Ram bhakt

Ram bhakt " | रोज़ नई प्रेरणा, नई उमंग! ज़िंदगी को बदलने वाले अनमोल विचार। फॉलो करें और सपनों को हकीकत बनाएं! #प्रेरणा #कोट्स"

08/05/2025
भगवान सिर्फ उन्ही की सहायता करता है जो लोग खुद अपनी सहायता स्वयं करते हैं – सुविचार स्वामी विवेकानंद।इस बात से फर्क नहीं...
04/05/2025

भगवान सिर्फ उन्ही की सहायता करता है जो लोग खुद अपनी सहायता स्वयं करते हैं – सुविचार स्वामी विवेकानंद।
इस बात से फर्क नहीं पड़ता तुम कितनी ग़लती करते हो या कितनी धीरे बढ़ रहे हो, उन लोगों से बहुत आगे हो जो कोशिश ही नहीं करते – टोनी रॉबिन्स।
किसी भी कार्य करने के लिए तुरन्त उठो, जागो और तब तक नही रुकना जब तक लक्ष्य हासिल न हो जाए – स्वामी विवेकानंद।
जिस जिस पर यह जग हंसा है, उसी ने इतिहास रचा है।
सफलता पाने के लिए आत्म-विश्वास जरुरी है, और आत्म-विश्वास के लिए तैयारी !
आप तब तक नहीं हार सकते, जब तक आप कोशिश करना नहीं छोड़ देते।
आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है, और आत्म-सम्मान वह नींव है जिस पर आत्मविश्वास खड़ा होता है।”
“अपने आप पर विश्वास रखें! अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखें! बिना किसी विनम्र लेकिन उचित आत्मविश्वास के, आप सफल या खुश नहीं हो सकते।” – नॉर्मन विंसेंट पील
“अपने आप पर विश्वास करना एक अंतहीन साहसिक कार्य की शुरुआत है।”
“सफलता उन लोगों को मिलती है जो खुद पर विश्वास करते हैं और अपने लक्ष्यों के लिए मेहनत करते हैं।”
“आत्मविश्वास वह शक्ति है जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।”
“आप जो सोचते हैं, वही बनते हैं।” – गौतम बुद्ध
“सपनों को साकार करने का पहला कदम है खुद पर विश्वास करना।”
“अपने आप को पहचानें और आपको अपने आप में एक अद्वितीय शक्ति मिलेगी।”
“आत्मविश्वास से ही आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।”
“जो लोग खुद पर विश्वास करते हैं, वे ही दुनिया को बदल सकते हैं।”
“आपके सपने और आपका आत्मविश्वास एक-दूसरे के पूरक हैं।”
“आत्मविश्वास का मतलब है कि आप अपने सपनों का पीछा करें, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं।”
“प्रेरणा आपको शुरुआत करवाती है, और आदत आपको आगे बढ़ाती है।” – जिम रॉन
“आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा आपके भीतर है।”
“सपने देखने वालों को अपने आप पर विश्वास होता है।”
“आत्मविश्वास का सबसे बड़ा रहस्य है अपने आप को बेहतर समझना और स्वीकार करना।”
“अपने आत्मविश्वास को हमेशा ऊँचा रखें, क्योंकि यही आपकी असली ताकत है।”
“आपका आत्मविश्वास ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है।”
“प्रेरणा वह ईंधन है जो आपके आत्मविश्वास को जिंदा रखता है।”
“जब आप अपने आप पर विश्वास करते हैं, तो कुछ भी संभव हो जाता है।”

03/05/2025

बड़े सपनों की राह आसान नहीं होती, इसलिए हार मत मानो 🌟🚀.”
“जो सपनों के लिए मेहनत करना नहीं छोड़ते सफलता उन्हीं को मिलती है 🏅💭.”
“सपने वो नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।” — अब्दुल कलाम

“मंज़िल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है बड़े सपनों की राह आ...
03/05/2025

“मंज़िल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है

बड़े सपनों की राह आसान नहीं होती, इसलिए हार मत मानो 🌟🚀.”
“जो सपनों के लिए मेहनत करना नहीं छोड़ते सफलता उन्हीं को मिलती है 🏅💭.”
“सपने वो नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।” — अब्दुल कलाम
“सपनों को सच करने से पहले सपनों को ध्यान से देखना होता है 🌙👀.”
“अपने लक्ष्य के लिए जोशीले और जुनूनी बनिए… विश्वास रखिए, परिश्रम का फल सफलता ही है 🌟💯.”
“जिस दिन से तुम्हारी सोच बड़ी हो जाती है, उसी दिन से तुम्हारी दुनिया भी बड़ी हो जाएगी 🌍💭.”
“जीवन में अपने लक्ष्य के लिए दृढ़ संकल्पित होना आवश्यक होता है, इसी से मानव सफलता पाता है 🎯💪.”
“अगर लक्ष्य बड़ा है, तो संघर्ष भी बड़ा होगा, लेकिन जीत आपकी ही होगी 🎯💪.”

01/05/2025

Happy labours day

“जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है    Ram bhakt
30/04/2025

“जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है


Ram bhakt

कर्म ज्ञान का अर्थ है कर्म (कार्य, कृत्य या कारण-प्रभाव का नियम) और ज्ञान (बुद्धि या आध्यात्मिक समझ) का संयोजन। यह भारती...
30/04/2025

कर्म ज्ञान का अर्थ है कर्म (कार्य, कृत्य या कारण-प्रभाव का नियम) और ज्ञान (बुद्धि या आध्यात्मिक समझ) का संयोजन। यह भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं जैसे हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में कर्म के सिद्धांत को समझने की बुद्धि को दर्शाता है। नीचे इसका संक्षिप्त विवरण है:
कर्म ज्ञान का अर्थ
कर्म: कार्य और उनके परिणामों को संदर्भित करता है, जो कारण और प्रभाव के सिद्धांत द्वारा संचालित होते हैं। अच्छे इरादे से किए गए कार्य (अच्छा कर्म) सकारात्मक परिणाम देते हैं, जबकि हानिकारक कार्य (बुरा कर्म) नकारात्मक परिणाम लाते हैं, जो भविष्य के अनुभवों या पुनर्जनन को प्रभावित करते हैं।

ज्ञान: आध्यात्मिक बुद्धि जो आत्म-साक्षात्कार या मोक्ष की ओर ले जाती है।

कर्म ज्ञान: कर्मों के जीवन, भाग्य और आध्यात्मिक यात्रा पर प्रभाव को समझने की बुद्धि। इसमें कार्यों के नैतिक और आध्यात्मिक प्रभाव, निस्वार्थ इरादे का महत्व और सजग कार्यों के माध्यम से मुक्ति का मार्ग शामिल है।
भारतीय दर्शन में संदर्भ
हिंदू धर्म:
भगवद गीता में कर्म योग (कार्य का योग) मुक्ति का मार्ग है, जो परिणामों से आसक्ति के बिना निस्वार्थ कार्य पर जोर देता है। ज्ञान इसे आत्मा (आत्मन) की प्रकृति और भौतिक परिणामों की क्षणभंगुरता को समझने में मदद करता है।

कर्म ज्ञान का अर्थ है यह समझना कि धर्म (कर्तव्य) और अहंकार के बिना किए गए कार्य मन को शुद्ध करते हैं और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाते हैं।

उदाहरण: श्रीकृष्ण अर्जुन को योद्धा के रूप में कर्तव्य निभाने की सलाह देते हैं, बिना व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के, आत्मा की शाश्वतता के ज्ञान से प्रेरित होकर।
बौद्ध धर्म:
बौद्ध धर्म में कर्म का अर्थ है इरादे (चेतना) से प्रेरित कार्य, जो पुनर्जनन के चक्र (संसार) में भविष्य के अनुभवों को निर्धारित करते हैं।

यहाँ ज्ञान आत्मा की क्षणभंगुरता (अनत्ता) और दुख की प्रकृति में अंतर्दृष्टि को दर्शाता है, जो कर्म के बोझ को कम करने और निर्वाण प्राप्त करने के लिए कुशलता से कार्य करने में मदद करता है।
जैन धर्म:
कर्म को सूक्ष्म पदार्थ के रूप में देखा जाता है जो कार्यों, विचारों या भावनाओं के कारण आत्मा से चिपक जाता है। जैन धर्म में कर्म ज्ञान कर्म के प्रवाह को कम करने (अहिंसा, सत्य आदि के माध्यम से) और आत्मा को मुक्ति के लिए शुद्ध करने की समझ है।
कर्म ज्ञान का व्यावहारिक महत्व
नैतिक जीवन: कर्म की समझ अच्छे इरादे, करुणा और सत्यनिष्ठा के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, यह जानते हुए कि कार्य भविष्य के परिणामों को प्रभावित करते हैं।

वैराग्य: कर्म के बारे में ज्ञान परिणामों से आसक्ति छोड़ने और निस्वार्थ भाव से कार्य करने में मदद करता है।

आध्यात्मिक प्रगति: कर्म ज्ञान व्यक्ति को अपने कार्यों के प्रति सचेत बनाता है, जो आत्म-शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।
यदि आप कर्म ज्ञान के किसी विशेष पहलू पर विस्तार चाहते हैं, तो कृपया बताएं!

दुनिया का सबसे बड़ा गुरू समय।    Ram bhakt
29/04/2025

दुनिया का सबसे बड़ा गुरू समय।


Ram bhakt

कश्मीर का इतिहास हजारों वर्षों का एक जटिल और समृद्ध कालखंड है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक परिवर्तनों की कहान...
29/04/2025

कश्मीर का इतिहास हजारों वर्षों का एक जटिल और समृद्ध कालखंड है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक परिवर्तनों की कहानी समाहित है। यह क्षेत्र, जो ऐतिहासिक रूप से कश्मीर घाटी पर केंद्रित रहा, अब भारतीय प्रशासित जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, pok और गिलगित-बाल्टिस्तान, तथा चीन प्रशासित अक्साई चिन और ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को शामिल करता है। नीचे इसका संक्षिप्त इतिहास हिंदी में दिया गया है:

प्राचीन और प्रारंभिक इतिहास (पहली सहस्राब्दी ई.पू. से पहले)
उत्पत्ति और पौराणिक कथाएँ: कश्मीर का नाम संभवतः संस्कृत शब्दों "क" (जल) और "शिमीर" (सूखना) से आया, जो एक पौराणिक कथा को दर्शाता है जिसमें ऋषि कश्यप ने एक विशाल झील को सुखाकर कश्मीर घाटी बनाई। दूसरी व्याख्याएँ इसे कश्यप-मीर (कश्यप की झील) या कश्यप-मेरु (कश्यप का पर्वत) से जोड़ती हैं। प्राचीन ग्रंथों में, जैसे पाणिनि की अष्टाध्यायी (5वीं शताब्दी ई.पू.), कश्मीर के निवासियों को "कश्मीरिका" कहा गया।

प्रारंभिक मानव गतिविधियाँ: पुरातात्विक खोजों, जैसे गलंदर स्थल (लगभग 4,00,000–3,00,000 वर्ष पूर्व), से पत्थर के औजार और हाथी के अवशेष मिले, जो दर्शाते हैं कि प्राचीन मानव यहाँ शिकार और भोजन संग्रह करते थे। यह कश्मीर को दक्षिण एशिया के सबसे पुराने मानव निवास स्थलों में से одни बनाता है।

वैदिक और बौद्ध युग: वैदिक साहित्य में कश्मीर को शारदा पीठ के रूप में उल्लेखित किया गया, जो विद्या की देवी सरस्वती का केंद्र था। तीसरी शताब्दी ई.पू. में मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया, श्रीनगर की स्थापना की, और बौद्ध विहार बनवाए। कुषाण वंश (1ली-3री शताब्दी ई.) के दौरान, विशेष रूप से सम्राट कनिष्क के शासन में, कश्मीर बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना। यहाँ आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति ने बौद्ध धर्म के प्रसार को और बढ़ाया। फिर भी, हिंदू धर्म का प्रभाव बरकरार रहा, जैसा कि शैव और वैष्णव मंदिरों से पता चलता है।

कारकोटा वंश (625-855 ई.): इस वंश की स्थापना दुरालभवर्धन ने की। इसके सबसे प्रसिद्ध शासक ललितादित्य मुक्तापीड़ (724-760 ई.) ने कश्मीर को सैन्य और सांस्कृतिक शक्ति के शिखर पर पहुँचाया। उन्होंने मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। ललितादित्य ने मध्य एशिया तक सैन्य अभियान चलाए और व्यापार को बढ़ावा दिया। इस काल में कश्मीर ने हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण देखा।
मध्यकाल (9वीं-16वीं शताब्दी)
उत्पल और लोहारा वंश: कारकोटा वंश के पतन के बाद उत्पल वंश (855-1003 ई.) ने शासन किया। अवंतिवर्मन (855-883 ई.) ने सिंचाई और कृषि सुधारों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। उनके बाद लोहारा वंश (1003-1101 ई.) आया, लेकिन आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमणों ने हिंदू शासन को कमजोर किया। 14वीं शताब्दी तक हिंदू शासन लगभग समाप्त हो गया, और 1339 में अंतिम हिंदू शासिका कोटा रानी की मृत्यु हुई।

इस्लाम का आगमन: 13वीं शताब्दी में सूफी संतों, जैसे बुलबुल शाह, ने कश्मीर में इस्लाम का प्रसार शुरू किया। 1320 में राजा रिनचेन ने इस्लाम अपनाया और सदरुद्दीन शाह के नाम से शासन किया। 1339 में शाह मीर ने शाह मीर वंश की स्थापना की, जो कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक वंश था। सुल्तान सिकंदर (1389-1413) को "बुत-शिकन" (मूर्ति तोड़ने वाला) कहा गया, क्योंकि उनके शासन में कुछ हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुँचा। हालांकि, कुछ इतिहासकार, जैसे प्रो. मोहिबुल हसन, मानते हैं कि ब्राह्मण लेखकों ने इसकी अतिशयोक्ति की।

जैन-उल-आबिदीन (1420-1470): "बड़ा राजा" के नाम से प्रसिद्ध, इस सुल्तान ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया, हिंदुओं और बौद्धों को संरक्षण दिया, और कला, साहित्य, और शिल्प को प्रोत्साहित किया। उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाया और कश्मीरी शॉल उद्योग को पुनर्जनन दिया। उनका शासन कश्मीर का स्वर्ण युग माना जाता है।

मुगल शासन (1586-1751): 1586 में अकबर ने चक वंश को हराकर कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। मुगलों ने कश्मीर को ग्रीष्मकालीन अवकाश स्थल के रूप में विकसित किया। जहांगीर ने शालीमार, निशात, और चश्मा शाही जैसे बाग बनवाए, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। हालांकि, मुगल शासन में स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति खराब रही, क्योंकि करों का बोझ बढ़ गया और शासन कुलीन वर्ग पर केंद्रित रहा।
प्रारंभिक आधुनिक काल (1751-1846)
अफगान शासन (1751-1819): अफगान दुर्रानी साम्राज्य ने कश्मीर पर कब्जा किया, लेकिन उनका शासन क्रूर था। भारी करों और जबरन श्रम ने स्थानीय शॉल और रेशम उद्योगों को नुकसान पहुँचाया। कई कश्मीरी कारीगर गुलाम बनाए गए, और अर्थव्यवस्था चरमरा गई।

सिख शासन (1819-1846): सिख शासक रणजीत सिंह ने 1819 में कश्मीर पर कब्जा किया। उनका प्रशासन भ्रष्ट और दमनकारी था। ब्रिटिश यात्री विलियम मूरक्रॉफ्ट ने लिखा कि सिख शासकों ने स्थानीय लोगों का शोषण किया और उनकी संस्कृति का सम्मान नहीं किया। इस काल में कश्मीरी शॉल की माँग यूरोप में बढ़ी, लेकिन उत्पादन में कमी आई।

डोगरा शासन (1846-1947): प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध के बाद, ब्रिटिश ने 1846 में अमृतसर संधि के तहत कश्मीर को डोगरा शासक गुलाब सिंह को 75 लाख रुपये में बेच दिया। डोगरा शासन ने हिंदू अधिकारियों को प्राथमिकता दी, जबकि मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी को हाशिए पर रखा गया। करों और बेगार (जबरन श्रम) ने जनता को त्रस्त किया। 1865 में शॉल बुनकरों ने विद्रोह किया, लेकिन इसे कुचल दिया गया। डोगरा शासन ने कश्मीरी पहचान को दबाने की कोशिश की, जिससे असंतोष बढ़ा।
आधुनिक इतिहास और संघर्ष (1846-वर्तमान)
विभाजन और विलय (1947): 1947 में भारत के विभाजन के समय, कश्मीर के हिंदू महाराजा हरि सिंह ने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला टाला। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान समर्थित पश्तून कबीलों ने कश्मीर पर आक्रमण किया। हरि सिंह ने भारत से सैन्य सहायता माँगी और 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कश्मीर भारत का हिस्सा बना। इससे प्रथम भारत-पाक युद्ध (1947-1948) शुरू हुआ। 1948 में संयुक्त राष्ट्र के युद्धविराम के बाद, कश्मीर का दो-तिहाई हिस्सा (जम्मू, कश्मीर घाटी, लद्दाख) भारत के पास और एक-तिहाई (आজाद कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान) पाकिस्तान के पास रहा। 1950 के दशक में चीन ने अक्साई चिन और ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट पर कब्जा कर लिया।

अनुच्छेद 370 और प्रारंभिक संघर्ष: भारत ने 1950 में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता दी, जिसमें उसे अपना संविधान और आंतरिक मामलों में स्वतंत्रता मिली। हालांकि, 1950 और 1960 के दशक में भारत द्वारा नियुक्त प्रशासकों और कथित तौर पर धाँधली वाले चुनावों ने स्थानीय असंतोष को बढ़ाया। शेख अब्दुल्लाह, जो शुरू में भारत समर्थक थे, ने जनमत संग्रह की माँग की, जिसके कारण उन्हें 1953 में जेल में डाल दिया गया। 1980 के दशक तक, कश्मीरी युवाओं में अलगाववादी भावनाएँ बढ़ने लगीं।

1987 का विद्रोह: 1987 के जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव को व्यापक रूप से धाँधली वाला माना गया, जिसने युवाओं को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया। पाकिस्तान ने इन विद्रोहियों को प्रशिक्षण और हथियार प्रदान किए, जिससे 1989 में सशस्त्र विद्रोह शुरू हुआ। इस हिंसा में हजारों लोग मारे गए, और कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। भारतीय सेना ने विद्रोह को दबाने के लिए व्यापक सैन्य अभियान चलाए, जिससे मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगे।

अनुच्छेद 370 का निरसन (2019): 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिससे जम्मू और कश्मीर की विशेष स्वायत्तता समाप्त हो गई। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों—जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख—में विभाजित कर दिया गया। इस दौरान कश्मीर में संचार अवरुद्ध कर दिया गया, नेताओं को नजरबंद किया गया, और सैन्य उपस्थिति बढ़ाई गई। भारत सरकार ने इसे कश्मीर के विकास और एकीकरण के लिए जरूरी बताया, लेकिन कई कश्मीरियों और आलोचकों ने इसे औपनिवेशिक कदम करार दिया। इसने क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया।

वर्तमान स्थिति (2025): कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक प्रमुख विवाद बिंदु बना हुआ है। दोनों देशों ने 1947, 1965, और 1999 (कारगिल युद्ध) में युद्ध लड़े। हाल के वर्षों में, जैसे अप्रैल 2025 में सीमा पर हुई झड़पें, तनाव बरकरार है। कश्मीरी लोग स्वतंत्रता या स्वायत्तता की माँग करते हैं, लेकिन भारत और पाकिस्तान की राष्ट्रीयवादी नीतियों के बीच उनकी आवाज दब जाती है। क्षेत्र में भारी सैन्यीकरण और मानवाधिकार मुद्दे चिंता का विषय हैं।
सांस्कृतिक और आर्थिक पहलू
अर्थव्यवस्था: कश्मीर की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक रूप से कृषि पर आधारित रही, जिसमें चावल, गेहूँ, सेब, चेरी, और केसर प्रमुख उपज हैं। कश्मीरी शॉल, विशेष रूप से पश्मीना, एक समय विश्व प्रसिद्ध था, लेकिन डोगरा और ब्रिटिश काल में यह उद्योग कमजोर हुआ। आज पर्यटन और हस्तशिल्प महत्वपूर्ण हैं, लेकिन संघर्ष ने आर्थिक विकास को बाधित किया है।

संस्कृति: कश्मीर की संस्कृति हिंदू, बौद्ध, और इस्लामी प्रभावों का अनूठा मिश्रण है। सूफी संत शेख नूर-उद-दीन नूरानी और कवयित्री लल्लेश्वरी ने कश्मीरी आध्यात्मिकता को आकार दिया। कश्मीरी संगीत, नृत्य (जैसे रूफ), और वास्तुकला (मुगल बाग, मार्तंड मंदिर) इसकी समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं।

इतिहास लेखन: कल्हण की राजतरंगिणी (12वीं शताब्दी) कश्मीर का प्राथमिक ऐतिहासिक ग्रंथ है, लेकिन यह ब्राह्मण-केंद्रित है और बौद्ध व मुस्लिम योगदान को कम आँकता है। मुस्लिम ग्रंथ, जैसे बहारिस्तान-ए-शाही, वैकल्पिक दृष्टिकोण देते हैं। आधुनिक इतिहास लेखन अक्सर भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीयवादी नैरेटिव से प्रभावित होता है, जो कश्मीरी जनता की आवाज को कम करता है।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
कश्मीर का इतिहास केवल 1947 के विवाद तक सीमित नहीं है; यह 5,000 वर्षों से बाहरी शासनों—मुगल, अफगान, सिख, डोगरा, और अब भारत व पाकिस्तान—के खिलाफ स्थानीय लोगों के संघर्ष की कहानी है। कश्मीरी पहचान, जो हिंदू-बौद्ध-सूफी परंपराओं से बनी है, बार-बार बाहरी शक्तियों द्वारा दबाई गई। अनुच्छेद 370 का निरसन और सैन्यीकरण इस ऐतिहासिक पैटर्न को दर्शाता है। कश्मीरी लोग आत्मनिर्णय की माँग करते हैं, लेकिन भारत और पाकिस्तान के भू-राजनीतिक हित उनकी आकांक्षाओं को जटिल बनाते हैं।
नोट: यदि आप किसी खास काल (जैसे, मुगल शासन, डोगरा काल, या 1947 के बाद का संघर्ष) पर गहराई से जानना चाहते हैं, या किसी विशेष पहलू (जैसे, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, या महिलाओं की भूमिका) पर ध्यान देना चाहते हैं, तो कृपया बताएँ। मैं जानकारी को और अनुकूलित कर सकता हूँ।
प्राचीन कश्मीर विस्तार से

लद्दाख का इतिहास

Origins and Etymology: The name "Kashmir" may derive from Sanskrit, possibly meaning "desiccated land" (ka = water, shimīra = desiccate), tied to a legend that sage Kashyapa drained a lake to create the valley. Alternatively, it could stem from Kashyapa-mir (Kashyapa's Lake) or Kashyapa-meru (Kashyapa's Mountain). Ancient texts like Pāṇini’s Ashtadhyayi (5th century BCE) mention Kashmirikas, the people of Kashmir.

Early Civilizations: Archaeological evidence, such as the Lower-Middle Palaeolithic Galander site (circa 400,000–300,000 years ago), shows early human activity with stone tools and elephant remains, suggesting butchery.

Vedic and Buddhist Influence: Kashmir appears in Vedic texts as Sharada Peeth, associated with goddess Saraswati. By the 3rd century BCE, Mauryan emperor Ashoka introduced Buddhism, establishing Srinagar and fostering Buddhist learning. The Kushans (1st–3rd century CE) furthered Buddhism, with the Third Buddhist Council held under Kanishka. Hinduism, however, remained influential.

Karkota Dynasty (7th–9th Century): Founded by Durlabhavardhana, the Karkota dynasty saw Lalitaditya Muktapida (r. 724–760 CE) as its most prominent ruler, building the Martand Sun Temple and expanding regional influence. The dynasty brought political stability and cultural flourishing, blending Hindu and Buddhist traditions.
Medieval Period (9th–16th Century)
Hindu and Buddhist Dynasties: The Utpala dynasty (855–1003 CE) succeeded the Karkotas, with rulers like Avantivarman restoring economic order. The Lohara dynasty followed, but by the 14th century, Hindu rule weakened. Queen Kota Rani, the last Hindu ruler, died in 1339, marking the end of Hindu dominance.

Rise of Islam: Islam arrived gradually, with Sufi saints like Bulbul Shah converting figures like King Rinchen (Sadruddin Shah) in 1320. The Shah Mir dynasty (1339–1561), founded by Shamsuddin Shah Mir, established Muslim rule. Sultan Sikandar (r. 1389–1413) was known for iconoclastic policies, though some argue these are exaggerated by later Brahman historians. Sultan Zain-ul-Abidin (r. 1420–1470), dubbed the "Great King," promoted religious tolerance, arts, and economic growth, marking a cultural zenith.
Mughal Rule (1586–1751): Mughal emperor Akbar annexed Kashmir in 1586 after defeating the Chak dynasty. The Mughals, particularly Jahangir, developed iconic gardens like Shalimar and Nishat, treating Kashmir as a summer retreat. Their rule, however, prioritized elite luxury over local welfare, exacerbating poverty.
Early Modern Period (1751–1846)
Afghan and Sikh Rule: The Afghan Durrani Empire (1751–1819) imposed harsh taxes and enslaved locals, shrinking industries like shawl weaving. Sikh ruler Ranjit Singh annexed Kashmir in 1819, but his administration treated locals poorly, as noted by British explorer William Moorcroft.

Dogra Rule: After the First Anglo-Sikh War (1845–1846), the British sold Kashmir to Dogra ruler Gulab Singh via the Treaty of Amritsar (1846). The Dogra regime, lasting until 1947, favored Hindus in administration, marginalized Muslims, and suppressed dissent. Kashmiri shawl weavers revolted in 1865, but the industry declined under oppressive policies.
Modern History and Conflict (1846–Present)
Partition and Accession (1947): At the 1947 partition of British India, Maharaja Hari Singh, a Hindu ruling a Muslim-majority state, hesitated to join India or Pakistan. Pashtun tribesmen, backed by Pakistan, invaded in October 1947. Hari Singh signed the Instrument of Accession to India for military aid, sparking the First Indo-Pak War (1947–1948). A UN ceasefire left India controlling two-thirds of the former princely state (Jammu, Kashmir Valley, Ladakh) and Pakistan one-third (Azad Kashmir, Gilgit-Baltistan). China later occupied Aksai Chin in the 1950s....

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एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवक named विनय रहता था। वह मेहनती था, लेकिन जीवन की उलझनों और असफलताओं से परेश...
29/04/2025

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवक named विनय रहता था। वह मेहनती था, लेकिन जीवन की उलझनों और असफलताओं से परेशान रहता था। उसे लगता था कि उसका हर प्रयास व्यर्थ जाता है, और वह निराशा में डूबने लगा। एक दिन, वह गाँव के एक बूढ़े संत, गुरुजी, के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई।
गुरुजी मुस्कुराए और बोले, "विनय, तुम्हारी परेशानी का हल भगवद्गीता के सार में छिपा है। आओ, मैं तुम्हें एक कहानी के माध्यम से समझाता हूँ।"
कहानी: अर्जुन और कृष्ण की सीख
गुरुजी ने बताया कि बहुत समय पहले, कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन नाम का एक महान योद्धा अपने कर्तव्य को लेकर दुविधा में था। वह अपने ही परिवार और गुरुओं के खिलाफ युद्ध लड़ने से डर रहा था। उसका मन उदास और भ्रमित था। तब भगवान कृष्ण, जो उसके सारथी थे, ने उसे गीता का उपदेश दिया।
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया:
निष्काम कर्म: "अर्जुन, तू केवल अपने कर्तव्य का पालन कर। युद्ध तेरा धर्म है। फल की चिंता मत कर, क्योंकि परिणाम मेरे हाथ में है।"
गुरुजी ने विनय से कहा, "तुम भी अपने काम को पूरी लगन से करो, लेकिन सफलता या असफलता की चिंता छोड़ दो।"
आत्मा की अमरता: "शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए पहनता है, वैसे ही आत्मा नए शरीर धारण करती है।"
गुरुजी ने समझाया, "विनय, असफलता या हानि से डरने की जरूरत नहीं। यह सब अस्थायी है।"
भक्ति और समर्पण: "मुझ पर विश्वास रख, मेरे प्रति भक्ति भाव रख। सब कुछ मुझे समर्पित कर दे, तुझे शांति मिलेगी।"
गुरुजी ने विनय से कहा, "ईश्वर पर भरोसा रखो। अपनी चिंताएँ उन्हें सौंप दो।"
मन का नियंत्रण: "मन को वश में कर। ध्यान और आत्म-संयम से तू अपने भटकाव को रोक सकता है।"
गुरुजी ने सलाह दी, "विनय, रोज़ थोड़ा समय ध्यान के लिए निकालो। इससे तुम्हारा मन शांत होगा।"
समानता का भाव: "सभी प्राणियों में मुझको देख। न किसी से द्वेष कर, न किसी से आसक्ति।"
गुरुजी बोले, "विनय, दूसरों की सफलता से जलन मत करो। सभी के साथ प्रेम और करुणा से पेश आओ।"
विनय का परिवर्तन
कृष्ण-अर्जुन की कहानी सुनकर विनय के मन में नई रोशनी जगी। उसने फैसला किया कि वह अपने काम को पूरी निष्ठा से करेगा, बिना परिणाम की चिंता किए। उसने रोज़ ध्यान शुरू किया, जिससे उसका मन शांत हुआ। उसने दूसरों के प्रति द्वेष छोड़कर प्रेम और सहानुभूति का भाव अपनाया। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत रंग लाई। उसका छोटा सा व्यवसाय फलने-फूलने लगा, और सबसे बड़ी बात, उसे भीतर से शांति मिली।
विनय ने गुरुजी को धन्यवाद दिया और कहा, "गीता का सार मेरे लिए जीवन का दिशा-सूत्र बन गया। अब मैं समझ गया कि कर्तव्य, भक्ति और आत्म-नियंत्रण ही सच्ची सफलता का मार्ग है।"
निष्कर्ष
गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "विनय, गीता का सार यही है—जीवन को संतुलन, नैतिकता और ईश्वर के प्रति समर्पण के साथ जियो। यही मोक्ष का मार्ग है।"
यह कहानी गीता के सार को सरलता से दर्शाती है: निष्काम कर्म, आत्म-ज्ञान, भक्ति, और समता के साथ जीवन जीने से मनुष्य शांति और सच्ची सफलता प्राप्त कर सकता है।



नरक के तीन द्वार—वासना, क्रोध, और लालचको दर्शाने वाली एक छोटी कहानी:एक बार की बात है, एक छोटे से गांव में तीन दोस्त रहते...
28/04/2025

नरक के तीन द्वार—वासना, क्रोध, और लालच
को दर्शाने वाली एक छोटी कहानी:
एक बार की बात है, एक छोटे से गांव में तीन दोस्त रहते थे—विकास, करण, और ललित। तीनों बहुत करीबी थे, लेकिन उनके स्वभाव अलग-अलग थे। एक दिन, गांव में एक बूढ़े साधु आए और उन्होंने घोषणा की कि जंगल में एक जादुई मंदिर है, जहां जो भी सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी इच्छा पूरी होती है। लेकिन मंदिर तक पहुंचने का रास्ता कठिन था, और केवल वही सफल हो सकता था जो अपने मन के दोषों पर काबू पा ले।
तीनों दोस्त मंदिर की खोज में निकल पड़े। रास्ते में पहला पड़ाव आया—एक सुंदर बगीचा, जहां आकर्षक अप्सराएं नाच रही थीं। विकास, जो हमेशा वासना में डूबा रहता था, उनके मोह में पड़ गया। उसने सोचा, "मंदिर तो बाद में जा सकता हूं, पहले यहां आनंद ले लूं।" वह बगीचे में रुक गया और रास्ता भटक गया।
करण और ललित आगे बढ़े। दूसरा पड़ाव था एक संकरी घाटी, जहां एक विशाल राक्षस रास्ता रोककर खड़ा था। करण, जो छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाता था, राक्षस को देखकर गुस्से में आ गया। उसने राक्षस से लड़ने की ठानी, लेकिन क्रोध में वह अपनी ताकत और समझ खो बैठा। राक्षस ने उसे आसानी से हरा दिया, और करण भी मंदिर तक नहीं पहुंच सका।
अब केवल ललित बचा था। वह तीसरे पड़ाव पर पहुंचा, जहां एक सोने का खजाना चमक रहा था। ललित का मन लालच में डोलने लगा। उसने सोचा, "इतना धन लेकर मैं राजा बन सकता हूं, मंदिर की क्या जरूरत?" उसने खजाना उठाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने सोना छुआ, वह एक गहरी खाई में गिर गया।
तीनों दोस्त अपने मन के दोषों—वासना, क्रोध, और लालच—के कारण नरक के द्वारों में फंस गए। साधु ने गांव लौटकर कहा, "मंदिर का रास्ता बाहर नहीं, मन के भीतर है। जो इन तीनों दोषों पर विजय पा ले, वही सच्चा सुख पाता है।"
सार: वासना, क्रोध, और लालच मनुष्य को सही मार्ग से भटकाते हैं। इन पर नियंत्रण ही जीवन का सच्चा मंदिर है।
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आज गीता सार परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जा...
27/04/2025

आज
गीता सार
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

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