दूनिया के गजब तथ्य

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“”””””सत्येन कपूर — हिंदी सिनेमा का वो नाम जो आज भले ही बहुतों को याद न हो, लेकिन 1960 और 70 के दशक की फिल्मों में उनकी ...
28/07/2025

“”””””सत्येन कपूर — हिंदी सिनेमा का वो नाम जो आज भले ही बहुतों को याद न हो, लेकिन 1960 और 70 के दशक की फिल्मों में उनकी मौजूदगी एक अदृश्य रीढ़ की तरह थी। वे उन अभिनेताओं में से थे जो कभी सुपरस्टार नहीं कहलाए, लेकिन जिनकी मौजूदगी के बिना फिल्में अ’धूरी लगती थीं। फेसबुक और सोशल मीडिया पर उनके बारे में ज्यादातर सतही जानकारी ही मिलती है — जैसे कि वे निर्माता-निर्देशक भी थे और उन्होंने फूल और पत्थर, गुमनाम, साजन, घरौंदा, आसरा पिंजर, जैसी फिल्मों में काम किया — लेकिन उनकी असली कहानी इससे कहीं गहरी और मानवीय है। सत्येन कपूर का असली नाम सत्येन्द्र कपूर था और उन्होंने शुरुआत की थी थिएटर से, न कि सीधे फिल्मों से। उन्होंने उस दौर में काम शुरू किया जब फिल्म इंडस्ट्री में “साइड हीरो” या “सपोर्टिंग रोल” को सिर्फ “फिलर” समझा जाता था — लेकिन सत्येन कपूर ने इसे कलात्मक गरिमा में बदला। उनका चेहरा शांत, आंखों में दर्द और समझदारी लिए होता था — इसलिए उन्होंने अक्सर बड़े भाई, डॉक्टर, पुलिस अफसर, पिता, या न्यायप्रिय इंसान का रोल निभाया!!!!!!!!एक बात जो फेसबुक या पब्लिक इंटरव्यूज़ में नहीं मिलती — वह यह है कि सत्येन कपूर असल ज़िंदगी में एक बेहद पढ़े-लिखे, आत्ममंथन करने वाले इंसान थे, जिन्हें फिल्मों से ज़्यादा “किरदारों” से प्यार था। वे पर्दे पर जितने सीधे-सादे दिखते थे, असल जीवन में उतने ही दर्शक और लेखक स्वभाव के थे। उन्होंने कई फिल्मों की स्क्रिप्ट और संवाद लेखन में भी सहयोग दिया, लेकिन कभी क्रेडिट नहीं लिया। उन्हें शोहरत की भूख नहीं थी — बल्कि वे फिल्म को एक टीम वर्क मानते थे, जहाँ कोई एक आदमी अकेले चमक नहीं सकता। बहुत कम लोग जानते हैं कि 1975 की शोले में सत्येन कपूर ने जय और वीरू के जेलर के बड़े भाई की भूमिका निभाई थी — एक छोटा लेकिन अहम रोल, जिसमें उनका एक संवाद भी नहीं था, लेकिन उनका चेहरा उस भावनात्मक बोझ को लेकर आता है, जो फिल्म को गहराई देता है। यही उनकी खासियत थी — अभिनय के शोर में नहीं, खामोशी में असर छोड़ना।उनकी निजी ज़िंदगी बेहद सादा और अनुशासित थी। वे मुंबई में एक साधारण अपार्टमेंट में रहते थे, और फिल्मों के सेट पर समय के बेहद पाबंद माने जाते थे। कई नए कलाकार उन्हें “शांत गुरु” मानते थे, क्योंकि वे कभी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे, लेकिन उनकी सलाह हमेशा सीधे दिल में उतरती थी!!!!!! लाइक और कमेंट करे??????

“”””””””मराठी एक्टर सिद्धार्थ चांदेकर की कहानी बहुत ही खास है, लेकिन सोशल मीडिया या फेसबुक पर उनके बारे में बहुत ज्यादा ...
28/07/2025

“”””””””मराठी एक्टर सिद्धार्थ चांदेकर की कहानी बहुत ही खास है, लेकिन सोशल मीडिया या फेसबुक पर उनके बारे में बहुत ज्यादा बातें नहीं होतीं। वो कोई बहुत बड़ा स्टार बनने की दौड़ में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने काम से लोगों के दिलों में एक अलग जगह बनाई है!!!!!!सिद्धार्थ का जन्म पुणे में हुआ था। बचपन में वो संगीतकार बनना चाहते थे, तबला बजा’ना भी सीखा था। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें एक्टिंग में दिलचस्पी होने लगी और उन्होंने थिएटर से शुरुआत की। फिर टीवी शो “हमने ली है शपथ” से उन्होंने छोटे पर्दे पर कदम रखा।उनकी पहली बड़ी मराठी फिल्म “Zenda” थी, जिसने उन्हें पहचान दिलाई। उसके बाद “Duniyadari”, “Classmates”, “Ti Saddhya Kay Karte”, जैसी फिल्मों में काम करके सिद्धार्थ ने दिखा दिया कि वो दिल से एक्टिंग करते हैं, बिना दिखावे के।!!!!एक खास बात ये है कि सि’द्धार्थ ने कभी भी बहुत ज्यादा “हीरो जैसा दिखने” या मसालेदार रोल करने की कोशिश नहीं की। उन्होंने हमेशा ऐसे किरदार चुने जो आम इंसान जैसे होते हैं – साधे, भावुक और सच्चे। उनके डायलॉग्स बहुत तेज या ऊँची आवाज़ में नहीं होते, लेकिन सीधे दिल पर असर करते हैं!!!!!सिद्धार्थ की पर्सनल लाइफ भी बहुत साफ-सुथरी है। उन्होंने 2022 में एक्ट्रेस मिताली मयेकर से शादी की। दोनों की लव स्टोरी बिलकुल सिंपल थी, बिना किसी दिखावे के। वो लोग सोशल मीडिया पर भी बहुत नैचुरल और सच्चे रहते हैं।आज जब ज़्यादातर लोग सोशल मीडिया पर खुद को बड़ा दिखाने में लगे होते हैं, सिद्धार्थ चांदेकर शांत तरीके से, सच्चाई के साथ आगे बढ़ते हैं। वो फेसबुक या इंस्टाग्राम पर सिर्फ शो करने के लिए पोस्ट नहीं करते, बल्कि अपने फैंस से जुड़ने के लिए करते हैं!!!!!!!!!इसलिए उनकी कहानी फेसबुक पर बहुत नहीं दिखती, क्योंकि इसमें कोई ड्रामा नहीं है, कोई कंट्रोवर्सी नहीं है। ये बस एक सीधे-सादे लड़के की सच्ची मेहनत की कहानी है — जो दिखावे से नहीं, दिल से काम करता है और लोगों के दिलों में जगह बनाता है!!!!!! लाइक और कमेंट करे??????

“””””””””जूनियर एन.टी.आर. (Junior NTR) और उनकी मां शालिनी भुवनेश्वरी की कहानी सिर्फ एक स्टार बेटे और एक सशक्त मां की नही...
28/07/2025

“””””””””जूनियर एन.टी.आर. (Junior NTR) और उनकी मां शालिनी भुवनेश्वरी की कहानी सिर्फ एक स्टार बेटे और एक सशक्त मां की नहीं है — बल्कि यह उस रिश्ते की कहानी है जिसे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की राजनीतिक-सिनेमाई विरासत के बीच पनपना पड़ा, जहाँ हर फैसला सिर्फ निजी नहीं, बल्कि सा’र्वजनिक भी होता है!!!!!!!!जूनियर एन.टी.आर., जिनका असली नाम नंदमूरी तारक रामाराव जूनियर है, तेलुगु सिनेमा के दिग्गज N.T. रामाराव (NTR) के पोते हैं और उनके पिता नंदमूरी हरिकृष्णा, एक अभिनेता और राजनेता, NTR के बेटे थे। लेकिन इस मश’हूर वंश में उनकी मां शालिनी भुवनेश्वरी एक ऐसा चेहरा रहीं, जो हमेशा परदे के पीछे रहीं — और फिर भी सबसे बड़ा भावनात्मक स्तंभ बनीं। कम लोग जानते हैं कि जूनियर NTR का पालन-पोषण उनके माता-पिता के साथ लंबे समय तक नहीं हुआ। बचपन में उनके माता-पिता अलग हो गए थे, और वे अपनी मां शालिनी के साथ ही रहे। यह एक बहुत ही संवे’दनशील दौर था — क्योंकि एक तरफ उन्हें अपने पिता की फिल्मी और राजनीतिक विरासत से जुड़े रहना था, और दूसरी तरफ एक सामान्य, स्थिर जीवन की जरूरत थी जो उनकी मां ने उन्हें देने की कोशिश की। शालिनी भुवनेश्वरी ने कभी भी मीडिया में या सार्वजनिक जीवन में कोई दखल नहीं दिया। लेकिन उनका जीवन एक बेहद संघर्षशील, एकाकी और मजबूत मां की मिसाल रहा, जिसने बेटे को फिल्मी विरासत में झोंकने के बजाय, पहले एक सभ्य, अनुशासित और भावनात्मक रूप से संतु’लित व्यक्ति बनाने की कोशिश की। उन्होंने जूनियर NTR को भरतनाट्यम सीखने के लिए प्रेरित किया, और संस्कृति, परंपरा और भाषा के प्रति सम्मान उनके बचपन में ही बो दिया।यह बात और भी कम लोग जानते हैं कि जब जूनियर NTR को “स्टूडेंट नंबर 1” फिल्म मिली (जो उनकी पहली बड़ी हिट थी), तब वो महज़ 17 साल के थे — और उस समय उनकी मां ही वह शख्स थीं जिन्होंने उन्हें इस असमय मिली प्रसिद्धि के बावजूद जमीन से जुड़ा रहने की सीख दी। खुद जूनियर NTR कई बार इंटरव्यूज़ में कह चुके हैं कि,“मैं जो कुछ भी आज हूँ, वह मेरी मां की वजह से हूँ। उन्होंने मुझे बड़े नामों की भीड़ में खुद की पहचान बनाए रखने की समझ दी।”राजनीतिक स्तर पर जब जूनियर NTR को 2009 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रचार के लिए आगे लाया गया, तब भी उनकी मां इस फैसले को लेकर सहज नहीं थीं। वे चाहती थीं कि उनका बेटा पहले अपने अभिनय और व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान दे, और यही वजह है कि जूनियर NTR का राजनीति में प्रवेश अस्थायी रहा — और वो दो’बारा फिल्मों की ओर लौट आए।शालिनी भुवनेश्वरी का जीवन हमेशा आवाज़ के बिना प्रभाव डालने वाला जीवन रहा है — न वह प्रेस मीट्स में दिखती हैं, न सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, लेकिन जूनियर NTR के हर फैसले में उनका अदृश्य नेतृत्व मौजूद रहता है। जब 2018 में उनके पिता (हरिकृष्णा) की सड़क दुर्घटना में मृ’त्यु हुई, तब मां-बेटे का एक बेहद मार्मिक दृश्य लोगों ने देखा — दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े, शोक से परे, भीतर से टूटा हुआ लेकिन चेहरे पर अद्भुत संयम लिए खड़े थे!!!!! लाइक और कमेंट करे??????

"”””””””””प्राण — हिंदी सिनेमा का वह नाम जिसे सु’नते ही दशकों तक दर्शकों की रूह काँप जाती थी, लेकिन जिनकी असली ज़िंदगी औ...
28/07/2025

"”””””””””प्राण — हिंदी सिनेमा का वह नाम जिसे सु’नते ही दशकों तक दर्शकों की रूह काँप जाती थी, लेकिन जिनकी असली ज़िंदगी और व्यक्ति’त्व पर जो परतें थीं, वो आज भी अधिकांश लोगों के लिए अनकही हैं। ‘प्रा’ण’ सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक संस्था थे — जिनके अभिनय का प्रभाव इतना गहरा था कि उन्होंने “वि’ले’न” को हिंदी सिनेमा में एक केंद्रीय और सशक्त पहचान दी, और फिर उसी पहचान को तोड़ते हुए “सजग और करुण पात्र” बनकर लौटे। आज फेसबुक पर प्राण साहब के बारे में अधिकतर वही दोह’राई जाने वाली बातें मिलती हैं — जैसे कि उनका पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था, उन्होंने 1940 के दशक में करियर शुरू किया, और वे 1960-70 के दशक के सबसे प्रतिष्ठित खल’ना’य’क थे। लेकिन जो बात शायद आज भी ज़्यादा नहीं कही जाती, वह यह है कि प्राण वो अभिनेता थे जिन्होंने ‘खल’ना’य’क ’ को एक सोच, एक मानसिकता और एक आत्मा दी, वो उसे सिर्फ बुराई की मूर्ति बनाकर नहीं पेश करते थे। कम ही लोग जानते हैं कि प्राण एक बेहद संवेदनशील और कवि-हृदय व्यक्ति थे। उन्होंने विभाजन के दौरान लाहौर छोड़कर मुंबई का रुख किया, लेकिन उस दौरान उन्होंने बहुत कुछ खोया — न सिर्फ संपत्ति, बल्कि वह ज़मीन भी, जिस पर उनका आत्मविश्वास टिका था। मुंबई आने के बाद उन्हें लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा। एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें फिल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया, और उन्होंने सोचा कि वे वापस दिल्ली जाकर फोटोग्राफी का अपना पुराना काम शुरू कर देंगे। लेकिन तभी लेखक सादत हसन मंटो और अभिनेता शिवराम वाघले ने उन्हें मुंबई में रोके रखा और एक फिल्म Ziddi (1948) में काम दिलवाया। यह वही फिल्म थी जिसने न सिर्फ प्राण को, बल्कि देव आनंद और कामिनी कौशल को भी नई उड़ान दी। इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है — उन्होंने एक के बाद एक यादगार ख’ल’ना’य’क बनाए, जिनमें ज़ंजीर, राम और श्याम, मधुमती, जॉनी मेरा नाम, और डॉन जैसी फिल्में शामिल हैं। एक बहुत दिलचस्प और अनकहा तथ्य यह भी है कि 1960-70 के दशक में “प्राण” नाम बच्चों के लिए वर्जित हो गया था। माता-पिता अपने बच्चों का नाम प्राण नहीं रखते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि बच्चा बड़ा होकर ख’ल’ना’यक जैसा न बन जाए — यह उस अभिनेता के प्रभाव का प्रमाण है जिसने सिनेमा के पर्दे पर डर को ‘प्रतिष्ठा’ में बदल दिया।लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने जब “उपकार”, “परिचय” और “अमर अकबर एंथनी” जैसी फिल्मों में एक बुजुर्ग, संवेदनशील और प्यारे किरदार निभाए, तब उन्होंने वही पर्दा फिर से पलट दिया। यह बदलाव सिर्फ एक कलाकार का नहीं था — यह एक आत्मा की परिपक्वता थी जो लोगों को यह बताने आई थी कि एक ही आदमी के अंदर कितनी अलग-अलग छवियाँ रह सकती हैं।प्राण साहब बेहद अनुशासित और शांत जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। वे न पार्टियों में जाते थे, न ही कभी निजी विवादों का हिस्सा बने। उनका सबसे करीबी रिश्ता अशोक कुमार, दिलिप कुमार और राज कपूर जैसे कलाकारों से था — और वे इन लोगों को अपना “inner circle” मानते थे। उन्होंने कभी भी खुद को ‘हीरो’ या ‘स्टार’ की तरह पेश नहीं किया, बल्कि सिर्फ एक “अभिनेता” माना — और शायद यही उन्हें इतना महान बनाता है।उनकी मृnत्यु 2013 में हुई, लेकिन आज भी उनका नाम लेते ही सिनेमा प्रेमियों के मन में एक गूँज सी उठती है — एक ऐसा कलाकार, जो परदे पर डराता था, लेकिन दिल से बेहद कोमल और मौन योद्धा था!!!!!! लाइक और कमेंट करे?????

यह सच है कि लगभग 3.2 अरब वर्ष पुरानी ज़मीन का हिस्सा आज झा`रखंड में मौजूद है। वैज्ञा`निकों ने झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र ...
26/07/2025

यह सच है कि लगभग 3.2 अरब वर्ष पुरानी ज़मीन का हिस्सा आज झा`रखंड में मौजूद है। वैज्ञा`निकों ने झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र में ऐसी चट्टानों की खोज की है जो पृथ्वी पर सबसे पहले बनी ज़मीनों में से एक मानी जाती हैं। यह इलाका उस समय समुद्र के नीचे था, लेकिन ज्वाला`मुखीय गति`विधियों और भूगर्भी`य बदलावों के कारण यह ज़मीन के ऊपर आया। यह खोज न केवल भारत के लिए गौरव की बात है, ब`ल्कि इससे यह भी साबित होता है कि पृ`थ्वी पर सबसे पहले ज़मीन उभरने की प्र`क्रिया की शुरु`आत इसी क्षेत्र से हुई थी – जो इसे पृथ्वी की सबसे पुरानी “धरती की गोद” बनाता है.

जी हाँ, यह पूरी तरह सच है और बेहद प्रेरणादायक भी। अयोध्या के रहने वाले 'मोहम्मद शरीफ' जिन्हें लोग 'शरीफ चाचा' के नाम से ...
16/07/2025

जी हाँ, यह पूरी तरह सच है और बेहद प्रेरणादायक भी। अयोध्या के रहने वाले 'मोहम्मद शरीफ' जिन्हें लोग 'शरीफ चाचा' के नाम से जानते हैं, उन्होंने पिछले 27 वर्षों में 25,000 से ज़्यादा लावा`रिस श``वों का अंति`म संस्कार या अं`ति`म क्रियाएं करवाई हैं — चाहे वह शव हिंदू का हो या मु`स्लिम का। उनका मानना है कि मृ`:त्यु के बाद हर इंसान को स`म्मान`जनक विदाई मिलनी चाहिए, और यही सोच उन्हें इस सेवा के लिए प्रेरित करती है.उनकी इस मानवीय सेवा की शुरुआत 1992 में तब हुई जब उनके बेटे की मौ`:`त हो गई थी, और उसका श:`व ला`वारिस हालत में पड़ा मिला। तब उन्होंने ठान लिया कि अब कोई भी श``व इस तरह बेइ`ज्जती के साथ नहीं छोड़ा जाएगा। वे सड़कों, रेलवे स्टेशनों और अ`स्प`लों में पड़े लावा`रि`स श`:वों को उठाते, ध`र्म के अनुसार अं`तिम संस्कार कराते और अं`ति`म संस्कार का पूरा खर्च अपनी कमाई या चंदे से उठाते हैं.उनकी इस नि`स्वा`र्थ सेवा को स`म्मान देने के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2020 में प`द्मश्री सम्मान से नवाज़ा। मोहम्मद शरीफ जी एक जीते-जागते उदाह`रण हैं कि इंसा`नियत ध`र्म से ऊपर होती है। उनकी कहानी हर भारतीय को यह सिखाती है कि सेवा का कोई मज़`हब नहीं होता.....

हाँ, यह पूरी तरह सच है। बॉलीवुड अभिनेत्री `हिमानी शिवपुरी` ने उत्तरा`खंड के रुद्र`प्रयाग ज़िले के भटवा`ड़ी (भटवाड़ी) गांव...
16/07/2025

हाँ, यह पूरी तरह सच है। बॉलीवुड अभिनेत्री `हिमानी शिवपुरी` ने उत्तरा`खंड के रुद्र`प्रयाग ज़िले के भटवा`ड़ी (भटवाड़ी) गांव को अपने पैतृ`क—मायके के रूप में गोद लिया है। उन्होंने इस कदम का आह्वान उत्त`राखंड सरकार द्वारा प्रवासी उत्तरा`खंडियों से मूल गांवों की विकास में योगदान देने हेतु किए गए आग्रह के बाद उठाया. हिमानी का उद्देश्य गांव की महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना है, जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं, बालि`का शिक्षा, और बु`ज़ुर्ग क`ल्याण प्रमुख हैं.भट`वाड़ी में पलायन की वजह से आज वहां मुख्यतः महिलाएं और बुज़ुर्ग ही रह गए हैं। उन्हें आत्मनि`र्भर बनाने, स्वास्थ्य सुविधा`ओं और शिक्षा के बेहतर अवसर प्रदान करने की पहल की जा रही है....

जी हाँ, यह बात आंशिक रूप से सच है और यह प्रयोग भारत की कुछ महिलाओं द्वारा स्थानीय स्तर पर किया गया है, जो सो`शल मीडिया औ...
16/07/2025

जी हाँ, यह बात आंशिक रूप से सच है और यह प्रयोग भारत की कुछ महिलाओं द्वारा स्थानीय स्तर पर किया गया है, जो सो`शल मीडिया और खबरों में वा`यरल भी हुआ था। दरअसल, कुछ ग्रामीण इलाकों में महि`लाओं ने गर्मी से बचने के लिए अपनी कारों को गाय के गो`बर से लीप दिया, उनका दावा था कि गाय का गोब`र थर्मल इंसु`लेटर की तरह काम करता है, जिससे कार का बाहरी ताप`मान अंदर कम महसूस होता है और बिना AC चलाए भी कार के अंदर ठंडक बनी रहती है.यह सोच पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है — गांवों में आज भी घरों की दी`वारों को गोबर से लीपने की परंप`रा है ताकि गर्मी से बचा जा सके। गोबर प्राकृ`तिक रूप से ताप`मान को स्थिर रखने में मद`द करता है। हालांकि, वैज्ञानिक रूप से इसकी प्रभा`वशीलता पर गहराई से अध्ययन नहीं हुआ है, और कार की बॉडी, हवा की र`फ्तार व अन्य कारकों के कारण इसका असर सीमित हो सकता है। फिर भी, यह प्रयोग दिखाता है कि किस तरह स्थानीय ज्ञान और प्राकृतिक साधनों का उपयोग कर लोग पर्यावरण के अनुकूल समा`धान खोज रहे हैं......

जी हां, यह बिलकुल सच है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में भ्रष्टाचा`र को लेकर एक स`ख्त और ऐतिहास...
16/07/2025

जी हां, यह बिलकुल सच है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में भ्रष्टाचा`र को लेकर एक स`ख्त और ऐतिहासिक चेता`वनी दी है। उन्होंने कहा कि अगर राज्य में कोई भी व्यक्ति भ्रष्टा`चार करते हुए पकड़ा गया, तो न केवल उसके खिलाफ सख्त कार्र`वाई की जाएगी, बल्कि उसके परिवार की आने वाली पीढ़ियों को भी सरकारी नौकरी से वंचित कर दिया जाएगा। यानी उसका बेटा, बेटी, पोता-पोती कोई भी सरकारी सेवा में नहीं जा सकेगा। यह बयान सीएम योगी ने प्रदेश में ईमानदार और पारदर्शी प्रशासन को बढ़ावा देने के लिए दिया है। उनका यह कदम भ्र`ष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को स्पष्ट संदेश देता है कि अब सिर्फ दोषी व्यक्ति ही नहीं, बल्कि उसका पूरा खानदान भी इसके परिणाम भुगतेगा। योगी सरकार भ्रष्टा`चार के प्रति 'जी`रो टॉलरेंस पॉलिसी' पर काम कर रही है और यह चेतावनी उसी दिशा में एक मजबूत कदम मानी जा रही है.......

जी हाँ, यह बात सच है और काबिल-ए-तारीफ भी है। साउथ के सुपरस्टार महेश बाबू ना सिर्फ फिल्मों में बल्कि असल जिंदगी में भी एक...
16/07/2025

जी हाँ, यह बात सच है और काबिल-ए-तारीफ भी है। साउथ के सुपरस्टार महेश बाबू ना सिर्फ फिल्मों में बल्कि असल जिंदगी में भी एक हीरो हैं। उन्होंने तेलंगाना के सिद्धापुर और आंध्र प्रदेश के बुर्रीपालेम नामक दो गांवों को गोद लिया है,
जहाँ उन्होंने विकास कार्यों जैसे स्कूल, साफ पानी, सड़कें और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खास ध्यान दिया। इसके अलावा, वे लंबे समय से Heal-a-Chil1d Foundation और Andhra Hospitals के साथ मिलकर हजार से ज्यादा बच्चों के दि1ल की सर्जरी (हार्ट ऑप1रेशन) भी करवा चुके हैं, जिनके परिवार इलाज का खर्च नहीं उठा सकते थे। उनका मानना है कि समाज से मिला प्यार और नाम, समाज को लौटाना भी एक जिम्मेदारी है। महेश बाबू की यह इंसानियत और सेवा भावना उन्हें बाकी अभिनेताओं से अलग बनाती है......

दिलजीत दोसांझ — एक ऐसा नाम, जो पंजाब की मिट्टी से उठकर पूरी दुनिया के स्टेज पर छा गया, लेकिन फिर भी जिसमें वही गांव की स...
14/07/2025

दिलजीत दोसांझ — एक ऐसा नाम, जो पंजाब की मिट्टी से उठकर पूरी दुनिया के स्टेज पर छा गया, लेकिन फिर भी जिसमें वही गांव की सादगी, वही मां के हाथ की रोटी की खुशबू आज भी जिंदा है। दिलजीत सिर्फ गायक नहीं हैं, वो एक एहसास हैं — जो जब गाते हैं, तो लगता है जैसे आ`त्मा बोल रही हो, और जब अभिन`य करते हैं, तो लगता है जैसे दि`ल ही किसी किरदार का रूप बन गया हो.उन्होंने स्टा`रडम को कभी सिर पर नहीं चढ़ने दिया — चाहे वो 'उड़ता पंजाब' की बारीक भूमिका हो या 'अमर सिंह चमकिला' जैसी ऐतिहासिक बायोपिक। हर किरदार को उन्होंने मासूमियत और पैशन से जिया। उनकी आवाज़ में जहां एक तरफ सूफियाना गहराई है, वहीं स्टेज पर उनकी मौजूदगी में पूरी दुनिया को झुमा देने वाला जोश भी। लेकिन जो बात दिलजीत को भीड़ से अलग बनाती है, वो है उनका दिल — एकदम साफ, एकदम असली........

आप क्या कहना चाहेंगे इस बारे में हमें जरूर बताएं,आगे जरूर भेजे......
14/07/2025

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