11/12/2025
#साभार_महेश_कुमार_के_फेसबुक_वॉल_से #स्त्री_मिथक_और_यथार्थ #नीलिमा_पाण्डेय
धर्मग्रंथों, पुराणों और लोकसाहित्य में स्त्री पात्रों का मिथकीकरण हुआ है। इन मिथकीय पात्रों के कई संस्करण और कई पाठ हैं। इन कथानकों का क्रोनोलॉजिकल आर्डर है जो बदलते हुए तत्कालीनता और समकालीनता में स्त्रियों के भूमिका और छवियों को स्थापित करता है। उदाहरण के लिए शकुंतला के कई पाठ हैं। महाभारत में मजबूत है कालिदास में मजबूर। कालिदास वाली शकुंतला ज्यादा लोकप्रिय हो गयी। यही कथा ज्यादातर पाठ्यपुस्तकों में भी है। यह राज्य के सुदृढ़ीकरण और पितृसत्ता के पकड़ के साथ 'नैतिकताओं का इतिहास' बन जाता है। इसको अहल्या के उदाहरण से समझिए। कहीं इंद्र के साथ उनका संबंध सहमति से बन रहा है कहीं बलात्कार के रूप में है। यह केवल 'देव-ऋषि' संघर्ष नहीं है। इसका संबंध 'स्त्रियों के शरीर और कोख पर पुरुषों के अधिकार' से ज्यादा है। मंदोदरी की कहानी इस मामले में और भी दिलचस्प है। 'मधुरा' शिवभक्त है। दोनों के बीच संभोग होता है। पार्वती शाप मधुरा को देती हैं। पुरुष यहाँ भी बच जाता है। यौनिकता, बुद्धिमत्ता और गतिशीलता पर नियंत्रण करने की ऐसी कई कहानियाँ हैं जिसने देवताओं, ऋषियों और अन्य ताकतवर पुरुषों के कामुकता, लम्पटता और जबर्दस्ती को कठघरे में खड़े करने के बजाय ;स्त्रियों के लिए एक नैरेटिव बनाकर उनको हर तरीके से नियंत्रित करने का कानून बनाने का प्रस्ताव रखता है। इसका असर लोकसाहित्य पर भी पड़ा। लेखिका ने 'पंचतंत्र और स्त्री द्वेष' में विश्लेषित किया है। उनको कामातुर ही बताया गया है। युद्ध और हिंसा मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति है। पुरुषों ने युद्ध किया और बदले की आग स्त्रियों की शरीर से बुझाते रहे। फिर स्त्रियों की रक्षा भी खुद करने की जिम्मेदारी लिया। इन दोनों प्रक्रियाओं में स्त्रियों की सहमति न के बराबर ही थी और है। रक्षा की जिम्मेदारी ने 'गोदना' के माध्यम से पीड़ादायक प्रक्रियाओं को जन्म दिया। गोदना के सामाजिक पक्षों का विवरण और कुट्टनीमतम का विश्लेषण स्त्रियों के नियति और पुरुषों के नियत के बारे में बताती है। नीलिमा पाण्डेय जी को बधाई!💐
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