31/10/2025
व्रज - कार्तिक शुक्ल नवमी ९
31 October 2025, Friday
अक्षय नवमी
(We post late or temporarily skip darshan posts these days as we are shifting our workflows)
इस तिथी का कभी क्षय नहीं होता और आज के दिन किये गये पुण्य व कर्म का क्षय नहीं होता अतः आज की तिथी अक्षय नवमी कहलाती है.
आज के दिन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग आपसे साझा करना चाहूँगा जो की
नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा हुआ हैं.
प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया.
जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया.
आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था.
आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.
आज श्रीजी प्रभु को अन्नकूट के दिन धराये वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं एवं गायों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. हम ऐसा कह सकते हैं कि आज अन्नकूट का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
आज के पश्चात इस ऋतु में जल रंग से चित्रांकित पिछवाई नहीं आएगी.
आज प्रभु को पूरे दिन तुलसी की माला धरायी जाती है.
अक्षयनवमी का पर्व होने के कारण श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
प्रभु को केशर, कस्तूरी व बूरे से युक्त पेठे के टूक अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की सखड़ी में केसरयुक्त पेठा अरोगाया जाता है.
🌸🌸
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
सोहत लाल लकुटी कर राती l
सूथन कटि चोलना अरुन रंग पीताम्बरकी गाती ll 1 ll
ऐसे गोप सब बन आये जो सब श्याम संगाती l
प्रथम गुपाल चले जु वच्छ ले असीस पढ़ात द्विज जाती ll 2 ll
निकट निहारत रोहिनी जसोदा आनंद उपज्यो छाती l
‘परमानंद’ नंद आनंदित दान देत बहु भांति ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में बड़ी गायों के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, रुपहली फुलकशाही ज़री की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी (चंपाई) रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी (माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के अन्नकूट की भांति आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर रुपहली फुलकशाही ज़री की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, लाल ज़री का गौ-कर्ण, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है.
श्रीकंठ में टोडर व त्रवल दोनों धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
पट नित्य का, गोटी जडाऊ व आरसी (दर्पण) सोने की व अन्य दर्शनों में पीले खंड की होती है.
🌺
संध्या-आरती दर्शन में तुलसी की गोवर्धन-माला (कन्दरा पर) धरायी जाती है.
प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे होती है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
प्रातः की पिछवाई बड़ी कर फुलकशाही ज़री की पिछवाई आती है.
शयनभोग की सखड़ी में पेठा-वड़ी का शाक एवं केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता है.