Rajendra inaniyan

Rajendra inaniyan A new boy with old ideas...✍️🖤

I am a somewhat old-fashioned man who disagrees with the traditions of this era.

I will not be liked by those who agree with everything.

26/10/2025

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि,
हर ख्वाहिश पे दम निकले...

मिर्ज़ा ग़ालिब

26/10/2025

बहुत सी बाते ऐसी होती है जिसे हम भूल जाना चाहते है वो भी ऐसे की कभी याद ना आए पर हम दिमाग को झटका देकर जिसे याद न करने की कोशिश करते है,दिमाग झटके देकर वही सब कुछ याद दिलाने का प्रयत्न करता है...!

26/10/2025

मैं तमाम बुरे हालातों से अकेला गुजरा हूँ, मैं किसी का भी आभारी नहीं हूँ !

25/10/2025

सोशल मीडिया ने हमें “सोचने” से ज़्यादा “दिखने” वाला समाज बना दिया है। हर व्यक्ति विचारक से ज़्यादा इन्फ्लुएंसर बनना चाहता है। राजनीति भी इस प्रवृत्ति का फायदा उठा रही है — क्योंकि सोचने वाला नागरिक सवाल पूछता है, और दिखावे में उलझा नागरिक सिर्फ ताली।

25/10/2025

घमंड एक मानसिक बीमारी है जिसका,
इलाज सिर्फ कुदरत और वक्त करता है...

25/10/2025

हमको हर दौर की गर्दिश ने सलामी दी है,
हम वो पत्थर है जो हर दौर में भारी निकले !!

24/10/2025

मैंने देखी है झलक बुरे वक़्त की,
ये जी जी कहने वाले तू तू पर आ जाते हैं।।

24/10/2025

व्यापार हो या व्यवहार उन्ही लोगों से रखो, जिनकी जान से ज़्यादा ज़ुबान कि कीमत हो...💯

23/10/2025

मैं सारा दिन घर से बाहर रहता हूं, मैं बड़ा हो गया फिर भी माँ की फ़िक्र नहीं छूटती,घर लौटता हूं तो माँ का चेहरा अलग ही होता है, सुबह से प्रतीक्षा में ठहरी आंखें,बेचैन चहल कदमी और दो चार ताने सुंनाने के बाद माँ कहती है तू घर जल्दी क्यों नही आता जबकि पूरा गाँव अब तक सो चुका है...!

23/10/2025

अगर वाक़ई में ज़ुबान की कोई क़ीमत होती,तो आज भी अदालतों में हलफ़नामे नहीं,भरोसे लिखे जाते...!

23/10/2025

कभी-कभी लफ़्ज़ साथ छोड़ देते हैं,क्योंकि जब जज़्बात बोलने लगते हैं,तो शब्द बेमानी हो जाते हैं ज़िंदगी में वैसे कुछ ख़ास नहीं है,पर कुछ ख़ास लोग हैं जो अपनी मौजूदगी से इसे हर रोज़ थोड़ा और ख़ूबसूरत बना देते हैं शायद यही लोग हैं,जो इस थकी हुई ज़िंदगी को थोड़ा सुकून दे जाते है...!

23/10/2025

💯%........

सत्ता के इस खेल में जनता बस एक मोहरा बनकर रह गई है।
जो अपनी ही समस्याओं से जूझ रही होती है — महंगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य —
लेकिन बहस करती है “नेता हमारा है या तुम्हारा।”

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