25/11/2024
नानी की.चिट्ठी.251024
मेरे प्यारों,राज दुलारों,
तुम सभी को तुम्हारी नानी का
ढेर सारा शुभाशीर्वाद।
आज क्या हुआ। स्कूल से लौट कर जैसे ही मेरा पोता चंदन घर आया, अपना बस्ता सोफे पर फेंक कर किचन की ओर दौड़ा, बोला- 'मम्मी,जोर से भूख लगी है,खाना दो। '
मैं हैरान रह गई, चंदन की माँ से बोली-'अरे,अरे आज.क्या होगया चंदन को? न जूते उतारे,न हैंडवाश किया, और न बस्ता सही जगह पर रखा। सीधे रसोई में एन्ट्री!
चंदन की माँ ने भी झिड़क दिया, चंदन! चलो,चलो किचन से बाहर निकलो। पहले जूते बाहर, फिर बस्ता ठीक जगह,फिर हैंड वाश फिर..
और आज सुबह टिफिन भी तो दिया था,वो क्या हुआ? नहीं खाया? या और कोई खा गया।
'हाँ मम्मी. वो,वो..सोनूका बच्चा खा गया।' चंदन रुआँसा होकर बोला। चंदन की हालत देखकर मुझे दया आ गई। उसके सिर पर हाथ फेर कर बोली -अले,अले, मेला बच्चा,आज भूखा रह गया। कोई बात नहीं,जल्दी से हाथ मुँह धोकर आजा,आज मेरे साथ खाना खाएगा मेरा चंदन। लेकिन खाने में हाथ लगाने से पहले क्या करना है, पता है? ' हाँ,हाँ,पता है नानी! भगवान को हाथ.जोड़ कर धन्यवाद देना है।' हाँ मेरे बच्चे! ...,क्योंकि हमें जो कुछ भी मिलता है वह सब भगवान यानी प्रकृति की कृपा से मिलता है। हमारी प्रकृति ही हमारा भगवान है। और देने वाला कौन होता है?
देवता! चंदन बोला।
हाँ..आ, तो देने वाले को धन्यवाद देना तो बनता ही है। है ना?
चंदन ने हामी भरी और जल्दी जल्दी खाना मुँह में डालने लगा।
आखिर फिर मुझे टोकना पडा़ - धीरे धीरे बेटा, फंस जाएगा गले में। और सुन! खाना खा कर सीधे मेरे पास आकर बैठना। आज तुम्हें जीवन के कुछ आदर्श,शाश्वत नियम बताऊँगी। बहुत काम आएंगे तुम्हारे।
दरअसल हम प्रकृति के साथ जीने के सार्वभौमिक नियम पालन करना भूल गए हैं, उसी का नतीजा है,आज दुनिया भर में विनाश की लहर दौड़ रही है। हवा,पानी सब खराब होगया है।
बेटा, इसके बारे में और भी बहुत कुछ बताऊँगी तुम्हें।'
ठीक है नानी,पर आज नहीं, कल! चंदन खिसकने का बहाना ढूँढ़ रहा था! मैं समझ गई।
बेमन से बोली -चलो कल सही,पर कल का मतलब कल।
ओके नानी! अभी पंकज के घर जाना है। बाय नानी!
चदन पंकज से मिलने घर के बाहर निकल गया। मेरी सारी आदर्शवादी बातों को धता बता कर। अब कल पकडूँगी बच्चू को।
वो क्या है, मेरे नन्हे मुन्नो! कभी कभी बच्चों के साथ दौड़ने में बड़े बूढ़ों को एक कदम पीछे रहना पड़ता है। जानते हो ना?
तेज कितना भी चलो लेकिन चलने में एक कदम आगे तो दूसरा पीछे ही रहता है। बस,यूँ समझो,बड़े-बूढ़े पीछे का कदम होते है। लेकिन यह भी न भूलना कि पीछे के कदम बिना आगे के कदम की कोई दौड़ नह़ी होती। बात आई समझ में मेरे नटखट बच्चो!
चलो,कल यानी अगले रविवार फिर मिलते हैं, तब तक
राजी खुशी रहो और इंतजार करो नानी की अगली चिट्ठी का।
तुम्हारी प्यारी प्यारी पढ़ाकू लडा़कू नानी।