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31/08/2025

(भाग 1) – पुरानी जड़ें

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में वर्मा परिवार रहता था। परिवार में दादा जी, दादी जी, पिता जी (राजेश वर्मा), माता जी (सुनीता), और दो बच्चे – अनिकेत और राधिका थे।

दादा जी का जीवन बहुत सादा था। सुबह जल्दी उठकर पूजा-पाठ करना, घर के आँगन में तुलसी को जल देना, गाँव के लोगों से मिलना और साधारण खाना खाना – यही उनकी दिनचर्या थी। उनका मानना था कि “सादा जीवन, ऊँचे विचार” ही इंसान को सच्चा सुख दे सकते हैं।

राजेश जी कस्बे में ही एक स्कूल में अध्यापक थे। उनकी आय बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन जीवन संतुलित था। घर का वातावरण परिवारिक, प्रेम और आपसी सहयोग से भरा हुआ था।

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(भाग 2) – बदलते समय की आहट

जब अनिकेत और राधिका बड़े हुए तो उन्होंने शहर में पढ़ाई शुरू की। यहाँ से परिवार की जीवनशैली बदलनी शुरू हुई।

शहर में बच्चों को फास्ट फूड का स्वाद लग गया।

पढ़ाई के लिए मोबाइल और लैपटॉप की ज़रूरत बढ़ गई।

फैशन और ब्रांडेड कपड़ों का असर धीरे-धीरे बच्चों पर दिखाई देने लगा।

सुनीता जी ने भी महसूस किया कि अगर बच्चों को समाज में आगे बढ़ाना है तो उन्हें आधुनिक साधनों की सुविधा देनी होगी।

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(भाग 3) – पीढ़ियों का टकराव

एक दिन दादा जी ने देखा कि अनिकेत सुबह देर तक सो रहा है और नाश्ते में आलू के पराठे की जगह पिज़्ज़ा खाने की ज़िद कर रहा है।
दादा जी नाराज़ होकर बोले –
“बेटा, पिज़्ज़ा से पेट भर सकता है, लेकिन सेहत नहीं बनती। हमारी पीढ़ी ने तो दाल-रोटी खाकर भी जिंदगी जी और स्वस्थ रहे।”

अनिकेत ने जवाब दिया –
“दादा जी, अब जमाना बदल गया है। अब सब कुछ फास्ट और मॉडर्न है।”

दादी जी मुस्कुराकर बोलीं –
“बदलाव बुरा नहीं होता, लेकिन बदलाव ऐसा होना चाहिए जिसमें सेहत और संस्कार दोनों बचे रहें।”

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(भाग 4) – आधुनिक जीवनशैली का असर

धीरे-धीरे घर में बदलाव आने लगे –

टीवी और मोबाइल पर समय बढ़ गया।

बाहर के खाने की आदत ने बच्चों की सेहत बिगाड़नी शुरू की।

देर रात तक पढ़ाई और इंटरनेट इस्तेमाल करने से नींद पूरी नहीं होती थी।

दादा-दादी को लगता कि परिवार में अब साथ बैठकर खाना खाने और बातचीत करने का समय बहुत कम हो गया है।

राजेश जी भी परेशान थे। वे चाहते थे कि बच्चे आधुनिक भी बनें और संस्कारी भी रहें।

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(भाग 5) – सीख का पल

एक दिन अनिकेत बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने जांच के बाद कहा –
“आपके बच्चे की तबियत ठीक नहीं है। जंक फूड और अनियमित जीवनशैली इसकी बड़ी वजह है। उसे संतुलित आहार, योग और नियमित दिनचर्या की सख्त ज़रूरत है।”

यह सुनकर परिवार चिंतित हो गया। तब दादा जी ने सभी को बैठाकर कहा –
“देखो, आधुनिकता अपनाना अच्छी बात है, लेकिन अपनी जड़ों से कट जाना सही नहीं। अगर स्वास्थ्य और परिवारिक जुड़ाव नहीं रहेगा तो दौलत और शोहरत का भी कोई मतलब नहीं है।”

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(भाग 6) – संतुलन की ओर कदम

उस दिन से परिवार ने कुछ छोटे-छोटे बदलाव करने शुरू किए:

सुबह सभी मिलकर आँगन में योग करने लगे।

नाश्ते और रात के खाने पर पूरा परिवार एक साथ बैठने लगा।

बच्चों ने तय किया कि हफ्ते में सिर्फ एक दिन ही बाहर का खाना खाएँगे।

दादी जी की रेसिपीज़ को बच्चों ने पसंद करना शुरू किया और उन्हें हेल्दी तरीके से बनाया जाने लगा।

दादा जी रोज़ बच्चों को संस्कार और जीवन के अनुभव सुनाते, और बच्चे भी अब ध्यान से सुनने लगे।

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(भाग 7) – नई पहचान

समय बीतने लगा। अनिकेत और राधिका दोनों ने आधुनिक शिक्षा भी पाई और साथ ही पारंपरिक मूल्यों को भी अपनाया।

राधिका ने आयुर्वेद और योग पर रिसर्च करना शुरू किया।

अनिकेत ने टेक्नोलॉजी में पढ़ाई की, लेकिन वह अपने स्कूल में बच्चों को “डिजिटल डिटॉक्स और हेल्दी लाइफ़स्टाइल” पर लेक्चर देने लगा।

गाँव और शहर दोनों जगह लोग वर्मा परिवार की मिसाल देने लगे कि कैसे आधुनिकता और परंपरा को साथ लेकर चला जा सकता है।

09/08/2025
05/08/2025

भाग 5: फिर से साथ

सुरेश का ट्रांसफर कैंसल हो गया। परिवार फिर पूरी तरह एक हो गया।

घर में फिर से बच्चों की हँसी गूँजने लगी,
दादीजी फिर से अपनी कहानियाँ सुनाने लगीं,
रमेश और सुरेश साथ बैठकर चाय पीते,
और अंजलि-नेहा-आर्यन-रोहित मिलकर एक नाटक तैयार करने लगे — "हमारा परिवार"।

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🔸 अंतिम भाग: एक आदर्श

एक दिन गाँव के स्कूल में कार्यक्रम था।
सभी बच्चों ने एक नाटक प्रस्तुत किया —
संयुक्त परिवार की महिमा पर।

अंत में मंच पर सभी ने एक स्वर में कहा:

> “रिश्ते अगर प्यार से निभाए जाएँ,
तो घर स्वर्ग बन जाता है।”

“हमारा परिवार, हमारी पहचान है।”

तालियाँ गूंज उठीं।
दादाजी और दादीजी की आँखों में चमक थी —
उनका सपना साकार हो चुका था।

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💖 लेकिन ये कहानी हर उस परिवार की है जो साथ रहना चाहता है, मिलकर जीना चाहता है।

05/08/2025

भाग 4: संकट का सामना

एक दिन अचानक दादाजी की तबीयत बिगड़ गई।
रातों-रात उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा।

पूरे परिवार ने जैसे मोर्चा संभाल लिया —
सुनिता ने अस्पताल में रहकर देखभाल की,
सुरेश ने ऑफिस से छुट्टी ली,
बच्चों ने घर और पढ़ाई दोनों संभाले।

डॉक्टर भी कहने लगे,

> "ऐसा परिवार बहुत कम दिखता है आजकल।"

कुछ ही दिनों में दादाजी ठीक होकर घर लौटे।
उनकी आँखों में आँसू थे, और उन्होंने कहा,

> "आज समझ में आया, मैंने जो परिवार जोड़ा है, वही मेरी असली दौलत है।"

05/08/2025

भाग 3: एकता की परीक्षा

एक दिन अचानक सुरेश के ऑफिस से नोटिस आया — “आपका ट्रांसफर दिल्ली किया गया है।”
घर में सन्नाटा छा गया। मीना परेशान हो गई, बच्चे उदास।

दादीजी ने सबसे पहले मीना का हाथ पकड़ा और कहा,

> "बेटा, जहाँ भी रहो, परिवार साथ हो तो जगह मायने नहीं रखती।"

लेकिन अंदर ही अंदर दादीजी जानती थीं कि परिवार टूटेगा।
रमेश और सुनिता भी समझ नहीं पा रहे थे — कुछ कहें या चुप रहें।

तब दादाजी ने सबको बैठक में बुलाया और कहा,

> "ये वक्त फैसला लेने का नहीं, समझदारी का है।"

उन्होंने प्रस्ताव रखा —

> “सुरेश कुछ महीने दिल्ली में अकेले रह ले, जब तक घर की स्थिति स्पष्ट न हो। परिवार अभी साथ रहेगा।”

सभी सहमत हो गए। यह छोटा निर्णय एक बड़े टूट को टाल गया।

05/08/2025

भाग 2: त्योहारों की रौनक

त्योहारों में इस घर की रौनक देखने लायक होती। चाहे होली हो या दीपावली, सभी मिलकर काम करते।
सुनिता भाभी लड्डू बनातीं, मीना भाभी रंगोली सजातीं।
अंजलि और नेहा दीयों को सजातीं, आर्यन और रोहित घर की सफाई में लगे रहते।

दादाजी हर साल दिवाली पर सभी को बैठाकर एक ही बात कहते,

> "त्योहार का मतलब सिर्फ सजावट नहीं, एक-दूसरे को समय देना भी है।"

सब मिलकर बैठते, हँसते, गाते, और यादों की नई किताब लिखते।

05/08/2025

भाग 1: एक छत के नीचे

वाराणसी के पास एक छोटा-सा कस्बा था — राजापुर। वहाँ एक पुराना पर मजबूत मकान था, लाल ईंटों से बना हुआ, जिसके आँगन में तुलसी का चौबारा और पीछे आम-जामुन के पेड़ लगे थे। इसी घर में रहते थे — मिश्रा परिवार।

दादाजी शिवनारायण मिश्रा रिटायर्ड स्कूल हेडमास्टर थे। अनुशासन में जीवन जीने वाले, लेकिन दिल से बेहद नरम। दादीजी शांता देवी, उनका बिल्कुल उल्टा — बात-बात पर मुस्कुराने वाली, सबकी बात समझने वाली।

उनके दो बेटे — रमेश और सुरेश, और दोनों अपने-अपने परिवारों के साथ साथ रहते थे। बच्चों में कोई भेद नहीं था। चारों बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते, साथ खाना खाते, साथ होमवर्क करते और रात में एक साथ छत पर चाँद देख सो जाते।

इस परिवार का सबसे बड़ा गुण था — “हम” की भावना।

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