
18/12/2024
storyline021 यौवन से भरपूर नईनवेली दुलहन सिया के हावभाव इतने ठंडे थे कि आदित्य को अपनी मर्दानगी पर शक होने लगा था. आखिर क्यों थी सिया ऐसी...
शादी के बाद जब सारे मेहमान विदा हो गए, तो आदित्य थकावट से चूर था। शादी में खूब रौनक थी, लेकिन अब घर सूना और शांत हो चुका था। उसने अपनी मां सुजाता को आवाज लगाई,
"मां, एक कप चाय बना देंगी?"
चाय का ख्याल आते ही आदित्य ने सोचा कि सिया से भी पूछ ले। नई-नवेली दुल्हन थी, पता नहीं नए घर में कैसा महसूस कर रही होगी।
सिया का ठंडा व्यवहार
आदित्य ने सिया के कमरे का दरवाजा धीरे से खटखटाया। अंदर से सिया की धीमी आवाज आई,
"कौन है?"
"मैं हूं, आदित्य," उसने कहा।
अंदर जाकर देखा, सिया हल्के बादामी रंग का सूट पहने खड़ी थी। न होंठों पर लिपस्टिक, न आंखों में काजल, और न ही कोई सजावट। ऐसा नहीं था कि आदित्य को सिया के सजने-संवरने की उम्मीद थी, लेकिन उसके चेहरे पर खुशी की कोई झलक नहीं थी।
आदित्य ने चिंतित स्वर में पूछा,
"सब ठीक है, सिया? चाय पीओगी?"
सिया ने सपाट स्वर में जवाब दिया,
"नहीं, मुझे चाय नहीं चाहिए।"
उसका रूखा व्यवहार देखकर आदित्य उलझन में पड़ गया और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर आ गया।
शादी के बाद का पहला दिन
रात में आदित्य कई अरमान लेकर सिया के पास गया था। उसने सोचा था कि वे ढेर सारी बातें करेंगे, अपने भविष्य के सपनों को साझा करेंगे। लेकिन जब वह कमरे में पहुंचा, तो सिया गहरी नींद में सो रही थी।
आदित्य को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने सोचा,
"शायद शादी की थकावट की वजह से सो गई होगी।"
सिया की उलझन का कारण
अगले दिन भी सिया का व्यवहार वैसा ही ठंडा रहा। वह ज्यादा बात नहीं करती थी और घर के लोगों से भी दूर-दूर रहती थी। आदित्य ने महसूस किया कि वह न सिर्फ उससे, बल्कि पूरे माहौल से अलग-थलग महसूस कर रही थी।
आखिरकार, आदित्य ने सिया से बात करने का फैसला किया। उसने शाम को उसे बैठाया और पूछा,
"सिया, क्या तुम खुश नहीं हो? तुम मुझसे खुलकर बात क्यों नहीं करती?"
सिया ने सिर झुका लिया और कुछ देर चुप रहने के बाद बोली,
"आदित्य, मुझे इस शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार होने का मौका नहीं मिला। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए यह फैसला किया। मैं अब भी खुद को इस बदलाव के लिए तैयार करने की कोशिश कर रही हूं।"
आदित्य की समझदारी
सिया की बात सुनकर आदित्य को उसकी परेशानी समझ आई। उसने सिया का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"सिया, मैं तुम्हें समझने और इस बदलाव के लिए समय देने के लिए तैयार हूं। यह हमारा घर है, और मैं चाहता हूं कि तुम इसे अपना घर मानो। अगर तुम्हें कभी मुझसे बात करनी हो, तो झिझको मत।"
सिया की आंखों में पहली बार नरमी और कृतज्ञता की झलक आई। उसने धीमे स्वर में कहा,
"धन्यवाद, आदित्य। मैं कोशिश करूंगी।"
धीरे-धीरे बढ़ती नजदीकियां
आदित्य ने सिया को खुश करने के लिए छोटे-छोटे प्रयास किए। उसने सिया के पसंदीदा फूल लाकर दिए, उसके साथ उसकी पसंदीदा फिल्म देखी, और कभी-कभी चुपचाप उसके लिए चाय बना लाया। सिया ने भी अपने मन के डर और उलझनों को पीछे छोड़ते हुए घर को अपनाना शुरू कर दिया।
एक नई शुरुआत
कुछ हफ्तों के भीतर, सिया और आदित्य के बीच की दीवारें टूटने लगीं। सिया ने अपने दिल की बात साझा करना शुरू किया और आदित्य ने उसकी हर भावना को सम्मान दिया।
निष्कर्ष
सिया और आदित्य की यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ते धैर्य, समझ और आपसी सम्मान से मजबूत होते हैं। सिया ने जहां नए रिश्ते को अपनाना सीखा, वहीं आदित्य ने उसकी भावनाओं को समझते हुए एक सच्चे साथी का फर्ज निभाया। धीरे-धीरे उनकी शादी एक खूबसूरत साझेदारी में बदल गई ?