
18/02/2025
अंधे करके गजनी ले जाते पृथ्वीराज चौहान ।
आग में कूदकर जौहर करती रानी पद्मावती ।
जिंदा खौलते तेल में डाले जाते हरपाल देव यदुवंशी।
हेमू का सर काटकर काबुल भेज दिया गया और धड़ दिल्ली में लटका दिया गया।
गर्म तवे पर बैठाकर गुरू अर्जुनदेव शहीद किए गए।
गुरू गोबिंद सिंह के दो छोटे बच्चे जिंदा दीवार में चिनवाए गए।
40 दिन तक छत्रपति संभाजी को यातनाएं दी गईं।
गोकुल जाट का आगरा कोतवाली पर लटका कर अंग-अंग काटा गया।
पानीपत में घंटों हिन्दू नरसंहार चला, हजारों की तादाद में गुलाम काबुल ले जाए गए।
1857 की हार के बाद बीहड़ में भूखे- प्यासे तात्या टोपे भटकते रहे और अंत में फांसी पर लटका दिए गए।
काला पानी में अपने ही मल-मूत्र में छह-छह महीने Solitary confinement झेलते सावरकर.
हिंदू बच्चियों को हरम में डालना हो या गैंगरेप (तहरुष) करना ।।
आजादी के शुभ अवसर तक पर 10 लाख लोगों का नरसंहार, विस्थापन, बलात्कार और एक तिहाई देश सदा के लिए कटकर अलग हो गया।
और जनवरी की एक रात कश्मीर हिन्दू विहीन हो गया।
फिल्म वालों को आपके टिकट के पैसे वसूल कराने हैं वो आपको हार में भी कुछ सकारात्मक अंत दिखाकर ही थिएटर से निकालेंगे लेकिन सच्चाई यह है कि इतिहास का हर पन्ना यातनाओं, चीखों, नरसंहारों और खून से सना है।
हम शायद पहली पीढ़ी होंगे जो तीर्थ जाने के लिए जजिया नहीं दे रहे, देशभक्ति के लिए फांसी पर नही लटकाए जा रहे। मास धर्मांतरण और विस्थापन नहीं झेल रहे। एक स्थिर सरकार में एक बढ़ती इकोनॉमी में कल के लिए बेहतर उम्मीद लिए जीवन जी रहे हैं।
इतिहास बताता है कि हमारा संगठित होकर एक लक्ष्य की तरफ बढ़ना कितना आवश्यक है ताकि जब 100 वर्ष बाद हमारे वर्तमान पर फिल्में बनें तो उनमें केवल बलिदान की कहानियां न हों जीत की भी कहानियां हों।
जैसे रानी दुर्गावती ने अकबर को चटाई जैसे छत्रसाल ने औरंगजेब को और राणा कुम्भा कभी युद्ध नहीं हारे 🙏🏻