26/10/2025
आप सब ये जानने के इच्छुक जरूर होंगे कि हमारा पानीपत आजादी से पहले कैसा था और आजादी के बाद इसमें क्या क्या बदलाव आए। हम सबकी इस ख्वाहिश को पूरा कर रहे है शहर के जाने माने साहित्यकार एडवोकेट राम मोहन राय। राय साहब देश ही नहीं कई विदेशों की यात्राएं कर चुके हैं। वो जहां भी जाते हैं वहां के बारे में अच्छी जानकारी जरूर लिखते हैं। कई सामाजिक संस्थाओं जुड़े हैं और सद्भावना, भाईचारा, देशभक्ति खासकर गांधी जी के विचारों को देश दुनिया में फैला रहे हैं। उनके द्वारा लिखा लेख हुबहू आप पढ़े और अच्छा लगे तो राय साहब का हौंसला जरूर बढ़ाएं। सादर
पानीपत की गलियां-1
आज पानीपत की सैर का दिन है। हमने लाल बत्ती चौक, जीटी रोड से अंसार चौक की तरफ यात्रा शुरू की, जो कचहरी बाजार से होकर गुजरती है। यह बाजार पानीपत का एक ऐतिहासिक हिस्सा है, जहां आजादी से बहुत पहले, लगभग 1920 के आसपास, एक कोर्ट हुआ करती थी। उस समय यह कोर्ट किसी मकान की पहली मंजिल पर स्थित थी, और तहसीलदार, जो मजिस्ट्रेट का पद भी संभालते थे, यहीं बैठकर न्यायिक कार्य करते थे। बाजार की हलचल के बीच न्याय की प्रक्रिया चलती रहती थी, और आसपास की दुकानें इस ऐतिहासिक माहौल को और जीवंत बनाती थीं।
उस दौर में इस बाजार में कुछ प्रसिद्ध दुकानें थीं, जैसे पंडित मायी दयाल की पान की दुकान, जहां लोग स्वादिष्ट पान का मजा लेते थे, और तेलू राम पकोड़े वाले की दुकान, जो अपने कुरकुरे और मसालेदार पकोड़ों के लिए मशहूर थी। ये दुकानें न केवल स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र थीं, बल्कि बाजार की जीवंतता का प्रतीक भी थीं। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया। सन 1947 में देश की आजादी और विभाजन के बाद, यह बाजार साइकिल मार्केट में तब्दील हो गया। कोर्ट को कबड़ी कोठी में स्थानांतरित कर दिया गया, और बाजार का चरित्र पूरी तरह बदल गया। अब यहां साइकिलों की दुकानें और मरम्मत की वर्कशॉप्स का बोलबाला था।
इस परिवर्तन में पंडित मायदयाल पानवाड़ी की दुकान छोटी पड़ गई, जबकि दीवान चंद टक्कर की साइकिल दुकान बड़ी और सफल हो गई। लेकिन इतिहास में एक दुखद अध्याय जुड़ा, जब 15 मार्च 1966 को एक बड़ा हादसा हुआ। उस दिन उपद्रवियों ने देवान चंद टक्कर और उनके दो साथियों को दुकान में बंद करके जिंदा जला दिया। यह घटना पानीपत के इतिहास में एक काला धब्बा बन गई, जो साम्प्रदायिक हिंसा और मानवीय क्रूरता की याद दिलाती है। इस हादसे ने पूरे बाजार को हिला दिया और स्थानीय समुदाय में लंबे समय तक दर्द की छाप छोड़ी।
आज का कचहरी बाजार पूरी तरह बदल चुका है। यहां अब बड़े-बड़े शोरूम खड़े हैं, जहां आधुनिक उत्पादों की बिक्री होती है, और स्वर्णकारों की दुकानें चमक-दमक से भरी हुई हैं। सोने-चांदी के आभूषणों की चमक बाजार को एक नई पहचान देती है। पुरानी दुकानें और ऐतिहासिक इमारतें अब आधुनिकता की चपेट में आ गई हैं, लेकिन बाजार का नाम वही पुराना है – कचहरी बाजार। यह नाम समय की धारा में बहते हुए भी अटल रहा है, जो हमें अतीत की याद दिलाता है कि कैसे जगहें बदलती हैं, लेकिन उनकी कहानियां हमेशा जीवित रहती हैं। पानीपत की यह सैर हमें इतिहास, परिवर्तन और स्मृतियों की यात्रा पर ले जाती है।
Ram Mohan Rai .
Panipat