दूनिया के गजब तथ्य

दूनिया के गजब तथ्य Life For Game's I have always been creating the best content for you and will continue to do so. All of you keep liking and sharing us in the same way.
(2)

If you have any kind of suggestion for us, you can send it to us on this email ([email protected]) or you can also call us on this number +1 (661) 447-6234. Thank you very much, your own dear admin of दूनिया के गजब तथ्य page.

“””””नूतन, जिनका पूरा नाम नूतन समार्थ था, हिंदी सिनेमा की उन दुर्लभ अदाकाराओं में से थीं जिनके अभिनय में शालीनता, संवेदन...
16/08/2025

“””””नूतन, जिनका पूरा नाम नूतन समार्थ था, हिंदी सिनेमा की उन दुर्लभ अदाकाराओं में से थीं जिनके अभिनय में शालीनता, संवेदनशीलता और गहरी आंतरिक शक्ति का अद्वि’तीय मेल देखने को मिलता था। उनका बचपन एक ऐसे घर में बीता जहाँ कला का माहौल था—उनकी माँ शोभना समर्थ खुद एक जानी-मानी अभिनेत्री थीं—लेकिन नूतन का स्वभाव बिल्कुल संकोची और आत्ममंथन करने वाला था। स्कूल के दिनों में वे पढ़ाई में अच्छी थीं, लेकिन उन्हें पेंटिंग और क’विता लिखने का भी गहरा शौक था, जो उन्होंने कभी प्रचारित नहीं किया। फिल्मों में आने के शुरुआती वर्षों में उन्हें ‘पतली-दुबली’ होने के कारण कुछ लोगों ने नायक-नायिका की जोड़ी के लिहाज़ से कमज़ोर कहा, लेकिन उन्होंने अपनी गंभीर और सूक्ष्म अभिव्य’क्ति से यह साबित कर दिया कि असली अभिनय चेहरे के हावभाव और आंखों की भाषा में होता है, न कि सिर्फ़ बाहरी रूप-रंग में। एक दिलचस्प बात यह थी कि सेट पर वे अक्सर अपने शॉट से पहले कोने में बैठकर हल्के स्वर में भजन गुनगुनातीं—यह उनकी निजी तैयारी का हिस्सा था, ताकि वे किरदार के भावों में पूरी तरह डूब सकें। अपने करियर में उन्होंने ‘सुजाता’, ‘बंधन’, ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में इतने प्रभावशाली किरदार निभाए कि वे सिर्फ़ एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि भावनाओं की जीवंत प्रतीक बन गईं। असल जिंदगी में वे बेहद अनुशासित और आत्म’निर्भर थीं—उन्होंने पढ़ाई, परिवार और करियर, तीनों को संतुलित ढंग से निभाया, और यही उन्हें बाकी नायिकाओं से अलग करता है!!!! लाइक करे?????

“”””””केरल के अनंतपुर मंदिर की पवित्र झील का सबसे अनोखा निवासी, ‘बबिया’ नामक शाकाहारी मगरमच्छ, अब सिर्फ़ यादों में रह गय...
14/08/2025

“”””””केरल के अनंतपुर मंदिर की पवित्र झील का सबसे अनोखा निवासी, ‘बबिया’ नामक शाकाहारी मगरमच्छ, अब सिर्फ़ यादों में रह गया है। करीब 70 वर्षों तक उसने इंसानों और आस्था के बीच एक अद्भुत पुल का काम किया। आम तौर पर खतरनाक और मांसाहारी स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले मगर’मच्छों के बीच बबिया एक अपवाद था—उसने न कभी किसी को नुकसान पहुँचाया, न ही मांस को छुआ। उसकी पूरी ज़िंदगी मंदिर के प्रसाद — चावल और गुड़ — पर बीती। श्रद्धालु मानते थे कि बबिया सिर्फ़ एक जीव नहीं, बल्कि मंदिर की परंपरा और विश्वास का जीवंत प्रतीक है। उसके शांत स्वभाव और इंसानों के साथ सौम्य संबंध ने उसे दुनिया का इकलौता शाकाहारी मगरमच्छ बना दिया, जो न केवल जीवविज्ञान में एक अनूठा अ’ध्याय है, बल्कि आस्था और प्रकृति के अद्भुत सहअस्तित्व की मिसाल भी है। बबिया का जाना उस झील के शांत पानी में एक खालीपन छोड़ गया है, लेकिन उसकी कहानी हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि प्रकृति में भी करुणा और विश्वास की जगह होती है!!!!! लाइक करे????

“””””””””राजस्थान में मानवीय संवेदनाओं और चिकित्सा कौशल का अद्भुत उदाहरण देखने को मिला, जब अलवर के एक 6 वर्षीय मासूम का ...
14/08/2025

“””””””””राजस्थान में मानवीय संवेदनाओं और चिकित्सा कौशल का अद्भुत उदाहरण देखने को मिला, जब अलवर के एक 6 वर्षीय मासूम का हाथ चारा काटने वाली मशीन में फँसकर पूरी तरह कटकर अलग हो गया। आमतौर पर ऐसे हादसों में अंग बचाना बेहद कठिन होता है, लेकिन जयपुर के एसएमएस अस्पताल की टीम ने हार मानने से इनकार कर दिया। समय के साथ दौड़ लगाते हुए, उन्होंने बच्चे को तुरंत ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट किया और करीब 6 घंटे तक अत्यंत बारीकी से माइ’क्रो-सर्जरी की। नसों, धमनियों, हड्डियों और ऊतकों को जोड़ना एक-एक पल में सटीकता और धैर्य की माँग करता है—लेकिन डॉक्टरों की टीम ने यह चुनौती पूरी कर दिखाई। जब ऑपरेशन के बाद बच्चे की उंगलियों में हलचल लौटी, तो वह सिर्फ़ एक चिकित्सकीय सफलता नहीं थी, बल्कि एक नन्हे जीवन में फिर से उम्मीद जगने का पल था। यह घटना हमें याद दिलाती है कि डॉक्टर सिर्फ़ इलाज नहीं करते, वे कभी-कभी चमत्कार भी करते हैं। और इस चमत्कार को अंजा’म देने वाले हर हाथ को सच्चा सलाम मिलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ़ एक अंग, बल्कि एक बचपन और उसका भविष्य बचा लिया!!!!! लाइक करे????

“””””””उदयपुर की 30 वर्षीय बहू गरिमा अग्रवाल ने यह साबित कर दिया कि रिश्ते सिर्फ़ खून के नहीं, बल्कि दिल के होते हैं। जब...
14/08/2025

“””””””उदयपुर की 30 वर्षीय बहू गरिमा अग्रवाल ने यह साबित कर दिया कि रिश्ते सिर्फ़ खून के नहीं, बल्कि दिल के होते हैं। जब उनके ससुर गंभीर लिवर रोग से जूझ रहे थे और इलाज का एकमात्र रास्ता लिवर ट्रांसप्लांट था, तब गरिमा ने बिना किसी हिचकि’चाहट के अपना लिवर दान करने का फैसला लिया। यह साहसिक और निःस्वार्थ कदम न सिर्फ़ उनके ससुर को नई ज़िंदगी देने वाला बना, बल्कि पूरे परिवार के लिए उम्मीद, प्रेम और आपसी विश्वास का अनमोल प्रतीक भी बन गया। गरिमा का यह त्याग हमें याद दिलाता है कि सच्चा संबंध वही है, जिसमें दूसरे के जीवन को अपनी प्राथमिकता बना लिया जाए!!!!! लाइक करे?????

“””””””ज़ोया अख्तर और फ़राह ख़ान — दोनों ही बॉलीवुड की सफल महिला फ़िल्मनिर्माता हैं, लेकिन उनकी फ़िल्मी यात्रा, पृष्ठभूम...
14/08/2025

“””””””ज़ोया अख्तर और फ़राह ख़ान — दोनों ही बॉलीवुड की सफल महिला फ़िल्मनिर्माता हैं, लेकिन उनकी फ़िल्मी यात्रा, पृष्ठभूमि और निर्देशन शैली एक-दूसरे से काफी अलग है!!!!!ज़ोया अख्तर का जन्म 1972 में मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और पटकथा लेखिका हनी ईरानी के घर हुआ। फ़िल्मी माहौल में पली-बढ़ी ज़ोया ने न्यूयॉर्क यूनि’वर्सिटी से फ़िल्म प्रोडक्शन की पढ़ाई की। उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम शुरू किया और 2009 में लक बाय चांस से निर्देशन में कदम रखा। इसके बाद जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011), दिल धड़’कने दो (2015), गली बॉय (2019) जैसी फ़िल्मों से उन्होंने मॉडर्न, शहरी और रिलेशनशिप-ड्रिवन कहानियों को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की संवेदनशीलता के साथ पेश किया। ज़ोया की फिल्मों में अक्सर किरदारों की गहराई, बारीक संवाद और विज़ुअल स्टोरीटेलिंग पर खास ध्यान होता है!!!!!!फ़राह ख़ान, 1965 में जन्मी, बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफ़र के रूप में पहचान बनाने के बाद निर्देशक बनीं। उन्होंने 1990 के दशक में गानों के स्टाइलिश और एनर्जेटिक डांस सीक्वेंस से नाम कमाया और फिर 2004 में मैं हूँ ना से निर्देशन की शुरुआत की। फ़राह की फ़िल्में (ओम शांति ओम, हैप्पी न्यू ईयर) भव्य सेट, चमक-दमक, मसाला एंटरटेनमेंट और बड़े स्टारकास्ट के लिए जानी जाती हैं। वह दर्शकों को “प्योर एंटरटेनमेंट” का पैकेज देने में माहिर हैं, जहाँ कहानी के साथ-साथ गाने, कॉमेडी और ड्रामा का ज़ोरदार मिश्रण होता है!!!!!!!जहाँ ज़ोया अख्तर की शैली ज्यादा “रियलिस्टिक और कैरेक्टर-ड्रिवन” है, वहीं फ़राह ख़ान की फ़िल्में “ग्लैमरस, ओवर-द-टॉप और कमर्शियल” होती हैं। लेकिन दोनों में एक समानता है — दोनों ने साबित किया है कि हिंदी सिनेमा में निर्देशन का मैदान सिर्फ़ पुरुषों तक सीमित नहीं, और महिला निर्देशक भी बॉक्स ऑफिस और आलोचनात्मक सराहना, दोनों मोर्चों पर जीत हासिल कर सकती हैं!!!!!! लाइक करे?????

“”””””””राखी मजूमदार और जया बच्चन (जया भादुरी) — दोनों ही हिंदी सिनेमा की ऐसी अदाकारा हैं, जिन्होंने अपने-अपने अंदाज़ मे...
14/08/2025

“”””””””राखी मजूमदार और जया बच्चन (जया भादुरी) — दोनों ही हिंदी सिनेमा की ऐसी अदाकारा हैं, जिन्होंने अपने-अपने अंदाज़ में 70 और 80 के दशक में अभिनय की नई ऊँचाइयाँ छुईं!!!!!राखी मजूमदार (जिन्हें हम सिर्फ़ “राखी” के नाम से जानते हैं) का जन्म 1947 में पश्चिम बंगाल में हुआ। उन्होंने 1967 में बंगाली फ़िल्म बधू बरन से करियर शुरू किया और फिर हिंदी सिनेमा में जीवन मृत्यु (1970) से धमाकेदार एंट्री की। राखी अपनी सौम्य सुंदरता, भावनात्मक गहराई और मज़बूत स्क्रीन प्रेज़ेंस के लिए जानी गईं। उन्होंने कभी कभी, त्रिशूल, क्रां’ति, और शक्ति जैसी फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं। 70 के दशक में वह अमिताभ बच्चन के साथ सबसे लोकप्रिय ऑन-स्क्रीन जोड़ियों में से एक रहीं। बाद में, माँ के रोल में भी उन्होंने कर्ण अर्जुन और बाज़ीगर जैसी हिट फ़िल्मों में गहरी छाप छोड़ी!!!!!!जया बच्चन (पूर्व नाम जया भादुरी) का जन्म 1948 में हुआ और वे FTII पुणे की गोल्ड मेड’लिस्ट हैं। उन्होंने सत्यजीत रे की बंगाली फ़िल्म मधुमती में बाल कलाकार के रूप में और फिर गुड्डी (1971) में हिंदी सिनेमा में लीड हीरोइन के रूप में अपनी मासूमियत और नैसर्गिक अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। जया बच्चन ने अभिमान, मिली, चुपके चुपके, शोले जैसी क्लासिक्स में काम किया और अपने समय की “गर्ल-नेक्स्ट-डोर” छवि को गहराई दी। 1981 के बाद उन्होंने स्क्रीन से दूरी बनाई, लेकिन बाद में हज़ार चौरासी की माँ और कभी खुशी कभी ग़म जैसी फ़िल्मों से वापसी की!!!!!!!राखी और जया, दोनों की अभिनय शैलियाँ अलग थीं — राखी में ग्लैमर और गंभीरता का संगम था, जबकि जया बच्चन अपनी सहजता और भा’वनात्मक सच्चाई के लिए पहचानी जाती हैं। लेकिन दोनों का एक समान पहलू यह है कि उन्होंने हिंदी सिनेमा में महिला किरदारों को सिर्फ़ “सपोर्ट” नहीं, बल्कि कहानी का केंद्र बनाने में अहम भूमिका निभाई!!!!! लाइक करे?????

“”””””””अमजद ज़कारिया ख़ान और प्रेम चोपड़ा — ये दोनों हिंदी सिनेमा के ऐसे नाम हैं, जिनका ज़िक्र आते ही 70 और 80 के दशक क...
14/08/2025

“”””””””अमजद ज़कारिया ख़ान और प्रेम चोपड़ा — ये दोनों हिंदी सिनेमा के ऐसे नाम हैं, जिनका ज़िक्र आते ही 70 और 80 के दशक की यादें ताज़ा हो जाती हैं, ख़ासकर बॉलीवुड के “विलेन” के सुनहरे दौर की!!!!!अमजद ज़कारिया ख़ान को दुनिया अमजद ख़ान के नाम से जानती है। 1940 में जन्मे और रंगमंच से शुरुआत करने वाले अमजद ख़ान ने 1975 की फ़िल्म शोले में “गब्ब’र सिंह” बनकर वो पहचान बनाई, जो आज भी भारतीय पॉप कल्चर का हिस्सा है। उनकी गहरी आवाज़, सधी हुई अदाकारी और डाय’लॉग डिलीवरी ने उन्हें सिर्फ़ विलेन नहीं, बल्कि आइकॉनिक स्क्रीन पर्सोना बना दिया। करियर में उन्होंने गंभीर खल****ना*****यक से लेकर हास्य भूमिकाएँ तक निभाईं और हर किरदार में अपना अलग रंग भरा!!!!प्रेम चोपड़ा, 1935 में लाहौर में जन्मे, अपने शांत मगर डराने वाले अंदाज़ के लिए मशहूर हुए। उनकी मुस्कान के पीछे छिपा ख़***तर******नाक अंदाज़ और संवाद “प्रेम नाम है मेरा… प्रेम चोपड़ा” आज भी उतना ही लोकप्रिय है। प्रेम चोपड़ा ने 400 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया, और 60-80 के दशक में लगभग हर बड़े हीरो के सामने ख़***तर******नाक बनकर छाए रहे!!!!!!दिलचस्प बात यह है कि अमजद ख़ान और प्रेम चोपड़ा दोनों का करियर लगभग एक ही दौर में चमका और दोनों ने ही यह साबित किया कि सिनेमा में “वि’लेन” का किरदार उतना ही अहम और यादगार हो सकता है जितना “हीरो” का!!!!! लाइक करे ??????

“””””””बिहार के मधुबनी जिले के मनीष कुमार सिंह ने यह साबित कर दिया कि सपनों को पूरा करने के लिए हालात नहीं, बल्कि हौसले ...
14/08/2025

“””””””बिहार के मधुबनी जिले के मनीष कुमार सिंह ने यह साबित कर दिया कि सपनों को पूरा करने के लिए हालात नहीं, बल्कि हौसले मायने रखते हैं। किसान पिता और आंगनबाड़ी सेविका मां के बेटे मनीष का एनटीपीसी में सालाना 17 लाख रुपये के पैकेज पर एग्जीक्यूटिव पद पर चयन हुआ है। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी—परिवार का सहारा बनने के लिए वे गांव के बच्चों को पढ़ाते थे और अपने सपनों के लिए जी-जान से मेहनत करते रहे। उनकी सफ’लता हर उस युवा के लिए संदेश है जो सोचता है कि साधन कम होने पर मंज़िल पाना मुश्किल है। मनीष की यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार और गांव, बल्कि पूरे बिहार का गौरव बढ़ाती है। जो सच में मेहनत और प्रतिभा को मानता है, वही इस जीत की सच्ची खुशी महसूस करेगा!!!!!! लाइक और कमेंट करे????

“”””””””युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के सबसे दमदार, स्टाइलिश और मैच-विनिंग खिलाड़ियों में से एक रहे हैं। उनका नाम आते ही ह...
14/08/2025

“”””””””युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के सबसे दमदार, स्टाइलिश और मैच-विनिंग खिलाड़ियों में से एक रहे हैं। उनका नाम आते ही हमें 2007 टी-20 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 6 गेंदों पर 6 छक्कों का ऐतिहासिक कारनामा और 2011 वन-डे वर्ल्ड कप में ऑलराउंड प्रदर्शन याद आता है, जहाँ उन्होंने मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट बनकर भारत को खिताब दिलाने में अहम भूमिका निभाई!!!!!पंजाब के चंडीगढ़ में 12 दिसंबर 1981 को जन्मे युवराज को खेल का जुनून अपने पिता, पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह से मिला। बाएं हाथ के बल्लेबाज और चपल फील्डर के रूप में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 2000 में पदार्पण किया और जल्द ही अपनी आक्रामक बल्ले’बाजी से विरोधियों पर दबाव बनाने वाले खिलाड़ी बन गए।युवराज का करियर सिर्फ चमकदार पारियों का नहीं, बल्कि मुश्किल संघर्षों का भी रहा। 2011 वर्ल्ड कप के तुरंत बाद उन्हें कैंसर (germ cell tumor) का पता चला, लेकिन उन्होंने न सिर्फ़ इसका इलाज करवाया, बल्कि मजबूती से वापसी भी की — जिससे वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गए!!!!!!क्रिकेट के अलावा युवराज सिंह एक सक्रिय समा’जसेवी भी हैं; उनका “YouWeCan” फ़ाउंडेशन कैंसर जागरूकता और मरीज़ों की मदद के लिए काम करता है। क्रिकेट, हिम्मत, और जीवन के जज़्बे का जो मिश्रण युवराज के व्यक्तित्व में है, वह उन्हें भारतीय खेल इतिहास का एक अमर चेहरा बनाता है!!!! लाइक करे ????

पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री के मशहूर सिंगर और रै`पर करन औजला न सिर्फ अपने गानों से बल्कि अपने नेक दिल से भी लोगों का दिल ज...
04/08/2025

पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री के मशहूर सिंगर और रै`पर करन औजला न सिर्फ अपने गानों से बल्कि अपने नेक दिल से भी लोगों का दिल जीत रहे हैं। हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि करन औजला अपने गाँव की कुछ गरीब लड़कियों की शादी करवाने वाले हैं, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें। इसके अलावा उन्होंने एक कैं`*`र पी`ड़ित बच्चे का इलाज भी अपने खर्च पर करवाया, जो अब ठीक हो रहा है। यही नहीं, करन औजला अपने गाँव में एक आधुनिक पार्क और खेल का ग्राउंड भी बनवा रहे हैं, जिससे गाँव के बच्चों और युवाओं को अच्छी सुविधाएँ मिल सकें। उनके ये काम दिखाते हैं कि वे सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़े और समाज के लिए सोचने वाले इंसान भी हैं

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव घोड़ा`सोत में एक सरकारी स्कूल का ऐसा सच सामने आया है, जो पूरे शिक्षा तंत्र की नींव को हिला ...
04/08/2025

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव घोड़ा`सोत में एक सरकारी स्कूल का ऐसा सच सामने आया है, जो पूरे शिक्षा तंत्र की नींव को हिला देने वाला है। यहाँ एक शिक्षक, जिसे सरकार हर महीने करीब ₹70,000 वेतन देती है, पाँच साल से बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ा रहा है—लेकिन उसे आज तक “eleven” की सही स्पेलिंग भी नहीं आती। हैरानी की बात यह नहीं कि वो गलत लिखा, बल्कि यह कि उसने आ`त्मविश्वास से उसे सही बताकर बच्चों को पढ़ाया। उसने “eleven” को “aivene” और “alaven” लिखा और “nineteen” को “ninithin”—इतना ही नहीं, जब उससे मुख्य`मंत्री, कलेक्टर या प्रधानमंत्री का नाम पूछा गया, तो वह खामोश हो गया। इस एक घटना ने दिखा दिया कि डिग्री होना और शिक्षक होना दो अलग बातें हैं। शायद पहली बार देश ने देखा है कि सर`कारी सिस्टम ने किसी स्कूल में वेतन तो दिया, लेकिन ज्ञान देने वाला हाथ ही नहीं दिया। ये केवल एक वीडियो नहीं, बल्कि 60 बच्चों की उम्मीदों पर लटकी एक चुप`चाप गिरती छत थी

“”””””सत्येन कपूर — हिंदी सिनेमा का वो नाम जो आज भले ही बहुतों को याद न हो, लेकिन 1960 और 70 के दशक की फिल्मों में उनकी ...
28/07/2025

“”””””सत्येन कपूर — हिंदी सिनेमा का वो नाम जो आज भले ही बहुतों को याद न हो, लेकिन 1960 और 70 के दशक की फिल्मों में उनकी मौजूदगी एक अदृश्य रीढ़ की तरह थी। वे उन अभिनेताओं में से थे जो कभी सुपरस्टार नहीं कहलाए, लेकिन जिनकी मौजूदगी के बिना फिल्में अ’धूरी लगती थीं। फेसबुक और सोशल मीडिया पर उनके बारे में ज्यादातर सतही जानकारी ही मिलती है — जैसे कि वे निर्माता-निर्देशक भी थे और उन्होंने फूल और पत्थर, गुमनाम, साजन, घरौंदा, आसरा पिंजर, जैसी फिल्मों में काम किया — लेकिन उनकी असली कहानी इससे कहीं गहरी और मानवीय है। सत्येन कपूर का असली नाम सत्येन्द्र कपूर था और उन्होंने शुरुआत की थी थिएटर से, न कि सीधे फिल्मों से। उन्होंने उस दौर में काम शुरू किया जब फिल्म इंडस्ट्री में “साइड हीरो” या “सपोर्टिंग रोल” को सिर्फ “फिलर” समझा जाता था — लेकिन सत्येन कपूर ने इसे कलात्मक गरिमा में बदला। उनका चेहरा शांत, आंखों में दर्द और समझदारी लिए होता था — इसलिए उन्होंने अक्सर बड़े भाई, डॉक्टर, पुलिस अफसर, पिता, या न्यायप्रिय इंसान का रोल निभाया!!!!!!!!एक बात जो फेसबुक या पब्लिक इंटरव्यूज़ में नहीं मिलती — वह यह है कि सत्येन कपूर असल ज़िंदगी में एक बेहद पढ़े-लिखे, आत्ममंथन करने वाले इंसान थे, जिन्हें फिल्मों से ज़्यादा “किरदारों” से प्यार था। वे पर्दे पर जितने सीधे-सादे दिखते थे, असल जीवन में उतने ही दर्शक और लेखक स्वभाव के थे। उन्होंने कई फिल्मों की स्क्रिप्ट और संवाद लेखन में भी सहयोग दिया, लेकिन कभी क्रेडिट नहीं लिया। उन्हें शोहरत की भूख नहीं थी — बल्कि वे फिल्म को एक टीम वर्क मानते थे, जहाँ कोई एक आदमी अकेले चमक नहीं सकता। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1975 की शोले में सत्येन कपूर ने जय और वीरू के जेलर के बड़े भाई की भूमिका निभाई थी — एक छोटा लेकिन अहम रोल, जिसमें उनका एक संवाद भी नहीं था, लेकिन उनका चेहरा उस भावनात्मक बोझ को लेकर आता है, जो फिल्म को गहराई देता है। यही उनकी खासियत थी — अभिनय के शोर में नहीं, खामोशी में असर छोड़ना।उनकी निजी ज़िंदगी बेहद सादा और अनुशासित थी। वे मुंबई में एक साधारण अपार्टमेंट में रहते थे, और फिल्मों के सेट पर समय के बेहद पाबंद माने जाते थे। कई नए कलाकार उन्हें “शांत गुरु” मानते थे, क्योंकि वे कभी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे, लेकिन उनकी सलाह हमेशा सीधे दिल में उतरती थी!!!!!! लाइक और कमेंट करे??????

Address

Patiala

Telephone

+16614476234

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when दूनिया के गजब तथ्य posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Category

दुनिया के गज़ब तथ्य

Page Like And Share Jaroor Kare Apne Friends Ke Saath

Thanks