
13/09/2025
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व कौन हैं?
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व करुणा के आदर्श माने जाते हैं। वे सभी प्राणियों की पीड़ा देखकर करुणा से प्रेरित होते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। महायान बौद्ध परंपरा में अवलोकितेश्वर का अत्यंत आदर किया जाता है। उन्हें “लोक का रक्षक”, “करुणा का अवतार” और “सभी दुखियों के संरक्षक” के रूप में पूजा जाता है। बाद में वे तिब्बत, चीन, जापान, नेपाल, भारत आदि देशों में करुणा का प्रतीक बन गए।
अवलोकितेश्वर की पहली मूर्ति कब बनी?
ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार:
अवलोकितेश्वर की मूर्तियों का विकास प्रारंभिक महायान काल (लगभग 3री से 5वीं शताब्दी ईस्वी) में हुआ।
सबसे प्राचीन अवलोकितेश्वर की प्रतिमाएँ गांधार (आज का पाकिस्तान-अफगानिस्तान क्षेत्र) और मथुरा क्षेत्र में मिलने का उल्लेख है।
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार कुषाण काल (2री – 3री शताब्दी ईस्वी) में अवलोकितेश्वर की आद्य मूर्तियाँ बननी शुरू हुईं।
प्रारंभ में उन्हें पद्मधारी रूप में, करुणामय मुद्रा में दर्शाया गया। बाद में उनका स्वरूप बहु-मुखी और सहस्र भुजाओं वाला भी बना।
सबसे पहले किसने बनाई?
अवलोकितेश्वर का स्वरूप महायान बौद्धों द्वारा विकसित किया गया।
यह किसी एक कलाकार या शासक द्वारा निर्मित नहीं बल्कि बौद्ध मठों, संघों और क्षेत्रीय शिल्प परंपराओं द्वारा धीरे-धीरे विकसित हुआ।
गांधार क्षेत्र में ग्रीको-बौद्ध शैली के प्रभाव से अवलोकितेश्वर की मूर्तियाँ बनीं। यहाँ यूनानी शैली की नक्काशी, वस्त्रों की सिलवटें और मानवीय भावों का सुंदर चित्रण मिलता है।
मथुरा में भारतीय शैली में उन्हें आध्यात्मिक शांति और करुणा के प्रतीक रूप में उकेरा गया।
बाद में गुप्त काल (4थी–6ठी शताब्दी ई.) में अवलोकितेश्वर की पूजा और मूर्ति निर्माण व्यापक रूप से फैला।
इसलिए कहा जाता है कि अवलोकितेश्वर की पहली मूर्तियाँ महायान परंपरा के बौद्ध संघों द्वारा 3री से 5वीं शताब्दी ईस्वी के बीच गांधार और मथुरा क्षेत्र में विकसित हुईं।
मूर्ति निर्माण के पीछे प्रेरणा
करुणा और लोकहित का आदर्श
महायान बौद्ध धर्म का विस्तार
ध्यान और साधना में सहायक प्रतीक
भक्तों के लिए करुणा का मूर्त रूप
लोकपालन और रक्षा का आश्वासन
ध्यान देने योग्य बातें
अवलोकितेश्वर को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना गया
भारत: अवलोकितेश्वर / पद्मपाणि
तिब्बत: चेन्रेज़िग
चीन: गुआन यिन
जापान: कान्नोन
उनकी मूर्तियाँ कालानुसार विकसित हुईं — प्रारंभ में सरल रूप, बाद में बहु-बाहु और बहु-मुखी रूप।
करुणा का संदेश ही उनकी पूजा का आधार रहा।
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व की मूर्तियाँ महायान बौद्ध धर्म के विकास के साथ 3री से 5वीं शताब्दी ईस्वी के बीच गांधार और मथुरा क्षेत्र में विकसित हुईं। इन्हें किसी एक शासक या कलाकार ने नहीं बल्कि बौद्ध संघों और शिल्प परंपराओं ने मिलकर निर्मित किया। करुणा के आदर्श के रूप में यह प्रतीक आज भी बौद्ध साधना, ध्यान और पूजा का केंद्र है। उनकी छवि सभी प्राणियों की पीड़ा समझने वाले, करुणा से प्रेरित लोक रक्षक की है।
Nag Anurak Eshin Divijata
Rakeshh Y Gajbhiye
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