17/08/2025
सच्ची घटना: काशी में रुद्राक्ष का वरदान
वाराणसी — जिसे काशी भी कहते हैं, शिव का स्वयं निवास स्थान माना जाता है। यहाँ की हर गली, हर घाट, हर मंदिर से महादेव की महक आती है। यह घटना 2018 की है, जब दिल्ली के रहने वाले आयुष, एक युवा कलाकार, अपनी पेंटिंग प्रदर्शनी के लिए काशी आए थे। उनका उद्देश्य बस कला दिखाना था, लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि इस यात्रा में उन्हें एक जीवन बदल देने वाला अनुभव मिलेगा।
आयुष ने अपने खाली समय में मणिकर्णिका घाट के पास घूमने का निश्चय किया। गंगा के किनारे बैठे-बैठे वे स्केच बना रहे थे—एक वृद्ध साधु का चित्र, जिनका चेहरा शांति और तेज़ से भरा था। वे साधु पीपल के पेड़ के नीचे बैठे, रुद्राक्ष की माला जप रहे थे। आयुष को देखते ही उन्होंने संकेत किया, “इधर आओ, पुत्र।”
आयुष पास पहुँचे तो साधु ने पूछा, “तुम कला में लगे हो, लेकिन ध्यान में नहीं। ध्यान के बिना कला अधूरी है।” यह सुनकर आयुष मुस्कुराए और बोले, “मैं तो पेंटिंग बनाता हूँ, बाबा, ध्यान में नहीं बैठ सकता।” साधु ने अपनी माला से एक मोटा, चमकदार रुद्राक्ष निकाला और कहा, “ये शिव का प्रसाद है। इसे पहनना और जब भी ब्रश उठाओ, ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना।”
आयुष ने रुद्राक्ष को अपने गले में डाला और घर लौट आए। अगले ही महीने उनकी पेंटिंग्स ने एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पहला स्थान पाया। उन्हें महसूस हुआ कि जैसे ब्रश उनके हाथ में खुद चल रहा हो, रंग अपने आप कैनवास पर बिखर रहे हों। उनकी कला में एक अनोखी आध्यात्मिकता झलकने लगी, जिसे लोग महसूस करते थे।
आज भी आयुष वह रुद्राक्ष अपने पास रखते हैं। वे कहते हैं कि जब भी थकान, उलझन या रचनात्मक अवरोध आता है, वे बस माला को छूकर आँखें बंद कर लेते हैं। तुरंत ही भीतर से एक आवाज़ आती है — “तुम अकेले नहीं हो, मैं हूँ।”