17/11/2023
*क्या पंजाबी भाषा ( गुरुमुखी लिपि) गुरु रविदास महाराज जी ने बनाई है ?*
समाज में भाषा का बहुत बड़ा महत्व है।गुरु रविदास महाराज जी ने बनारस में रहते हुए इस बात को समझा होगा की कैसे पुजारी ग्रंथों और किताबों का हवाला देकर इंसानों को भ्रम में डालते हैं।उन किताबों के सहारे पुजारी अपनी आने वाली पीढ़ी को भी शिक्षा दे रहा है।जिस समाज से गुरु रविदास महाराज जी आए उनका जन्म विश्व विख्यात चमार जाति में हुआ था।लेकिन अमानवीय सामाजिक व्यवस्था के कारण एक वर्ग को शिक्षा का अधिकार था पढ़ने और लिखने का अधिकार था कोई भी भाषा सीखने का अधिकार था।लेकिन एक वर्ग ऐसा था जिसको शिक्षा से वंचित रखा गया इस बात को सोचकर गुरु रविदास महाराज जी ने एक कथन भी कहा..
माधव अविद्या हित कीन विवेक दीप मालिन।।
गुरु रविदास महाराज जी फरमाते हैं- हे मानव आशिक्षा ही अज्ञानता की जननी है अशिक्षा से तेरा विवेक खत्म हो गया है,तेरा स्वाभिमान खत्म हो चुका है।
जिस समुदाय में गुरु रविदास जी का जन्म हुआ वह भेदभाव,अस्पृश्यता,गरीबी और अज्ञानता के बंधनों में था।इसका एक ही कारण था अविद्या अथार्त अशिक्षा।यह बात गुरु रविदास महाराज जी भलीभांति समझ चुके थे।उन्होंने इस वंचित वर्ग को शिक्षा के साथ जोड़ने का प्रण लिया।गुरु रविदास महाराज जी यह भली-भांति जानते थे की बाहरी शिक्षाओं से ही भीतर में चेतना का विकास संभव है।शिक्षा से ही इंसान अपनी अज्ञानता को पहचान सकता है।शिक्षा से ही इंसान अपने अवगुणों की पहचान कर सकता है और शिक्षा से ही इंसान ज्ञान मार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है।
यह बनारस में संभव नहीं था क्योंकि वहां समाजिक व्यवस्था मनुवादियों के हाथ में थी और वहां मनुवादियों का कड़ा पहरा था।इसलिए गुरु रविदास महाराज जी ने पंजाब को चुना क्योंकि पंजाब में बहुत लम्बे समय तक दलित राजाओं ने राज किया इस बात का प्रभाव वहां था।पंजाब में उस समय मनुवाद का पहरा बहुत कम था।इसलिए वहां जाकर उन्होंने पंजाबी गुरमुखी भाषा का निर्माण किया गुरमुखी अर्थात गुरुओं के द्वारा बोली गई भाषा,गुरुओ के मुखारविंद से उचारी गई भाषा।
इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रमाण....
बहुत उच्च कोटि के विद्वान,इतिहासकार प्रोफेसर गुरनाम सिंह मुकतसर ने भी इस बात का हवाला दिया।गुरु ग्रंथ साहब में ऐसे बहुत से प्रमाण है जिससे यह साबित होता है सतगुरु रविदास महाराज जी और सतगुरु कबीर महाराज जी ने गुरुमुखी पंजाबी वर्णमाला की उत्पत्ति की है।गुरु रविदास महाराज जी बनारस के आस-पास रहते थे काशी में वहां किसी भी भाषा को सीखने और पढ़ने का अधिकार नहीं था तो ज्ञान को कलम बंद कैसे किया जाता।सतगुरु रविदास महाराज जी ने अपने ज्ञान से 34 अक्षरों का निर्माण किया। जिसको सतगुरु कबीर महाराज जी ने अपने शब्दों के रूप में बताया।इसका प्रमाण गुरु ग्रंथ साहब में मिलता है।
गुरु रविदास महाराज जी फरमाते हैं....
"नाना खियान पुराण बेद बिधि चौतीस अछर माही"
गुरु रविदास महाराज जी फरमाते हैं पुराण,वेद और भी बहुत सी धार्मिक पुस्तकें का निर्माण अक्षरों से हुआ है लेकिन उसको पढ़ने का अधिकार सिर्फ एक वर्ग के पास है।इसलिए मैंने इन 34 अक्षरों का निर्माण किया है ताकि लिखने का अधिकार पढ़ने का अधिकार हर मानव को सामान्य रूप से उपलब्ध हो सके।एक अक्षर को बाद में जोड़ा गया उस वक्त वर्णमाला के 35 अक्षर थे।
उत्तरी भारत में पंजाब,हिमाचल,हरियाणा,दिल्ली पाकिस्तान एवम अफ़गानिस्तान तक इस भाषा का विस्तार हुआ और शिक्षा से वंचित वर्ग पढ़ लिख कर ज्ञान के मार्ग से जुड़ पाया।ज्ञानी गुरचरण सिंह ने एक पुस्तक लिखी है: गुरुमुखी अखर गुरु रविदास ने बनाई।लेखक कहते हैं कि मूल रूप से वर्णमाला के केवल 35 अक्षर हैं।उन्होंने लिखा शिक्षा को मुश्किल बनाने के विचार से स्वार्थी लोगों ने अक्षरों को 52 तक बढ़ा दिया है।उन्होंने पुस्तक में भी उल्लेख किया है कि दलित की शिक्षा तक पहुंच नहीं थी।उन्हें गुरुमुखी लिपि की आवश्यकता महसूस हुई ताकि दलितों को शिक्षित किया जा सके।
1932 में लाहौर अदालत ने फैसला किया था कि गुरूमुखी पंजाबी वर्णमाला गुरु रविदास जी द्वारा बनाई गई है।11 मार्च 1932 को मुकदमा नंबर 875 सन 1932 का फैसला अदालत शेख अब्दुल मजीद अमृतसर के द्वारा हुआ।यह मुकदमा महंत जमुना दास उर्फ जसवंत सिंह जी गुरुद्वारा रविदासपूरा गांव-मुतसिल घुबदी,डाकखाना-डेहलो,जिला लुधियाना जी ने इस मुकदमे को खुद जीता था इसके दस्तावेज आज भी उपलब्ध है।
डॉ कृष्णा कलसिया का लेख: गुरु रविदास की कला।पुस्तक में उल्लेख किया है कि गुरु रविदास वाणी में पंजाबी का एकमात्र प्रभाव है।यह भी दिखाता है कि गुरु रविदास जी ने गुरमुखी पंजाबी वर्णमाला बनाई है।जैसे-जैसे समाज में जागृति आई तो इतिहासकारों ने खोज का कार्य शुरू किया कैसे गौरवशाली इतिहास को खत्म करने के लिए उसमें मिलावट की गई ताकि उसकी अहमियत कम हो सके।गुरु रविदास महाराज जी अगर आज के युग में होते तो उनको हम एक महान भाषा वैज्ञानिक,सामाजिक वैज्ञानिक,समाज सुधारक उनकी उपलब्धियों के मुताबिक क्या क्या कहते उनको।जब जब किसी चीज की आवश्यकता पड़ी है तब तब नए नए अविष्कार हुए हैं।आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।उस वक्त वंचित समाज के लिए भाषा नहीं थी तब गुरु महाराज ने भाषा का निर्माण कर उनको शिक्षा से जोड़ दिया।सर्वोच्च ज्ञान अवस्था के मालिक गुरु रविदास महाराज जी आज भी हम सब के प्रेरणा स्रोत है और हमेशा रहेंगे।
*प्रेषक :- संजीव राही सुरजाखेड़ा*