Khabarbaazi

Khabarbaazi हम ख़बरों की ख़बर लेते हैं

जनवरी में डंकी देखकर आया था। उसके बाद 6 महीने तक थिएटर जाने की हिम्मत नहीं हुआ। कल स्त्री 2 देखकर आया हूं और अब दुबई का ...
13/09/2024

जनवरी में डंकी देखकर आया था। उसके बाद 6 महीने तक थिएटर जाने की हिम्मत नहीं हुआ। कल स्त्री 2 देखकर आया हूं और अब दुबई का कोई शेख मुझे अपना दामाद बनाने का लालच भी दे तब भी मैं दोबारा थिएटर नहीं जाऊंगा। लाइफ में पहली बार हुआ जब मुझे लगा कि इससे अच्छा तो मैं ट्रैफिक जाम में फंस जाता और मेरी फिल्म छूट जाती। जब लोग कहते हैं कि राहुल गांधी देश के अगले पीएम होंगे तो मुझे यकीन नहीं होता फिर किसी ने बताया कि स्त्री 2 ने अब तक 700 करोड़ का बिज़नेस कर लिया है और अब लगता है कि डॉली चायवाला भी देश का पीएम बना सकता है। फिल्म शुरू हुई तो पीछे वाली सीट पर बैठा एक बच्चा काफी आवाज़ कर रहा था जिससे परेशान होकर हम लोग दो Row आगे खाली पड़ी सीटों पर चले गए मगर आधे घंटे की फिल्म देखने के बाद मैं वापिस अपनी उसी सीट पर आ गया ताकि बच्चे के रोने की आवाज़ में फिल्म के डायलॉग न सुन पाऊं। इस हॉरर कॉमेडी में मुझे सबसे ज़्यादा हंसी तब आई जब भूत डराने की कोशिश कर रहा था और सबसे ज़्यादा डर तब लगा जब अपारशक्ति खुराना हंसाने की कोशिश कर रहा था। फिल्म में मुझे सबसे ज़्यादा जैलिसी चिट्टी नाम की लड़की से हुई जिसे सरकटा भूत फिल्म के शुरू में ही उठाकर ले जाता है और वो बाकी फिल्म देखने से बच जाती है।

जनवरी में डंकी देखकर आया था। उसके बाद 6 महीने तक थिएटर जाने की हिम्मत नहीं हुआ। कल स्त्री 2 देखकर आया हूं और अब दुबई का ...
13/09/2024

जनवरी में डंकी देखकर आया था। उसके बाद 6 महीने तक थिएटर जाने की हिम्मत नहीं हुआ। कल स्त्री 2 देखकर आया हूं और अब दुबई का कोई शेख मुझे अपना दामाद बनाने का लालच भी दे तब भी मैं दोबारा थिएटर नहीं जाऊंगा। लाइफ में पहली बार हुआ जब मुझे लगा कि इससे अच्छा तो मैं ट्रैफिक जाम में फंस जाता और मेरी फिल्म छूट जाती। जब लोग कहते हैं कि राहुल गांधी देश के अगले पीएम होंगे तो मुझे यकीन नहीं होता था फिर किसी ने बताया कि स्त्री 2 ने अब तक 700 करोड़ का बिज़नेस कर लिया है और अब लगता है कि डॉली चायवाला भी देश का पीएम बना सकता है। फिल्म शुरू हुई तो पीछे वाली सीट पर बैठा एक बच्चा काफी आवाज़ कर रहा था जिससे परेशान होकर हम लोग दो Row आगे खाली पड़ी सीटों पर चले गए। मगर आधे घंटे की फिल्म देखने के बाद मैं वापिस अपनी उसी सीट पर आ गया ताकि बच्चे के रोने की आवाज़ में फिल्म के डायलॉग न सुन पाऊं। फिल्म की कहानी एक ऐसे सरकटे भूत की है जिसे आधुनिक औरतें पसंद नहीं है। ऐसी औरतें जो नए विचार रखती हैं, मॉर्डन कपड़े पहनती हैं और जिनके पास अपनी एक सोच है। फिल्म का भूत ऐसी सारी औरतों को उठा लेता है। इस भूत की बातों में आकर गांव के लोग Zombies बनकर लड़कियों के स्कूल पर ताला लगवा देते हैं, औरतों को घरों में बंद कर देते हैं। आखिर में वो सरकटा भूत 'मारा' जाता है। हैरानी है इतने विवादित विषय पर बनी फिल्म पर राहुल गांधी ने अमेरिका में अब तक कोई बयान क्यों नहीं दिया। मोदी राज में ये सब क्या चल रहा है?

राहुल गांधी की खतरनाक राजनीतिराहुल गांधी अमेरिका में कह रहे हैं कि आज भारत में इस बात की लड़ाई चल रही है कि सिख पगड़ी पह...
11/09/2024

राहुल गांधी की खतरनाक राजनीति
राहुल गांधी अमेरिका में कह रहे हैं कि आज भारत में इस बात की लड़ाई चल रही है कि सिख पगड़ी पहन सकते हैं या नहीं। सच पूछें, तो मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि विपक्ष ऐसी बातें करें जिससे सरकार को असहज महसूस कराया जा सके मगर पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने के चक्कर में आप ऐसा झूठ कैसे बोल सकते हैं जिसकी दूर-दूर तक कोई मिसाल ही नहीं है। पंजाब तो भूल जाइए, पंजाब के बाहर ऐसी कौनसी घटना आपने देखी या सुनी जिसमें किसी सिख को पगड़ी पहनने से रोका गया हो।
जिस देश का लोकतंत्र विरोधी आवाज़ों को इतना स्पेस देता है कि वहां अमृतपाल जैसा खालिस्तानी और इंजीनियर राशिद जैसा अलगाववादी जेल से चुनाव लड़कर निर्दलीय जीत सकता है वहां ये बात कहां से आ गई कि नॉर्मल सिख को दबाया जा रहा है। हकीकत तो ये है कि किसान आंदोलन की आड़ में एक बड़े सेगमेंट ने खालिस्तानी सेंटीमेंट को हवा दी। किसान आंदोलन के दौरान ही खुलेआम भिंडरावाले के समर्थन वाली टीशर्ट पहनी गईं। नरेंद्र मोदी को जान से मारने की धमकी दी गई। लाल किले तक पर चढ़कर कुछ लोगों ने खालिस्तान की झंडा फहरा दिया।
आज कंगना रनौत की फिल्म तक इसलिए रिलीज़ नहीं हो पा रही क्योंकि कुछ सिख संगठन उसमें भिंडरावाले को आतंकी बताया जाने से नाराज़ हैं और राहुल गांधी हैं कि सिखों को इतना लाचार बता रहे हैं कि उन्हें पगड़ी तक पहनने नहीं दी जा रही। आज देश की हॉकी टीम का कप्तान हरमनप्रीत सिख हैं। महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर सिख हैं। देश की हॉकी टीम में तो आधे से ज़्यादा खिलाड़ी सिख हैं। दिलजीत दोसांज देश के सबसे बड़े सिंगिंग सुपरस्टार एक सिख हैं। एंटरटेनमेंट से लेकर स्पोर्ट्स तक और राजनीति से लेकर सेना तक ऐसी कौनसी जगह है जहां सिख नहीं हैं और बड़े पदों पर नहीं हैं मगर राहुल गांधी को देश का सिख इतना दबा हुआ लग रहा है कि उस बेचारे को पगड़ी तक नहीं पहनने दी जा रही।
मैंने शुरू में कहा कि आप बेशक ऐसी बात कीजिए जिससे सरकार दबाव में आए, वो असहज महसूस करे, आप विदेश जाकर भी ऐसा कुछ बोल रहे हैं मुझे उसमें भी दिक्कत नहीं है मगर पॉलिटिकल स्कोर करने के क्रम में आप ऐसी बात नहीं कर सकते जो आखिर में देश को कमज़ोर करने वाली हो और जिसका कोई वजूद ही न हो।
क्या राहुल गांधी नहीं जानते पंजाब में एक बड़ा खालिस्तानी वर्ग यही झूठ बेचने की कोशिश कर रहे हैं कि देश में सिखों को दबाया जा रहा है। वो झूठ इसलिए बोल रहे हैं ताकि अपने आंदोलन के लिए समर्थन जुटा सके लेकिन जब यही बात विपक्षी पार्टी का नेता भी बोलने लगेगा तो उनके झूठ को ही मज़बूती मिलेगी। यही खालिस्तानी पंजाब में अपने लोगों को बोलेंगे कि देखो, हम नहीं कहते थे कि सिखों से उनकी पहचान छीनी जा रही है। इस झूठ का जो सबसे बड़ा खतरा ये है कि जब आप ये स्थापित करते हैं कि देश का पीएम सिखों का दुश्मन है तो उस कौम का गुस्सा पीएम से आगे निकलकर देश के लिए पैदा होने लगता है। और अगर वही पीएम या पार्टी फिर से चुनाव जीतती है तो उस कौम को लगेगा कि इस ज़ुल्म से मुक्ति पाने का एक ही तरीका है कि हम देश से अलग हो जाएं।
उन पर ज़ुल्म हो रहा है ये झूठ उन्हें खालिस्तानी बेच रहे हैं फिर राहुल गांधी जैसे बड़े नेता उस पर विदेशों में बयान देकर उस झूठ की पुष्टि करके ये साबित कर देते हैं कि हां, ऐसा ही है। और इसके बावजूद केंद्र में अगर सत्ता परिवर्तन नहीं होता तो उस कौम के लिए मुक्ति का एक ही रास्ता बचता है, अलगाववाद। इसीलिए मैंने कहा कि जब राहुल गांधी ये कहते हैं कि देश में सिखों को पगड़ी पहनने से रोका जा रहा है तो ये सिर्फ राजनीतिक इल्जा़म नहीं बल्कि अलगाववादियों के एजेंडे पर मुहर है। देश तोड़ने की कोशिश है।
एक पंजाबी हिंदू होने के नाते मुझे सिखों के उन धार्मिक सिख नेताओं पर भी तरस आता है जो बार-बार ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सिख, हिन्दू नहीं हैं। अरे भाई, आपको ये साबित करने को ज़रूरत पड़ क्यों रही हैं। क्या पंजाब में या कहीं भी सिखों को उनका धर्म मानने से रोका गया है। सच तो ये है कि पंजाब, हरियाणा या दिल्ली जहां भी बड़ी तादाद में सिख और पंजाबी हिंदू रहते हैं वहां दोनों अपने कल्चर में इस हद तक घुले मिले हुए हैं कि आपको कभी ये ज़रूरत ही महसूस नहीं होती कि दोनों में फर्क किया जाए। पंजाब या दिल्ली में रहने वाला हिंदू भी गुरुद्वारे जाता है। सिख भी हिंदुओं के सारे त्यौहार मनाते है। पंजाब-हरियाणा में तो बहुत सारी हिंदू शादियां तक गुरूद्वारे में होती है।
अब एक बहुसंख्यक कौम अगर अपनी शादियां तक गुरुद्वारे में कर रही है इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि वो आपमें और खुद में फर्क नहीं समझती। वो आपके गुरु को इतना ऊंचा रखती है कि उसको हाज़िर-नाज़िर जानकर शादियां तक करती है। सच तो ये है कि ऐसा करते वो ये बात भी नहीं सोचती। दरअसल वो इस हद तक खुद को आपका और आपको अपना मानती है कि उसने कभी ये फर्क समझा ही नहीं। इसलिए बचपन से ऐसे माहौल में बड़े हुए मुझ जैसे शख्स के लिए ये देखना बहुत ज़्यादा दर्दनाक है जब कुछ लोग ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि सिख-हिंदुओं से अलग हैं। या वो हिंदुओं को अपना दुश्मन साबित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में राहुल गांधी जैसे कुछ लोग उस प्रोपेगेंडा पर मुहर लगाने की कोशिश करते हैं तो उससे खतरनाक कुछ हो ही नहीं सकता।
21वीं शताब्दी में ज़्यादातर बड़े देश एक दूसरे के खिलाफ सीधा हमला करने के बजाए अपने दुश्मन देश की Fault Lines को Exploit करने की कोशिश करते हैं। अमेरिका को अगर लगता है कि वो चीन से सीधी टक्कर नहीं ले सकता है, तो वो हांगकांग में लोकतंत्र के लिए चल रहे आंदोलन को हवा देता है। वो ताइवान को हथियार देता है। उसके डेलिगेशन धर्मशाला में दलाई लामा से मिलकर उसे चिढ़ाता है। अमेरिका को रूस को कमज़ोर करना है तो वो यूक्रेन को हथियार देकर उसे वहां उलझाकर रखता है। एक बंदरगाह न मिलने पर वो शेख हसीन सरकार का तख्तापलट करवा देता है। सालों से पाकिस्तान ऐसी ही कोशिशें कश्मीर से लेकर नॉर्थ ईस्ट और पंजाब तक कर रहा है। मगर चुनाव जीतने के लिए कोई नेता अगर अपने ही देश की Fault Lines का इस्तेमाल करे, तो इससे ज़्यादा खतरनाक और कुछ नहीं हो सकता। फिर चाहे वो पंजाब हो, मणिपुर हो, कश्मीर में दोबारा 370 लाने की बात करना हो या जातिगत राजनीति। आप जानबूझकर ऐसी हर कमज़ोर कड़ी को अपने फायदे में भुनाना चाहते हैं जिससे एक वर्ग में गुस्सा पैदा करके उसे सरकार के खिलाफ खड़ा किया जा सके। आप ये भूल जाते हैं कि ये गुस्सा सरकार से निकलकर देश के खिलाफ भी पैदा हो सकता है।
बांग्लादेश में जब कथित छात्र आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और उस हिंसा के बाद जब शेख हसीना का तख्तापलट हुआ तो कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि भारत में भी ऐसा हो सकता है। लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर हिंसा करके उसे उखाड़ सकते हैं। और भी कई लोगों ने ऐसी बात कही। फिर अगले कुछ दिनों में वहां हिंदुओं के खिलाफ जैसी हिंसा हुई, जमात ए इस्लामी जैसे संगठनों पर लगा बैन हटाया गया, हिंदू टीचर्स से इस्तीफे लिए गए, उनके मकानों को लूटा गया, सड़कों पर भारत के खिलाफ नारेबाज़ी की गई, और जल्द ही ये साफ हो गया कि ये कभी छात्र आंदोलन था ही नहीं।छात्र आंदोलन के मुखौटे के पीछे ऐसे तत्व थे जिनके अपने स्वार्थ थे। जिन्हें अपना एजेंडा पूरा करना था। अपनी विचारधारा लागू करनी थी।
इसलिए राहुल गांधी अगर विदेश में जाकर ये कहते हैं कि सिखों को पगड़ी पहनने नहीं दी जा रही है, तो ये कोई मासूमियत में दिया बयान नहीं है कि ये कोशिश है हर उस फॉल्ट लाइन को भुनाने की जिससे देश में अराजकता फैलाई जा सके। फिर चाहे उस अराजकता की आग में देश ही क्यों न झुलस जाए।

Neeraj Badhwar

05/09/2024

अनुभव सिन्हा वो बच्चा है जिसे आखिर तक नहीं पता चला था कि गंगाधर ही शक्तिमान है।

05/09/2024

शिक्षक दिवस पर मैं अपने उन तमाम शिक्षकों का तहे दिल से धन्यवाद करता हूं जिन्होंने पहली मुलाकात में ही बता दिया था कि बेटा हमारे भरोसे मत बैठना।

मत करो गरीबी का महिमामंडन!पिछले दिनों पाकिस्तान के एथलीट अशरफ नदीम ने जेवलिन थ्रो मे गोल्ड मेडल जीता तो चारों तरफ उनकी ख...
14/08/2024

मत करो गरीबी का महिमामंडन!

पिछले दिनों पाकिस्तान के एथलीट अशरफ नदीम ने जेवलिन थ्रो मे गोल्ड मेडल जीता तो चारों तरफ उनकी खूब तारीफ हुई। एक इंडियन न्यूज़ चैनल में एंकर नदीम की तारीफ करते हुए कह रहे थे कि कैसे इतनी गरीबी और अभावों में रहे अशरफ की कहानी हर किसी के लिए मिसाल है। हम उनसे सीख सकते हैं कि कैसे बिना अपने हालात का रोना रोए इंसान आगे बढ़ सकता है। अशरफ ही नहीं, जब भी कोई इंसान गरीबी से उठकर कुछ बड़ा करता है तो हम उसे मिसाल बनाकर पेश करते हैं। मगर सच कहूं तो मेरी इस सोच से सख्त आपत्ति है। क्योंकि कोई भी इंसान कुछ करना चाहता है और उसे अपने सपने पूरे करने के लिए बुनियादी सुविधाएं तक न मिले तो ये कोई अच्छी बात नहीं है। इन अभावों के बावजूद कामयाब होने वाले आदमी की तारीफ करके आप उस इंसान को तो महान बनाकर उसका महिमामंडन कर सकते हैं मगर आप इस सच से मुंह नहीं मोड़ सकते कि अगर उसे बुनियादी सुविधाओं तक के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा तो ये सिस्टम की नाकामी है।

अशरफ नदीम से लेकर 12th fail के मनोज शर्मा के संघर्षों की कहानी बताते हुए हम अक्सर एक बात भूल जाते हैं कि किसी भी समाज में बदलाव अपवादों से नहीं आता बल्कि सिस्टम से आता है। दूसरा जब हम गरीब आदमी को मिसाल बनाकर बाकी गरीबों से ये कहते हैं कि बहाने मत बनाओ, तुम भी इससे सीखो तो ऐसा कहके हम अभावों का ही सामान्यीकरण कर रहे होते हैं। सिस्टम को ही उसकी ज़िम्मेदारी से बचा रहे होते हैं और गरीब आदमी को इस अपराधबोध में डाल रहे होते हैं कि अगर वो सुविधाएं न मिलने की शिकायत करता है तो वो ही शिकायतीट्टू है वरना तो अशरफ जैसे लोग भी तो कामयाब हो रहे हैं।

भाई, ओलिंपिक में मेडल जीतना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है। वो अपने आप में ही बहुत बड़ा संघर्ष है मगर उस मेडल जीतने की प्रोसेस में किसी इंसान के पास ओलिंपिक से तीन महीने पहले तक ढंग की जेवलिन भी न हो इसे कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है। यूपीएससी क्लियर करना ही बहुत बड़ी बात है मगर इस क्रम में उसे अपनी फीस भरने के लिए एक आटा चक्की में काम करना पड़े, इसे कैसे ग्लोरिफाई किया जा सकता है। दिक्कत ये है कि जिस हम एक व्यक्ति का निजी संघर्ष बताकर उसे ग्लोरिफआई करते हैं वो एक व्यवस्था और समाज की सामूहकि शर्म होती है।

आज अगर 50 लाख की आबादी वाला न्यूज़ीलैंड ओलिंपिक में 10 गोल्ड समेत 20 मेडल ला रहा है तो वो इसलिए नहीं क्योंकि उसके खिलाड़ी गरीबी की मिसालें कायम करके मैच जीत रहे हैं। अगर ढाई करोड़ वाला ऑस्ट्रेलिया ओलिंपिक में 18 गोल्ड समेत 50 मेडल जीत रहा है तो इसलिए नहीं क्योंकि अशऱफ की तरफ उसके खिलाड़ियों को घी के खाली डिब्बों में सीमेंट भरके उससे अपनी वेट ट्रेनिंग करनी पड़ी थी। आबादी में छोटे-छोटे देश भी ओलिंपिक में इतना कमाल इसलिए करते हैं क्योंकि खेल और खिलाड़ी उनकी प्राथमिकता में है। वो खेलों में आगे बढ़ने के लिए किसी तुक्के, किसी गरीबी की मिसाल या किसी Individual Brilliance पर निर्भर नहीं करते।

किसी भी देश में सफलताएं सिस्टम से न निकलर Individual Brilliance या किसी जीनियस के थ्रू आती हैं वहां उस कामयाब आदमी को भगवान मान लिया जाता है। वो समाज कभी Achievement के साथ सहज ही नहीं हो पाता। क्योंकि बिना सिस्ट के उस समाज को कामयाबी देखने की आदत नहीं होती। उसे लगता है कि कामयाब हुआ ही नहीं जा सकता और जब कभी कोई अशरफ नदीम सफल हो जाता है तो उसे लगता है कि ये तो खुदा है या भगवान है। तभी तो एक पेट कमिंस 50 ओवर का वर्ल्ड कप जीतने के बाद ऑस्ट्रेलिया पहुंचता है तो उस मुल्क में कोई खास उत्तेजना पैदा नहीं होती और हिंदुस्तान टी ट्वेंटी वर्ल्ड कप जीत लेता है तो हम कई दिनों तक बौराएं रहते हैं। क्योंकि हम Succes देखने के सफल होने के आदी नहीं है। थोड़ा और गहरे में जाएं तो सिस्टम आपको सफलता का पैट्रन समझा देता है कि ऐसा करेंगे, इतने वक्त तक करेंगे इस तरह करेंगे तो सफल हो जाएँगे। Individual Brilliance एक तरह की मिस्ट्री के सााथ आती है जिसमें कामयाब होने वाला आदमी ही जानता है कि जो उसने किया वो कैसे किया। अब जिस भी चीज़ में रहस्य है वो हमें चमत्कारी लगती है और हम चमत्कार करने वाले उस आदमी को भगवान मान लेते हैं।

एक और उदाहरण देकर मैं अपनी बात ख़त्म करूंगा। 2016 में Lion मूवी आई थी। जो एक ऐसे भारतीय बच्चे Saroo Brierley की सच्ची कहानी थी जो 5 साल की उम्र में एक भारतीय रेलवे स्टेशन पर अपने भाई से बिछड़ जाता है। उस वक्त वो बच्चा अपने परिवार के साथ बेहद बुरी हालत में एक झुग्गी में रह रहा होता है। उन लोगों के पास खाने के पैसा नहीं होते और एक रोज़ वो अपने भाई के साथ काम पर गया होता है तभी 5 साल की उम्र में रेलवे स्टेशन पर बिछड़ जाता है। वहां से बच्चा एक ट्रेन में बैठकर कोलकात्ता जाता है। जहां एक आदमी उसे किसी को बेच देता है। वो बच्चा वहां से भी भाग जाता है। भागकर वो एक अनाथालय पहुंचता है। वहां भी उसको नर्क जैसी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है। फिर एक दिन एक ऑस्ट्रेलियाई कपल अनाथालय आता है और उस बच्चे को Adopt कर लेता है। ऑस्ट्रेलिया जाकर सरू को एक बेहतरीन ज़िंदगी मिलती है। मगर बड़े होने तक अपने परिवार की याद उसके ज़हन से नहीं जाती। इस बीच गूगल पर गूगल अर्थ फीचर आ जाता है। और वो उस फीचर का इस्तेमला करते हुए अपने गांव की धुंधली यादों का इस्तेमाल करेत हुए ये पता लगा लेता है कि भारत में उसका घर कहां था। फिर वो भारत आता है और चमत्कार हो जाता है। उसने सच में उस जगह का सही पता लगा लिया था। उसकी मां अब भी ज़िंदा था। उस वक्त इस ख़बर की पूरी दुनिया में चर्चा हुआ। सरू ने बाद में इस पर किताब लिखी। हॉलीवुड में इस पर फिल्म भी बनी। जिसे 6 ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नॉमिनेट किया गया।

ये घटना अपने आप में बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। सोचिए देश के लाखो करोड़ों गरीबों की तरह सरू बेहद तंगहाली में मध्यप्रदेश के छोटे से गांव में रह रहा था। अगर उसके साथ ये हादसा न हुआ होता, तो बहुत मुमिकन है कि अपने बाकी परिवार की तरह वो कहीं मजदूरी कर रहा होता। आज भी गांव में गरीबी में जी रहा होता। मगर उसके साथ एक हादसा होता है। अपनी किस्मत से वो ऑस्ट्रलिया पहुंचता है। वहां उसको अच्छी एजुकेशन मिलती है। उस बच्चे के अंदर छिपी सारी संभावनाएं बाहर आ जाती हैं। वो ऑनलाइन टेक्नोलिजी का इस्तेमला करके वो कमाल कर लेता है जो लगभग असंभव था। उसमें इतनी Intelligence होती है कि वो अपनी कहानी को बेहतरीन तरीके से Articulate करके उस पर किताब लिखता है। वो किताब बेस्ट सेलर बनती है। उस पर हॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म बनती है।

वो ये सब वो सिर्फ इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि उसके साथ एक एक्सीडेंट हुआ। वो वो इसलिए कर पाया क्योेंकि उसके अंदर संभावना थी। और जैसे ही उस संभावना को मौका मिला वो पूरी चमक के साथ निकलकर बाहर आ गई। अब आप सोचिए इस देश में कितने सरू हैं जिनके अंदर वैसी Intelligence, वैसी संभावना है। मगर एक बच्चे को ऐसा माहौल ही नहीं मिलेगा जिसमें उसे तीन टाइम रोटी खाने की परवाह न हो, रहने के लिए एक साफ सुधरी जगह न हो, पढ़ने के लिए अच्छा स्कूल न हो तो अपनी Intelligence वो आज़माएगा किस पर। सरू तो 5 साल में घर से गायब हो गया था। अगर वो 10 साल तक उसी परिवार में रहता तो उस माहौल में वो सारी संभावनाएं मारी जाती और कुछ वक्त बाद वो खुद भूल जाता है कि वो क्या कर सकता था या उसके अंदर क्या छिपा है।

सरू अगर ज़िंदगी में कुछ कर पाया तो इसलिए क्योंकि उसके साथ एक एक्सीडेंट हुआ। एक एक्सीडेंट हुआ और एक गरीब बच्चे की ज़िंदगी बदल गई। मगर समाज का बदलना एक एक्सीडेंट नहीं हो सकता। समाज सिस्टम से बदलता है। अशरफ नदीम की सफलता किसी भी गरीब आदमी के कामयाब होने का सुखद एक्सीडेंट है। इससे उस गरीब की ज़िंदगी तो ज़रूर बदलेगी। वो गरीब जिस समाज में रह रहा है वो भी ये सोचकर खुश हो जाएगा कि हमारे लड़के ने ये कर दिखाया मगर इससे उस समाज की गति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसीलिए मैंने शुरू में कहा कि संघर्ष के ऐसे किस्सों को मिसाल बताकर गरीब आदमी पर उससे सीखने की ज़िम्मेदारी मत लादिए। The FountainHead और Atlas Shrugged जैसी मशहूर किताबें लिखने वाली महान राइटर Ayn Rand ने सालों पहले अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि गरीबी कोई बहुत अच्छी चीज़ नहीं है। गरीब होना कोई सुखद अहसास नहीं है। हम उस गरीबी से पार पाकर सफल हुए कुछ चुनिंदा लोगों को तो जानते हैं उनका महिमामंडन भी करते हैं मगर उस गरीबी की वजह से कितनी संभावनाओं का क्तल हो जाता है इसका कोई हिसाब नहीं रखता।

Neeraj Badhwar

जिओ सिनेमा, तुमने ओलंपिक कवरेज का कूड़ा कर दिया!एक बड़े स्पोर्टिंग इवेंट की कवरेज कैसे नहीं करनी चाहिए जिओ सिनेमा इसका ब...
05/08/2024

जिओ सिनेमा, तुमने ओलंपिक कवरेज का कूड़ा कर दिया!
एक बड़े स्पोर्टिंग इवेंट की कवरेज कैसे नहीं करनी चाहिए जिओ सिनेमा इसका बेहतरीन उदाहरण है। माना कि आपके पास कवरेज राइट्स हैं। हो सकता है ब्रॉडकास्टर के पास ये Exclusive Rights हैं कि वो मैच के फौरन बाद खिलाड़ियों से बात कर सकते हैं। मगर जब आप देख रहे हैं लक्ष्य सेन अभी-अभी Bronze Medal मैच हारा हैं। वो इस हार के बाद सदमे में हैं। वो बेचारा एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पा रहा। पहले जवाब में ही उसका गला भर आया है। फिर भी आपका रिपोर्टर उससे सवाल पूछे जा रहा है। ये ऐसे ही है जैसे किसी आदमी ने अपने बेहद करीबी इंसान को अभी-अभी खोया हो। वो अकेले में रोना चाहता हो। वो उस दुख से गहरे सदमे में हो। और आप उसके आगे माइक लगाकर पूछने लगें कि आपको क्या लगता है कि आपके इस Family Member की मौत के बाद आपकी ज़िंदगी कैसे बदल जाएगी? आपको क्या लगता है कि वो कैसे मर गया? ये तो कोई उम्र नहीं थी उसकी इस दुनिया से जाने की।
शर्म आनी चाहिए ऐसी रिपोर्टिंग और ऐसे Work Ethics पर। क्या चैनल या रिपोर्टर को नहीं पता कि वो किस शॉक में है। वो बोल नहीं पा रहा। मगर आपको एक Exclusive बाइट लेनी है। टीम जीती है, प्लेयर जीता है तो वो उनके ड्रेसिंग रूम में चले जाओ कोई हर्ज़ नहीं। तब हर कोई कैमरे के सामने आकर अपनी खुशी ज़ाहिर करना चाहता है। मगर खिलाड़ी इतना बड़ा मैच हारा है। वो सिर्फ 5 मिनट पहले ओलंपिक मेडल जीतते जीतते रहा है। ऐसी हार जो शायद उसको आने वाले चार सालों तक हर दिन सताती रहे। उसे सोने न दे। और आप चाहते हैं कि हारने के पांचवें मिनट में ही वो अपनी इस हार को करोड़ों लोगों के सामने टीवी पर एक्सप्लेन करे कि अभी-अभी क्या हुआ...वो कैसा महसूस कर रहा है...उसे कितना दुख है। और ठीक यही मूर्खता मनु भाकर के मैच के वक्त की गई थी। उस बेचारी से भी तब एक भी शब्द नहीं बोला जा रहा था। लेकिन तब भी रिपोर्टर ने 5-6 सवाल पूछे बिना उसे जाने नहीं दिया।
और ये कोई इकलौती मूर्खता नहीं है जो ज़ी सिनेमा पर चल रही है। आप इनकी पूरी स्पोर्ट्स कवरेज देख लीजिए। शायद इन्हें पता ही नहीं है कि Viewing Experience नाम की कोई चीज़ होती है। लक्ष्य के मैच में ही दस बार स्क्रीन पर ये बताया गया कि कल नीरज चोपड़ा का मैच है। दस बार ये बताया गया कि कल रात इंडिया हॉकी टीम का सेमीफाइनल है।
लाइव मैच में स्क्रीन पर ग्राफिक्स दिखा चल रहे हैं तो भी ठीक है। समझ सकते हैंं कि आप सबसे बड़े प्लेयर या मैच को सैल कर रहे हैं। मगर जब-जब ग्राफिक्स आता है तब-तब पीछे से आपका एंकर वही बात बोलकर दर्शकों को reminder भी दे रहा है। आपको क्या लगता है कि जो आदमी अपनी आंखों से मैच देख सकता है उसे उसी स्क्रीन पर कल के मैच का रिमाइंडर ग्राफिक्स नहीं दिख रहा? अगर दिख रहा है तो क्यों लाइव मैच का ऑडियो म्यूट कर आप वही लिखी बात अपने एंकर से बुलवा रहे हैं? क्या आपको ज़रा भी अहसास है कि ये मैच देख रहे दर्शक के लिए कितना irritating है। भाई, कल बड़ा मैच है वो त हम देख लेंगे मगर तू पहले आज का मैच तो देखने दे।
इसी तरह मैच के दौरान एड कब चलाना है किसी ने इनको बताया ही नहीं। इंडिया-न्यूज़ीलैंड हॉकी मैच में जब टीम इंडिया PC ले रही थी तब पीसी से ठीक पहले Split Screen करके दूसरी विंडो में इन लोगों ने एड चला दी। मैच की कमेंट्री म्यूट हो गई। आधी स्क्रीन पर दिख नहीं रहा था कि पीसी में हो क्या रहा है। आप जानना तो मैच के बारे में चाहते हैं और आपके कान में आवाज़ उस टीवी कमर्शल की पड़ने लगती है। चैनल ऐसी गलतियां तभी करता है जब सच में उसे Viewer Experience की परवाह ही न हो। या बड़े मोमेंट के दौरान स्प्लिट स्क्रीन में एड चलाने का पैसा बहुत मिल रहा हो और दोनों ही केस में आप उस मैच की ऐसी-तैसी कर देते हैं जिसे देखने दर्शक बैठा है।
इसी तरह ज़्यादातर कॉमेंटेटर को किसी ने शायद बताया ही नहीं कि भाई फास्ट पेस गेम में आपको उस मोमेंट पर बात करनी होती है अपने किस्से नहीं सुनाने होते। लगभग हर स्पोर्ट्स में उस मोमेंट पर बात कम हो रही होती है और जो खिलाड़ी कॉमेंट्री बॉक्स में बैठा है वो किस्सागोई ज़्यादा कर रहा होता है। आर्चरी के एक मैच में इंपोर्टेंट मोमेंट में मैच में बात न करके अतनु दास दो मिनट ये बताते रहे है कि वो तरुणदीप राय को तरुण भैया के अलावा कुछ बोल नहीं सकते क्योंकि वो उनकी बहुत इज्ज़त करते हैं।
हॉकी के एक मैच में बॉल मैदान के एक साइड से दूसरी साइड चली गई। इंडिया का पीसी भी आ गया और जुगराज भाई ये ही बता रहे थे कि इंडिया में आज तक कौन-कौन से बेस्ट गोलकीपर हुए हैं। भाई, ये कोई टेस्ट मैच नहीं चल रहा कि बीच में गेम बहुत स्लो हुआ तो आप किस्सागोई करने लगे। हॉकी जैसे गेम में तो दस सेकेंड के अंदर बॉल एक डी से दूसरी डी में चली जाती है और आपको अपने किस्सों से ही फुरसत नहीं मिलती। कल रात को पता चला कि दूसरे क्वार्टर फाइनल में स्पेन ने पिछली बार की चैंपियन बेल्जियम को हरा दिया है, तो मैंने पूरा जिओ का ऐप छान मारा मगर मुझे कहीं उसकी हाईलाइट नहीं मिली। अगेन क्या ये बात वहां किसी को नहीं पता लगी कि स्पेन का बेल्जियम को हराना कितना बड़ा उलटफेर हैं। ट्रेंडिंग में या बड़े इवेंट की हाइलाइट्स में इस मैच की हाइलाइट्स भी रख दें। कल रात तक को मुझे नहीं मिला था बाद में आया हो तो पता नहीं।
और ये सारी बातें मुझे ही नहीं किसी भी Passionate Sports लवर को अखरती हैं। उसे irritate करती हैं। उसे गुस्सा दिलाती हैं। मेरा अफसोस ये है कि अगर एक दर्शक होने के नाते ये सब बातें हम देख और महसूस कर पा रहे हैं तो जिन लोगों का काम ही स्पोर्ट्स प्रॉडक्शन करना है क्या उन्हें ये सब बातें समझ में नहीं आती हैं। ले-देकर इस सारे अंधेरे के बीच हमारे सुनील तनेजा जी ही हैं जिनकी आवाज़ में वो उत्तेजना, वो खनक, वो भावनाएं होती हैं जो एक सच्चे खेल प्रेमी के मन में होती हैं। और जब वो बोलते हैं तो लगता है कि आपके ही Emotions को आवाज़ दे रहे हैं। उनके अलावा तो ज़ी सिनेमा ने इतने बड़े स्पोर्टिंग इवेंट का मज़ाक बनाकर रख दिया है।

27/06/2024

अफ्रीकी टीम को समझना चाहिए कि आईसीसी ट्रॉफी जीतना बड़ी बात है मगर आखिर में उन्हें बच्चों की स्कूल फीस तो आईपीएल से ही भरनी है।

27/06/2024

अब समझ आया...कुलदीप और बुमराह को नज़र न लग जाए इसलिए टीम में शिवम दुबे को रखा हुआ है। फिर ठीक है।

Address

New Delhi

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Khabarbaazi posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Khabarbaazi:

Share