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09/10/2025

नाहन के ऐतिहासिक चौगान मैदान को समतल करने का जुगाड़!

09/10/2025

पिछले भाग में आपने देखा - कैसे गुरु गोबिंद सिंह जी और राजा मेदनी प्रकाश के बीच मित्रता बनी। लेकिन नाहन और पांवटा साहिब की शांति को पहाड़ी राजाओं की राजनीति ने चुनौती दे दी। उसी चुनौती का परिणाम था... भगाणी का मैदान!
आगे देखें — भाग 3 में…
युद्ध की धूल बैठने से पहले आस्था की ज्वाला और तेज़ कैसे जल उठी? राजा हरि चंद और गुरु जी के बीच अंतिम द्वंद्व का वह निर्णायक क्षण जिसने भंगाणी की धरती को अमर कर दिया!
कहानी जारी रहेगी — भाग 3ं, 10 अक्टूबर की रात 9 बजे..
#पीरबुद्धूशाह #सिखइतिहास #धर्मकीरक्षा

बेटा देश पर कुर्बान: तीन साल के पोते "कार्तिक" को देखकर जी रहा कुलभूषण मांटा का परिवार  जब कोई जांबाज देश के लिए कुर्बान...
09/10/2025

बेटा देश पर कुर्बान: तीन साल के पोते "कार्तिक" को देखकर जी रहा कुलभूषण मांटा का परिवार

जब कोई जांबाज देश के लिए कुर्बान होता है, तो पूरा राष्ट्र एक पल के लिए थम जाता है। कुछ दिनों तक माहौल देशभक्ति के नारों से गूंजता है और शहीद के घर सांत्वना देने वालों का तांता लगा रहता है। यह बलिदान को सम्मान देने का तरीका है। मगर दुखद सत्य यह है कि कुछ ही समय में यह शोर थम जाता है। दुनिया अपनी रफ्तार पकड़ लेती है, पर पीछे छूट जाता है वो मां, वो पत्नी, वो पिता, जिनके जीवन में उस बलिदान का शून्य कभी नहीं भरता। लोग भूल जाते हैं कि उनका बेटा, पति या भाई अब केवल एक तस्वीर है, एक अमर कहानी, जिसके साथ जीना अब उनका अकेला संघर्ष है।

इस विशेष सीरीज में हम आपको यादृच्छिक दिनों में ऐसे ही बलिदानियों की वीर गाथा और उनके परिवार की वर्तमान स्थिति से अवगत करवाएंगे कि आज वो परिवार किन हालातों में और कैसे जी रहा है।

हिमाचल प्रदेश की वीर भूमि, शिमला जिले की तहसील कुपवी के गौंठ गांव के सपूत, राइफलमैन कुलभूषण मांटा की कहानी भी ऐसी ही है। साल 2014 में सेना में भर्ती हुआ यह बहादुर जवान, 52 राष्ट्रीय राइफल्स का हिस्सा बनकर देश की सेवा में जुटा।

साल 2022 का अक्टूबर महीना, जम्मू-कश्मीर के बारामूला के घने जंगलों में एक ऑपरेशन चल रहा था। 26 वर्षीय कुलभूषण आतंकियों से लोहा ले रहे थे। मुठभेड़ के दौरान उन्हें गोली लगी, लेकिन कर्तव्य के प्रति उनका समर्पण ऐसा था कि गोली लगने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक आतंकी को जिंदा पकड़ लिया। 27 अक्टूबर को अधिक रक्तस्राव (Blood Loss) के कारण इस बहादुर सिपाही ने अपनी अंतिम सांस ली और देश की वेदी पर शहीद हो गया।

इस अदम्य साहस और समर्पण के लिए कुलभूषण मांटा को मरणोपरांत शौर्य चक्र से नवाजा गया। दिल्ली में हुए सम्मान समारोह में जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह सम्मान उनकी मां दुर्मा देवी और पत्नी नीतू को प्रदान किया, तो मां की आंखें छलक उठीं और पत्नी निशब्द खड़ी थीं। वह पल बता रहा था कि यह सम्मान जितना बड़ा है, बलिदान की पीड़ा उससे कहीं अधिक गहरी है।

शहादत के बाद आज गौंठ गांव का माहौल शांत हो चुका है, पर कुलभूषण के परिवार का संघर्ष हर दिन जारी है। मां दुर्मा देवी बताती हैं कि कुलभूषण हमेशा कहता था, "मां, देश के लिए शहीद होना गर्व की बात है।" वह उसे हर बार डांटती थीं कि ऐसी बातें न करे। शहीद होने से कुछ दिन पहले की बात याद करते हुए मां बताती हैं, "उसने कहा था गाय बेच दो, आपसे काम नहीं किया जाता और दिवाली में गांव में ऊपर चले जाना। मुझे क्या पता था कि बेटा शहीद ही हो जाएगा।" आज वह मां उस बेटे की यादों के सहारे जीती है, जिसने अपने जिगर का टुकड़ा खोया है।

पिता प्रताप के लिए वह रात सबसे लंबी थी जब उन्हें बेटे के शहीद होने की खबर मिली। "मैं अपने जीवन की सबसे लंबी रात कभी नहीं भूल सकता। मैं टूट गया था। जब घर पर पार्थिव देह आई तो समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, कहां जाऊं, कैसे अपने बेटे का चेहरा देखूं। लेकिन फिर मेरे अंदर का पुरुष जाग गया और मैंने खुद को समझाया कि मुझे परिवार को संभालना है।"

दिल्ली में जब उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया और उन्होंने राष्ट्रपति भवन में स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरों के साथ अपने बेटे का नाम देखा, तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। वह कहते हैं, "रोम-रोम गर्व से भर गया कि मैंने देश के लिए एक बेटा दिया है।"

माता-पिता कहते हैं कि उनके लिए जीने का एकमात्र सहारा कुलभूषण मांटा का बेटा "कार्तिक" है, जो अब ढाई साल का हो चुका है। हालांकि, कुलभूषण मांटा की वीरांगना नीतू बेटा कार्तिक के साथ गौंठ गांव में नहीं रहती हैं, वह वर्तमान में शिमला में रहती हैं लेकिन बूढ़े मां बाप अपने पोते कार्तिक को देखकर जी रहे है।

पत्नी नीतू के लिए हर दिन एक चुनौती है। वह हर करवाचौथ पर दीवार पर टंगी तस्वीर को देखती होंगी। उन्हें अपने बेटे कार्तिक मांटा के भविष्य की चिंता सताती है। वहीं, बहनें, रेखा, किरण और रजनी, हर रक्षाबंधन पर अपनी कलाई सूनी याद करती हैं।

कुलभूषण मांटा अमर हैं, लेकिन उनके परिवार का दर्द भी अमर है। उनकी शहादत कुछ दिनों का शोर नहीं, बल्कि एक परिवार का स्थायी त्याग है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस बलिदान को हमेशा याद रखें और उस परिवार के प्रति अपना नैतिक समर्थन कभी कम न होने दें।

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PART-2 || गुरु गोबिंद सिंह जी की वीरता और धर्म की रक्षा का भंगाणी युद्ध

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सिरमौर की मिट्टी में इतिहास की वो गूंज आज भी सुनाई देती है, जब सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस धरती पर अपनी पहली निर्णायक लड़ाई की नींव रखी थी। राजा मेदनी प्रकाश और गुरु गोबिंद सिंह जी का रिश्ता उस समय सिरमौर के इतिहास को नई दिशा दे रहा था,लेकिन दूसरी ओर, कुछ ऐसा brewing था जो आने वाले समय में भंगाणी युद्ध में बदलने वाला था।
📜 Part 2 — 9 अक्टूबर, रात 9 बजे

हरेक  संघर्ष की शुरुआत किसी छोटे कदम से होती है। कुछ लोग जन्म से ही नेतृत्व के लिए तैयार होते हैं, जबकि कुछ लोग जमीनी मे...
08/10/2025

हरेक संघर्ष की शुरुआत किसी छोटे कदम से होती है। कुछ लोग जन्म से ही नेतृत्व के लिए तैयार होते हैं, जबकि कुछ लोग जमीनी मेहनत और अडिग विश्वास से अपनी राह बनाते हैं। यह कहानी है एक ऐसे नेता की, जिसने हार के बाद भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा, और लगातार अपने जनसेवा के सपने को जीवित रखा।
वर्षों का संघर्ष, गली-गली की पैदल यात्रा, और चुनावी हार की कड़वाहट, यही इनका जीवन था। एक साधारण परिवार का बेटा, जिसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन सपने बड़े थे। राजनीति में एक ऐसा नाम जो बार-बार उतार -चढ़ाव देखता रहा, पर हार मानने वाला नहीं था। मक़सद सिर्फ जीत नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना था।
राजनीति में एक प्रेरणादायक मोड़ तब आया जब हिमाचल प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 1991 में कोटशेरा, कॉलेज में इनके हाथ में हाथ डालकर एनएसयूआई का कैंपस अध्यक्ष बनाया। उस दिन से राजनीति के लिए समर्पण गहरा गया। मुख्यमंत्री ही इनके राजनीतिक गुरु भी है। शिमला में पिता की नौकरी की वजह से वही रहते थे, लेकिन करीब 20 साल पहले यह अहसास हुआ कि अगर नाहन से राजनीति करनी है तो वहीं बसना होगा। यही सोच इन्हे नाहन लौटा लाई, जहां अपने जमीनी संघर्ष की कहानी लिखनी शुरू की। विधानसभा का पहला चुनाव 2017 में लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2022 में भाग्य ने साथ दिया। विरोधी दल के शीर्ष नेता को हराकर विधानसभा की दहलीज को पार किया।

युवा कांग्रेस के जिला सिरमौर अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव, और अंत में जिला सिरमौर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में संगठन की नींव को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। इस बात ने जमीनी राजनीति ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया, लेकिन राह आसान नहीं थी। चुनावी हार ने उसे तोड़ा नहीं, बल्कि उसकी जिजीविषा को और मजबूत किया।

2017 में चुनाव हारने के बाद भी उसने हार को चुनौती में बदल दिया। दिसंबर 2022 में नाहन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत दर्ज की। 35,291 वोट प्राप्त कर अपने कद्दावर प्रतिद्वंद्वी को 1,639 वोटों के अंतर से हराया — एक ऐसा नेता जो अपने जीवन में कभी चुनाव नहीं हारा था। यह जीत केवल एक चुनाव की नहीं, बल्कि सादगी, संघर्ष और जनता से जुड़े विश्वास की जीत थी। दो बेटियों के पिता यह नेता आज भी सादगी से जीवन जीते हैं। राजनीति में उसकी पहचान केवल पद से नहीं, बल्कि संगठन और जनता से जुड़े कामों से है। इनका जीवन यह संदेश देता है कि हार को पराजय नहीं मानना चाहिए, और लगातार मेहनत से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक नए विधायक के रूप में पहली जीत दर्ज की, लेकिन अपनी अलग पहचान भी कायम की है। विपक्षी राजनीतिक दल के एक प्रभावशाली नेता को हराकर यह साबित कर दिया कि सच्चा नेतृत्व केवल ताकत या विरासत से नहीं, बल्कि सादगी, संघर्ष और जनता के साथ गहरे जुड़ाव से बनता है। यह उनके लिए मात्र एक चुनाव जीत नहीं, बल्कि राजनीति में एक नई शुरुआत और एक प्रेरणादायक मिशन बना है।

विधानसभा में यह उनकी पहली पारी है, और दिलचस्प बात यह है कि अल्फाबेट की वजह से विधायकों की सूची में उनका नाम पहले स्थान पर आता है, जो एक प्रतीकात्मक उपलब्धि बन गई है। इस जीत ने उन्हें न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि पूरे प्रदेश में एक नई पहचान दिलाई है। यह विजय सिर्फ एक राजनीतिक जीत नहीं थी, बल्कि विधान सभा में एक नई आशा और विश्वास की शुरुआत थी, एक ऐसी शुरुआत जो प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा और ऊर्जा की उम्मीद लेकर आई थी। चुनौती इस वजह से भी है क्योंकि विपक्षी दल के एक नेता ने 2012 से 2022 तक इतनी सक्रियता दिखाई कि आज जनता की अपेक्षा आसमान पर हैं, लेकिन वे इस कसौटी पर खरे उतरने का प्रयास कर रहे हैं।



ये है,नाहन विधानसभा क्षेत्र के विधायक अजय सोलंकी। 3 दिसंबर 1971 को शिमला में श्रीमती शीला ठाकुर व दिवंगत मदन पाल सिंह के घर जन्म हुआ। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने जीवन में सादगी और संघर्ष को अपनाया। श्रीमती ज्योतिका ठाकुर से परिणय सूत्र में बंधे और दो बेटियों के साथ एक कृषक के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। विधायक अजय सोलंकी दो होनहार बेटियों — ईशना और विदिशा के पिता हैं। बड़ी बेटी ईशना ने बीटेक की पढ़ाई की है, जबकि छोटी बेटी विदिशा नॉन-मेडिकल की कर रही हैं। परिवार अपनी शिक्षा और संस्कारों के माध्यम से “बेटी है अनमोल” की पंक्ति को जीवंत करता है।
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