08/10/2025
हरेक संघर्ष की शुरुआत किसी छोटे कदम से होती है। कुछ लोग जन्म से ही नेतृत्व के लिए तैयार होते हैं, जबकि कुछ लोग जमीनी मेहनत और अडिग विश्वास से अपनी राह बनाते हैं। यह कहानी है एक ऐसे नेता की, जिसने हार के बाद भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा, और लगातार अपने जनसेवा के सपने को जीवित रखा।
वर्षों का संघर्ष, गली-गली की पैदल यात्रा, और चुनावी हार की कड़वाहट, यही इनका जीवन था। एक साधारण परिवार का बेटा, जिसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन सपने बड़े थे। राजनीति में एक ऐसा नाम जो बार-बार उतार -चढ़ाव देखता रहा, पर हार मानने वाला नहीं था। मक़सद सिर्फ जीत नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना था।
राजनीति में एक प्रेरणादायक मोड़ तब आया जब हिमाचल प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 1991 में कोटशेरा, कॉलेज में इनके हाथ में हाथ डालकर एनएसयूआई का कैंपस अध्यक्ष बनाया। उस दिन से राजनीति के लिए समर्पण गहरा गया। मुख्यमंत्री ही इनके राजनीतिक गुरु भी है। शिमला में पिता की नौकरी की वजह से वही रहते थे, लेकिन करीब 20 साल पहले यह अहसास हुआ कि अगर नाहन से राजनीति करनी है तो वहीं बसना होगा। यही सोच इन्हे नाहन लौटा लाई, जहां अपने जमीनी संघर्ष की कहानी लिखनी शुरू की। विधानसभा का पहला चुनाव 2017 में लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2022 में भाग्य ने साथ दिया। विरोधी दल के शीर्ष नेता को हराकर विधानसभा की दहलीज को पार किया।
युवा कांग्रेस के जिला सिरमौर अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव, और अंत में जिला सिरमौर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में संगठन की नींव को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। इस बात ने जमीनी राजनीति ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया, लेकिन राह आसान नहीं थी। चुनावी हार ने उसे तोड़ा नहीं, बल्कि उसकी जिजीविषा को और मजबूत किया।
2017 में चुनाव हारने के बाद भी उसने हार को चुनौती में बदल दिया। दिसंबर 2022 में नाहन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत दर्ज की। 35,291 वोट प्राप्त कर अपने कद्दावर प्रतिद्वंद्वी को 1,639 वोटों के अंतर से हराया — एक ऐसा नेता जो अपने जीवन में कभी चुनाव नहीं हारा था। यह जीत केवल एक चुनाव की नहीं, बल्कि सादगी, संघर्ष और जनता से जुड़े विश्वास की जीत थी। दो बेटियों के पिता यह नेता आज भी सादगी से जीवन जीते हैं। राजनीति में उसकी पहचान केवल पद से नहीं, बल्कि संगठन और जनता से जुड़े कामों से है। इनका जीवन यह संदेश देता है कि हार को पराजय नहीं मानना चाहिए, और लगातार मेहनत से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक नए विधायक के रूप में पहली जीत दर्ज की, लेकिन अपनी अलग पहचान भी कायम की है। विपक्षी राजनीतिक दल के एक प्रभावशाली नेता को हराकर यह साबित कर दिया कि सच्चा नेतृत्व केवल ताकत या विरासत से नहीं, बल्कि सादगी, संघर्ष और जनता के साथ गहरे जुड़ाव से बनता है। यह उनके लिए मात्र एक चुनाव जीत नहीं, बल्कि राजनीति में एक नई शुरुआत और एक प्रेरणादायक मिशन बना है।
विधानसभा में यह उनकी पहली पारी है, और दिलचस्प बात यह है कि अल्फाबेट की वजह से विधायकों की सूची में उनका नाम पहले स्थान पर आता है, जो एक प्रतीकात्मक उपलब्धि बन गई है। इस जीत ने उन्हें न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि पूरे प्रदेश में एक नई पहचान दिलाई है। यह विजय सिर्फ एक राजनीतिक जीत नहीं थी, बल्कि विधान सभा में एक नई आशा और विश्वास की शुरुआत थी, एक ऐसी शुरुआत जो प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा और ऊर्जा की उम्मीद लेकर आई थी। चुनौती इस वजह से भी है क्योंकि विपक्षी दल के एक नेता ने 2012 से 2022 तक इतनी सक्रियता दिखाई कि आज जनता की अपेक्षा आसमान पर हैं, लेकिन वे इस कसौटी पर खरे उतरने का प्रयास कर रहे हैं।
ये है,नाहन विधानसभा क्षेत्र के विधायक अजय सोलंकी। 3 दिसंबर 1971 को शिमला में श्रीमती शीला ठाकुर व दिवंगत मदन पाल सिंह के घर जन्म हुआ। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने जीवन में सादगी और संघर्ष को अपनाया। श्रीमती ज्योतिका ठाकुर से परिणय सूत्र में बंधे और दो बेटियों के साथ एक कृषक के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। विधायक अजय सोलंकी दो होनहार बेटियों — ईशना और विदिशा के पिता हैं। बड़ी बेटी ईशना ने बीटेक की पढ़ाई की है, जबकि छोटी बेटी विदिशा नॉन-मेडिकल की कर रही हैं। परिवार अपनी शिक्षा और संस्कारों के माध्यम से “बेटी है अनमोल” की पंक्ति को जीवंत करता है।
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