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09/08/2025
05/08/2025

भाग 5: फिर से साथ

सुरेश का ट्रांसफर कैंसल हो गया। परिवार फिर पूरी तरह एक हो गया।

घर में फिर से बच्चों की हँसी गूँजने लगी,
दादीजी फिर से अपनी कहानियाँ सुनाने लगीं,
रमेश और सुरेश साथ बैठकर चाय पीते,
और अंजलि-नेहा-आर्यन-रोहित मिलकर एक नाटक तैयार करने लगे — "हमारा परिवार"।

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🔸 अंतिम भाग: एक आदर्श

एक दिन गाँव के स्कूल में कार्यक्रम था।
सभी बच्चों ने एक नाटक प्रस्तुत किया —
संयुक्त परिवार की महिमा पर।

अंत में मंच पर सभी ने एक स्वर में कहा:

> “रिश्ते अगर प्यार से निभाए जाएँ,
तो घर स्वर्ग बन जाता है।”

“हमारा परिवार, हमारी पहचान है।”

तालियाँ गूंज उठीं।
दादाजी और दादीजी की आँखों में चमक थी —
उनका सपना साकार हो चुका था।

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💖 लेकिन ये कहानी हर उस परिवार की है जो साथ रहना चाहता है, मिलकर जीना चाहता है।

05/08/2025

भाग 4: संकट का सामना

एक दिन अचानक दादाजी की तबीयत बिगड़ गई।
रातों-रात उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा।

पूरे परिवार ने जैसे मोर्चा संभाल लिया —
सुनिता ने अस्पताल में रहकर देखभाल की,
सुरेश ने ऑफिस से छुट्टी ली,
बच्चों ने घर और पढ़ाई दोनों संभाले।

डॉक्टर भी कहने लगे,

> "ऐसा परिवार बहुत कम दिखता है आजकल।"

कुछ ही दिनों में दादाजी ठीक होकर घर लौटे।
उनकी आँखों में आँसू थे, और उन्होंने कहा,

> "आज समझ में आया, मैंने जो परिवार जोड़ा है, वही मेरी असली दौलत है।"

05/08/2025

भाग 3: एकता की परीक्षा

एक दिन अचानक सुरेश के ऑफिस से नोटिस आया — “आपका ट्रांसफर दिल्ली किया गया है।”
घर में सन्नाटा छा गया। मीना परेशान हो गई, बच्चे उदास।

दादीजी ने सबसे पहले मीना का हाथ पकड़ा और कहा,

> "बेटा, जहाँ भी रहो, परिवार साथ हो तो जगह मायने नहीं रखती।"

लेकिन अंदर ही अंदर दादीजी जानती थीं कि परिवार टूटेगा।
रमेश और सुनिता भी समझ नहीं पा रहे थे — कुछ कहें या चुप रहें।

तब दादाजी ने सबको बैठक में बुलाया और कहा,

> "ये वक्त फैसला लेने का नहीं, समझदारी का है।"

उन्होंने प्रस्ताव रखा —

> “सुरेश कुछ महीने दिल्ली में अकेले रह ले, जब तक घर की स्थिति स्पष्ट न हो। परिवार अभी साथ रहेगा।”

सभी सहमत हो गए। यह छोटा निर्णय एक बड़े टूट को टाल गया।

05/08/2025

भाग 2: त्योहारों की रौनक

त्योहारों में इस घर की रौनक देखने लायक होती। चाहे होली हो या दीपावली, सभी मिलकर काम करते।
सुनिता भाभी लड्डू बनातीं, मीना भाभी रंगोली सजातीं।
अंजलि और नेहा दीयों को सजातीं, आर्यन और रोहित घर की सफाई में लगे रहते।

दादाजी हर साल दिवाली पर सभी को बैठाकर एक ही बात कहते,

> "त्योहार का मतलब सिर्फ सजावट नहीं, एक-दूसरे को समय देना भी है।"

सब मिलकर बैठते, हँसते, गाते, और यादों की नई किताब लिखते।

05/08/2025

भाग 1: एक छत के नीचे

वाराणसी के पास एक छोटा-सा कस्बा था — राजापुर। वहाँ एक पुराना पर मजबूत मकान था, लाल ईंटों से बना हुआ, जिसके आँगन में तुलसी का चौबारा और पीछे आम-जामुन के पेड़ लगे थे। इसी घर में रहते थे — मिश्रा परिवार।

दादाजी शिवनारायण मिश्रा रिटायर्ड स्कूल हेडमास्टर थे। अनुशासन में जीवन जीने वाले, लेकिन दिल से बेहद नरम। दादीजी शांता देवी, उनका बिल्कुल उल्टा — बात-बात पर मुस्कुराने वाली, सबकी बात समझने वाली।

उनके दो बेटे — रमेश और सुरेश, और दोनों अपने-अपने परिवारों के साथ साथ रहते थे। बच्चों में कोई भेद नहीं था। चारों बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते, साथ खाना खाते, साथ होमवर्क करते और रात में एक साथ छत पर चाँद देख सो जाते।

इस परिवार का सबसे बड़ा गुण था — “हम” की भावना।

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