22/04/2025
सिरमौर जिले का इतिहास इस प्रकार है:
स्थापना और प्रारंभिक इतिहास:
* सिरमौर रियासत की स्थापना 1616 ईस्वी में हुई थी। इसे पहले नाहन रियासत के नाम से भी जाना जाता था, क्योंकि नाहन इसकी राजधानी थी।
* कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 7वीं या 8वीं शताब्दी में परमार राजपूतों द्वारा इस रियासत की नींव रखी गई थी।
* एक अन्य मान्यता के अनुसार, जैसलमेर के राजा रासलू के वंशज सोभा रावल ने 1095 ईस्वी में नाहन (तत्कालीन सिरमौर) की स्थापना की और 'प्रकाश' की उपाधि धारण की।
* गिरी नदी में आई बाढ़ के कारण पुरानी राजधानी सिरमौरी ताल नष्ट हो गई थी।
राजधानी का स्थानांतरण:
* 1621 ईस्वी में राजा करम प्रकाश ने अपनी राजधानी कालसी से नाहन स्थानांतरित की और नाहन शहर की नींव रखी।
मुगल और सिख प्रभाव:
* सिरमौर के शासकों के मुगल साम्राज्य के साथ संबंध रहे।
* गुरु गोविंद सिंह जी ने भी अपने जीवन का कुछ समय (1684-1688 ईस्वी) पांवटा साहिब में बिताया, जो सिरमौर का एक महत्वपूर्ण शहर है। यहां उन्होंने भगानी साहिब का युद्ध भी लड़ा।
गोरखा आक्रमण और ब्रिटिश आधिपत्य:
* 19वीं शताब्दी के शुरुआत में गोरखों ने सिरमौर पर आक्रमण कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
* 1815 ईस्वी में अंग्रेजों ने गोरखों को पराजित कर सिरमौर को अपने अधीन कर लिया। सिरमौर ब्रिटिश भारत की एक रियासत बन गया और इसे 11 तोपों की सलामी का सम्मान प्राप्त था।
रियासत का अंत और जिले का गठन:
* 15 अप्रैल 1948 को सिरमौर रियासत का भारतीय संघ में विलय हो गया और इसे हिमाचल प्रदेश के एक जिले के रूप में गठित किया गया।
नामकरण:
* 'सिरमौर' नाम की उत्पत्ति के संबंध में कई मत हैं। एक मान्यता यह है कि इसका अर्थ 'सभी पहाड़ी रियासतों का मुकुट' है।
* एक अन्य मत के अनुसार, यह नाम राजा रासलू के पौत्र 'श्रीमौर' के नाम पर पड़ा।
* कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह नाम पांवटा साहिब के पास स्थित सिरमौरी ताल के नाम पर रखा गया था।
सिरमौर का इतिहास वीरता, राजनीतिक उथल-पुथल और सांस्कृतिक विरासत से भरा हुआ है। यह क्षेत्र आज भी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है।