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or enmity with anyone. In the politics of saffron, red, green, or blue, Naya India stands above all presenting in depth, non partisan news and analysis above malice. In its 13th year now, NAYA INDIA has created a niche among the Hindi readers with an intellect essence which they had been missing.

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि न चुनाव आयोग बचेगा और न उसके अधिकारी बचेंगे। उनके पास गड़बड़ी के सौ फ...
29/07/2025

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि न चुनाव आयोग बचेगा और न उसके अधिकारी बचेंगे। उनके पास गड़बड़ी के सौ फीसदी सबूत हैं। उधर बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है कि विपक्षी पार्टियां बिहार में विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर सकती हैं। असल में बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण हो रहा है, जिसके तहत 60 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम काटे जाने की खबर खुद चुनाव आयोग ने दी है। बिहार विधानसभा का पांच दिन का सत्र इसी में जाया हुआ और लोकसभा के मानसून सत्र के पहले पांच दिन भी इसी पर हंगामा होता रहा। राहुल गांधी खुद चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं। एक दिन सोनिया गांधी भी विरोध में शामिल हुईं और प्रियंका भी उनके साथ रहीं।

अब सवाल है कि राहुल क्या करेंगे? क्या राहुल चुनाव का बहिष्कार करेंगे या चुनाव आयोग के खिलाफ भूख हड़ताल, आमरण अनशन पर बैठेंगे?

सोचें, अगर राहुल गांधी सचमुच विपक्षी पार्टियों को तैयार कर लेते हैं कि बिहार में विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाए तो क्या होगा? भारत के इतिहास में आजतक ऐसा नहीं हुआ है।

✍🏼 पढ़िए हरि शंकर व्यास खास गपशप ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/harishankar-vyas/analysis/will-rahul-gandhi-boycott-the-elections/501135.html?amp=1

वर्चस्वता के बावजूद नेहरू के समय कांग्रेस प्रदेशों के क्षत्रपों, दमदार मुख्यमंत्रियों की एक जिंदादिल पार्टी थी। वह देवका...
28/07/2025

वर्चस्वता के बावजूद नेहरू के समय कांग्रेस प्रदेशों के क्षत्रपों, दमदार मुख्यमंत्रियों की एक जिंदादिल पार्टी थी। वह देवकांत बरूआओं जैसी इंदिरा कांग्रेस या आज की मोदी भाजपा जैसी नहीं थी। नेहरू में दम था जो 1962 में चीन से हारने के बाद अपनी गलतियां स्वीकारी। संसद से सत्य बोला। हार की जांच, सरकार के लिए आयोग गठित हुआ। जबकि आज ऑपरेशन सिंदूर के अफसानों व रियलिटी के शर्मनाक फर्क एक वैश्विक सत्य है।

सो, नरेंद्र मोदी आगे भी वैसे ही राज करेंगे जैसे ग्यारह साल से करते आ रहे हैं। इसलिए मोदी-अमित शाह के लिए जगदीप धनखड़ का उतना ही अर्थ था जितना उनकी शरण में आए दूसरी पार्टियों के नेताओं, या अपने तय किए गए राष्ट्रपतियों, उप राष्ट्रपतियों या संस्थाओं के प्रमुखों, नौकरशाहों, कुलपतियों का है। आखिर मोदी को अपने बगीचे में पसंद क्या रहा है? पालतू शेर, प्रायोजित जंगल शूट, मोर, गिरगिट, सत्ता के इर्द गिर्द घूमती लेकिन डंक मारती मधुमक्खियां, शोर मचाते मुर्गे, कांव-कांव करते कौवे आदि-आदि। (सोचें, ऐसे शासन के बीस साल!)

उनके लिए योगी आदित्यनाथ का इसलिए उपयोग हैं क्योंकि उनसे अमित शाह सिमटे हुए हैं। एक जानकार ने सटीक बात कही कि गृह मंत्री होते हुए अमित शाह जब समयावधि खत्म होने के बाद भी आनंदीबेन को नहीं हटा सके तो भला योगी को कैसे हटवा सकते हैं?

✍🏼 पढ़िए हरि शंकर व्यास खास गपशप ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/harishankar-vyas/analysis/pm-narendra-modi-cm-yogi-adityanath/501131.html?amp=1

अब हमारे नागरिक 59 देशों में बिना पहले से वीज़ा लिए यात्रा कर सकते हैं। पिछले वर्ष यह संख्या 57 थी। इस सूची में इस बार फ...
28/07/2025

अब हमारे नागरिक 59 देशों में बिना पहले से वीज़ा लिए यात्रा कर सकते हैं। पिछले वर्ष यह संख्या 57 थी। इस सूची में इस बार फ़िलीपींस और श्रीलंका जैसे देश भी शामिल हुए हैं। यह बढ़ी हुई पहुंच न केवल यात्रियों के लिए सहूलियत है, बल्कि व्यापार, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए द्वार भी खोलती है। वीज़ा की लंबी, खर्चीली और जटिल प्रक्रिया अब कई देशों में बाधा नहीं रही।

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 में भारत ने उल्लेखनीय छलांग लगाई है। पिछले वर्ष की 85वीं रैंक से ऊपर उठकर अब भारतीय पासपोर्ट 77वें पायदान पर है। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्वीकार्यता और ताकत का संकेत है। इसका लाभ भारतीय नागरिकों को सीधी यात्रा सुविधा के रूप में मिल रहा है—और यह भारत की अर्थव्यवस्था, कूटनीति और वैश्विक प्रभाव के लिए भी शुभ संकेत है।

✍🏼 पढ़िए विनीत नारायण कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/columnist/indian-passport-direct-travel-facility-increased/501209.html?amp=1

पिछले सप्ताह फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने वह कर दिखाया जिसे वैश्विक नेताओं ने या तो टाला, या डर के मारे चुप्प...
28/07/2025

पिछले सप्ताह फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने वह कर दिखाया जिसे वैश्विक नेताओं ने या तो टाला, या डर के मारे चुप्पी साधी है, या फिर गोलमोल बाते की है। उन्होंने सीधी घोषणा की—फिलस्तीन एक संप्रभु राष्ट्र है। बिना किसी विशेषण, बिना किसी शर्त के। यह एक ठोस, जो टूक, निसंकोच तथा नीतिगत वक्तव्य था। उन्होंने कहा कि सितंबर में फ्रांस संयुक्त राष्ट्र में फिलस्तीन को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला 148वां देश बनेगा।

मैक्रों ने इसे “गंभीर निर्णय” कहा, और उनकी घोषणा का असर कूटनीतिक भूकंप की तरह हुआ।
क्रोध के इस विस्फोट में एक सच्चाई छिपी थी—मैक्रों ने सिर्फ बयान नहीं दिया, उन्होंने उस पश्चिमी एकरूपता की कल्पना को तोड़ा, जो अब तक इज़राइल–फिलस्तीन प्रश्न पर ‘एक स्वर’ की तरह पेश होती थी। उन्होंने केवल इज़राइल को नहीं, बल्कि दुनिया के कूटनीतिक संतुलन को भी हिला दिया।

क्या इससे ज़मीनी सच्चाई बदलेगी? बमबारी रुकेगी? ग़ाज़ा में राहत सामग्री पहुंचेगी? भूखे बच्चों को खाना मिलेगा? ईंट से ईंट जुड़ेंगे? शायद नहीं। लेकिन यह चुप्पी तोड़ता है। यह विमर्श, बातचीत की दिशा मोड़ता है। और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कभी-कभी यही पहला डोमिनो होता है। कई बार पहली गिरी गोटी ही खेल को बदलती है।

मैक्रों का बयान ज़मीन पर कार्रवाई नहीं लाएगा, लेकिन कहानी बदल देगा।

✍🏼 पढ़िए श्रुति व्यास कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/shruti-vyas/france-will-recognize-palestine-as-a-state/501194.html?amp=1

क्या आपने ‘छावा’, ‘सैयारा’ या ‘महावतार नरसिम्हा’ फिल्म देखी? मैंने नहीं देखी लेकिन हाल में के-ड्रामा का एक सीरियल ‘किंग ...
28/07/2025

क्या आपने ‘छावा’, ‘सैयारा’ या ‘महावतार नरसिम्हा’ फिल्म देखी? मैंने नहीं देखी लेकिन हाल में के-ड्रामा का एक सीरियल ‘किंग द लैंड’ देखा। के-ड्रामा और टर्किश ड्रामा का हल्ला सुनते-सुनते मैंने कई दफ़ा कोशिश की कि इनके किसी एक सीरियल को पूरा देखा जाए। लेकिन किसी पर दिल-दिमाग नहीं टिका।

मतलब हम भारतीय अब रोमांस की कहानी में भी विदेशी कहानी के दर्शक हैं! भारत वैश्विक सांस्कृतिक मनोविज्ञान के पर्दों से भावनात्मक संतुष्टि पाता है। भारत का सिनेमा, भारत की कहानियां अब धड़कनों से मैच नहीं करतीं।

इसलिए सैयारा का रिकॉर्डतोड़ बिज़नेस समझ आता है। मैंने फिल्म देखी नहीं है, पर पंकज दुबे की यह लाइन के-ड्रामा के फ़ॉर्मूलों पर फिल्म के बने होने का संकेत है कि— ‘सैयारा’, दरअसल ऐसे सितारे को कहते हैं जो तारों के बीच कुछ पाने के लिए भाग रहा है और अपनी चमक से दूसरों की ज़िंदगियों को रोशन भी करता जा रहा है। फिल्म के दोनों नए कलाकार कैमरे के सामने भावनात्मक दृश्यों में बेहद सहज लगते हैं। क्लाइमैक्स में वाणी को खुद का नाम याद दिलाने वाले सीन भावुक भी करते हैं।…एक सीधी सरल कहानी, दिल को छू जाने वाला संगीत, ढेर सारे इमोशनल मोमेंट्स, उम्दा निर्देशन, खूबसूरत शॉट्स और सभी कलाकारों का प्रभावशाली प्रदर्शन।
तो हम बने हुए क्या हैं?

मेरा मोटा जवाब है — हम नरेंद्र मोदी बने हुए हैं!

प्रधानमंत्री मोदी ने ग्यारह वर्षों में जिन भावनाओं में भारत के दिल-दिमाग को पकाया है, वैसा ही भारत बना है। इसका फिल्में भी प्रमाण हैं। गौर करें — ग्यारह वर्षों में बाहुबली से लेकर ताज़ा रिलीज़ ‘महावतार नरसिम्हा’ जैसी फिल्मों तक!

✍🏼 पढ़िए हरि शंकर व्यास लेख ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/harishankar-vyas/view/we-are-no-longer-even-a-cinematic-soft-power/501196.html?amp=1

आज के सिने-सोहबत में ताज़ातरीन फ़िल्म ‘सैयारा’ जिसकी वजह से देश भर के सिनेमाघरों में दर्शकों का सैलाब उमड़ पड़ा है। इस फ़िल्म...
27/07/2025

आज के सिने-सोहबत में ताज़ातरीन फ़िल्म ‘सैयारा’ जिसकी वजह से देश भर के सिनेमाघरों में दर्शकों का सैलाब उमड़ पड़ा है। इस फ़िल्म को लेकर जो उत्साह दर्शकों में दिख रहा है उससे ये बात तो बिल्कुल सिद्ध हो जाती है कि ‘रोमांस’ हमारे लिए एक स्थायी इमोशन है। एक सीधी सरल कहानी, दिल को छू जाने वाला संगीत, ढेर सारे इमोशनल मोमेंट्स, उम्दा निर्देशन, खूबसूरत शॉर्ट्स और सभी कलाकारों का प्रभावशाली प्रदर्शन। निर्देशक मोहित सूरी इसके पहले भी ‘आशिकी 2’ से ‘एक विलेन’ तक कई लव स्टोरीज़ पर फ़िल्में बना चुके हैं। प्रेम कहानियां हमेशा से ही बॉलीवुड को इसके मंदी के दिनों से उबारने के लिए एक अहम् रेसिपी की तरह रहीं हैं।

कहानी और स्क्रीनप्ले संकल्प सदाना ने लिखी है। कहानी में जादू भरने के लिए फिल्ममेकिंग के हर डिपार्टमेंट ने अपना रचनात्मक सहयोग किया है फिर चाहे मोहित सूरी का निर्देशन हो, फिल्म का संगीत, विकास सिवरमन की सिनेमैटोग्राफी या फिर जॉन स्टेवर्ट एडुरी का बैकग्राउंड स्कोर। साथ ही फिल्म के नवोदित कलाकारों का अभिनय इसे अच्छी फिल्मों की श्रेणी में खड़ा करता है। वैसे भी रोमांटिक फिल्मों की बात हो, तो मोहित सूरी इस जॉनर के निर्देशकों की सूची में पहले कुछ नामों में से आते हैं

🍿 पढ़िए पंकज दुबे ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/columnist/dastaan-e-mohabbat-saiyara/501141.html?amp=1

सन् 2025 की 15 अगस्त का समय कुछ अजीब है! सोशल मीडिया में भारत की भीड़ और मक्खियों की ऐसी भिनभिनाहट है जैसे उनमें गुर्दा ...
26/07/2025

सन् 2025 की 15 अगस्त का समय कुछ अजीब है! सोशल मीडिया में भारत की भीड़ और मक्खियों की ऐसी भिनभिनाहट है जैसे उनमें गुर्दा बन रहा हो तथा परिवर्तन अवश्यंभावी हो। तरह-तरह की भिनभिनाहट और पतंगबाजी है! सोचें, जगदीप धनखड़ पर भी पतंगबाजी! वही नरेंद्र मोदी के 75 वर्ष के होने को ले कर अग्रिम पतंगबाजी तो मोहन भागवत के रिटायर होने की भी पतंगबाजी! दरअसल पिछले ग्यारह वर्षों में नरेंद्र मोदी का यह सबसे बड़ा योगदान है जो भारत को, उसकी भीड़, मधुमक्खियों को सत्ता का वह छत्ता बॉक्स उपलब्ध करा दिया है, जहां शहद भरा पड़ा है और प्रधानमंत्री नियंत्रक हैं। सो, मधुमक्खियों का धर्म, कर्म, अस्तित्व का आधार है जो वह उड़े, भीड़ को डंक मारे, चूसे और ब्रूड चैंबर में रमी रहे। तभी डीप सुपर के रस-स्वाद में डूबी हुई कई मक्खियों में गुमान बनता है कि उन्हीं की बदौलत भारत की माया है। उन्हीं से भारत है!

तभी देखिए, सोशल मीडिया दूध से मक्खी की तरह धकियाए जगदीप धनखड़ को शूरवीर करार दे रही है! कांग्रेस उनको महान बता रही है तो सोशल मीडिया में पतंगबाजी है कि धनखड़ ने हिम्मत दिखाई, अपनी नाराजगी दिखाई, जिसे नरेंद्र मोदी बरदाश्त नहीं कर पाए। इतना ही नहीं धनखड़ के नाम पर आगे उनके सत्यपाल मलिक बनने या सियासी उथलपुथल की पतंगबाजी भी!

✍🏼 पढ़िए हरि शंकर व्यास खास शनिवार गपशप ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/harishankar-vyas/analysis/pm-modi-independence-day-speech-3/501124.html?amp=1

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह शिगूफा छोड़ा है। बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्ष...
26/07/2025

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह शिगूफा छोड़ा है। बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के खिलाफ विधानसभा में खूब हंगामे के बाद उन्होंने सदन के बाहर मीडिया से कहा कि वे विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने के बारे में विपक्ष की दूसरी पार्टियों से बातचीत करेंगे और जनता की राय भी लेंगे। तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर हमला करते हुए यह भी कहा कि जब बेईमानी से सब कुछ तय कर रखा है कि किसको कितनी सीटें देनी हैं तो देखा जाएगा कि क्या किया जा सकता है।

उनके कहने का आशय यह था कि अगर विपक्षी पार्टियों में सहमति बनती है और जनता का रुख सकारात्मक दिखता है तो विपक्ष चुनाव का बहिष्कार कर सकता है। इसका मतलब है कि, ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’। इससे जाहिर होता है कि विपक्ष को चुनाव का बहिष्कार नहीं करना है, बल्कि चुनाव के बहिष्कार की बात करके पूरी चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाना है।

वास्तविकता यह है कि विपक्ष ने चुनाव आयोग पर जिस तरह के आरोप लगाए हैं उसके बाद कोई कारण नहीं दिखता है कि विपक्ष चुनाव का बहिष्कार न करे।

✍🏼 पढ़िए अजीत द्विवेदी कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/ajeet-dwivedi/current-affairs/will-the-opposition-boycott-the-elections/501078.html?amp=1

बहुत ही अजब दौर में जी रहे है हम। ज़रा नज़र डालिए चारों तरफ—सिर्फ़ अख़बारों की सुर्खियों में नहीं, बल्कि आपके इनबॉक्स मे...
25/07/2025

बहुत ही अजब दौर में जी रहे है हम। ज़रा नज़र डालिए चारों तरफ—सिर्फ़ अख़बारों की सुर्खियों में नहीं, बल्कि आपके इनबॉक्स में, रात के खाने की मेज़ पर पसरी अजीब चुप्पी में, उन दोस्तों की कसक में जो कभी अपनत्व पर टिके रिश्तों में ढली हुई थी। अब दोस्ती, संबंध असुरक्षा, जलन और अहम की कड़वाहट से भरते जा रहे हैं। आज हर कोई किसी न किसी लड़ाई में उलझा है—व्यक्तिगत, राजनीतिक, और इसीलिए वैश्विक। आख़िर देश भी इंसानों का ही एक बड़ा, बढ़ा-चढ़ा प्रतिबिंब है?

दुनिया आज हर पैमाने पर युद्ध में उलझी हुई है—कहीं बड़ा युद्ध, कहीं छोटा; एक तरफ समुद्री उकसावे, दूसरी तरफ़ सीमाओं के पार मंडराते ड्रोन, या सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले। ग़ज़ा से लेकर यूक्रेन, यमन से म्यांमार, लाल सागर की लहरों से लेकर ताइवान और दक्षिण कोरिया के आसमान तक—दुनिया या तो युद्ध में है या उसके किनारे खड़ी और भयभीत। तभी कूटनीति की भाषा अब और तेज़, और उसके इरादे अब ज्यादा ही धुंधले, खोखले होते जा रहे हैं।

तो यह सवाल पूछना ज़रूरी हो जाता है कि क्या हम स्थाई लड़ाई-झगड़ों, दुश्मनियों के समय में है या उसमें प्रवेश कर रहे हैं और वह भी बिना अहसास के या ठीक से महसूस किए बिना?

✍🏼 पढ़िए श्रुति व्यास .v कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/shruti-vyas/the-threat-of-war-is-increasing-in-the-world/501072.html?amp=1

बिहार की 17वीं विधानसभा का आखिरी सत्र चल रहा है, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों चुनाव का एजेंडा तय करने की होड़ में लगे हैं...
25/07/2025

बिहार की 17वीं विधानसभा का आखिरी सत्र चल रहा है, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों चुनाव का एजेंडा तय करने की होड़ में लगे हैं। 25 जुलाई तक चलने वाले पांच दिन के इस सत्र में सत्तारूढ़ गठबंधन यानी एनडीए और विपक्षी गठबंधन यानी ‘इंडिया’ के बीच एक दूसरे को भ्रष्ट, बेईमान और निकम्मा साबित करने की होड़ लगी है। सत्र के दूसरे दिन मंगलवार, 22 जुलाई को तो विपक्ष ने विधानसभा के गेट पर ताला जड़ दिया, जिसे तोड़ कर मुख्यमंत्री को सदन में जाना पड़ा। जाहिर है कि चार महीने में चुनाव हैं तो इस तरह की नौटंकियां चलेंगी। लेकिन सवाल है कि क्या बिहार की जनता इन नौटंकियों से प्रभावित होकर वोट देगी या बदलाव का एजेंडा चला रहे प्रशांत किशोर की बात सुनेगी या यथास्थिति बनाए रखेगी?

पिछले साढ़े तीन दशक में संभवतः पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव से पहले परिदृश्य इतना उलझा हुआ दिख रहा है। हालांकि पारंपरिक राजनीतिक विश्लेषण के हिसाब से सत्तारूढ़ गठबंधन यानी एनडीए को बढ़त है। वैसे भी भाजपा और जनता दल यू एक साथ होते हैं तो उनके चुनाव जीतने की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि उनके पास गैर यादव पिछड़ा, अति पिछड़ा, सवर्ण और दलित का एक बड़ा सामाजिक आधार है। पिछले 20 साल से यह समीकरण परफेक्टली काम कर रहा है। और इस बार तो चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की पार्टी भी इस गठबंधन का हिस्सा है।

✍🏼 पढ़िए अजीत द्विवेदी कॉलम @ link in bio/ IG story

दस साल पहले पटना में ताज खोलने की कल्पना भी अकल्पनीय थी। वर्षों तक बिहार का नाम आते ही धूल, उपेक्षा और विरोध की छवि उभरत...
24/07/2025

दस साल पहले पटना में ताज खोलने की कल्पना भी अकल्पनीय थी। वर्षों तक बिहार का नाम आते ही धूल, उपेक्षा और विरोध की छवि उभरती थी — एक ऐसा राज्य जो गरीब, पिछड़ा और बग़ावती माना जाता रहा। राजधानी पटना का हवाईअड्डा अभी भी जुगाड़ से चलता हुआ है और “फाइव स्टार” होटल का मतलब था दो लोकल होटल जो खुद को वही मानते थे, और जहां चुनावी सीज़न में हर वीवीआईपी, नेता और हम जैसे घूमते पत्रकार ठहरते थे। बरसों बाद अगर कोई पुराना रिपोर्टर मिलना हो, तो यकीन मानिए होटल मौर्या में वे जरूर मिल जायेगे।

मगर पिछले साल, जब लोकसभा चुनावों के दौरान लगभग एक दशक बाद मैं फिर पटना लौटी, तो शहर बदला-बदला सा लगा। अजीब तरह से नया। थोड़ा संदेहास्पद, फिर भी ताज़ा। शायद इसलिए क्यूंकि मैं कोलकाता से आई थी—एक शहर जो आज भी खुद को “सिटी ऑफ जॉय” कहता है, लेकिन वहां सिर्फ उदास आसमान, झड़ती इमारतें और एक अंतहीन अस्तित्व संकट ही मिला। वहीं पटना में चमचमाती सड़कें थीं, साफ फुटपाथ, काम करती ट्रैफिक लाइट्स और कैफ़े जहां लिट्टी-चोखा की जगह अब कैप्पुचीनो परोसे जा रहे थे। और पहली बार, मेरे पास होटल चुनने के विकल्प थे। मैंने लेमन ट्री चुना—ब्रांड के लिए नहीं, सिर्फ इसलिए कि अब चुन सकती थी। और अब तो ताज होटल भी खुल गया है।

लेकिन बात सिर्फ़ बिहार या पटना की नहीं है। बात है उस भारत की, जो अब खुद भारतियों के लिए ट्रैवल डेस्टिनेशन बनता जा रहा है।

और होटल? जैसे हर सब्ज़ीवाले के ठेले पर ऐवोकाडो आ गए हों, वैसे हर छोटे-बड़े शहर में होटल उग आए हैं—भीलवाड़ा से शोलापुर और गोरखपुर से अलवर तक। लग्ज़री, बुटीक, आध्यात्मिक, सस्टेनेबल—हर रंग, हर बजट में।

✍🏼 पढ़िए श्रुति व्यास कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/shruti-vyas/patna-is-also-a-hot-travel-destination-in-hotels/501005.html?amp=1

देश के 99.9 फीसदी लोगों को मिले यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर और आधार कार्ड का अब क्या होगा? यह लाख टके का सवाल है, जिसका जवा...
23/07/2025

देश के 99.9 फीसदी लोगों को मिले यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर और आधार कार्ड का अब क्या होगा? यह लाख टके का सवाल है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। वैसे तो यह सवाल बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण होने के बाद से ही पूछा जा रहा है लेकिन अब ज्यादा प्रासंगिक हो गया है क्योंकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इसकी उपयोगिता को शून्य कर दिया है। बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के मसले पर 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। उससे पहले पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक हलफनामा देने को कहा था।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह सलाह दी थी कि आयोग को मतदाता सूची के सत्यापन में आधार, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करना चाहिए। चुनाव आयोग ने 21 जुलाई को हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा कि किसी को भी मतदाता बनाने के लिए जरूरी है कि चुनाव आयोग उसकी नागरिकता का सत्यापन करे, जो आधार के जरिए नहीं हो सकता है। चुनाव आयोग ने लिख करके बता दिया कि आधार की कोई उपयोगिता नहीं है।

✍🏼 पढ़िए अजीत द्विवेदी कॉलम ➡️ https://www.nayaindia.com/opinion/ajeet-dwivedi/current-affairs/what-will-happen-to-aadhaar-now/500965.html?amp=1

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