिद्धि बाबू । रामपुकार बाबू बीच – बीच में हमरा चिउँटी काट के इशारा करथ कि चुप्पेचाप सुनइत रहS, कुच्छो बोलिहS नS, अइसन दुर्लभ काव्यशास्त्रार्थ दुनिया में कहईं नs मिलतsओ । श्रीकान्त बाबू पुरनका एम.ए रहथ आ सिद्धि बाबू ट्रिपल एम.ए, पी.एच.डी । लगभग घंटा भर शास्त्रार्थ चलल होएत । अन्त में सिद्धि बाबू उठ के चच्चा के गोर लगलन आ चच्चा हुनका ढ़ेर सारा आशीर्वाद देइत गला से लगा लेलन । चच्चा अप्पन भतीजा पर गर्वान्वित रहथ आ भतीजा अप्पन चच्चा पर । दुन्नों गोटे एक दोसर के विद्वत्ता के कायल रहथ । अप्पन-अप्पन ज्ञान के घमंड दुन्नों गोटे के छुइयो न पाएल रहे । ई दुन्नों चच्चा-भतीजा कबीरदास जी के “जस के तस धर दीनी चदरिया” से बहुत्ते आगे निकल के “ज्ञान-चमक से रङ्गारङ्ग कर दीनी चदरिया” तक पहुँच गेल रहथ । ऊ दृश्य एतना जीवंत आ एतना सारस्वत रहे कि आई तक हमरा मन-मस्तिष्क में तरोताजा बनल हय । काश, ऊ ज़माना में मोबाइल रहत रs तs हम लाइव वीडियो बना लेले रहती रs । हमरा विश्वास हय कि ऊ कल्पित वीडियो कालजयी हो गेल रहत रs । आई जब नs श्रीकांत बाबू हतन आ नs सिद्धि बाबू हतन, संस्कृत के एगो श्लोक याद आ रहल हयः-

काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन च मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन वा ।।

ई श्लोक के पूर्वार्द्ध श्रीकान्त बाबू आ सिद्धि बाबू जइसन विद्या-मनीषी लोग के लेल हए तS उत्तरार्द्ध हमरा जइसन मूर्ख के लेल हय ।
© जय राम सिंह (14.08.2025)

10/08/2025

असली मर्यादा
(कहानी - जय राम सिंह)

बियाह के दू महिन्ना बाद कुसुम अप्पन पति राहुल के साथे अप्पन ससुरार आएल रहे । शहर में बियाह होए के कारण घर के कुल-देवता आ गाँव के देवी-देवता के आशीर्वाद लेनाई ज़रूरी रहे।

सँझिया पहर घर से गाँव भर के महिला-वृंद के समूह-गान के साथ पुजाई निकलल। शहर में पलल-बढ़ल कुसुम के अँचरा बार-बार सरक जाइत रहे। सास कए बेर सम्हार देलथिन । लेकिन अँचरो जिद कएले रहे। दू-तीन बेर के बाद सास अप्पन पुतोह के कान में धीरे से डाँट देलथिन - "ई गाँव हई, गाँव के मर्यादा के ध्यान रक्खे के पड़तsओ। आगे से अँचरा नs सरके के चाही।"

- "जी माँ जी ।" कुसुम एमरी बाँयाँ हाथ से अँचरा कस के पकड़ लेलक।

भोला बाबा के मंदिर, बर्हम बाबा तर होइत-होइत पुजाई भगवत्ती-थान पहुँचेवाला रहे। तभिए अचानक पुजाई में शामिल एगो अधबैस चाची गश खाके गिर पड़लsथिन। पुजाई में भगदड़ मच गेल। कौनो कहे जे पुजाइए में कोई डाइन हय, ओकरे ई काम हय । तs कोई कहे जे नएकी कनियाँ के लच्छन-करम ठीक नs हय, अबते-अबते गोतियउकी चाची के डाह देलकई, एक्कर सास के भगवाने बचत्थिन । कौनो तेसरकी के तेसरे कहानी रहे - बेचारी तीन दिन से भुखले हथिन... भगवान हिनकर पुतोह जइसन कुपातर दुश्मनो के नs दथ। तरह-तरह के कहानी कानोंकान चलइत रहे।

कुसुम के नज़र चाची पर पड़ल। चाची के दुन्नों हाथ हुनकर करेजा पर रहे। चाची लगभग बेहोश रहथिन, कभी-कभार मुँह से दर्द के कराह निकल जाइत रहsएन । बमुश्किल श्वाँस चलइत रहsएन। पूरा बदन पसीना से लथपथ भेल रहsएन। एगो महिला चिकर के बतलथिन - "हिनकर पसीना तs बर्फ लेखा ठाढ़ हय।"

अप्पन अँचरा-चुनरी एक तरफ फेंकइत कुसुम चाची के देह पर चढ़ गेल। सास के कहलक कि फोन कs के जल्दी से राहुल के कहल जाए कि ऊ अप्पन कार ले के आ जाए। अपना दम भर चिकर के बाकी महिला सs के डाँट के ऊ जगह खाली करएलक ताकि स्वच्छ हवा के कमी नs होए। कुसुम दुन्नों हाथे चाची के करेजा दबाबे आ छोड़े। तनिके देर में ऊ चाची के मुँह से अप्पन मुँह सटाके फूँके लागल। महिला-वृंद ई देख के स्तब्ध हो गेल। गाँव में आई तक कौनो नया-नवेली पुतोह अइसन तमाशा नs कएले रहे जइसन कुसुम करइत रहे । कुसुम के सास गराने जमीन में गड़ल जाथ। महिला-वृंद में तरह-तरह के कानाफूसी चले लागल। कोनो मुँह अँइठे तs कोनो अँग्रेज़ी-पढ़ल ओझा-गुनी कहे, तs कोनो डाइन कहे । एगो नवयुवती जे कुसुम के गोतियउकी ननद लगइत रहे, ऊ चाची के ऊपर पंखा से हवा करइत रहे आ कुसुम के पूरा साथ देइत रहे।

तनिका देर में चाची के श्वाँस नॉर्मल हो गेल। लेकिन करेजा में भयंकर दर्द होइत रहे। एतने में राहुल अप्पन कार ले के आ गेल। कुसुम आ ओक्कर गोतियउकी ननद, दुन्नों मिल के चाची के कार में रखलक आ राहुल के कहलक जे जल्दी से कौनो निम्मन अस्पताल पहुँचs। तूफानी गति से कार महिला-वृंद के आँख से ओझल हो गेल।

दस-पन्द्रह मिनट में कार एगो प्राइवेट अस्पताल के अंदर पहुँच गेल। आईसीयू में चाची के इलाज शुरु हो गेल।

चाची के कार से अस्पताल जाए के खबर गाँव में दावानल के तरह फइल गेल। आधा घंटा के अंदर गाँव से दर्जनों लोग अस्पताल पहुँच गेल रहे। लगभग दू घंटा के बाद अस्पताल के आईसीयू से एगो सीनियर डॉक्टर बाहर अएलन आ पूछलन - "मरीज के रिश्तेदार कोन हतन?" धुम्मन चा आगे बढ़ के कहलन - "हम मरीज के पति हती। कहल जाए, मरीज के स्थिति कइसन हय?" डॉक्टर साहेब बड़ा आत्मविश्वास आ संतुष्टि के भाव से कहलन कि मरीज के स्थिति अब नियंत्रण में हय आ ऊ खतरा से बाहर हतन।

- "खतरा? कइसन खतरा? की भेल रहे मरीज के?" धुम्मन चा एक्के श्वाँस में कए गो सवाल पूछ देलन।

- "मरीज के सीवियर हार्ट-अटैक आएल रहsएन जेकरा कारण ऊ गश खाके गिर पड़ल रहथ। चाबस हय संकटमोचक हनुमान जी जइसन ऊ समझदार आदमी के जे हिनका तुरंते सीपीआर देलन।" डॉक्टर साहेब पूछे लगलन कि सीपीआर कोन देले रहे?

धीरे से कुसुम आगे बढ़ल आ कहलक कि हम देले रही डॉक्टर साहेब, हम्मर नाम कुसुम हय !

- "चाबस कुसुम, तूँ आई समय से सीपीआर दे के एगो कीमती जान बचा लेलs।" डॉक्टर साहेब कुसुम के अप्पन आशीर्वाद से भर देलन।

गाँव के लोग 'सीवियर हार्ट-अटैक' के मतलब तs समझ गेल रहे कि ई भयानक हार्ड-फेल रहे, लेकिन सीपीआर के मतलब अभी तक केकरो समझ में नs आएल रहे। डॉक्टर साहेब लउटे लगलन तs धुम्मने चा हिम्मत कs के पूछ देलन कि डॉक्टर साहेब, ई सीपीआर के मतलब कथी होइछई, तनि फरिया के समझाबे के कृपा कएल जाए।

डॉक्टर साहेब मुस्कुरा के कहे लगलन - "सीपीआर मतलब 'कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन' होइअ । ठेठ भाषा में कहल जाए तs हृदयाघात के अवस्था में जब श्वाँस प्रक्रिया बाधित होए लगइअ अथवा रुके लगइअ तब मरीज के करेजा के जोर-जोर से तीन बेर दबा के छोड़े के चाही। अइसे करे से श्वाँस प्रक्रिया फेर से बहाल हो सकइअ। यदि करेजा दबाबे आ छोड़े से बात नs बने तs मरीज के मुँह से हवा देबे के चाही। एही प्रक्रिया के सीपीआर कहल जाइअ। निन्यानवे प्रतिशत मामला में मरीज के श्वाँस प्रक्रिया बहाल हो जाइअ आ कीमती जान बच जाइअ।"

- "बाप रे! एतना ज़रूरी चीज हय सीपीआर!" गाँव के लोग अप्पन अज्ञान से ओतना लज्जित नs रहथ जेतना नएकी पुतोह कुसुम के प्रति कहल गेल बात से। बिना जानले-बूझले कुच्छो कह देबे के आदत अब गाँव के लोग के खएले जाइत रहे । धुम्मन चा तs सीधे कुसुम के गोर पर गिर गेलन - "आई तूँ हमरा मुस्मात होए से बचा लेलs बेटी! आई से तोहर ई चच्चा तोहर कर्जदार हओ।" कुसुम अप्पन अँचरा सम्हारइत पीछे हट गेल आ फेरू आगे बढ़ के धुम्मन चा के गोर लाग के प्रणाम कएलक - "एमें कर्जदार जइसन कोई बात नs हय चाचाजी! ई तs सबके धर्म होइअ कि जान बचाएल जाए। हमरा शहर के स्कूल में सिखाएल गेल रहे कि हार्ट-अटैक के समय सीपीआर कइसे देबे के चाही। हम चाचीजी के बेहोश देखली तs स्कूल के ट्रेनिंग इयाद पड़ गेल।" एतना कहइत कुसुम धुम्मन चा के आँख पोंछे लागल।

गाँव के लोग फेराफेरी अस्पताल अबइत-जाइत रहलन। दू-तीन दिन में चाची अस्पताल से डिस्चार्ज हो गेलन। चाची के कहनाम रहएन जे हम्मर जान नएकी पुतोह बचएले हय, ओकरे साथे गाँव लउटम ।

ऊ दिन कुसुम के पुजाई अधूरा रह गेल रहे। आई फेर से नएकी पुतोह कुसुम के लेल गाँव से पुजाई निकल रहल हय। आई ऊ दिन से चौगुना जादे भीड़ हय। महिला-वृंद के समूह-गान हो रहल हय । पुजाई निकलल । पुजाई के आगू-पीछू बाल-बुतरू के झुंड चल रहल हय। धुम्मन चा अपना तरफ से एगो महङा बैण्डवाला के बोला लाएल हतन। भोला बाबा के मंदिर, बर्हम बाबा तर होइत-होइत पुजाई भगवत्ती-थान तर आ गेल । कुसुम अप्पन बाँयाँ हाथ से अप्पन अँचरा कस के पकड़ले हय कि कहीं सरक नs जाए। कुसुम के सास के नज़र पड़ल। पुतोह के हँसोत के करेजा से सटा लेलन - बेटी, तोरा जइसन पुतोह एक साथ तीन कुल के तार देइअ, हाथ हटा लs बेटी, अँचरा के सरके दहू, केतना सरकतई? असली मर्यादा बेहवार में हय, अँचरा में नs।
© जय राम सिंह (10.08.2025)

23/07/2025
आधुनिक बज्जिका भाषा आ साहित्य के आदिपुरुष : डॉ. सियाराम तिवारी[पत्रिका समीक्षा - पहरुआ (तेसरका अंक) – जय राम सिंह]राष्ट्...
08/07/2025

आधुनिक बज्जिका भाषा आ साहित्य के आदिपुरुष : डॉ. सियाराम तिवारी

[पत्रिका समीक्षा - पहरुआ (तेसरका अंक) – जय राम सिंह]

राष्ट्रीय बज्जिका भाषा परिषद् के तिमाही पत्रिका ‘पहरुआ’ के तेसरका अंक पढ़े लेल मिलल । ई अंक आधुनिक बज्जिका के शिखर-पुरुष स्मृतिशेष आदरणीय सियाराम तिवारी जी के व्यक्तित्व का कृतित्व पर आधारित हय । ई अंक में सियाराम तिवारी जी के परिजन लोग के लेख के साथे-साथ बज्जिका के अनेक विद्वान लोग के लेख प्रकाशित भेल हय । ओइसे तs सियाराम बाबू जइसन विराट कद के विद्वान के व्यक्तित्व आ कृतित्व के एक अंक में समेटनाई कौनो पत्रिका के लेल संभव नs हय, तइयो ई ज़रूरी सारस्वत प्रयास के लेल पत्रिका के संपादक-मंडल के तहेदिल से बधाई आ अभिनंदन !

ऐतिहासिकता आ पौराणिकता से लबरेज बज्जिका भाषा अप्पन पुरनका गरिमा वापिस पाबे के लेल प्रयासरत हय । भाषा-विकास के ई यज्ञ में अनगिनत विद्वान कवि, लेखक, समीक्षक, पत्रकार, बुद्धिजीवी आदि लोग ऋषि-मुनि के नाहित तपस्यारत हतन । हमरा जइसन सब बज्जिकाभाषी लोग के अरमान हय कि एक दिन हम्मर सsके मातृभाषा बज्जिका फेर से वैश्विक भाषाई धरातल पर मजगूती के साथ प्रतिष्ठित होए ।

बज्जिका भाषा पुरनका समय मे एगो समृद्ध भव्य महल के तरह रहे । कालांतर में ई महल के भव्यता में ह्रास होए लागल आ धीरे-धीरे स्थिति हियाँ तक पहुँच गेल कि बज्जिकांचले में लोग अप्पन मातृभाषा बज्जिका के बिसार देलन, उपेक्षित कs देलन । बज्जिका के भव्य-दिव्य महल के एक-एक ईंटा झरे लागल, गिरे लागल आ एक दिन ऊ भव्य महल खंडहर बन गेल । ऊ तs धन्य मनाऊ ग्रियर्सन बाबा के आ राहुल सांकृत्यायन बाबा के, जे बज्जिकाभाषी जान पएलन कि हुनकर भाषा के स्वतंत्र अस्तित्व हय जेक्कर नाम ‘बज्जिका’ हय । मातृभाषा के उपेक्षा अप्पन माई के उपेक्षा जइसन होइअ । कुछ संदर्भ में एक्कर दुखद परिणाम अप्पन माई के उपेक्षा से जादे पीड़ादायक होइअ । माई के दुरवस्था से एक परिवार या एक समाज दुखी होइअ, मातृभाषा के उपेक्षा से पूरा अंचल दुखी हो जाइअ । स्थिति के भयावहता के अंदाज ई बात से लगायल जा सकइ कि अब बज्जिकांचले में लोग के इयाद कराबे के पड़इअ कि तोहर मातृभाषा के नाम ‘बज्जिका’ हओ । कारण गिनायल जाए तs हज़ारों साल के गुलामी, पच्छिमी लोलुपता आ स्वतंत्र भारत में साजिशन कायम कएल गेल भाषाई दुराग्रह आदि ई स्थिति के लेल जिम्मेदार हय ।

उत्कर्ष आ अपकर्ष प्रकृति के नियम हय । हर महल एक दिन खंडहर बनइअ आ हर खंडहर के उद्धार एक न एक दिन ज़रूर होइअ । एहतिशाम अख्तर के एगो शेर हय – “शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है / सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से ।“ बज्जिका के अन्हार पड़ल दुनिया में चिराग बन के जे फरिश्ता अएलन हुनकर नाम रहे – सियाराम तिवारी । सियाराम तिवारी नाम के एगो चिराग से बज्जिकांचल में अनगिनत चिराग आजकल रौशन हो रहल हतन । डॉ. सियाराम तिवारी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित विश्वप्रसिद्ध शैक्षिक संस्था ‘शांतिनिकेतन’ में हिंदी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त भेल रहथ । शांतिनिकेतन जाए से पहिले सियाराम बाबू कए गो कॉलेज आ विश्वविद्यालय में प्रोफेसरी कर चुकल रहथ । सेवानिवृत्ति के बाद ऊ पटना में अप्पन शेष जिनगी कटलन । रामनरेश शर्मा जी के शब्द में “प्रो. तिवारी हिंदी के सेवा रोजी-रोटी के लेल कएलन, लेकिन बज्जिका के सेवा हमेशा मातृसेवा भाव से कएलन ।“ 27 मार्च 1964 के दिन बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना में बज्जिका भाषा और साहित्य विषय पर डॉ. तिवारी जी द्वारा देल गेल 40 पेज के ऐतिहासिक भाषण के अनुगूँज आई तक सुनाई दे रहल हय । हुनकर ई भाषण के प्रासंगिकता अभियो ओतने हय जेतना भाषण के दिन रहे । बज्जिका के सेवा में लागल प्रत्येक योद्धा के ऊ भाषण पढ़े के चाही । प्रो. सियाराम तिवारी जी के लिखल ‘बज्जिका भाषा और साहित्य’ नाम के पुस्तक वर्तमान समय में बज्जिका भाषा आ साहित्य के बाइबिल कहल जा रहल हय । आधुनिक समय में बज्जिका भाषा के लेल ई पुस्तक सबसे पहिले ईंजोरा लएलक आ अइसन लएलक जेक्कर आलोक अब तक बरकरार हय । लेकिन प्रो. तिवारी जी के ई बात के कोई गुमान नs रहे । ऊ हमेशा विनम्र रहलन । ई बात बज्जिका के आधुनिक भाषाविद लोग के सीखे के चाही जे अकारणे बिना कौनो बात के तमाम तरह के उपाधि हँसोते के फिराक में लागल रहइछन । उपाधि, सम्मान आ पुरस्कार के स्वयं चल के आबे देबे के चाही, हँसोते या दबोचे के कोशिश नs करे के चाही । सियाराम बाबू स्वयं संघर्षशीलता के प्रतिमूर्ति रहथ । वैशाली जिला के रानीपोखर के नजदीक नारायणपुर बुज़ुर्ग नामक गाँव में एगो साधारण परिवार से निकल के शांति-निकेतन के हिंदी विभागाध्यक्ष पद तक के हुनकर यात्रा के हर पड़ाव अपने-आप में एगो कहानी हय । जीवट से भरल ई कहानी के पढ़ के आई के युवा पीढ़ी ज़रूर लाभान्वित होएत ।

डॉ. आकृति चंद्रा के लेख “अब रैन भई चहुँ ओर “ सियाराम बाबू के एगो प्रेरणापुरुष के रूप में स्थापित कर रहल हय । हिंदी आ बज्जिका के मूर्धन्य विद्वान डॉ. ब्रह्मदेव कार्यी जी के लेख के एगो वाक्य – “कार्यी जी! ईंट नहीं, शब्द जोड़िए” सियाराम बाबू के दृष्टि-सामर्थ्य के प्रकटीकरण हय । ई दृष्टि-सामर्थ्य के बल पर ऊ चीन्ह लेइत रहथ कि बज्जिका के कोन घोड़ा केतना दूर तक दउर सकइअ । प्रो. (डॉ.) मंगला रानी अप्पन चच्चा के बारे में बहुत्ते भावुकता से लिखले हतन । ई लेख से अंदाज लगायल जा सकइअ कि सियाराम बाबू के परिवार में व्याप्त सात्विकता के असली कारण कथी रहे । सियाराम बाबू के परिवार से हुनकर नतनीद्वया डॉ. रिचा जी आ वागीशा जी के लेख भी सियाराम बाबू के व्यक्तित्व के कए गो मार्मिक पहलू के उजागर कर रहल हय । सियाराम बाबू ताउम्र ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के प्रतिमूर्ति रहलन । हुनकर व्यक्तित्व के ई पक्ष हरिनारायण सिंह ‘हरि’ जी के लेख में स्पष्ट झलकइअ । प्रो. (डॉ.) जंग बहादुर पांडेय के लेख ‘मुख में वेद पीठ पर तरकस’ सियाराम बाबू के अध्येता, प्रोफेसर, चिंतक आ आंदोलक बने के कहानी सहजता से बयान कर रहल हय । एही क्रम में अखौरी चन्द्रशेखर जी, रामनरेश शर्मा जी, विद्या चौधरी जी, प्रो. (डॉ.) रामप्रवेश सिंह जी आदि के लेख हय । डॉ. नवल किशोर प्रसाद श्रीवास्तव अपना ढ़ंग से सियाराम बाबू के श्रद्धा-सुमन अर्पित कर रहल हतन । डॉ. रामनरेश भक्त के लेख ‘गुन न हेरानो गुनगाहक हेरानो हय’ ज्ञान के अनश्वरता के संदर्भ में सियाराम बाबू के प्रति कृतज्ञ श्रद्धांजलि हय । पत्रिका के अंतिम पृष्ठ पर डॉ. सतीश चन्द्र भगत जी आ डॉ. प्रतिभा पराशर जी अप्पन-अप्पन श्रद्धा के काव्यात्मक अभिव्यक्ति बखूबी कर रहल हतन ।

आधुनिक बज्जिका भाषा आ साहित्य के विकास में प्रो. सियाराम तिवारी जी के योगदान के शब्द में आँकनाई संभव नs हय । वर्तमान समय में बज्जिका-अश्वमेध के सारथी के रूप में काम करइत अधिकांश योद्धा के मानसिक पृष्ठभूमि तइयार करे में प्रो. तिवारी जी के थोड़का चाहे जादे, असर ज़रूर हय । बज्जिका के खंडहर बनल महल के फेर से भव्य महल बनाबे के काम में अप्पन-अप्पन हिसाब से ईंटा, सीमेंट, बालू, छड़ आदि लेके बज्जिकासेवी लागल हतन । ‘पहरुआ’ पत्रिका ओइसने सामग्री लेके ई काम में लागल हय । आधुनिक बज्जिका भाषा आ साहित्य के आदिपुरुष प्रो. सियाराम तिवारी जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर आधारित ‘पहरुआ’ पत्रिका के ई विशेषांक ऐतिहासिक महत्व रखइअ । ई विशेषांक के सब बज्जिकाप्रेमी के पढ़े के चाही । ‘पहरुआ’ पत्रिका दिन-प्रतिदिन अइसहीं बज्जिका भाषा आ साहित्य के विकास में सफल योगदान करइत रहे, इहे शुभकामना हय ।

© जय राम सिंह (08.07.2025)

04/07/2025

कम्पोजिट लोर (लघुकथा - जय राम सिंह)

रामपुकार बाबू रिटायर्ड हेडमास्टर हतन। दू साल पहिले गाँवे के मिडिल स्कूल से रिटायर भेल हतन। अप्पन गाँव से हुनका बहुत्ते प्रेम हय। बहुत लोग सलाह देलक कि शहर में एगो छोट-मोट घर बना लिऊ। हियाँ तक कि हुनकर कनियों कोशिश कएलन। लेकिन रामपुकार बाबू पर कोई प्रभाव नs पड़ल। हुनकर कहनाम हय कि गाँव के बराबरी करनाई शहर के बूता में नs हय। खेत-खरिहान, इंडा-भिंडा, बाग-बगइचा... स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी आ सबसे ऊपर स्वच्छ लोग... कोई भाई हय, कोई बहिन, चच्चा - चाची, दोस-महीम, यार-सङहतिया... सब तs गाँवे में हय। अइसन जगह छोड़ के शहर में बसनाई बेवकूफी होएत।

रामपुकार बाबू के एगो बेटा आ एगो बेटी हएन। दुन्नों पढ़े-लिखे में एक से बढ़के एक! सबसे पहिले बेटा के नोकरी लगलएन। ऊ अमेरिका चल गेल । ऊ हुआँ गेल आ हुअईं के होके रह गेल। सुने में अबइअ कि कोनो अँगरेजनी से बिआह कs के अमेरिके में बस गेल हय। बेटियो के जब अमेरिका से बोलाहट आ गेल तs घर में चीख़-पुकार मच गेल। रामपुकार बाबू उखड़ के थर-थर काँपे लगलन। कनियाँ हदरे लगलथिन । डर रहएन कि कहईं बेटियो अमेरिके में रह गेल तs केक्कर मुँह देख के बाकी के जिनगी कट्टत? लेकिन होनिहारी के कोन टार सकइअ ?
लेकिन अंत में बालहठ जीत गेल। बेटी अमेरिका जाके माइक्रोसॉफ्ट ज्वायन कs लेलकएन ।

आई रामपुकार बाबू के ओहे एकलउती बेटी के बिआह हो रहल हय । दमादो माइक्रोसॉफ्टे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हय। बेटी ऑनलाइन ऑर्डर कs के गाँव के घर में बड़का स्क्रीनवाला स्मार्ट टीवी लगवा देले हय। ओहे टीवी में अमेरिका के लॉस एंजिलिस शहर के स्वामीनारायण मंदिर में होएवाला बिआह के जीवंत प्रसारण हो रहल हय । रामपुकार बाबू दुन्नों बेकती भोक्कार पार के कान रहल हतन आ कनइते-कनइते बेटी-दमाद के आशीर्वाद दे रहल हतन । दुन्नों के कन्नाहट सुन के भाई-गोतिया दउरल आएल। टीवी पर चलइत प्रसारण देख के हुआँ जमा भेल लोगो सs के आँख डबडबा गेल। ई सुखो के लोर रहे आ दुखो के लोर! अँग्रेज़ी में एकरे 'कम्पोजिट लोर' कहल जाइअ।
© जय राम सिंह (04.07.2025)

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842001

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