18/08/2025
“भूरा” पूरी कविता 👇
"35 बरस बीत गए… पर भूरा आज भी मेरे गांव के घर की दहलीज़ पर बैठा दिखाई देता है। 🐾
वो सिर्फ़ एक कुत्ता नहीं था, वो घर का हिस्सा था…
उसका निश्छल स्नेह और वफ़ादारी आज भी दिल को गीला कर देती है।
कुछ रिश्ते इंसानों से नहीं, जानवरों से भी ज़्यादा गहरे हो जाते हैं…
और भूरा उन्हीं में से एक था। ❤️"
पढ़ें ये 'स्मृति कविता'
भूरा
~
मैंने देखा था उसका प्यार
घर के हर एक इंसान के लिए
वो किसी रखवाले की तरह
चौखट पर बिता देता था दिन
हमें देखता,
घर में आने वालों को देखता
उसकी उम्मीदें ज़्यादा थी
सबके अपने-अपने लालच थे
जब घर जिसकी ज़रूरतें,
जिनके लालच पूरे न कर सका
उसने घर आना छोड़ दिया
जैसे हमसे कोई रिश्ता तोड़ दिया
वो मगर दहलीज़ पे ही बैठा रहा
मैं जब जहां गया साथ चल दिया
घर सारा निकला तो पीछे दौड़ गया
उसने कभी कोई शिकायत नहीं
न उसने कभी जताया
कि आज खाने को कम मिला उसे
न कभी बारिश में भीगने की शिकायत की
न कभी गर्मी में तपने का रोना रोया
ठंड में भी वो सुकड़ा देखा मैंने
पर उसने मांग नहीं कभी कुछ
बीमार भी पड़ा तो हमने
बस थोड़ा ज़्यादा ख़याल रखा
मैंने देखा तो इतना था उसको
कि तमाम ज़रूरतें लगती हैं मुझको
जो पूरी न हों तो छूट जाते हैं बंधन
हां, पर मैं बच्चा था उस समय
आज जो मैं सोचता हूं
उस समय नहीं सोच सकता था
हम घर में सभी से एक दूसरे को प्यार करते थे
उसके लिए भी प्यार इतना था कि
किसी पर दौड़ पड़ता था वो
तो लोग हमें भला - बुरा कहते थे
मुझे लगता है
जिस तरह वो हमें ये नहीं बता सका
कि वो हमें प्यार करता है
शायद, हम भी उसे नहीं बता पाए
कि वो हम में से नहीं है लेकिन
वो घर का हिस्सा है
जिसे सारा घर प्यार करता है
उसकी ज़रूरत रोटी से ज़्यादा रही होगी
या, मैं कहूं कि होती भी है
पर तब, हम
खेत खलियान वाले घर
कहां पूरी कर पाते थे
ख़ुद की भी ज़रूरतें पूरी
कुत्ते की भी ज़रूरत पूरी
हां, कुत्ता
आदमी को काट ले तो
आदमी भी कुत्ता बन सकता है
मैं इसी कुत्ते के बारे में लिख रहा था
आज, 35 बरस बाद भी मुझे
वो कुत्ता अपने इन 35 बरस में मिले
आदमियों या इंसानों से अधिक भावुक करता है
उसने कभी किसी को नहीं काटा
पर मैंने इंसानों को देखा है
इंसान भी और जानवर भी काटते हुए
कुत्ते के काटने से
आदमी का आदमी सा बचने
और कुत्ता न होने की संभावना
उतनी ही अधिक है
जितनी असंभावना ये कि
आदमी,
आदमी को काटकर बच जाए
मेरा बिन पालतू का वो प्रिय कुत्ता
जो घर के कुत्ते के नाम से जाना जाता था
घर ने शायद कोई नाम भी रखा था.. उसके रंग के हिसाब से शायद 'भूरा'
भूरा हमारे स्नेह में
इतना वफादार - चाहतदार था कि
इक रोज़ जब पूरा घर गंगा जी नहाने
कोसों दूर जा रहा था
भूरा पीछे-पीछे दौड़ा था
हमने भूरा को
अपनी ज़ुबान में वापस जाने को कहा
भूरा, लेकिन पीछे नहीं हटा
वो पीछे पीछे चला - दौड़ा
यहां तक कि हम बस में बैठ गए थे
भूरा, पीछे - पीछे भागता चला आ रहा था
हम अभी गंगा जी तक नहीं पहुंचे थे
कि, भूरा हमारे स्नेह में बहुत दूर निकल गया था
घर की दहलीज़ से हमेशा-हमेशा के लिए
चला गया था - दौड़ पड़ा था
घर और घर की दहलीज़ को
हमेशा के लिए छोड़कर
इतना दूर कि हम किसी बस,
रेलगाड़ी, हवाई जहाज से भी
अब उसके पीछे नहीं दौड़ सकते थे
भूरा, जा चुका था
हम सबसे दूर
मेरे प्रिय भूरा को
किसी इंसानी कुत्ते ने
अपनी गाड़ी से कुचल दिया था
इसके आगे और बीच में
भूरा की, घर की,
तमाम बातें हैं जो मैं नहीं लिख सका
मैं भूरा को याद करते हुए
इतना भावुक हो गया हूँ कि रोने लगा हूँ
लिखना मुश्किल हो रहा है
हाथ आंसुओं को पौंछना चाह रहे हैं
और आँखें बस रोना
आँखें भूरा को याद करके
35 बरस पहले जाकर
भूरा के साथ आंख मिचौली करना चाह रही हैं
दिल चाह रहा है कि
भूरा को एक बार गले लगा लूं
पर भूरा तो है ही नहीं, और
इन बरसों में वो घर भी घर नहीं रहा
जो भूरा को जानते, पहचानते थे
पड़ोस में कुछ लोग हैं अब भी
जिनसे बात करूंगा तो
याद करने की कोशिश करेंगे वो !
आखिर, एक कुत्ते के लिए
कोई इतना स्नेह रखे भी क्यों?
मैं भी तो कबका वो घर छोड़ दिया
और शहर में बस गया
जहाँ घर होते हैं, लेकिन
'भूरा' बैठा रहे वैसी दहलीज़ नहीं होती
हमने शायद उस रोज
गंगा जी में डुबकी नहीं लगाई
हम सब घर वाले
रस्ते से ही घर वापस आ गए थे
सब अपनी चुप्पी में चुप थे
और भूरा हमेशा के लिए चुप था
भूरा, मगर
मेरे गांव के घर वाली घर की दहलीज पर
आज भी बैठा दिखता है
आज भी वो पीछे - पीछे चल देता है
भूरा, शायद कमसे कम मेरे होने तक
मेरे साथ ही रहेगा, हमेशा के लिए!
मेरा प्यार भूरा!
तुम इंसान नहीं हुए
कि मैं तुम्हें बेहतर समझ पाता
इस बात का मुझे कोई मलाल नहीं है
बल्कि सोचता हूं कि
बेहतर था इस निश्छल स्नेह के लिए
कि तुम जानवरों की बिरादरी से थे
~ अमित सागर दिल की बातें by Amit Sagar
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