
29/05/2025
हर कदम पर तूफ़ानों से टकराता गया
22 की उम्र में DSP बनकर छा गया।
ईमानदार अधिकारी देश की अनमोल धरोहर होती है
कुछ लोग वर्दी पहनते हैं, तो कानून का डर दिखाते हैं... लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो वर्दी में विश्वास की आवाज़ बन जाते हैं। ये कहानी एक ऐसे ही शख्स की है, जो न सिर्फ जुर्म से लड़ा, बल्कि सिस्टम से भी लड़ गया , खामोशी से, मगर डटकर।
कभी दूर हिमालय की तलहटी में बसे एक छोटे से गांव की तंग पगडंडियों पर एक लड़का चुपचाप अपने मन में तूफान संजोए फिरता था। घर की मिट्टी में पले-बढ़े इस बालक के सपनों की कोई सीमा न थी, पर हालात बेहद साधारण। लकड़ी की मेज, एक पुराना रेडियो और दीवार पर टंगी एक धुंधली तस्वीर। यहीं से 30 अक्टूबर 1992 को जन्मे इस बालक के कल्पना की उड़ान शुरू हुई थी।
बचपन में जब बाकी बच्चे मैदान में खेलते, वह खामोशी से किसी पुलिस अधिकारी की कहानी पढ़ रहा होता। कभी-कभी अपनी परछाई से सवाल करता, "क्या मैं भी एक दिन अपराधियों के सामने कानून की आवाज़ बनूंगा?" ज़िंदगी आसान नहीं थी, कभी आर्थिक मुश्किलें, कभी सामाजिक दबाव। पर उसके इरादे पत्थर से भी कठोर थे।
स्कूल जाता, फिर खेतों में पिता जागर सिंह की मदद करता और रात को ढिबरी (पारंपरिक देसी दीपक लैम्प) की लौ में पढ़ाई करता। जब गांव में लोग कहते, "यहां से कोई बड़ा अफसर नहीं बनता", तो उसकी आंखों में कुछ और ही चमक आ जाती थी। वह जानता था, पहाड़ों से निकली नदियां समुद्र तक जाती हैं।
वह जानता था कि सिर्फ किताबें पास करना काफ़ी नहीं, जीवन में वो आग चाहिए जो किसी युवा को असंभव रास्तों पर भी मुस्कुराते हुए चलना सिखाए। उसने 21 साल की उम्र में हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की कठिन परीक्षा पास की ,वो भी पहली ही बार। इतनी कम उम्र में ये कर दिखा पाना बहुतों के लिए नामुमकिन था। लेकिन वह लड़का जानता था कि नामुमकिन कुछ नहीं। लेकिन तैयारी कोई एक दो साल से नहीं कई सालों से चल रही थी, बस फर्क इतना था की उम्र छोटी थी। लोग कहते थे कि वह केवल पढ़ नहीं रहा था, तपस्या कर रहा था।
22 की उम्र में वह हिमाचल प्रदेश के सबसे युवा डीएसपी बन गए। साथ ही राज्य में सबसे युवा डीएसपी बनने का रिकॉर्ड सिरमौर के नाम करवा दिया। 2017 में सबसे पहली तैनाती मिली नैना देवी मां के चरणों में। यही से उसकी ईमानदारी और कर्मनिष्ठा की यात्रा शुरू हुई। उसे तब नहीं पता था कि आगे चलकर उसे सिर्फ अपराध से नहीं, राजनीतिक हस्तक्षेपों से भी लड़ना होगा। लेकिन वह रुका नहीं, झुका नहीं।
जब बैजनाथ में डीएसपी बनकर गया, तो पहले दिन से ही चुनौतियां कई थी। अपने कार्यकाल के मात्र 6 महीनों के भीतर ही नशा माफिया के लिए खौफ बन गए। नशे के खिलाफ कॉलेजों में जागरूकता अभियान चलाए। रात में खुद नाकों पर खड़ा रहकर कानून व्यवस्था की निगरानी की।
एक स्थानीय नेता के बेटे का पैराग्लाइडिंग के दौरान चालान किया, तो कुछ ताकतवर लोग असहज हो गए। शायद यही कारण बना तबादले का फरमान जारी हो गया। लेकिन सच्चाई कभी नहीं झुकती। पूरे प्रदेश में तबादले का विरोध हुआ और हाई कोर्ट ने तबादले पर रोक लगा दी और उन्हें बैजनाथ में ही तैनात रखने को कहा गया।
ये पहली बार नहीं था। पिछली सरकार में भी जब तबादला हुआ, तो 48 घंटे में आचार संहिता लागू हो गई, और आदेश रद्द हो गया। इन तमाम घटनाओं के बीच भी वह न रुका, न बिका, न थका। अपने चंद बरसो के करियर में उसे राज्य स्तरीय परेड का कमांडर बनने का मौका मिला। परेड की अगुवाई ऐसे तरीके से की कि हर आंख में गर्व और हर दिल में भरोसा था। हजारों युवाओं ने उन्हें देखकर अफसर बनने का सपना देखा।
आज भी वह जहां है, अपराधियों के लिए खौफ है और आम जनता के लिए उम्मीद। राजनीतिक दखल, तबादले और दबाव उसे तोड़ नहीं पाए।
ये है, हिमाचल प्रदेश में सबसे कम उम्र में DSP बनने वाले डीएसपी अनिल शर्मा। शिलाई की नायापंजोड पंचायत के छोटे से गांव कफेनू में जागर सिंह व मालो देवी के घर 30 अक्टूबर 1992 को जन्म हुआ। कहानी सिर्फ एक डीएसपी की नहीं, यह कहानी है एक बच्चे के भीतर पलते स्वप्न की, जो बड़ा होकर एक संकल्प बना। मौजूदा में कांगड़ा के बैजनाथ में डीएसपी के पद पर सेवारत है
अमीर डोगरा की रिपोर्ट
ए स्टार न्यूज़ पालमपुर
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