
28/07/2025
“”””””सत्येन कपूर — हिंदी सिनेमा का वो नाम जो आज भले ही बहुतों को याद न हो, लेकिन 1960 और 70 के दशक की फिल्मों में उनकी मौजूदगी एक अदृश्य रीढ़ की तरह थी। वे उन अभिनेताओं में से थे जो कभी सुपरस्टार नहीं कहलाए, लेकिन जिनकी मौजूदगी के बिना फिल्में अ’धूरी लगती थीं। फेसबुक और सोशल मीडिया पर उनके बारे में ज्यादातर सतही जानकारी ही मिलती है — जैसे कि वे निर्माता-निर्देशक भी थे और उन्होंने फूल और पत्थर, गुमनाम, साजन, घरौंदा, आसरा पिंजर, जैसी फिल्मों में काम किया — लेकिन उनकी असली कहानी इससे कहीं गहरी और मानवीय है। सत्येन कपूर का असली नाम सत्येन्द्र कपूर था और उन्होंने शुरुआत की थी थिएटर से, न कि सीधे फिल्मों से। उन्होंने उस दौर में काम शुरू किया जब फिल्म इंडस्ट्री में “साइड हीरो” या “सपोर्टिंग रोल” को सिर्फ “फिलर” समझा जाता था — लेकिन सत्येन कपूर ने इसे कलात्मक गरिमा में बदला। उनका चेहरा शांत, आंखों में दर्द और समझदारी लिए होता था — इसलिए उन्होंने अक्सर बड़े भाई, डॉक्टर, पुलिस अफसर, पिता, या न्यायप्रिय इंसान का रोल निभाया!!!!!!!!एक बात जो फेसबुक या पब्लिक इंटरव्यूज़ में नहीं मिलती — वह यह है कि सत्येन कपूर असल ज़िंदगी में एक बेहद पढ़े-लिखे, आत्ममंथन करने वाले इंसान थे, जिन्हें फिल्मों से ज़्यादा “किरदारों” से प्यार था। वे पर्दे पर जितने सीधे-सादे दिखते थे, असल जीवन में उतने ही दर्शक और लेखक स्वभाव के थे। उन्होंने कई फिल्मों की स्क्रिप्ट और संवाद लेखन में भी सहयोग दिया, लेकिन कभी क्रेडिट नहीं लिया। उन्हें शोहरत की भूख नहीं थी — बल्कि वे फिल्म को एक टीम वर्क मानते थे, जहाँ कोई एक आदमी अकेले चमक नहीं सकता। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1975 की शोले में सत्येन कपूर ने जय और वीरू के जेलर के बड़े भाई की भूमिका निभाई थी — एक छोटा लेकिन अहम रोल, जिसमें उनका एक संवाद भी नहीं था, लेकिन उनका चेहरा उस भावनात्मक बोझ को लेकर आता है, जो फिल्म को गहराई देता है। यही उनकी खासियत थी — अभिनय के शोर में नहीं, खामोशी में असर छोड़ना।उनकी निजी ज़िंदगी बेहद सादा और अनुशासित थी। वे मुंबई में एक साधारण अपार्टमेंट में रहते थे, और फिल्मों के सेट पर समय के बेहद पाबंद माने जाते थे। कई नए कलाकार उन्हें “शांत गुरु” मानते थे, क्योंकि वे कभी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे, लेकिन उनकी सलाह हमेशा सीधे दिल में उतरती थी!!!!!! लाइक और कमेंट करे??????