10/08/2025
कहानी: "ईंटों के शहर का राजा"
नाम: रामू
गाँव: बक्सर, बिहार
काम: राजमिस्त्री का हेल्पर (मजदूर)
रामू एक छोटा सा लड़का था जब उसके पिता की तबीयत बिगड़ने लगी। स्कूल छूट गया, किताबों की जगह अब हाथ में तसला और बेलचा आ गया। 13 साल की उम्र में ही वह पास के शहर पटना में ईंट-गारे के काम पर लग गया। धूप हो या बारिश, रामू हर रोज सुबह 6 बजे काम पर निकलता, दोपहर में सूखी रोटी खाता और शाम को थका-हारा लौटता।
वो खुद से एक वादा कर चुका था — "मैं यूँ ही मजदूरी करते बूढ़ा नहीं होऊँगा, कुछ अलग करूँगा।"
संघर्ष की राह
काम के दौरान वो चुपचाप राजमिस्त्री का काम देखता, हर माप, हर ईंट की दिशा, हर कोने की गणना ध्यान से सीखता। जब कोई मिस्त्री नहीं आता, रामू मौका पकड़ लेता और ईंटें जमाने लगता।
धीरे-धीरे उसने खुद राजमिस्त्री का काम पकड़ लिया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। रामू ने ₹500 बचाकर एक पुराना मोबाइल खरीदा और यूट्यूब पर ‘घर कैसे बनाते हैं’ जैसे वीडियो देखने लगा।
बदलाव की शुरुआत
रामू ने एक दिन तय किया कि वो अपना छोटा ठेकेदारी का काम शुरू करेगा। पहले लोगों ने मज़ाक उड़ाया – “अरे, मजदूर ठेकेदार बनेगा?”
लेकिन रामू ने हार नहीं मानी।
वो खुद काम करता, साथ में 2-3 मजदूर और जोड़ लिए। ईमानदारी और मेहनत से काम करता रहा। जो भी काम करता, समय पर और मज़बूती से करता।
आज की स्थिति
5 साल बीते। रामू अब एक छोटा ठेकेदार है – उसके पास अपनी साइकिल के बजाय एक पुरानी बाइक है, 10 मजदूर उसकी देखरेख में काम करते हैं, और गाँव में अब लोग उसे “रामू ठेकेदार” के नाम से जानते हैं।
वो हर महीने कुछ पैसे अपने छोटे भाई की पढ़ाई के लिए भेजता है — ताकि उसे मजदूरी न करनी पड़े।
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सीख क्या है?
हालात कैसे भी हों, हिम्मत और लगन से इंसान अपनी किस्मत बदल सकता है।
मजदूरी छोटा काम नहीं है, लेकिन सोच अगर बड़ी हो, तो मजदूर भी मालिक बन सकता है।