मुख्यमंत्री मीम योजना

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राजनीति की उलटी गंगा में तैरने के लिए तैयार हो जाइए, क्योंकि यहां हर मीम विकास के वादों से ज्यादा तेज़ी से पहुंचता है! 🚀😜

सरकार से पहले हम लाए हैं आपको फ्री, बिन सब्सिडी वाले मीम! आपकी सरकार की डिजिटल पहल! यहाँ हम शासन, योजनाओं और जनकल्याण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ सरल भाषा और मीम्स के माध्यम से साझा करते हैं। आपके सुझाव और सहयोग का स्वागत है!

🌺 आज के दिन का इतिहास – 28 मई 1883 🌺"वीर" शब्द को अर्थ देने वाले क्रांतिकारी का जन्मदिन 🙏🇮🇳आज ही के दिन, 28 मई 1883 को उ...
28/05/2025

🌺 आज के दिन का इतिहास – 28 मई 1883 🌺
"वीर" शब्द को अर्थ देने वाले क्रांतिकारी का जन्मदिन 🙏🇮🇳

आज ही के दिन, 28 मई 1883 को उस महापुरुष का जन्म हुआ था, जिनका नाम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में साहस, विचार और बलिदान की मिसाल है — वीर सावरकर।

स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर न सिर्फ एक क्रांतिकारी थे, बल्कि वे एक कवि, लेखक, चिंतक और राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रणेता भी थे। उन्होंने अपनी युवावस्था में ही मातृभूमि को पराधीनता की जंजीरों से मुक्त कराने का संकल्प ले लिया था।

✊ लंदन में बैठकर हिंदुस्तान की आज़ादी का बीज बोने वाले इस योद्धा को ब्रिटिश साम्राज्य ने इतना बड़ा खतरा माना कि उन्हें "काला पानी" की सज़ा दे दी गई।
सेल्युलर जेल की अमानवीय यातनाएं भी उनके इरादों को तोड़ न सकीं। सावरकर ने अपने जेल के दिनों में भी देशभक्ति की कविताएं लिखीं, और अपनी आत्मा की ज्वाला को शब्दों में ढाल दिया।

📚 उनकी लिखी किताब "1857 का स्वतंत्रता संग्राम" को अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि उसमें भारत की आज़ादी के पहले संगठित युद्ध को सच्चे रूप में दिखाया गया था।

लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज की राजनीति में सावरकर जैसे वीरों को जानबूझकर हाशिये पर रखा जाता है।
कांग्रेस पार्टी और उनके 'राजकुमार' ने कई बार वीर सावरकर के बलिदानों और योगदान का मज़ाक उड़ाया, उन्हें "माफ़ीवीर" कह कर नीचा दिखाने की कोशिश की — जबकि वो 'माफ़ीनामा' नहीं, एक रणनीतिक पत्र था ताकि वो जेल से निकलकर फिर से भारतमाता की सेवा कर सकें।

क्या कोई भी व्यक्ति कायर हो सकता है जो अपने देश के लिए काला पानी जैसी भयावह सज़ा झेले? क्या कोई कमजोर दिल का इंसान अंग्रेजों की आंखों में आंखें डाल कर 'भारत माता की जय' बोल सकता है?

नमन है ऐसे वीर सपूत को।
सावरकर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, वे विचारधारा थे — जो आज भी हर राष्ट्रभक्त के दिल में जीवित है।
उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे।

🙏 आइए, आज उनके जन्मदिवस पर हम सभी संकल्प लें कि हम भारत माता के ऐसे वीरों का अपमान नहीं होने देंगे।
उनका सम्मान करना, भारत के आत्मसम्मान को सम्मान देना है।

🚩 वीर सावरकर अमर रहें 🚩
जय हिंद, वंदे मातरम् 🇮🇳

26 मई 1999—यही वो दिन था जब भारत ने करगिल युद्ध में दुश्मन को सबक सिखाने के लिए "ऑपरेशन सफेद सागर" की शुरुआत की थी। ये स...
26/05/2025

26 मई 1999—यही वो दिन था जब भारत ने करगिल युद्ध में दुश्मन को सबक सिखाने के लिए "ऑपरेशन सफेद सागर" की शुरुआत की थी। ये सिर्फ़ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि ये भारत के धैर्य का जवाब, रणनीति का प्रदर्शन और ताकत का खुला ऐलान था। जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने ऊँचाई वाली बर्फ़ीली पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था, तब ज़मीनी लड़ाई के साथ-साथ आसमान से भी कहर बरपाने की ज़रूरत थी—और यहीं से शुरू हुआ भारतीय वायुसेना का ऐतिहासिक अभियान।

पहली बार भारतीय वायुसेना ने इतनी ऊँचाई पर सटीक हमले किए, बिना LOC पार किए दुश्मन के ठिकानों को टुकड़ों में बदल दिया। मिराज-2000 ने जो करिश्मा दिखाया, उसने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय वायुसेना सिर्फ़ एक ताकत नहीं, बल्कि आसमान में उड़ता हुआ प्रचंड आघात है। ये ऑपरेशन सिर्फ़ सैन्य रूप से नहीं, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी पाकिस्तान को झटका देने वाला था।

ऑपरेशन सफेद सागर ने युद्ध का रुख मोड़ दिया। दुश्मन की हिम्मत टूट गई, उसकी रणनीति ध्वस्त हो गई और भारत ने साफ कर दिया कि देश की एक-एक इंच ज़मीन की रक्षा आखिरी सांस तक की जाएगी। इस ऑपरेशन ने भारतीय सैन्य इतिहास में एक ऐसी इबारत लिखी जिसे पीढ़ियाँ गर्व से याद करती रहेंगी।

आज 26 मई है—उसी ऑपरेशन की वर्षगांठ।
आइए सलाम करें उन वीरों को, जिन्होंने आसमान से प्रहार किया और देश की गरिमा को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।

जय हिन्द।

26/05/2025

पाकिस्तानी सेना अब हमास की तर्ज़ पर काम कर रही है — उन्होंने अपने रक्षा सिस्टम आम नागरिकों के घरों में लगाना शुरू कर दिया है।

अगर भारत उन ठिकानों पर हमला करता है, तो पाकिस्तान तुरंत भारतीय सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाएगा।

ठीक वैसे ही जैसे हमास, इज़राइल पर रॉकेट दागने के लिए आम नागरिकों के घरों का इस्तेमाल करता है, और फिर जब जवाबी हमला होता है तो दुनिया के सामने खुद को पीड़ित दिखाता है।

26/05/2025

10 मई की सुबह, पाकिस्तानी फतह-1 मिसाइल (गाइडेड मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम) को आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल द्वारा सफलतापूर्वक रोका गया।

बेल काउंटी, केंटकी – 1946वो खदानों में नहीं उतरी थी।न उसके हाथों में कोई कुल्हाड़ी थी, न उसके चेहरे पर कोयले की धूल।लेकि...
23/05/2025

बेल काउंटी, केंटकी – 1946
वो खदानों में नहीं उतरी थी।
न उसके हाथों में कोई कुल्हाड़ी थी, न उसके चेहरे पर कोयले की धूल।
लेकिन फिर भी, हर दिन वो खदानों के साथ ही जीती थी… और उन्हीं में एक हिस्सा छोड़ भी देती थी।

मिसेज़ एडना लिंगर—एक ऐसी औरत, जो बाहर खड़ी थी, लेकिन भीतर से उन्हीं सुरंगों जितनी मजबूत।
उसका परिवार—पिता, पति, भाई—हर सुबह अंधेरे में उतर जाते, उन सुरंगों में जहाँ दिन-रात का कोई मतलब नहीं होता।
जहाँ सिर्फ पसीना होता है, दम घुटता है… और ज़िंदगी धीरे-धीरे साँस छोड़ती है।

एडना ने कभी कोयला नहीं काटा, लेकिन उसने उम्मीदें काटी थीं… अपने हिस्से की।
उसने आँसू पोंछे थे—बिना रोए।
उसने भूखें देखी थीं—बिना शिकायत किए।

हर सुबह वो चूल्हा जलाती, टीन के डिब्बों में रोटियाँ रखती, और जाते हुए चेहरों पर एक चुपचाप दुआ रख देती।
हर शाम उसकी आँखें दरवाज़े पर टिकी होतीं—उस पगडंडी की ओर, जहाँ से या तो जिंदगी लौटती थी… या ख़बर।

रसेल ली ने उसकी जो तस्वीर खींची, उसमें सिर्फ एडना की आँखें नहीं थीं—वो पूरा इतिहास था।
ऐसी औरतों का इतिहास, जो खदानों में नहीं गईं, पर खदानों से कम गहरी नहीं थीं।

कोयला सिर्फ पुरुषों को नहीं निगलता था—वो उनके घरों की औरतों को रोज़ थोड़ा-थोड़ा जला देता था।
लेकिन वो औरतें बुझती नहीं थीं।

ये सिर्फ एडना की कहानी नहीं है।
ये उन अनगिनत महिलाओं की कहानी है, जो खामोशी से इस दुनिया को थामे रहीं—बिना श्रेय, बिना आवाज़।

उनके हिस्से में सिर्फ इंतज़ार आया… और इतिहास ने उनके इंतज़ार को ‘संघर्ष’ का नाम दे दिया।

जब कोई कौआ बीमार महसूस करता है, तो वो न डॉक्टर के पास जाता है, न ही दवाइयों की दुकान पर।वो उड़ता है… और सीधा दीमकों की ब...
23/05/2025

जब कोई कौआ बीमार महसूस करता है, तो वो न डॉक्टर के पास जाता है, न ही दवाइयों की दुकान पर।
वो उड़ता है… और सीधा दीमकों की बिल ढूंढने निकल पड़ता है।

जैसे ही उसे दीमकों का घर मिल जाता है, वो ज़मीन पर बैठ जाता है, पंख फैला देता है… और एकदम शांत हो जाता है।
मानो खुद को प्रकृति के हवाले कर रहा हो।

थोड़ी ही देर में दीमक उसके पंखों में घुसने लगती हैं।
सामान्य नज़रों से देखें तो लगेगा, ये कौआ पागल हो गया है—लेकिन असल में ये एक बहुत समझदार कदम है।

दीमक फॉर्मिक एसिड छोड़ती हैं—एक नैचुरल एंटीसेप्टिक, जो कौए के पंखों में छिपे कीड़ों, फफूंद और बैक्टीरिया को साफ कर देता है।

इसी प्रक्रिया को कहा जाता है—Anting
और ये सिर्फ कौए ही नहीं, कई पक्षी करते हैं।

कोई गोली नहीं।
कोई इंजेक्शन नहीं।
बस प्रकृति की फार्मेसी… और थोड़ी सी समझदारी।

ये कहानी हमें याद दिलाती है कि अगर हम ध्यान दें, तो प्रकृति खुद ही इलाज करना सिखा देती है।
शर्त बस इतनी है—हम रुकें, देखें और सीखें।

"आतंक पर भाषण देने से पहले आइने में देख ले 'भारत जोड़ो' मंडली!"मा० राहुल गांधी अब मोदी जी से आतंकवादियों पर जवाब मांग रह...
23/05/2025

"आतंक पर भाषण देने से पहले आइने में देख ले 'भारत जोड़ो' मंडली!"

मा० राहुल गांधी अब मोदी जी से आतंकवादियों पर जवाब मांग रहे हैं।
वाह रे साहेब!
पहले तो अपने घर में झाँक ले, फिर संसद में सवाल पूछना।

जब बटाला हाउस मुठभेड़ में आतंकी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद को ढेर किया गया था —
तो देश ने राहत की सांस ली,
और मैडम जी ने मातम मनाया।
पूरी रात "विधवा विलाप" चलता रहा — जैसे कोई सगे-संबंधी छूट गए हों!

इतना ही नहीं, उस मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हुए इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को
एक श्रद्धांजलि तक देना इन "भारत जोड़ो" परिवार को मुनासिब नहीं लगा।
क्योंकि 'शहीद' अगर वोटबैंक में फिट ना बैठे, तो इनका राष्ट्रवाद मौन धारण कर लेता है।

और अब जब सेना आतंकवाद पर करारा जवाब देती है,
तो ये विदेशी माँ-बेटे प्रेस कॉन्फ्रेंस में आँखें तरेरते हैं —
जैसे राष्ट्रवाद का ठेका इन्हीं की नैनीताल वाली हवेली से निकला हो।

सच ये है — कि हथियार उठाने वाला आतंकी एक बार ख़त्म होता है,
लेकिन देश के अंदर बैठा ‘पॉलिटिकल प्रॉक्सी’ आतंक —
वो हर माइक, हर मंच और हर मोहब्बत के नारे के पीछे ज़िंदा रहता है।

देश को आतंकी नहीं, ये 'मदर-सन डुओ' खोखला कर रहे हैं।
इनका निपटारा लोकतांत्रिक भाषा में नहीं —
जनता के वोट और राष्ट्रभक्ति की ताकत से ज़रूरी हो गया है।

वामपंथी प्रेम का वो अपवाद जो हर बार नियम बन जाता है..वामपंथी प्रगतिवाद का बड़ा अजीब दर्शन है —जहाँ मज़हब की आलोचना "हेट ...
23/05/2025

वामपंथी प्रेम का वो अपवाद जो हर बार नियम बन जाता है..

वामपंथी प्रगतिवाद का बड़ा अजीब दर्शन है —
जहाँ मज़हब की आलोचना "हेट स्पीच" है, लेकिन हिन्दू धर्म पर गाली देना "फ्री स्पीच"!
जहाँ बलात्कार का दोष धर्म देखकर तय होता है, और अगर अपराधी "अपने खेमे" का निकला, तो पीड़िता की चुप्पी भी प्रगतिशीलता मानी जाती है!

जो वामपंथी लड़कियाँ अपने प्रेम को 'बौद्धिक विद्रोह' मानती हैं, वो अक्सर अंत में शब्दों के नहीं, चप्पलों के लोकतंत्र में बदल जाती हैं।
और तब भी इस्लाम को दोष नहीं देतीं, बस 'मर्द' को बुरा बताकर आगे बढ़ जाती हैं।

कभी-कभी लगता है कि इनकी आत्मा में कहीं एक पतिव्रता नारी की आत्मा बैठी है —
जो मज़हब चाहे जितना भी पीटे, वो उसके खिलाफ कुछ नहीं कहती।
पर हिन्दू धर्म ने कह दिया "करवा चौथ" — बस यही 'पितृसत्ता' का आखिरी किला समझ लिया जाता है!

23/05/2025

मौत के बाद भी जिंदा रहती हैं शरीर की कुछ कोशिकाएं – एक रहस्यमयी हकीकत

जब इंसान आखिरी सांस लेता है, तो ऐसा नहीं है कि पूरा शरीर एक साथ मर जाता है। मौत एक प्रक्रिया है, न कि एक पल में होने वाली घटना। जैसे ही सांस लेना बंद होता है, शरीर के अंदर कई बदलाव शुरू हो जाते हैं। इस पूरे घटनाक्रम को वैज्ञानिक भाषा में "मृत्यु की संधि" (Twilight of Death) कहा जाता है। आइए, समझते हैं इस रहस्यमयी प्रक्रिया को विस्तार से:

सांस रुकते ही दिमाग और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की कोशिकाएं सबसे पहले प्रभावित होती हैं। इन्हें लगातार ऑक्सीजन चाहिए होती है, और जब ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होती है, तो ये कोशिकाएं कुछ ही मिनटों में मरने लगती हैं। दिमाग की कोशिकाएं सबसे संवेदनशील होती हैं और मौत की पुष्टि भी अक्सर इन्हीं की कार्यशक्ति खत्म होने के आधार पर की जाती है।

दिल, किडनी, लिवर और पैंक्रियास धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं, लेकिन ये कुछ समय तक जिंदा रह सकते हैं, खासकर अगर उन्हें सही तापमान पर रखा जाए या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए सुरक्षित किया जाए।

त्वचा, मांसपेशियों के रेशे, आंखों के कुछ हिस्से और दिल के वाल्व लगभग 24 घंटे तक जिंदा रह सकते हैं।

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सफेद रक्त कोशिकाएं (WBCs) तीन दिन तक भी सक्रिय रह सकती हैं।

मौत के बाद जीवन जैसी हलचल: जीन और डीएनए की सक्रियता

वैज्ञानिकों ने हाल के वर्षों में एक चौंकाने वाली खोज की है — मौत के कई घंटे या कभी-कभी दो-तीन दिन बाद तक कुछ जीन सक्रिय हो जाते हैं। यानी डीएनए से आरएनए बनने की प्रक्रिया (जिसे Transcription कहा जाता है), मृत शरीर में भी चल सकती है। ये वही प्रक्रिया है जो आमतौर पर जिंदा शरीर में होती है।

ऐसा लगता है जैसे शरीर की कुछ कोशिकाएं मरने के बाद भी खुद को "बचाने" की कोशिश करती हैं और अपने जेनेटिक कोड में बदलाव करने लगती हैं।

क्या यही कैंसर का कारण हो सकता है?

शोध में ये भी देखा गया है कि जिन लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट (दूसरे व्यक्ति का अंग) लगाया गया, उनमें कैंसर का खतरा थोड़ा अधिक देखा गया है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मौत के बाद कोशिकाओं में जो जेनेटिक बदलाव होते हैं, वही आगे चलकर अनियंत्रित कोशिका विभाजन (cancerous growth) का कारण बन सकते हैं।

ऐसा मान सकते हैं कि मरने के बाद शरीर की कुछ कोशिकाएं "पैनिक मोड" में चली जाती हैं — यानी डर के कारण डीएनए में बदलाव करती हैं, जो बाद में खतरा बन सकता है।

मौत एक अंत नहीं, बल्कि एक धीमी प्रक्रिया है। शरीर के अंदर की कुछ कोशिकाएं उस आखिरी क्षण के बाद भी जीवित रहती हैं, और कुछ तो नई गतिविधियां शुरू कर देती हैं। ये रहस्य न केवल हमारे जीवन को बेहतर समझने में मदद करते हैं, बल्कि चिकित्सा और जैविक विज्ञान के क्षेत्र में भी नई दिशाएं खोलते हैं

ए.एस. दुलत — नाम याद रखिएगा।1999-2000 में RAW के प्रमुख रहे, फिर पीएमओ में कश्मीर मामलों के 'विशेष सलाहकार' बने।कश्मीरिय...
23/05/2025

ए.एस. दुलत — नाम याद रखिएगा।
1999-2000 में RAW के प्रमुख रहे, फिर पीएमओ में कश्मीर मामलों के 'विशेष सलाहकार' बने।
कश्मीरियत-जम्हूरियत-इंसानियत जैसे हवाई नैरेटिव के पीछे जो दिमाग था, वही दुलत साहब थे।

इन्हीं की सलाह पर वाजपेयी लाहौर बस ले गए, इन्हीं की "सॉफ्ट एप्रोच" में आतंकियों की जेब भरती रही।
RAW जैसी संस्था का प्रमुख होकर, इन्हें आतंकियों को पैसे खिलाना "ऑपरेशनल अनिवार्यता" लगता है!

अब ज़रा ताज़ा घटना सुनिए:
हाल ही में एक पॉडकास्ट में जब एक पत्रकार ने दुलत साहब से कुछ तीखे सवाल पूछ लिए —
तो जनाब बौखला गए।
पत्रकार को माँ-बहन की गालियाँ देने लगे, हाथापाई तक पर उतर आए।

अब सोचिए — ये हाल आज है जब ये पावर में नहीं हैं,
तो जब ये ताक़त में थे, तब इनका रवैया कितना गंदा रहा होगा?
कितने पत्रकारों को दबाया होगा, कितनों को साइलेंस किया गया होगा?
और किस हद तक अपने अजेंडे के लिए देश की जड़ें खोखली की गई होंगी?

इनके जैसे लोग एजेंसियों के अंदर घुसे वो वायरस हैं,
जो 'शांति' के नाम पर आतंक को पालते हैं, और 'डायलॉग' के नाम पर दुश्मनों को डेटा देते हैं।

इनका दर्द अब सिर्फ एक चीज़ है —
मोदी सरकार ने इनके 'पैसे दो, चुप बैठो' मॉडल को ध्वस्त कर दिया।
धारा 370 हटाकर इनके सारे नैरेटिव की चूलें हिला दीं।

अब ये टीवी पर बैठकर बौखलाएंगे, गालियाँ देंगे, हाथ उठाएँगे —
क्योंकि देश अब इनके गंदे खेल का हिस्सा नहीं रहा।

भारत बदला है — और अब ये एजेंडा वाले चेहरों का नकाब उतर रहा है।

"ये मंज़र है मुरीदके का... जहां 'कभी' पाकिस्तानी फौज का अड्डा हुआ करता था। अब सिर्फ मलबा है — और वो मलबा भी गवाह है भारत...
23/05/2025

"ये मंज़र है मुरीदके का... जहां 'कभी' पाकिस्तानी फौज का अड्डा हुआ करता था। अब सिर्फ मलबा है — और वो मलबा भी गवाह है भारतीय वायुसेना की सर्जिकल गूंज का।"

तस्वीर न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी है, पर कहानी हिंदुस्तान की कलम से लिखी गई है।
ये जवाब नहीं, एक चेतावनी है —
जिसकी मिसाल अब हर पत्थर पर खुदी है।

"देशद्रोह की असली कहानी 1991 से लिखी जा चुकी थी, बस अब जनता पढ़ रही है!"बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस को आड़े ह...
23/05/2025

"देशद्रोह की असली कहानी 1991 से लिखी जा चुकी थी, बस अब जनता पढ़ रही है!"

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए 1991 के भारत–पाक सैन्य समझौते पर सीधे सवाल दागे हैं — और इस बार निशाना है राहुल गांधी।

दावा साफ है:
जब पाकिस्तान को 1947 से हम आतंक की फैक्ट्री मानते हैं,
जब वो हमारे कश्मीर पर कब्ज़ा जमाए बैठा है,
जब उसकी नीयत और नीतियों पर हर दिन लहू बहता है,
तो 1991 में उसकी फौजी हरकतों की जानकारी उसे देना — समझौता नहीं, देश के खिलाफ साज़िश है।

निशिकांत दुबे ने X (Twitter) पर राहुल से पूछा —
"क्या ये वही समझौता नहीं है, जो आपकी कांग्रेस समर्थित सरकार ने किया था?
क्या ये देशद्रोह नहीं है?
और अब जब वही बात विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं, तो आप उन पर उंगली उठाते हो?"

नेहरू–लियाकत समझौता हो, सिंधु जल संधि हो, शिमला समझौता हो — कांग्रेस ने हर बार पाकिस्तान को 'रियायतों की मिठाई' दी, और बदले में देश ने ताबूत उठाए।

कांग्रेस का हाथ पाकिस्तान के साथ — अब ये जुमला नहीं, दस्तावेज़ी इतिहास है।

निशिकांत दुबे का साफ कहना है —
"इस समझौते को लागू करने वाले, और कांग्रेस पार्टी पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
देश के साथ धोखा सिर्फ भाषणों से नहीं होता, दस्तख़तों से भी होता है।"

अब सवाल जनता से है —
क्या आप भी इस चुप्पी में शरीक हैं, या देशद्रोह पर हिसाब तय करने को तैयार?

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