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12/09/2025

धर्मशाला में क्यों भटक रही ‘पहाड़ी गांधी’ बाबा कांशी राम की ‘आत्मा’ ?

विनोद भावुक। धर्मशाला

जिनके कदमों और तरानों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी, उनकी गूंज सदियों तक सुनाई देती है। कांगड़ा जिला के डाडासीबा के क्रांतिकारी बाबा कांशी राम, जिन्हें ‘पहाड़ी गांधी’ और ‘बुलबुले पहाड़’ कहा गया, आज भी लोगों की यादों में जीवित हैं।
उन्होंने काले कपड़ों का संकल्प लिया, जेल की सलाखों में समय बिताया और आज़ादी की मशाल को जलाए रखा।

जिनके सम्मान में कांग्रेस नेता एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डाक टिकट जारी किया, लेकिन आज बाबा कांशी राम का पैतृक घर स्मारक तो बन गया है, पर उनकी ‘आत्मा’ अब भी धर्मशाला में भटक रही है। लोग इसे व्यवस्था परिवर्तन का साइड इफेक्ट बना रहे हैं।

बाबा की विरासत पर सियासी ठेंगे

हिमाचल प्रदेश की पिछली जयराम ठाकुर सरकार ने स्मारक बनाने की पहल की, मौजूदा सुखबिन्द्र सरकार ने उसे पूरा किया। संचालन की जिम्मेदारी भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग को सौंपी गई तो लगा अब स्मारक खुल जाएगा

स्मारक की देखभाल के लिए विभाग ने एक कर्मचारी आत्मा राम को नियुक्त किया गया, लेकिन जनाब ने डाडासीबा जाने से पहले ही धर्मशाला में ही रहने का सियासी जुगाड़ कर लिया। सियासी रुतबा इतना कि ट्रांसफर के आदेश भी आत्मसमर्पण कर गए।

जहां क्रांति गूंजी, वहां पसरान सन्नाटा

डाडासीबा के पधयाड़ गांव में बना स्मारक कर्मचारी की मौजूदगी की बाट जोह रहा है और जनाब धर्मशाला में विभाग के दफ्तर परिसर में ही गैरकानूनी तरीके से दिन- रात डेरा जमाए हुए हैं। जिस घर में कभी क्रांति की गूंज उठी थी, वहां अब भी सन्नाटा पसरा है। आत्मा राम की वजह से, ऐसा लगता है कि बाबा कांशी राम की आत्मा भी धर्मशाला में भटक रही है।

साहित्यकार पूछ रहे हैं आखिर कब तक बाबा कांशी राम का स्मारक यूं ही उपेक्षा का शिकार रहेगा? क्या आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले इस महान क्रांतिकारी की आत्मा को शांति तब मिलेगी, जब डिपार्टमेंट के ‘आत्मा राम’ सियासी रसूख से ऊपर उठेंगे?

भटकती रूह को मिले सुकून

क्रांति की मशाल जलाने वाले बाबा कांशी राम का जीवन आज़ादी और त्याग की गाथा है, लेकिन उनका स्मारक और उनकी विरासत, दोनों ही सियासी रसूख की आग में धुआं-धुआं होते दिखाई दे रहे हैं।
भाषा विभाग कांगड़ा के अफसरों ने तो अपने मुँह पर ताला लगा लिया है। इस बारे में कुछ भी बोलने को राजी नहीं। विभाग की निदेशक आइएएस रीमा कश्यप को इस खबर का संज्ञान लेकर बाबा की रूह को आराम पहुंचाना चाहिए।

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